आज मैं आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करने जा रही हूँ । जो हमारे हिन्दू धर्म में सोलह संस्कार होते है। उनके बारे में कुछ जानकारी दे रही हूँ ।
सभी हिन्दुओं में यह संस्कार होता ही होता है। रीति रिवाज थोड़ा सा अलग हो जाता है। अन्य वर्ग में या हम कहें समाज में
हम छत्तीसगढ़ के मैथिल ब्राह्मण समाज के अन्तर्गत आते है।
हमारा नियम रीति रिवाज कुछ अलग हो जाता है। पर गर्म धारण करने के पूर्व जो मुहूर्त प्रायः सभी उच्च स्तर पर मिलते जुलते रहते है। वर्गी में देखा जाता है। क्योंकि हमारा खानदान पुरोहित खानदान से आता है। एवं मेरे कहने का अर्थ है की जब नया जोडा गर्म धारण करता है। तो अक्सर पंडितों से या ज्योतिषियों से प्रश्न पूछते है । की कौन सा मुहूर्त गर्भ धारण करने के लिए अच्छा होगा यह पहले के युग में भी पूछा जाता था। और आज भी यह प्रशन पूछते है।
आइए हम इनकी जानकारी गर्भ धारण से पूर्व हमें किन नियमो को पालन करना चाहिए
तो सोलह संस्कार में सबसे पहले गर्भ धारण संस्कार आता है।
गर्भ धारण संस्कार -
नव विवाहित जोड़ों को कोई अच्छा सा मुहूर्त पंडित जी से देखा कर करना चाहिए ताकि बच्चा स्वस्थ दीर्घायु एवं तेजस्वी प्राप्त कर सके गर्भ धारण एक ऐसा प्रथम चरण होता है। जिसमें नव विवाहित जोड़ों को मानसिक , शारिरिक एवं अध्यात्मिक रूप से शुद्ध और सकारात्मक होना चाहिए
गर्भ धारण का महत्व :
गर्भ धारण के पूर्व कुछ औपचारिक रूप से पूजा पाठ , हवन , धार्मिक अनुष्ठान करना पड़ता है। स्वस्थ , दीर्घायु , एवं तेजस्वी बच्चे को इस दुनिया में ला सके गर्भ धारण के दौरान मात पिता को भी तन , मन , और मस्तिष्क से स्वस्थ रहना शुद्ध रहना अनिवार्य होता है। तभी गर्भ में पलने वाला शिशु स्वस्थ हो और भाग्यशाली हो सकें यह तो गर्भ धारण करने के पूर्व नियम है।
अब कौन कौन सा समय गर्भ धारण करना चाहिए कौन सा पक्ष सही है। कौन सा तिथि सही होता है। गर्म धारण करने के लिए इनका भी जानकारी हम जान लेते है। चलिए अब हम मुहूर्त एवं तिथि और पक्ष के बारे में जानते है ।
शुभ मुहूर्त में गर्भ धारण करने से शिशु भाग्यशाली , तेजस्वी एवं दीर्घायु प्राप्त होता है।
अशुभ मुहूर्त में गर्म धारण करने से वही शिशु नकारात्मक सोच एवं अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
गर्भ धारण का दिन :-
गर्भ धारण करने का शुभ दिन यह है।
सोमवार
बुधवार
गुरुवार
शुक्रवार
इन दिनों में यदि गर्भ धारण होता है। तो उसे जच्चा एवं बच्चा के लिए दोनों के लिए शुभ होता है।
मासिक धर्म के 8, वें एवं 14 वें दिन भी गर्म धारण करना शुभ माना जाता है।
गर्भ धारण करने के लिए कुछ विषेश नक्षत्र :-
गर्भ धारण करने के लिए कुछ विशेष नक्षत्रों को भी शुभ माना गया है। जैसे की
रोहिणी
मृगशिरा
पुनर्वसु
पुष्य
उत्तरा फाल्गुनी
हस्त नक्षत्र
चित्रा
स्वाति
अनुराधा
उत्तराषाढ़
श्रवण मास
धनिष्ठा
उत्तरा भाद्र पक्ष
गर्भ धारण करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
अशुभ नक्षत्र .
इन नक्षत्रों में गर्भ धारण करना अशुभ माना गया है।
अशुभ दिन :-
मंगल वार
शनिवार
रविवार
इन दिनों को गर्भ धारण करने के लिए अशुभ माना गया है। अतः भुलकर इस दिन सहवास ना करें
मासिक धर्म के 7, वें दिन गर्भ धारण करने से बचना चाहिए
पक्ष :-
गर्भ धारण करने से अर्थात् सहवास करने से बचना चाहिए इन पक्षों में वह यह है।
श्राद्ध पक्ष
ग्रहण काल
पूर्णिमा
आमावश्या
इन सभी तिथि और पक्ष से गर्भ धारण से बचना चाहिए गर्भ धारण करने के लिए उत्तम समय 11, एवं 12, बजे रात्रि कालिन में उचित है। दोपहर के समय और ब्रम्ह मुहूर्त में सहवास करना गर्भ धारण के लिए उचित नहीं है।
यह पहला संस्कार है। इस प्रक्रिया से हर इंसान को गुजरना चाहिए ।
सोलह संस्कारों में प्रथम संस्कार गर्भ धारण संस्कार हिन्दुओं में माना गया है। दूसरा संस्कार पुसंवन संस्कार
इस संस्कार का वर्णन क्रमशः आगे होगा
दूसरा संस्कार
पुंसवन संस्कार है।
पुंसवन संस्कार गर्भाधान के ठीक सातवें महीने में होता है। उस समय गर्म के अंदर पल रहे बच्चे का तेजी से विकास होता है। मां का और बच्चे का पूरी ध्यान से रखने की जरूरत होती है। बच्चे के विकास के लिए खाद अर्थात् खाने पीने का विशेष ध्यान देना चाहिए हरी सब्जी डाई फूट , फल
दूध आदि का सेवन भरपूर मात्रा में करना उचित होता है। यही कारण है। की हम शिशु और माता दोनों का ध्यान हमें रखना पड़ता है। उनके स्वास्थ के लिए एवं गुणवान होने के लिए दीघार्यु प्रदान के लिए उत्तम से उत्तम खान पान पर ध्यान देना पड़ता है।
जो कि हम सातवें महीने में आचार्य जी अपने पुरोहित से शुभ मुहूर्त पूछकर माता को विभिन्न प्रकार के खाने पीने का समान उनके रुचि के अनुसार देत है। पुसवन संस्कार कहते है। हम इसे क्षेत्री भाषा में कुशली कहते है। जो सभी वर्गो में नहीं किया जाता कुछ उच्च वर्गो में यह होता है।
शुभ मुहूर्त देखकर शिशु के माता को समान्य रूप से स्नान करवा कर सातवें महीने में बेसन नहीं डाला जाता है। समानय रूप से सादा स्नान कराके नए वस्त्र पहनाकर हम उसे फुल गौड़ा चौक देकर बिठाते है। और गौर साठ एवं गौरी गणेश कलश की पूजा विधि अनुसार करवाते है। और मां या सास के द्वारा सात प्रकार का बना हुआ पकवान एवं हल्दी खड़ी सुपारी और सिक्का ओली में डाल देते है। स्नान के बाद नया वस्त्र पहनाते है। सात सुहागनियों के द्वारा भी किया जाता है। सात सुहागिनों को भी भोजन करवाते है। यह कार्य समान्य रूप से होता है। अधिक नहीं करते मां या सास के द्वारा बना हुआ भोजन पकवान फल शहद को कांसे के थाली में मिक्स कर सात बार मां को खिलाया जाता है। सभी सुहागिनों के द्वारा कुछ मीठा खिलाया जाता है। यह हमारे छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राम्हण की संस्कृति है। इस संस्कार को कुशली क्षेत्री भाषा में कहा जाता है। इसे ही पुसवन संस्कार कहते है।
तीसरा संस्कार के बारे में जानकारी पुनः क्रमश:
दूंगी
🙏🙏
आशा ठाकुर
अम्लेश्वर पाटन रोड
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