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सोलह संस्कार श्रीमती आशा ठाकुर - सागरिका

श्री गणेशाय नमः 
आज मैं आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करने जा रही हूँ । जो हमारे हिन्दू धर्म में सोलह संस्कार होते है। उनके बारे में कुछ जानकारी दे रही हूँ ।  
सभी हिन्दुओं में यह संस्कार होता ही होता है। रीति रिवाज थोड़ा सा अलग हो जाता है। अन्य वर्ग में या हम कहें समाज में 
हम छत्तीसगढ़ के मैथिल ब्राह्मण समाज के अन्तर्गत आते है। 

हमारा नियम रीति रिवाज कुछ अलग हो जाता है। पर गर्म धारण करने के पूर्व जो मुहूर्त  प्रायः सभी उच्च स्तर पर मिलते जुलते रहते है। वर्गी में देखा जाता है। क्योंकि हमारा खानदान पुरोहित खानदान से आता है। एवं मेरे कहने का अर्थ है की जब नया जोडा गर्म धारण करता है। तो अक्सर पंडितों से या ज्योतिषियों से प्रश्न पूछते है । की कौन सा मुहूर्त  गर्भ धारण करने के लिए अच्छा होगा यह पहले के युग में भी पूछा जाता था। और आज भी यह प्रशन  पूछते है।  
आइए हम इनकी जानकारी गर्भ धारण से पूर्व हमें किन नियमो को पालन करना चाहिए 
तो सोलह संस्कार में सबसे पहले गर्भ धारण संस्कार आता है। 
गर्भ धारण संस्कार -  
नव विवाहित जोड़ों को कोई अच्छा सा  मुहूर्त पंडित जी से देखा कर करना चाहिए ताकि बच्चा स्वस्थ दीर्घायु एवं तेजस्वी प्राप्त कर सके  गर्भ धारण एक ऐसा प्रथम चरण होता है। जिसमें नव विवाहित जोड़ों को मानसिक , शारिरिक एवं अध्यात्मिक रूप से  शुद्ध और सकारात्मक होना  चाहिए 
 गर्भ धारण का महत्व : 
 गर्भ धारण के पूर्व कुछ औपचारिक रूप से पूजा पाठ , हवन , धार्मिक अनुष्ठान करना पड़ता है। स्वस्थ , दीर्घायु , एवं तेजस्वी बच्चे को इस दुनिया में ला सके गर्भ धारण के दौरान मात पिता को भी तन , मन , और मस्तिष्क से स्वस्थ रहना शुद्ध रहना अनिवार्य होता है। तभी  गर्भ में पलने वाला शिशु स्वस्थ हो  और भाग्यशाली हो सकें यह तो गर्भ धारण करने के पूर्व नियम है। 
अब कौन कौन सा समय गर्भ धारण करना चाहिए कौन सा पक्ष सही है। कौन सा तिथि सही होता है। गर्म धारण करने के लिए इनका भी जानकारी हम जान  लेते है। चलिए अब हम मुहूर्त एवं तिथि और पक्ष के बारे में जानते है । 
शुभ मुहूर्त में गर्भ धारण करने से शिशु भाग्यशाली , तेजस्वी एवं दीर्घायु प्राप्त होता है। 
अशुभ मुहूर्त में गर्म धारण करने से वही शिशु नकारात्मक सोच एवं अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
गर्भ धारण का दिन :- 
गर्भ धारण करने का शुभ दिन यह है। 
सोमवार 
बुधवार 
गुरुवार 
शुक्रवार 
इन दिनों में यदि गर्भ धारण होता है। तो उसे जच्चा एवं बच्चा के लिए दोनों के लिए शुभ होता है। 
मासिक धर्म के 8, वें एवं 14 वें दिन भी गर्म धारण करना शुभ माना जाता है। 
गर्भ धारण करने के लिए कुछ विषेश नक्षत्र :- 
गर्भ धारण करने के लिए कुछ विशेष नक्षत्रों को भी शुभ माना गया है। जैसे की 
रोहिणी 
मृगशिरा 
पुनर्वसु 
पुष्य 
उत्तरा फाल्गुनी 
हस्त नक्षत्र 
चित्रा 
स्वाति 
अनुराधा 
उत्तराषाढ़ 
श्रवण मास 
धनिष्ठा 
उत्तरा भाद्र पक्ष  
गर्भ धारण करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। 
अशुभ नक्षत्र . 
इन नक्षत्रों में गर्भ धारण करना अशुभ माना गया है। 
अशुभ दिन :- 
मंगल वार 
शनिवार 
रविवार 
इन दिनों को गर्भ धारण करने के लिए अशुभ माना गया है। अतः भुलकर इस दिन सहवास ना करें 
मासिक धर्म के 7, वें दिन गर्भ धारण करने से बचना चाहिए 
पक्ष :- 
गर्भ धारण करने से अर्थात् सहवास करने से बचना चाहिए इन पक्षों में वह यह है। 
श्राद्ध पक्ष 
ग्रहण काल 
पूर्णिमा  
आमावश्या 
इन सभी तिथि और पक्ष से गर्भ धारण से बचना चाहिए गर्भ धारण करने के लिए उत्तम समय 11, एवं 12, बजे रात्रि कालिन में उचित है। दोपहर के समय और ब्रम्ह मुहूर्त में सहवास करना गर्भ धारण के लिए उचित नहीं है। 
यह पहला संस्कार है। इस प्रक्रिया से हर इंसान को गुजरना चाहिए । 
सोलह संस्कारों में प्रथम संस्कार गर्भ धारण संस्कार हिन्दुओं में माना गया है। दूसरा संस्कार पुसंवन संस्कार 
 इस संस्कार का वर्णन क्रमशः आगे होगा 

दूसरा संस्कार
पुंसवन संस्कार है। 
पुंसवन संस्कार गर्भाधान के ठीक सातवें महीने में होता है। उस समय गर्म के अंदर पल रहे बच्चे का तेजी से विकास होता है। मां का और बच्चे का पूरी ध्यान से रखने की जरूरत होती है। बच्चे के विकास के लिए खाद अर्थात् खाने पीने का विशेष ध्यान देना चाहिए हरी सब्जी डाई फूट , फल 
दूध आदि का सेवन भरपूर मात्रा में करना उचित होता है। यही कारण है। की हम शिशु और माता दोनों का ध्यान हमें रखना पड़ता है। उनके स्वास्थ के लिए एवं गुणवान होने के लिए दीघार्यु प्रदान के लिए उत्तम से उत्तम खान पान पर ध्यान देना पड़ता है। 
जो कि हम सातवें महीने में आचार्य जी अपने पुरोहित से शुभ मुहूर्त पूछकर माता को विभिन्न प्रकार के खाने पीने का समान उनके रुचि के अनुसार देत है। पुसवन संस्कार कहते है। हम इसे क्षेत्री भाषा में कुशली कहते है। जो सभी वर्गो में नहीं किया जाता कुछ उच्च वर्गो में यह होता है। 
शुभ मुहूर्त देखकर शिशु के माता को समान्य रूप से स्नान करवा कर सातवें महीने में बेसन नहीं डाला जाता है। समानय रूप से सादा स्नान कराके नए वस्त्र पहनाकर हम उसे फुल गौड़ा चौक देकर बिठाते है। और गौर साठ एवं गौरी गणेश कलश की पूजा विधि अनुसार करवाते है। और मां या सास के द्वारा सात प्रकार का बना हुआ पकवान एवं हल्दी खड़ी सुपारी और सिक्का ओली में डाल देते है। स्नान के बाद नया वस्त्र पहनाते है। सात सुहागनियों के द्वारा  भी किया जाता है। सात सुहागिनों को भी भोजन करवाते है। यह कार्य समान्य रूप से होता है। अधिक नहीं करते मां या सास के  द्वारा बना हुआ भोजन पकवान फल   शहद को कांसे के थाली में मिक्स कर सात बार मां को खिलाया जाता है। सभी सुहागिनों के द्वारा कुछ मीठा खिलाया जाता है। यह हमारे छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राम्हण की संस्कृति है। इस संस्कार को कुशली क्षेत्री भाषा में कहा जाता है। इसे ही पुसवन संस्कार कहते है। 
तीसरा संस्कार के बारे में जानकारी पुनः क्रमश: 
 दूंगी 
🙏🙏
आशा ठाकुर 
अम्लेश्वर पाटन रोड
 सोलह संस्कारों 

का वर्णन क्रमशः 

करूंगी 

मैंने प्रथम संस्कार गर्भ धान एवं द्वितीय संस्कार पुंसवन संस्कार का वर्ण पिछले माह में किया है। 

इस माह में तृतिय संस्कार का वर्णन करने का प्रयत्न करने की कोशिश कर रही हूँ आशा है। आप सभी को पसंद आए तो हम अब तृतिय संस्कार की ओर चलते है। तृतिय कौन सी संस्कार है। इस संस्कार का महत्व क्या है। इसे जानने का प्रयास करते है। 

तृतिय संस्कार वह है। जो हम सबके लिए उपयुक्त होता अतः हम कह सकते की जब गर्भ में पल रहे शिशु का मस्तिष्क विकास होता है। उसी समय यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार को हम सीमन्तोन्नयन संस्कार कहते है। 

अतः सीमन्तो का अर्थ मस्तिष्क है। और उत्पतयन का अ र्थ विकास होता है। 

दोनो से मिलकर सीमन्तोन्नयन बना है। 

यह संस्कार गर्भ में पल रहे शिशु का पूर्ण रूपसे शारीरिक  विकास हो जाता है। किन्तु बौद्विक रूप से . मस्तिष्क का विकास नही हो पाता इसलिए बौद्धिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। जिसे हम गोद भराई रस्म कहते है।   और हमारे छतीसगढ़ मैथिली भाषा में सधौरी कहते है। इसे ही संस्कृत भाषा में सीमन्तोन यन संस्कार कहते है। 

इस संस्कार के अन्तर गर्त पति अपने पत्नी के सिर पर सुगन्धित तेल लगाते है। कंधी करते है। सुन्दर जुड़ा बनाते है। इस समय सोलह शृंगार पति के द्वारा ही किया जाता है। क्योंकि इस समय पत्नी किसी भी कार्य को करने के लिए असाहाय महसूस करती है। यही कारण है की पति यह सब अपने पत्नी के लिए किया करते है। 

गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए पूजा पाठ अनुष्ठान हवन आदि उनकी लम्बी उम्र , स्वास्थ एवं दीर्घायु गुणी हो के लिए करते है। 

गर्भ मे पल रहे शिशु का प्रभाव उनके माता - पिता की दिनचर्या का प्रभाव शिशु के ऊपर पड़ता है। इसी समय पर गर्भ में पल रहे बच्चे की मस्तिषक कोशिकाओं का निर्मार्ण आरम्भ होता है। सुश्रुत शारिरिक  स्थान पर यह उल्लेख है। 

पांचवें महीने में मन जागृत होता है। 

छठवें में बुद्धि .

सातवें महीने में . अंगों का निर्माण होता है। 

आठवें महीने में बच्चे का ओस शरीर का आठ तत्व में यह एक तत्व है। जो निर्माण स्थिर रूप में नहीं होता सुश्रुत के अनुसार पांचवे महीने  में पल रहे गर्भ के अंदर शिशु का निर्माण चौथे महीने में अधिक होता है। यही कारण है। की इस समय में सीमन्तोन्नयन संस्कार का चयन किया जाता है। . इस माह में बच्चे की मस्तिषकों में बौद्धिक विकास की पहली उत्पति होती है। उनका पता लगाया जाता है। इस महा में शिशु का शरीर , मस्तिष्क ,हृदय का विकास होता है। या कहे हम तैयार होता है। इसलिए इसे जुड़वा हृदय कहते है। क्योंकि दो हृदय एक साथ कार्य करता है। ऐसी स्थिती में माता - पिता दोनों का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसलिए कहा जाता है। की आठवें महीने की महत्वपूर्ण कहा जाता है। इस महा में गर्भवती महिला को विशेष ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। अधिक परिश्रम करना , सफर में जाना , दूर यात्रा करना , उल्टा . सीधा बैठना कुछ भी खाना पीना अधिक जागरण करना , अधिक क्रोध करना शिशु के लिए घातक होता है।इन्ही कारणो की वजह से कभी कभी आठवें महीने में बच्चे का जन्म हो जाता है।   ऐसे बच्चे का बचना मुश्किल हो जाता है। 

गर्भवती स्त्री अपने मन में जैसे छवि बनाती है। वैसे ही शिशु का जन्म होता है। यही कारण है। की बड़े बुर्जुग कहते है। अच्छा सोचो अच्छा विचार बनाओं पूजा पाठ हवन अनुष्ठान करों . भगवान का फोटो रखों प्रातः उठकर सबसे पहले भगवान का फोटों देखों उनका मन ही मन स्मरण करो भागवत पुराण रामायण ज्ञान वर्धक पुस्तक पढ़ों तो बच्चा ज्ञानी होता है। गर्भ वती माता को जो चींज प्रिय नही होती जो वस्तु पसंद नही होता तो वही गुण बच्चे में भी हो जाता है। 

इस संस्कार में केश उठाने की क्रिया होती है। जिसे हम आम भाषा में सिर घुलाना या बेसन डालना कहते है। 

यह कार्य पंडित जी आचार्य जी से शुभ मुहूर्त दिखा कर किया जाता है। अमंगल कारी से बचने के लिए 

जन समान्य लोगों की हृदय में आस्था था कि की गर्भ धारण वाली महिलाओं को अमंगलकारी शक्तियां दुखित कर देती है। तो इस समय विशेष संस्कारों की आवश्य कता होती है। इन बातों का उल्लेख ग्रह सूत्र में किया गया है।की राक्षसों के द्वारा गर्भवती स्त्रीयों के गर्भ में प्रथम शिशु पल रहा होता है। तो प्रथम शिशु को खाने के लिए आती है। ऐसे विनाश कारी से बचने के लिए लक्ष्मी जी एवं विष्णु जी की पूजन करनी चाहिए इन अमंगल कारी प्रवृतियां से बचने के लिए इसी कारणों से यह संस्कार का विधान किया गया है। इस संस्कार का यह भी अभिप्राय है। की इस समय बौद्धिक  मास्तिष्क का सम्पूर्ण विकास हो सके और माता को एश्वर्य की प्राप्ती हो .  

साथ साथ गर्म वती स्त्री को प्रसन्न रखना 

सुश्रुत संहिता में यह भी निर्देश दिया गया है। 

गर्भवती महिलाओं को यह नही करना चाहिए जैसे 

मिथुन ,श्रम दिन में सोना . सवारी यात्रा विशेष कर आठवा एवं नौवा महीना में वर्णित है। जहा आप है। वही ही रहें 

रेचन - दस्त लगना रकत . स्रपण

मल मूत्र असमय लगना आदि से बचना चाहिए यह सभी बातों से गर्भवती महिलाओं को अवगत कराया जाना चाहिए की हर पल शिशु की रक्षा होनी चाहिए एवं रक्षा करनी चाहिए अपनी मन मानी नही करनी चाहिए विशेषज्ञ एवं बुर्जगों से परामर्श लेना चाहिए इस माह में परिवारों के साथ रहना उचित होगा तृतिय संस्कार में इन सभी बातों का उल्लेख होता है। 

आशा ठाकुर 

पाटन रोड अम्लेश्वर


सोलह संस्कारों 

का वर्णन क्रमशः 

करूंगी 

मैंने प्रथम संस्कार गर्भ धान एवं द्वितीय संस्कार पुंसवन संस्कार का वर्ण पिछले माह में किया है। 

इस माह में तृतिय संस्कार का वर्णन करने का प्रयत्न करने की कोशिश कर रही हूँ आशा है। आप सभी को पसंद आए तो हम अब तृतिय संस्कार की ओर चलते है। तृतिय कौन सी संस्कार है। इस संस्कार का महत्व क्या है। इसे जानने का प्रयास करते है। 

तृतिय संस्कार वह है। जो हम सबके लिए उपयुक्त होता अतः हम कह सकते की जब गर्भ में पल रहे शिशु का मस्तिष्क विकास होता है। उसी समय यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार को हम सीमन्तोन्नयन संस्कार कहते है। 

अतः सीमन्तो का अर्थ मस्तिष्क है। और उत्पतयन का अ र्थ विकास होता है। 

दोनो से मिलकर सीमन्तोन्नयन बना है। 

यह संस्कार गर्भ में पल रहे शिशु का पूर्ण रूपसे शारीरिक  विकास हो जाता है। किन्तु बौद्विक रूप से . मस्तिष्क का विकास नही हो पाता इसलिए बौद्धिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। जिसे हम गोद भराई रस्म कहते है।   और हमारे छतीसगढ़ मैथिली भाषा में सधौरी कहते है। इसे ही संस्कृत भाषा में सीमन्तोन यन संस्कार कहते है। 

इस संस्कार के अन्तर गर्त पति अपने पत्नी के सिर पर सुगन्धित तेल लगाते है। कंधी करते है। सुन्दर जुड़ा बनाते है। इस समय सोलह शृंगार पति के द्वारा ही किया जाता है। क्योंकि इस समय पत्नी किसी भी कार्य को करने के लिए असाहाय महसूस करती है। यही कारण है की पति यह सब अपने पत्नी के लिए किया करते है। 

गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए पूजा पाठ अनुष्ठान हवन आदि उनकी लम्बी उम्र , स्वास्थ एवं दीर्घायु गुणी हो के लिए करते है। 

गर्भ मे पल रहे शिशु का प्रभाव उनके माता - पिता की दिनचर्या का प्रभाव शिशु के ऊपर पड़ता है। इसी समय पर गर्भ में पल रहे बच्चे की मस्तिषक कोशिकाओं का निर्मार्ण आरम्भ होता है। सुश्रुत शारिरिक  स्थान पर यह उल्लेख है। 

पांचवें महीने में मन जागृत होता है। 

छठवें में बुद्धि .

सातवें महीने में . अंगों का निर्माण होता है। 

आठवें महीने में बच्चे का ओस शरीर का आठ तत्व में यह एक तत्व है। जो निर्माण स्थिर रूप में नहीं होता सुश्रुत के अनुसार पांचवे महीने  में पल रहे गर्भ के अंदर शिशु का निर्माण चौथे महीने में अधिक होता है। यही कारण है। की इस समय में सीमन्तोन्नयन संस्कार का चयन किया जाता है। . इस माह में बच्चे की मस्तिषकों में बौद्धिक विकास की पहली उत्पति होती है। उनका पता लगाया जाता है। इस महा में शिशु का शरीर , मस्तिष्क ,हृदय का विकास होता है। या कहे हम तैयार होता है। इसलिए इसे जुड़वा हृदय कहते है। क्योंकि दो हृदय एक साथ कार्य करता है। ऐसी स्थिती में माता - पिता दोनों का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसलिए कहा जाता है। की आठवें महीने की महत्वपूर्ण कहा जाता है। इस महा में गर्भवती महिला को विशेष ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। अधिक परिश्रम करना , सफर में जाना , दूर यात्रा करना , उल्टा . सीधा बैठना कुछ भी खाना पीना अधिक जागरण करना , अधिक क्रोध करना शिशु के लिए घातक होता है।इन्ही कारणो की वजह से कभी कभी आठवें महीने में बच्चे का जन्म हो जाता है।   ऐसे बच्चे का बचना मुश्किल हो जाता है। 

गर्भवती स्त्री अपने मन में जैसे छवि बनाती है। वैसे ही शिशु का जन्म होता है। यही कारण है। की बड़े बुर्जुग कहते है। अच्छा सोचो अच्छा विचार बनाओं पूजा पाठ हवन अनुष्ठान करों . भगवान का फोटो रखों प्रातः उठकर सबसे पहले भगवान का फोटों देखों उनका मन ही मन स्मरण करो भागवत पुराण रामायण ज्ञान वर्धक पुस्तक पढ़ों तो बच्चा ज्ञानी होता है। गर्भ वती माता को जो चींज प्रिय नही होती जो वस्तु पसंद नही होता तो वही गुण बच्चे में भी हो जाता है। 

इस संस्कार में केश उठाने की क्रिया होती है। जिसे हम आम भाषा में सिर घुलाना या बेसन डालना कहते है। 

यह कार्य पंडित जी आचार्य जी से शुभ मुहूर्त दिखा कर किया जाता है। अमंगल कारी से बचने के लिए 

जन समान्य लोगों की हृदय में आस्था था कि की गर्भ धारण वाली महिलाओं को अमंगलकारी शक्तियां दुखित कर देती है। तो इस समय विशेष संस्कारों की आवश्य कता होती है। इन बातों का उल्लेख ग्रह सूत्र में किया गया है।की राक्षसों के द्वारा गर्भवती स्त्रीयों के गर्भ में प्रथम शिशु पल रहा होता है। तो प्रथम शिशु को खाने के लिए आती है। ऐसे विनाश कारी से बचने के लिए लक्ष्मी जी एवं विष्णु जी की पूजन करनी चाहिए इन अमंगल कारी प्रवृतियां से बचने के लिए इसी कारणों से यह संस्कार का विधान किया गया है। इस संस्कार का यह भी अभिप्राय है। की इस समय बौद्धिक  मास्तिष्क का सम्पूर्ण विकास हो सके और माता को एश्वर्य की प्राप्ती हो .  

साथ साथ गर्म वती स्त्री को प्रसन्न रखना 

सुश्रुत संहिता में यह भी निर्देश दिया गया है। 

गर्भवती महिलाओं को यह नही करना चाहिए जैसे 

मिथुन ,श्रम दिन में सोना . सवारी यात्रा विशेष कर आठवा एवं नौवा महीना में वर्णित है। जहा आप है। वही ही रहें 

रेचन - दस्त लगना रकत . स्रपण

मल मूत्र असमय लगना आदि से बचना चाहिए यह सभी बातों से गर्भवती महिलाओं को ज्ञात होनी चाहिए की हर पल शिशु की रक्षा होनी चाहिए एवं रक्षा करनी चाहिए अपनी मन मानी नही करनी चाहिए विशेषज्ञ एवं बुर्जगों से परामर्श लेनी चाहिए इस माह में परिवारों के साथ रहना उचित होगा तृतिय संस्कार में इन सभी बातों का उल्लेख होता है। 

आशा ठाकुर 

पाटन रोड अम्लेश्वर


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, शृंगार का समान वस्त्र कपूर , धूप, दीप आरती बैठने के लिए आसन गौरी गणेश कलश अमा का पत्ता लगा हुआ नैवेध फल नैवेध :- मीठा पूड़ी का भोग लगता है। उपवास : - संतान साते के दिन दिन भर उपवास रहते है। और पूजा करने के बाद मीठा पुड़ी ( पुआ ) खा कर व्रत तोड़ते है। इसके अलावा कुछ भी नही लेते जूस , चाय नीबू पानी पी सकते है। क्योंकि आज कल शुगर , बी पी की शिकायत रहती है। तो आप ले सकते है। अन्न नहीं लेते है। पूजा विधि शाम के समय गोधुली बेला में शिव पार्वती एवं उनकी परिवार की पूजा की जाती है। अच्छे से तैयार होकर सोलह शृंगार करके यह व्रत की जाती है। सर्व प्रथम गौरी गणेश कलश की पूजा उसके बाद गौर साठ की पूजा क्योंकि हम मैथिल ब्राम्हण है। तो हमारे यहा पर हर त्यौहार पर गौर साठ की पूजा की जाती है। उसी के बाद ही अन्य पूजा यह नियम महिलाओं के लिए ही है। गौर साठ पूजा के बाद शंकर पार्वती की पूजा जल से स्नान दूबी या फूल लेकर करें , फिर चंदन , रोरी कुमकुम लगाए पुष्प चढ़ाए , माला पहनाए संतान साते में सात गठान की मौली धागा से चूड़ा बनाए या जो सामर्थ है। वह सोने की कंगन या चांदी का कंगन बनाए एवं दूबी सात गाठ करके चढ़ाए कंगन की पूजा करें भोग मीठा पुड़ी लगाए जितना संतान रहता है। उनके नाम से सात पुआ गौरी शंकर एवं सात पुआ संतान के नाम से एक भाग ब्राम्हण को दान करें एवं परिवार को बांटे एक भाग जो सात पुआ है। उसे स्वय ग्रहण करें कंगन पहन कर ही प्रसाद को ग्रहण करें आरती : - पहले गणेश जी का करें फिर शंकर जी का दक्षिणा सामर्थ अनुसार संकल्प करें आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏.. श्री गणेशाय नमः ,,श्री गणेशाय नमः सधौरी की विधि यह विधि नौवा महीने में किया जाता है। पंडित जी से शुभ मुर्हुत पूछकर किया जाता है। सबसे पहले सिर में बेसन डालने का विधि होता है। पांच या नौ सुहागन के द्वारा सिर पर बेसन डाला जाता है। और चूकिया से जल सिर के ऊपर डाला जाता है। उसके लिए नव चूकिया चाहिए होता है। बेसन मुहूर्त के हिसाब से ही डाला जाता है। इसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए नहाने से पहले आंचल में हलदी + सुपारी + चांवल + सिक्का डालना चाहिए चावल का घोल से हाथ देते हुए उसमें सिन्दूर , पुषप दुबी डालें प्रत्येक हाथा में वघू या कन्या के द्वारा जहा पर बेसन डाला जायेगा वहां पर फूल गौड़ा चौक डाले चौकी या पाटा रखें फिर बेसन डालें और जल भी सिर के ऊपर डालें कम से कम पांच या सात बार सभी सुहागनियों के द्वारा उसके उपरान्त स्नान अच्छी तरह करने दो गिला कपड़ा पहने रहें किसी छोटी बच्ची या बच्चा जो सुन्दर हो चंचल हो उसके हाथ से शंख में कच्चा दूध और पुष्प डाल कर भेजे बालक और बालिका को अच्छी तरह से देख र्ले उनसे शंख और दूध लेकर भगवान सूर्य नारायण को अर्ध्य देवें इधर उधर किसी भी को ना देखें सूर्य नारायण को प्रणाम करें पूजा रूम में प्रवेश करें बाल मुंकुद को प्रणाम करें कपड़ा नया वस्त्र धारण करें शृंगार करें आलता लगाए पति पत्नी दोनों गंठ बंधन करके पूजा की जगह पर बैठ जायें पूजा जैसे हम करतेप्रकार करे आरती करें भोग लगाए तन्त् पश्चात् जो परात में आम का पत्ता के ऊपर दिया रखें दिया में चावल के घोल से . + बनाये सिन्दूर लगाए हल्दी सुपाड़ी सिक्का चुड़ी दो रखें प्रत्येक दिये में सिन्दूर की पुड़िया रखें गुझिया रखें उसे भोग लगा कर पूजा के बाद प्रत्येक सुहागिनों को आंचल से करके उनके आचल में दें । फिर पूजा स्थल पर कुश बढ़ाओं चौक डाले पाटा रखें उसके ऊपर गाय + बैल + कहुआ को गोत्र के अनुसार रखें बैले हो तो घोती आढ़ऐ गाय हो तो साड़ी पूजा के बाद कांसे के थाली में बनी हुई समाग्री को पांच कौर शहद डाल कर सास या मां के द्वारा पांच कौर खिलाए उसके पहले ओली में पांच प्रकार का खाद्य समाग्री डाले जैसे गुझिया अनारस फल मेवा डालें और छोटे बच्चे के हाथ से निकलवाए हास्य होता है। थोड़ी देर के लिए गुझिया निकला तो लड़का प प्ची निकला तो लड़की फिर सभी सुहागिनी यों को भोजन करवाए आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून से ब्रश कर वही स्नानकर वही पूजा करते है। सभी महिला एक साथ मिलकर करती है। उन्ही में से एक महिला कथा सुनाती है। वहां पर जीउतिया उनका सोना या चांदी का बना लहसुन आकृति का रहता है। हर साल जीउतिया सोनार के यहा जा कर बढ़ाते है। उसी जीउतिया को हाथ में रख कथा कहती है। और हर महिला के बच्चों का नाम लेकर आर्शीवाद देती है। ये उनका अपना रिति है। परन्तु हमारे छत्तीसगढ़ में और हम अपने घर पर जिस तरह पूजा पाठ करते हुए देखा है। उसे ही हम आप सबके बीच प्रस्तुत किया है। त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी आपका अपना आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड छत्तीसगढ़ रायपुर 🙏🙏श्री गणेशाय नमः सधौरी की तैयारी गौरी गणेश + कलश चंदन रोरी कुमकुम घूप दीप कपूर अगरबत्ती नारियल भोग गौर साठ का डिब्बा रेहन चावल का पीसा हुआ हाथा देने के लिए एवं थाली कांसे की थाली मेवा काजू किशमिश बादाम छुहारा आदि ड्राई फूड मौसम अनुसार फल 60,आम का पत्ता मिट्टी का दिया 60 , चुड़ी सिन्दूर खड़ी हल्दी , खड़ी सुपारी 60 हल्दी 60 सुपारी जनेऊ बेसन शंख पाटा , पान का बिड़ा शहद नया वस्त्र पहने के लिए गोत्र के अनुसा मिट्टी का बैल , गाय , कछुआ जैसा हो गोत्र उसके अनुसार बनाना ओली में डालने के लिए पिली चांवल हल्दी सुपारी रुपया या सिक्का सुहागिनों को भी ओली डालने के लिए 60 गुझिया , अनरसा , दहरोरी मिठाई खोये का बना हुआ पूजा के लिए पाटा या चौकी , बैठने के लिए पाटा गठबंधन के लिए घोती गठबंधन करने के लिए थोड़ी सी पीली चांवल एक हल्दी एक सुपारी एक रुपय का सिक्का फूल दूबी डालना और गठबधन करना है। दूबी फूल फूल माला दूबी गौरी गणोश को चढ़ाने के लिए अर्थात् गणेश जी को चढ़ाने के लिए दमाद ,या बेटा के पहने के लिए जनेऊ बहू या बेटी के लिए सोलह शृंगार गजरा आदि कांसे की थाली में भोजन फल , मेवा शहद रखने के लिए

अनंत चतुर्दशी की कथा  हाथ में फूल , अक्षत एवं जल ले कर कथा सुने  प्राचीन काल में सुमंत नामक एक ब्राम्हण था। जिसकी पुत्री सुशीला थी। सुशीला का विवाह कौडिन्य ऋषि से हुआ ।  जब सुशीला की बिदाई हुई तो उसकी विमाता कर्कशा ने कौडिन्य ऋषि को ईट पत्थर दिया रास्ते में जाते समय नदी पड़ा वहा पर रुक कर कौडिन्य ऋषि स्नान कर संध्या कर रहे थे। तब सुशीला ने उन्हें अनंत  चतुर्दशी की महिमा का महत्व बताया और 14, गांठ वाली  धागा उनके हाथ पर बांध दी जिसे सुशीला ने नदी किनारे प्राप्त की थी।  कौडिन्य ऋषि को लगा की उनकी पत्नी सुशीला उनके ऊपर जादू टोना हा कर दी है। वह उस धागे को तुरन्त निकाल कर अग्नि में जला दिया जिससे अनंत भगवान का अपमान हुआ । और क्रोध में आकर कौडिन्य ऋषि का सारा सुख समृद्धि , संपत्ति नष्ट कर दिए   कौडिन्य ऋषि का मन विचलित हो गया परेशान हो गए और आचनक राज पाठ जाने का कारण अपने पत्नी से पूछा तब उनकी पत्नी उन्हें सारी बातें बतायी यह सुनकर कौडिन्य ऋषि पश्चाताप करने लगा और घने वन की ओर चल दिए । वन में भटकते भटकते उन्हें थकान एवं कमजोरी होने लगा और मूछित होकर जम...

छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राह्मण विवाह पद्धति आशा ठाकुर

चुनमाट्टी की तैयारी सर्व प्रथम घर के अंदर हाल या रूम के अंदर फूल गौड़ा चौक बनाए सिन्दूर टिक देवें उसके ऊपर सील बट्टा रखें उसमें हल्दी खडी डाले खल बट्टा में चना डाले सर्व प्रथम मां गौरी गणेश की पूजा करें उसके बाद सुहासीन के द्वारा हल्दी और चना कुटे सबसे पहले जीतने सुहागिन रहते है उन्हों ओली में चावल हल्दी सुपाड़ी डाले सिन्दूर लगाये गुड और चावल देवें और हल्दी और चना को पीसे सील के चारों तरफ पान का पत्ता रखें हल्दी सुपाड़ी डालें पान का सात पत्ता रखें पूजा की तैयारी गौरी गणेश की पूजा चंदन ,, रोरी '' कुमकुम '' गुलाल जनेऊ नारियल चढ़ाए फूल या फूल माला चढ़ाए दूबी . भोग अरती घूप अगर बत्ती वस्त्र मौली घागा वस्त्र के रूप में चढ़ा सकते है ये घर की अंदर की पूजा विधि चुलमाट्टी जाने के पहले की है। बहार जाने के लिए तैयारी सात बांस की टोकनी टोकनी को आलता लगा कर रंग दीजिए उसके अंदर हल्दी . सुपाड़ी खडी एक एक डाले थोड़ा सा अक्षत डाल देवें सब्बल '' या कुदारी जो आसानी से प्राप्त हो ,, सब्बल में या कुदारी में पीला कपड़ा के अंदर सुपाड़ी हल्दी और थोड़ा सा पीला चावल बाधे किसी देव स्थल के...