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सोलह संस्कार श्रीमती आशा ठाकुर - सागरिका

श्री गणेशाय नमः 
आज मैं आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करने जा रही हूँ । जो हमारे हिन्दू धर्म में सोलह संस्कार होते है। उनके बारे में कुछ जानकारी दे रही हूँ ।  
सभी हिन्दुओं में यह संस्कार होता ही होता है। रीति रिवाज थोड़ा सा अलग हो जाता है। अन्य वर्ग में या हम कहें समाज में 
हम छत्तीसगढ़ के मैथिल ब्राह्मण समाज के अन्तर्गत आते है। 

हमारा नियम रीति रिवाज कुछ अलग हो जाता है। पर गर्म धारण करने के पूर्व जो मुहूर्त  प्रायः सभी उच्च स्तर पर मिलते जुलते रहते है। वर्गी में देखा जाता है। क्योंकि हमारा खानदान पुरोहित खानदान से आता है। एवं मेरे कहने का अर्थ है की जब नया जोडा गर्म धारण करता है। तो अक्सर पंडितों से या ज्योतिषियों से प्रश्न पूछते है । की कौन सा मुहूर्त  गर्भ धारण करने के लिए अच्छा होगा यह पहले के युग में भी पूछा जाता था। और आज भी यह प्रशन  पूछते है।  
आइए हम इनकी जानकारी गर्भ धारण से पूर्व हमें किन नियमो को पालन करना चाहिए 
तो सोलह संस्कार में सबसे पहले गर्भ धारण संस्कार आता है। 
गर्भ धारण संस्कार -  
नव विवाहित जोड़ों को कोई अच्छा सा  मुहूर्त पंडित जी से देखा कर करना चाहिए ताकि बच्चा स्वस्थ दीर्घायु एवं तेजस्वी प्राप्त कर सके  गर्भ धारण एक ऐसा प्रथम चरण होता है। जिसमें नव विवाहित जोड़ों को मानसिक , शारिरिक एवं अध्यात्मिक रूप से  शुद्ध और सकारात्मक होना  चाहिए 
 गर्भ धारण का महत्व : 
 गर्भ धारण के पूर्व कुछ औपचारिक रूप से पूजा पाठ , हवन , धार्मिक अनुष्ठान करना पड़ता है। स्वस्थ , दीर्घायु , एवं तेजस्वी बच्चे को इस दुनिया में ला सके गर्भ धारण के दौरान मात पिता को भी तन , मन , और मस्तिष्क से स्वस्थ रहना शुद्ध रहना अनिवार्य होता है। तभी  गर्भ में पलने वाला शिशु स्वस्थ हो  और भाग्यशाली हो सकें यह तो गर्भ धारण करने के पूर्व नियम है। 
अब कौन कौन सा समय गर्भ धारण करना चाहिए कौन सा पक्ष सही है। कौन सा तिथि सही होता है। गर्म धारण करने के लिए इनका भी जानकारी हम जान  लेते है। चलिए अब हम मुहूर्त एवं तिथि और पक्ष के बारे में जानते है । 
शुभ मुहूर्त में गर्भ धारण करने से शिशु भाग्यशाली , तेजस्वी एवं दीर्घायु प्राप्त होता है। 
अशुभ मुहूर्त में गर्म धारण करने से वही शिशु नकारात्मक सोच एवं अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
गर्भ धारण का दिन :- 
गर्भ धारण करने का शुभ दिन यह है। 
सोमवार 
बुधवार 
गुरुवार 
शुक्रवार 
इन दिनों में यदि गर्भ धारण होता है। तो उसे जच्चा एवं बच्चा के लिए दोनों के लिए शुभ होता है। 
मासिक धर्म के 8, वें एवं 14 वें दिन भी गर्म धारण करना शुभ माना जाता है। 
गर्भ धारण करने के लिए कुछ विषेश नक्षत्र :- 
गर्भ धारण करने के लिए कुछ विशेष नक्षत्रों को भी शुभ माना गया है। जैसे की 
रोहिणी 
मृगशिरा 
पुनर्वसु 
पुष्य 
उत्तरा फाल्गुनी 
हस्त नक्षत्र 
चित्रा 
स्वाति 
अनुराधा 
उत्तराषाढ़ 
श्रवण मास 
धनिष्ठा 
उत्तरा भाद्र पक्ष  
गर्भ धारण करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। 
अशुभ नक्षत्र . 
इन नक्षत्रों में गर्भ धारण करना अशुभ माना गया है। 
अशुभ दिन :- 
मंगल वार 
शनिवार 
रविवार 
इन दिनों को गर्भ धारण करने के लिए अशुभ माना गया है। अतः भुलकर इस दिन सहवास ना करें 
मासिक धर्म के 7, वें दिन गर्भ धारण करने से बचना चाहिए 
पक्ष :- 
गर्भ धारण करने से अर्थात् सहवास करने से बचना चाहिए इन पक्षों में वह यह है। 
श्राद्ध पक्ष 
ग्रहण काल 
पूर्णिमा  
आमावश्या 
इन सभी तिथि और पक्ष से गर्भ धारण से बचना चाहिए गर्भ धारण करने के लिए उत्तम समय 11, एवं 12, बजे रात्रि कालिन में उचित है। दोपहर के समय और ब्रम्ह मुहूर्त में सहवास करना गर्भ धारण के लिए उचित नहीं है। 
यह पहला संस्कार है। इस प्रक्रिया से हर इंसान को गुजरना चाहिए । 
सोलह संस्कारों में प्रथम संस्कार गर्भ धारण संस्कार हिन्दुओं में माना गया है। दूसरा संस्कार पुसंवन संस्कार 
 इस संस्कार का वर्णन क्रमशः आगे होगा 

दूसरा संस्कार
पुंसवन संस्कार है। 
पुंसवन संस्कार गर्भाधान के ठीक सातवें महीने में होता है। उस समय गर्म के अंदर पल रहे बच्चे का तेजी से विकास होता है। मां का और बच्चे का पूरी ध्यान से रखने की जरूरत होती है। बच्चे के विकास के लिए खाद अर्थात् खाने पीने का विशेष ध्यान देना चाहिए हरी सब्जी डाई फूट , फल 
दूध आदि का सेवन भरपूर मात्रा में करना उचित होता है। यही कारण है। की हम शिशु और माता दोनों का ध्यान हमें रखना पड़ता है। उनके स्वास्थ के लिए एवं गुणवान होने के लिए दीघार्यु प्रदान के लिए उत्तम से उत्तम खान पान पर ध्यान देना पड़ता है। 
जो कि हम सातवें महीने में आचार्य जी अपने पुरोहित से शुभ मुहूर्त पूछकर माता को विभिन्न प्रकार के खाने पीने का समान उनके रुचि के अनुसार देत है। पुसवन संस्कार कहते है। हम इसे क्षेत्री भाषा में कुशली कहते है। जो सभी वर्गो में नहीं किया जाता कुछ उच्च वर्गो में यह होता है। 
शुभ मुहूर्त देखकर शिशु के माता को समान्य रूप से स्नान करवा कर सातवें महीने में बेसन नहीं डाला जाता है। समानय रूप से सादा स्नान कराके नए वस्त्र पहनाकर हम उसे फुल गौड़ा चौक देकर बिठाते है। और गौर साठ एवं गौरी गणेश कलश की पूजा विधि अनुसार करवाते है। और मां या सास के द्वारा सात प्रकार का बना हुआ पकवान एवं हल्दी खड़ी सुपारी और सिक्का ओली में डाल देते है। स्नान के बाद नया वस्त्र पहनाते है। सात सुहागनियों के द्वारा  भी किया जाता है। सात सुहागिनों को भी भोजन करवाते है। यह कार्य समान्य रूप से होता है। अधिक नहीं करते मां या सास के  द्वारा बना हुआ भोजन पकवान फल   शहद को कांसे के थाली में मिक्स कर सात बार मां को खिलाया जाता है। सभी सुहागिनों के द्वारा कुछ मीठा खिलाया जाता है। यह हमारे छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राम्हण की संस्कृति है। इस संस्कार को कुशली क्षेत्री भाषा में कहा जाता है। इसे ही पुसवन संस्कार कहते है। 
तीसरा संस्कार के बारे में जानकारी पुनः क्रमश: 
 दूंगी 
🙏🙏
आशा ठाकुर 
अम्लेश्वर पाटन रोड
 

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पुष्प डाल कर भेजे बालक और बालिका को अच्छी तरह से देख र्ले उनसे शंख और दूध लेकर भगवान सूर्य नारायण को अर्ध्य देवें इधर उधर किसी भी को ना देखें सूर्य नारायण को प्रणाम करें पूजा रूम में प्रवेश करें बाल मुंकुद को प्रणाम करें कपड़ा नया वस्त्र धारण करें शृंगार करें आलता लगाए पति पत्नी दोनों गंठ बंधन करके पूजा की जगह पर बैठ जायें पूजा जैसे हम करतेप्रकार करे आरती करें भोग लगाए तन्त् पश्चात् जो परात में आम का पत्ता के ऊपर दिया रखें दिया में चावल के घोल से . + बनाये सिन्दूर लगाए हल्दी सुपाड़ी सिक्का चुड़ी दो रखें प्रत्येक दिये में सिन्दूर की पुड़िया रखें गुझिया रखें उसे भोग लगा कर पूजा के बाद प्रत्येक सुहागिनों को आंचल से करके उनके आचल में दें । फिर पूजा स्थल पर कुश बढ़ाओं चौक डाले पाटा रखें उसके ऊपर गाय + बैल + कहुआ को गोत्र के अनुसार रखें बैले हो तो घोती आढ़ऐ गाय हो तो साड़ी पूजा के बाद कांसे के थाली में बनी हुई समाग्री को पांच कौर शहद डाल कर सास या मां के द्वारा पांच कौर खिलाए उसके पहले ओली में पांच प्रकार का खाद्य समाग्री डाले जैसे गुझिया अनारस फल मेवा डालें और छोटे बच्चे के हाथ से निकलवाए हास्य होता है। थोड़ी देर के लिए गुझिया निकला तो लड़का प प्ची निकला तो लड़की फिर सभी सुहागिनी यों को भोजन करवाए आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून 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