श्री महालक्ष्मी व्रत कथा🪷🪷 एक समय महर्षि द्पायन व्यास जी हस्तिनापुर आए उनका आगमन सुनकर राजरानी गांधारी सहित माता कुंती ने उनका स्वागत किया अर्द्ध पाद्य आगमन से सेवा कर व्यास जी के स्वस्थ चित् होने पर राजरानी गांधारी ने माता कुंती सहित हाथ जोड़कर व्यास जी से कहा, है महात्मा हमें कोई ऐसा उत्तम व्रत अथवा पूजन बताइए जिससे हमारी राजलक्ष्मी सदा स्थिर होकर सुख प्रदान करें, गांधारी जी की बात सुनकर व्यास जी ने कहा, हे देवी मैं आपको एक ऐसा उत्तम व्रत बतलाता हूं जिससे आपकी राजलक्ष्मी पुत्र पौत्र आदि सुख संपन्न रहेंगे। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को स्नान आदि से निवृत हो शुद्ध वस्त्र धारण कर महालक्ष्मी जी को ताजी दूर्वा से जल का तर्पण देकर प्रणाम करें, प्रतिदिन 16 दुर्वा की गांठ, और श्वेत पुष्प चढ़कर पूजन करें, १६धागों का एक गंडां बनाकर रखें पूजन के पश्चात प्रतिदिन एक गांठ लगानी चाहिए, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माटी के हाथी पर लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित कर विधिवत पूजन करें ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करें इस प्रकार पूजन करने से आपकी राजलक्ष्मी पुत्र पौत्र आदि स्थिर आपको सुख प्रदान करेंगे इतना कहकर व्यास जी वहां से प्रस्थान कर गए। समय अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी श्री राधा अष्टमी की तिथि आई, राजरानी गांधारी सहित माता कुंती, राज घराने की सभी नारियों ने व्रत रखा पूजन किया, इसी बीच गांधारी की और कुंती की में कुछ मतभेद हो गए,व्रत का 16 व दिन आया राजरानी गांधारी ने नगर में बुलावा फिरवाया सभी प्रतिष्ठित नारियों को पूजन में आमंत्रित किया परंतु ईर्ष्या वंश माता कुंती को ना तो बुलाया गया और ना ही सूचना भेजी गई गांधारी, व्रत की तैयारी होने लगी सब लोग बनाने सजने लगी, माता कुंती को उदास देख पांडवों ने हाथ जोड़कर माता से उनकी चिंता का कारण पूछा, तब माता कुंती ने कहा कि गांधारी दीदी ने नगर की सभी औरतें मां देकर पूजा में बुलाई है, परंतु तुम्हारी ईर्ष्यावास मुझे नहीं बुलाया, अर्जुन ने कहा हे माता आप यह व्रत अपने घर में भी तो कर सकती हैं, ना माता ने कहा उनके महल में सुबह से तैयारी चल रही है उनके 100 पुत्रों ने माटी का विशाल हाथी तैयार किया है, यह सब तैयारी तुमसे ना बन सकेगी, तब अर्जुन ने कहा, हे माता आप पूजन की तैयारी नगर में बुलावा फिरवाएं, पूजन के लिए मैं एक ऐसा हाथी लाऊंगा जो नगर वासियों ने ना कभी देखा है और ना ही सुना होगा मैं आज ही इंद्रलोक से इंद्र का हाथी ऐरावत जो की पूजनीय है,उसे आपकी सभा में उपस्थित कर दूंगा इतना कहकर अर्जुन वहां से चले गए माता ने व्रत की तैयारियां प्रारंभ कर दी, अर्जुन नाम बांण से इंद्र की सभा में एक पत्र लिखकर भेजा, जिसमें एरावत को माता की पूजा में भेजने की विनती की थी, इंद्रदेव ने पत्र खोलकर पढ़ और लिखा, है पांडु कुमार मैं ऐरावत भेज तो दूंगा परंतु वह इतनी जल्दी स्वर्ग से नीचे कैसे उतर सकेगा इंद्र ने पत्र वापस कर दिया तब अर्जुन ने बांणो के रास्ते ऐरावत धरती पर उतरने की प्रार्थना लिखकर पत्र वापस कर दिया, इंद्र ने मतली सारथी को आज्ञा दी, की ऐरावत को पूर्ण रूप से सजाकर हस्तिनापुर में उतारने का प्रबंध करो, एरावत को सजाया गया माथे पर रत्न जड़ित जाली जिसकी चमक से मानव जाति की आंखें स्थिर न रहेसजाई गई, पैरों में घुंघरू स्वर्णमानियों की बांधी गई, इधर माता कुंती ने एरावत के स्वागत के लिए नाना प्रकार के पकवान बनवाएं, रेशमी वस्त्र बिछावाए, चौक पुरवाई, एरावत के धरती पर उतरने की चर्चा गांधारी के महल में भी होने लगी, हस्तिनापुर वासियों में हलचल मच गयी, लोग हाथों में अबीर ,केसर, पुष्प लिए एरावत के आने की प्रतीक्षा करने लगे, ठीक शाम के समय ऐरावर बांणो के रास्ते, धीरे-धीरे उतरने लगा उसके आभूषणों की आवाज नगर वासियों को आने लगी, इसे देख सभी चकित रहे, माता कुंती के आंगन में उतर आया, एरावत को पकवान खिलाएं उसका पूजन किया, इसके बाद महालक्ष्मी जी की मूर्ति एरावत पर स्थापित कर ब्राह्मणों के बताएं अनुसार माता कुंती ने पूजन स्तवन आदि किया और ब्राह्मणों को वस्त्र द्रव्य अन्य आभूषण देकर संतुष्ट किया इस प्रकार माता कुंती का व्रत सफल हुआ, जो भी व्यक्ति माता कुंती के समान सच्ची श्रद्धा से यह व्रत करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है🙏🪷🪷 जय महालक्ष्मी,🪷🪷 कथा लिखने में कुछ भूल चुकी हो तो क्षमा कीजिएगा आप सभी बड़े🙏🙏🪷🪷
मधु श्रावणी की तैयारी
सावन का महीना आरम्भ होने वाला है साथ साथ तीज त्यौहार का आगमन भी मैथलीयो में जब कन्या की शादी होती है तब सबसे पहला त्यौहार मधु श्रावणी का आता है मधुश्रावणी के दिन केला के पत्ते पर 108 नाग बनाया जाता है जिसमें से 8, नाग रंगीन रहता है चंदन , पीला रंग , नीला रंग , लाल रंग काला रंग , हरा रंग सफेद रंग हल्दी रंग से बनाया जाता है दीवार में भी बनाया जाता है पहले गोबर से लीप कर काला रंग लगाकर दीवार जब सुख जाता था तव चावल को चीकना पिसकर उससे दीवार में नाग बनाया जाता था पक्की मकान के चलते और समय अभाव के कारण कागज पर बनाया जात है जैसे जुडा महामंडल , पंचफनिया , कोना मोना छेवरी , असकुडा झुला नाग , थाली नाग , छेका नाग बाल बसंता आदि बनाया जाता है लिल्ली रानी नेवरा चंदा सूरज बनाया जाता है कुश बढ़ावो चौक के ऊपर पाटा रखा जाता है कलश रखने का चौक बनाया जाता है सबसे पहले गौर साठ की पूजा गौरी गणेश कलश की पूजा पाटा के ऊपर केले के पत्ते में बना नाग की पूजा दीवार में नाग बना उसका पूजा करते है चावल आटा से पूडी (चौसेला ) बनाया जाता है बबरा बनाया जाता है दूध से खीर बनाया जाता है भोग लगाने के लिए 108, नाग में भोग लगाने के लिए बिन्दी की आकृति की छोटी छोटी पूडी चावल आरा का नाग की पूजा लगातार 13, दिन तक लगातार चलता है तेरहवा दिन धनिया के घोल से सुहा है . बेटी दमाद को नया वस्त्र दिया जाता है बहू यदि ससुराल में पहली बार पूजा करे तो उसे भी नया वस्त्र दिया जाता है गंठबन्धन करके पूजा की जाती है बारह दिन लगातार पिताम्बरी पहन कर पूजा करते है पहला दिन और आखरी दिन गठबन्ध करके पूजा करें सम्मव हो तो रोज करना चाहिये उस दिन सोहगली खिलाते है चूडी सिन्दूर दिया जाता है आखरी दिन मिट्टी का दिया108 के अंदर चुडी सिन्दूर गुझियाँ अनरसा रखा जाता है दिया में रेहन से प्लस का चिन्ह बनाया जाता है सुहागन को धनियाँ के घोल से सुहाग देकर एक दिया आँचल में रख कर दिया जाता है लड़की पूजा के बाद भोजन कर सकती है पहला दिन आखरी दिन उपवास रहती है मीठा खा कर रहना चाहिए अगर नही रह सकती तो सेंधा नमक डालकर सब्जी बना कर खा सकती है
श्रीमती आशा ठाकुर
रायपुर
19 अगस्त शनिवार को मधुश्रावणी तीज स्वर्ण गौरी व्रत है🙏🙏🪷🪷 नव विवाहित कन्याएं जिनका मधु श्रावणी व्रत कल से प्रारंभ हो रहा है💐💐🪷🪷 सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं💐💐💐 प्रथम दिवस व्रत में गौरी गणेश कलश स्थापना करके केले के पत्ते पर 108 नाम बनावे, जिसमें रेहन से काजल से चंदन से नीले रंग से तथा लाल रंग से जिनके घर मिट्टी के नाग बनाकर पूजा की जाती है ,वह भी मिट्टी को इसी प्रकार रंगीन करके नाग बनाए छोटे-छोटे🌷🌷 रेहन से कुश बढ़ाओ चौक डालकर स्थापना करें कड़वे नीम की पत्ती, नींबू, ककड़ी,खीर चौसेला रितु अनुसार फल जो भी मिले, लावा , कच्चा दूध, दही, घी,शहद, शक्कर, और चंदन रोली से शिव पार्वती की विधिवत पंच उपचार पूजा करें अपने कुल परंपरा के अनुरूप प्रतिदिन एक कथा पढ़े गौर साठ का पूजन करें बिन्नी पड़े🙏 यहां पर मैं संक्षिप्त में ही जानकारी दे रही हूं बाकी व्रत की तैयारी अपनी कुल परंपरा के अनुसार कीजिए🌷🌷 कुछ गलती मुझसे हुई हो तो क्षमा कीजिएगा आप सभी बड़े🙏🙏 आप सभी को मधुर श्रावणी व्रत की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ मेरा प्यार भरा राधे राधे🙏🙏
*मधुश्रावणी की सम्पूर्ण दिवस की कथा - सौजन्य श्रीमती सपना ठाकुर
मधुश्रावणी व्रत विधि - केले के पत्ते पर 108 नाग बनाए जाते हैं। रेहन से, चंदन, काजल नीले रंग की स्याही और लाल रंग से बनाकर गौरी गणेश सहित कलश स्थापना करके उनका पूजन नीम की पत्ती दूध लावा चावल आटे की पूरी खीर आम खीरा नींबू आदि चढ़ाकर पूजा की जाती है।
समुद्र मंथन से निकले हुए हलाहल विष को जब शिव जी ने अपने कंठ में धारण किया तो उन्हें अत्यंत पीड़ा हो रही थी ,उस पीड़ा का हरण करने के लिए महर्षि कश्यप ने अपने प्रभु को कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए एक यज्ञ किया और अपनी मानसिक कल्पना से एक कन्या प्रकट की जिसमें शिव जी का अंश था। शिवजी का अंश होने के कारण वह शिव पुत्री कहलाए तथा महर्षि की मानसिक कल्पना से प्रकट हुई इसलिए वह मनसा कहलाई 🌷🌷 मनशा ने भोलेनाथ के कंठ में स्थित विष को स्वयं धारण कर लिया और अपने पिता को कष्ट से मुक्ति दिलाई जिसके कारण शिवजी का कंठ नीला हुआ था। तब माता पार्वती ने मनसा से कहा हे पुत्री तुमने अपने पिता और मेरे प्रभु हर को अर्थात शिव जी को विष के कष्ट मुक्ति दिलाई है अर्थात तुमने हरके विष का हरण किया है, इसलिए आज से तुम विषहरी कह आओगी तथा विषहरा के नाम से संसार में पूजी जाओगी सौभाग्यवती स्त्रियां तुम्हारा व्रत करके पूजन करके अपने सौभाग्य और परिवार की रक्षा का वर प्राप्त करेंगी। मनसा देवी अर्थात विसहरा का विवाह कृष्ण भक्त ऋषि जरत्कारु से हुआ और आस्तिक मुनि उनके पुत्र हैं ,जिन्होंने परीक्षित पुत्र जन्मेजय के नागयज्ञ से नागों की रक्षा की थी इसलिए आस्तिक मुनि का नाम लेकर 3 बार ताली बजाने से कहते हैं ,कि नागों का भय समाप्त हो जाता है क्योंकि उन्होंने नागों की रक्षा की थी ।इसलिए जहां आस्तिक मुनि का नाम लिया जाता है वहां पर नाग किसी को कष्ट नहीं पहुंचाते🙏🙏 सभी माता विषहरी की पूजा सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए करती आ रही है🙏🙏
श्रीमती सपना ठाकुर
मधुश्रावनी व्रत दूसरे दिन की कथा🙏🪷🪷 विसहरा की कथा है🌷🌿 महादेव की मानस पुत्री मनासा थे जिन्हें पार्वती जी पसंद नहीं करती थी अतः महादेव जी ने उन्हें मृत्यु लोग भेज दिया। मनषा चाहती थी, कि मृत्यु लोक में सब उनकी पूजा करें, उस समय मृत्यु लोक में चंदू नाम का एक बनिया शिव जी का परम भक्त था। देवी मनसा ने विचार किया कि यदि यह मेरी पूजा करेगा तो सभी मेरी पूजा करेंगे परंतु चंदू केवल महादेव का ही भक्त था वह किसी और देव की पूजा नहीं करता था। चंदू के 8 पुत्र थे। क्योंकि वह किसी और देव की पूजा करने को तैयार नहीं था। क्रोध में आकर मनसा ने उसके साथ पुत्रों को डस कर मार डाला चंदू का केवल एक ही पुत्र जीवित था। जब वह विवाह योग्य हुआ तब चंदू एक ऐसी कन्या की खोज करने लगा जिसकी कुंडली में अखंड सौभाग्यवती होने का योग हो अभी बहुला नाम की एक राजकुमारी जिसकी कुंडली में पुत्र पौत्र आदि सहित अखंड सौभाग्य का योग था चंदू ने अपने पुत्र लखेंद्र का विवाह बहुला से करवा दिया। जब दूल्हा-दुल्हन कोहबर में थे उसी समय मनसा वहां आकर लखेंद्र को डस देती है ,और उसकी मृत्यु हो जाती बहुला अपने पति के शव को लेकर उसे जीवित करने के संकल्प से गंगा में प्रवेश करती है नाव में पति को के शव को लिए वह बहते बहते प्रयागराज पहुंचती है, शव मांस विहीन हो चुका था ,परंतु बहुला हार नहीं मानती नदी किनारे बैठे हुए वह एक धोबनको देखती है, जिसका पुत्र उसे बहुत तंग कर रहा था तब वह अपने पुत्र को मांस बनाकर कपड़े में ढक देती है और जब उसका कार्य पूर्ण हो जाता है तब मंत्र पढ़कर कपड़ा हटाती है, तो उसका बच्चा स्वस्थ चित् उसके साथ चलने लगता है, यह सब चमत्कार बहुला दो-तीन दिनों तक देखती है, तीसरे दिन वह उस भवन के पैर पकड़कर प्रार्थना करने लगती है, आप मेरे पति को भी जीवित कर दीजिए, उसी समय सब देवता भी वहां पहुंच जाते हैं, और धोबन से लखेंद्र को जीवित करने की प्रार्थना करते हैं तब धोबन कहती है कि, तुम मनसा देवी की पूजा करो और अपने आसपास सहित अपने सास-ससुर से भी पूजा करने को कहो ऐसा करने से तुम्हारा पति जीवित हो जाएगा।धोबन की बात मान बहुला वैसा ही करती है, उसे लखेंद्र जीवित प्राप्त होता है, उसके सातो जेठ भी जीवित कर दिए, तब चंदू बनियानी माता को प्रणाम किया और मनसा माता का भव्य मंदिर बनवाया जहां माता मनसा के साक्षात दर्शन होते हैं जय मां मनसा जय मां विषहरा🪷🪷🪷🙏🙏🙏
म🪷🪷🪷🙏🙏🙏
मधुश्रावणी व्रत तीसरे दिन की कथा🪷🙏 प्राचीन समय की बात है श्रुति कीर्ति नामक एक राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी वे माता के परम भक्त थे। उन्होंने माता की सेवा और पूजा करने में अपना समय व्यतीत करते थे माता प्रसन्न हुई और उन्हें दर्शन दिए कहा ,हे राजन मैं तुम्हारी पूजा से अति प्रसन्न हूं ,मांगो क्या वर मांगना चाहते हो तब राजा ने अपने लिए एक संतान की कामना की जो गुणवान हो और रूपवान भी तब माता दुविधा में पड़ गई क्योंकि ब्रह्मा जी ने उसके भाग्य में संतान नहीं लिखी थी ,माता ने कहा मैं तुम्हें संतान का आशीर्वाद अवश्य देती हूं ।परंतु वह 16 वर्ष होने पर मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा, राजन ने वह स्वीकार कर लिया माता अंतर्ध्यान हो गई। कुछ समय पश्चात राजा के घर एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम चिरायु रखा गया। जब वह 16 वर्ष का हुआ, तब राजा और उसकी पत्नी ने चिरायु के मामा को बुलाकर कहा कि साथ में काशी ले जाइए विश्वनाथ के श्री चरणों में इसे मोक्ष मिल जाए यही अच्छा है। दुखी मन से माता-पिता ने चिरायु को विदा किया।मामा भांजा काशी की यात्रा पर निकले रास्ते में एक नगर पड़ा वही धर्मशाला में दोनों ठहर गए उस नगर की भव्यता देखते ही बन रही थी ,पता चला वहां की राजकुमारी मंगला का विवाह होने जा रहा है जोकि अति रूपवती तथा गुणवती है। मंगला गौरी पूजन के लिए पुष्प तोड़कर मंदिर जा रही थी और अपनी सखियों से कह रही थी कि माता का मुझे आशीर्वाद प्राप्त हुआ है ,कि जिस पर भी मैं अक्षत छिड़क दूं तो वह अल्पायु भी हो तो दीर्घायु हो जाएगा चिरायु के मामा ने वहां से जाते समय यह बात सुन ली और विचार किया काश इस राजकुमारी का विवाह मेरे भांजे से हो जाए। धूमधाम से राजकुमारी मंगला की बारात आई मामा भांजा भी उसे देखने गए परंतु दूल्हा मंदबुद्धि का और कुरुप था। बहुत सारे फूलों से उसके चेहरे को ढक कर लाया गया था परंतु राजकुमारी को तो एक सुंदर वर चाहिए था। यह जानकर दूल्हे के पिता ने विचार किया यदि कन्या को पता चल गया तो यह विवाह नहीं होगा, इतने में उसकी नजर चिरायु पर पड़ी दूल्हे के पिता ने चिरायु के मामा से सब बातें कह दी ,और कहा कि चिरायु को दूल्हा बनाकर विवाह करवा देना चाहिए। भांजे को दीर्घायु प्राप्त हो जाए इस विचार से मामा ने हामी भर दी और मंगला और चिरायु का शुभ विवाह संपन्न हुआ🪷🙏 कोहबर में रात भर दोनों साथ रहे और बातचीत की इतने में नागराज आए तब राजकुमारी मंगला ने उन्हें दूध का कटोरा देकर प्रार्थना की तो वह वापस चले गए अपनी केचुली छोड़कर जो बाद में एक सुंदर हार बन गया। चिरायु ने सारी बात मंगला को बता दी और मामा भांजा दोनों काशी के लिए निकल पड़े। जब विदाई का समय आया तब राजकुमारी मंगला ने अपने पिता से सब बात कह सुनाई कि जिस राजकुमार से मेरा विवाह हुआ है, वह यह नहीं है , कोहबर में क्या-क्या बात हुई सब कुछ बताया,वह तो कोई और ही है तब बारात बिना दुल्हन लिए वापस लौट गई। मंगला दिन रात मां गौरी की पूजा करती और ऐसी व्यवस्था की जिससे कि नगर में आने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा ना रहे सबको भोजन कराती और हराने वाले को देखती सोचती कहीं उसका पति तो नहीं आ गया अपनी भक्ति पर उसे पूर्ण विश्वास था। उधर चिरायु मामा के साथ काशी पहुंचा उसकी 16 वर्ष की आयु में पूर्ण हो चुकी थी। तब मामा समझ गए कि यह राजकुमारी से विवाह करने के कारण ही हुआ है, वापस अपनी बहन के पास जाने लगी रास्ते में वही नगर पड़ा जहां राजकुमारी मंगला थी वहां जाकर राजकुमारी मंगला के पिता को सब कुछ बताया तब मंगला की विदाई चिरायु के साथ सुख पूर्वक उसके पिता ने कर दी मामा ,भांजे और बहू को लेकर अपनी बहन के घर पहुंचे पुत्र के साथ पुत्रवधू को देखकर माता-पिता अति प्रसन्न हुए मामा ने सारा वृत्तांत कह सुनाया मंगला के साथ ससुर अति प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद दिया, मंगला माता गौरी की परम भक्त थी इसीलिए उसके द्वारा किए गए व्रत हो मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है जो कि श्रावण मास के मंगलवार की तिथि को किया जाता है🙏🪷🪷 जय माता 🪷🪷🙏🙏
मधुश्रावणी व्रत चौथे दिन की कथा🙏🪷🪷 आज की कथा पृथ्वी माता को अपने शीश पर धारण करने वाले भगवान शेषनाग की है🙏🪷 पुराणों में कथा वर्णित है ,की प्रलय के बाद विधाता पृथ्वी की रचना शब्द ,स्पर्श ,रूप ,रस और गंध से यही पांच तत्वों से करते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी का विवाह वाराह से हुआ जो कि भगवान के ही रूप हैं और मंगल ग्रह उनके पुत्र हैं, परंतु मिथिला के दंत कथाओं में कहा जाता है कि पहले के समय पृथ्वी रसातल में चली गई थी उसे बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य , कछप, और वाराहा अवतार ग्रहण की ये तब पृथ्वी बोली बाहर आकर मैं क्या करूं सभी मेरा अपमान करते हैं चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है मुझ पर हल चलाते हैं और मुझे कष्ट देते हैं। वाराह भगवान पृथ्वी को ऊपर लेकर आए और शेषनाग जी के फन पर उन्हें स्थापित किया तब से भगवान शेषनाग में पृथ्वी का भार अपने सर पर धारण कर रखा है, तभी पृथ्वी पर सारा संसार बसा हुआ है नदिया पार लाभ समुद्र जंगल पशु और हम मनुष्य भी🙏🙏🪷🪷🪷 भगवान शेषनाग की कृपा और नाग माता की कृपा हम सब पर ऐसे ही बनी रहे🙏🪷 तथा लिखने में कोई भूल चूक हुई हो तो क्षमा कीजिएगा🙏🙏
मधुश्रावणी व्रत पांचवें दिन की कथा🪷🪷🙏🙏 आज की कथा नागराज वासुकी कि उस परम अनुकंपा की कथा है जिसके कारण हमें माता महालक्ष्मी सहित अनेकों दिव्य पदार्थ प्राप्त हुए🙏🙏🪷 कथा समुद्र मंथन की 🌷🌷एक बार समुद्र देव देवताओं के पास गए और कहां, ऊपर बहुत गर्मी है मुझे कष्ट हो रहा है, कृपा करके मेरा कष्ट हरण कीजिए तब देवताओं ने समुद्र मंथन की योजना बनाई और राजा बलि की अगवानी में दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन प्रारंभ किया, मंदराचल पर्वत को मथानी बनाकर तथा वासुकी नाग की रस्सी बनाई गई और भगवान विष्णु स्वयं कच्छप अवतार में पर्वत के नीचे स्थित हुए तब समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ, समुद्र से अनेकों मणि माणिक के सहित उच्चै श्रवा नामक घोड़ा, ऐरावत हाथी और माता महालक्ष्मी प्रकट हुई। माता महालक्ष्मी ने विष्णु जी का वर्णन किया। तत्पश्चात कालकूट नामक हलाहल विष समुद्र से निकला जिसे महादेव ने अपने कंठ में धारण किया और सृष्टि की रक्षा की नीलकंठ कहलाए। तत्पश्चात अमृत कलश लेकर देवता प्रकट हुए अमृत देखते की कृपा से हम सभी धन्य हो गए🙏🪷🪷
मधुश्रावनी व्रत छठे दिन की कथा🙏🪷🪷 गो सावन की कथा🪷🪷 प्राचीन काल की बात है मध्यस्थ नामक राजा की 101 पुत्रियां थी। गो सावन बड़ी बेटी का नाम था। राजा अपनी पुत्रियों का विवाह एक ही घर में करना चाहते थे। योग्य वर मिलने पर दूसरे नगर में नाहर नामक राजा के 2 पुत्र थे। बैरेसी और चिनाय।बैरसी का विवाह गोसावन से तथा दूसरी पुत्री का विवाह चिनाय से हुआ विवाह के समय लावा डालते हुए बैरसी की पगड़ी से एक सांप गिरता है, जिसे देख कर सब लोग डर जाते हैं तब बैरसी बताता है, कि वह उसकी पत्नी लीली है, भगवान शंकर की मानस पुत्री।। नाहर राजा नाराज हो जाते हैं, और गुस्से में बैरसी को शाप दे देते हैं। गौना होकर गोसावन गई तो बैरेसी और गोसावन मिले नहीं थे। लिली उनको मिलने नहीं देती थी ।यह सब देखकर सास ससुर भी बहुत परेशान थे गो सावन सास ससुर की बहुत सेवा करती थी। वे उससे बहुत खुश रहते थे। और बरसी के व्यवहार से दुखी। 1 दिन चिनाय ने अपने बड़े भाई से कहा भैया चलो कहीं घूम आते हैं, ऐसा कह कर दोनों भाई घूमने चले जाते हैं ।चिनाय और उसकी पत्नी ने मिलकर योजना बनाई जिससे कि गोसावन अपने पति के साथ समय व्यतीत कर सकें बैरसी जहां जहां जाता गो सावन भेष बदलकर घुंघट में अपना सर ढंक कर बैरसी से मिलती दोनों पासे खेलते बैरसी हर रात को गोसावन से एक पासा धरती पर गढ़ाने को कहता है ऐसा करते हुए पांच रात्रि व्यतीत हो गई और वे अपने घर वापस आ गए। लिली अपनी सौतन से बहुत ईर्ष्या रखती थी, इसलिए उसे कोई ध्यान नहीं था कि गोसावन कहां गई है। कुछ समय पश्चात जब गो सावनी पांच पुत्रों को जन्म देती है तब लीली ऐसे कहती है यह बच्चे तुम्हारे हैं, तब बैरसी को गोसावन उन पांच रातों की कथा बताती है क्या खाया, कैसे पासे खेलें और बैरसी को वहां लेकर जाती है जहां उसने पासे जमीन में गड़ा कर रखे थे ,तब बैरसी को विश्वास हो जाता है, परंतु लिली अपने सास-ससुर से कहकर गोसावन को सतीत्व की परीक्षा देने कहती है। गो सावन को लोहे के चावल दिए जाते हैं पकाने को और कहते हैं यदि तुम्हारे सतीत्व में शक्ति है, तो यह चावल अवश्य पकेगें और लिली को सादे चावल दिए जाते हैं। गोसानव पूर्ण श्रद्धा भाव से गौरी शंकर का ध्यान करके चावल पकाती है लोहे के चावल भी पक जाते हैं, परंतु लिली केसादे चावल नहीं पकते सास ससुर प्रसन्न होकर वह गोसावन को आशीर्वाद देते हैं सब प्रसन्न हो जाते हैं परंतु गोसावन नदी किनारे तपस्या करने चली जाती है। यह सब जान उसके साथ ससुर भी वहां पहुंच जाते हैं और उसे आशीर्वाद देते हैं, कि अगले जन्म में तुम पति-पत्नी चिड़िया बनोगे और यही इस जगह में चहकते रहो के साथ में🙏🪷🪷
मधुश्रावणी व्रत सातवें दिन की कथा🙏🪷🪷 यह कथा देवी वैदर्भी की है जिनकी शिवजी में परम आस्था रही, जो माता गंगा की धरती पर आगमन का एक माध्यम भी रहे क्योंकि उन्हीं के वंश में आगे भगीरथ जी का जन्म हुआ🪷🪷🪷🪷 राजा सगर की दो पत्नियां थी वैदर्भी और शैव्या। शैव्या के 1 पुत्र असमंजस हुए और वैदर्भी के गर्भ से 1 मांस का लो थोड़ा निकला वैदर्भी ने महादेव जी को पूजन कर प्रसन्न किया तब महादेव जी ने उस मांस
के लोथड़े से 60000 टुकड़े करके मटको में डाल दिया जिससे उसके 60000 पुत्र हुए। द्वापर युग में गंगा किनारे श्री कृष्ण जी और राधा जी सखियों संग रासलीला कर रहे थे। तब गंगा श्री कृष्ण के रूप से मोहित हो गई थी ।जिसे देख राधा जी क्रोधित हो गई ,राधा जी के क्रोध से बचने के लिए गंगा ने श्री कृष्ण के चरण पकड़ लिए और ब्रह्मा सहित देवताओं को अपनी रक्षा के लिए बुला लिया अपनी समस्या बताएं तब कृष्ण जी ने गंगा को अपने अंगूठे में समा लिया गंगा बाहर निकली गंगा त्रिपत गामिनी हुई ,एक धारा ब्रह्मा जी के कमंडल में समय दूसरी धारा विष्णु पत्नी कहलाए ,आरती श्री शंकर जी की जटा में समा गई सरस्वती, लक्ष्मी और गंगा में लड़ाई हुई सरस्वती ने गंगा को मृत्यु लोक में जाने का शाप दिया। माता सरस्वती का दिया हुआ श्राप भी एक कारण है जिसके कारण मां गंगा हमें मृत्युलोक में प्राप्त हुई वैदर्भी भी के साठ हजार पुत्रों का पारण करने के लिए मां गंगा धरती पर आई🙏🪷🪷🪷
मधुश्रावणी व्रत आठवें दिन की कथा🙏🪷🪷 आज की कथा 🪷 अखंड सौभाग्य की देवी माता पार्वती का भोलेनाथ के साथ किस प्रकार विवाह उनका हुआ आज की कथा यही है🙏🪷🪷🪷 देवी सती के अग्नि मैं समा जाने के पश्चात उनका पुनर्जन्म हिमालय राज् की कन्या पार्वती के रूप में हुआ। हिमालय राज और उनकी पत्नी मैना रानी जगत जननी जगदंबा के परम भक्त थे ,और उन्होंने अपनी संतान के रूप में साक्षात जगदंबा की ही इच्छा की थी। इसीलिए माता पार्वती के रूप में पुत्री रूप में उन्होंने जन्म लिया। पुत्री के विवाह योग्य होने पर हिमालय राज ने उनके लिए वर ढूंढना प्रारंभ किया नारद जी ने उन्हें विष्णु जी का नाम सुझाया था। परंतु देवी पार्वती निरंतर शिवजी के ध्यान में लगी रहती थी और उन्हें ही पति रूप में स्वीकार करना चाहती थी इसीलिए वे अपनी सखियों के साथ घने जंगल में जा एक कंदरा के भीतर रहकर शिव जी की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें प्रसन्न करने में लग गई हिमालय राज अपनी पुत्री को ढूंढने लगे। पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और कहा हे देवी आप एक राजकन्या हैं, फिर आप मुझ भस्म धारी नागों की माला पहनने वाले से विवाह क्यों करना चाहती हैं, देवी पार्वती ने कहा प्रभु सब कुछ जान कर भी आप अनजान बनते हैं, भोलेनाथ तथास्तु कहकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए इतने में हिमालय राज अपनी पुत्री के पास जा पहुंचे और अपनी पुत्री को उसके चुने हुए वर्ग के साथ विवाह करने का वचन देकर महल वापस ले आए और भोलेनाथ के साथ उनके विवाह की तैयारियां करने लगे, भोलेनाथ की बारात बड़ी विचित्र थी क्योंकि उनकी बारात में देवतातों और दानवों सहित नाग किन्नर यक्ष गंधर्व भूत प्रेत पिशाच और सभी विचित्र विचित्र प्राणी जिन्हें देखकर सब भयभीत हो रहे थे। महादेव जी का रूप देखकर मैना रानी भी भयभीत हो गई और मूर्छित हो गई जब उन्हें होश आया वह विचार करने लगी कि, मैं अपनी पुत्री ऐसे वर को कैसे देदुं तब नारद जी सहित सब देवताओं ने उन्हें पार्वती जी के पूर्व जन्म की कथा सुनाइए सब सुनकर मैना रानी प्रसन्नता पूर्वक विवाह के लिए तैयार हो गई और भोलेनाथ और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। विदा होकर कैलाश चली गई कुछ कुछ समय पश्चात महादेव जी और देवी पार्वती भ्रमण कर रहे थे महादेव जी पार्वती जी को अनेक कथाएं सुनाया करते थे ।एक समय में अमरनाथ की गुफा में बैठकर देवी पार्वती को कथा सुना रहे थे जब उन्हें नींद आ गई वहां पर बैठे कबूतर के जोड़े ने सारी कथा सुनी और हुंकार भरने लगे जो आज भी अमर है।🙏🙏🪷🪷 यह कथा मैंने संक्षिप्त ही सुनाई है क्योंकि इस कथा से आप सभी भलीभांति परिचित हैं🙏🙏🪷🪷
मधुश्रावणी व्रत नवम दिवस की कथा🪷🪷 महादेव की पूजा गंगाजल के अभिषेक के बिना पूर्ण नहीं होती उन्हीं मां गंगा के धरती पर अवतरण की कथा है🙏🙏🪷🪷 राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय करके एक अश्व छोड़ा था। इंद्रदेव को भय हुआ ,यदि राजा सगर अश्वमेध यज्ञ पूर्ण कर लेंगे तो इंद्रासन उन्हें प्राप्त हो जाएगा, इसलिए देवराज इंद्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ,जब सगर के 60000 पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे ,तब घोड़े को वहां बंधा हुआ देख उन्होंने कपिल मुनि से क्रोध में भरकर उनका तिरस्कार किया , और कपिल मुनि ने क्रोध में आकर उन सबको अपनी मंत्र शक्ति से भस्म कर डाला यह सब जान राजा सगर को बड़ा दुख हुआ। असमंजस अपने भाइयों के मुक्ति का उपाय जानने ऋषि यों के पास गये, ऋषि यों ने कहा गंगा जब धरती पर अवतरित होगी और पितरों के भस्म को गंगा में विसर्जित किया जाएगा तब उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा। यह जानकर असमंजस नहीं कठोर तपस्या की परंतु वे गंगा को धरती पर लाने में असमर्थ रहे तत्पश्चात उनके पुत्र दिलीप ने तपस्या कि, दिलीप के पुत्र अंशुमान ने तपस्या की परंतु गंगा को धरती पर लाने में असमर्थ रहे, अंशुमान के पुत्र भगीरथ हुए जिन्होंने अपने कठोर तप से प्रभु को प्रसन्न किया भोलेनाथ ने कहा गंगा अवश्य धरती पर आएगी परंतु इस समय वह भगवान श्री विष्णु के पास है, असमंजस ने तपस्या की भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और कहा गंगा धरती पर अवश्य तुम्हारे साथ जाएगी परंतु उसका वेग इतना अधिक है ,की धरती उसे सहन नहीं कर सकती सो महादेव जी से प्रार्थना करो कि वे उसे अपनी जटाओं में स्थान दे भगीरथ की प्रार्थना से भोलेनाथ ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और उन्हीं जटाओं से निकली एक धारा गंगा धरती पर भगीरथ के पीछे-पीछे अवतरित हुई इसीलिए उन्हें भागीरथी कहा जाता है, गंगा ने पितरों का उद्धार किया पतित पावनी गंगा सदैव के लिए धरती पर सब के पितरों का उद्धार करने के लिए स्थित हो गई ,मां गंगा ने महादेव जी से कहा हे प्रभु मेरी इच्छा है, कि जहां-जहां गंगा बहे वहां वहां आप स्वयं विराजित होकर भक्तों का कल्याण कीजिए ,महादेव जी ने प्रसन्न होकर गंगा की प्रार्थना स्वीकार कर ली इसीलिए जहां गंगा का धाम है, वहां काशी विश्वनाथ विराजते हैं। भगीरथ की तपस्या से गंगा पृथ्वी पर आए इसीलिए भागीरथी कही गई। गंगा ना केवल हमारे पितरों को मोक्ष देती हैं अपितु हम सबके घरों में पतित पावनी गंगा विराजित है, जिसके बिना हमारी कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती हमारे घर की शुद्धता और हमारे मन की शुद्धता दोनों मां गंगा की ही देन है।🙏🙏🪷🪷 जय मां गंगा
मधुश्रावणी व्रत 13दिन की कथा 🪷🙏🙏 आज की कथा गौरी पुत्र गणेश जी द्वारा हमें दीया गया सौभाग्य पूर्ण आशीर्वाद है 🪷🙏🙏 आज की कथा में हम सब श्री गणेश जी और देवी पार्वती जी से सौभाग्य पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करेंगी 🙏🪷🪷 एक समय की बात है मधुश्रावनी व्रत चल रहा था तब श्री गणेश जी ने गौरी मैया से कहा कि मां मैं मधुश्रावनी व्रत करने वाली सभी सुहागन स्त्रियों को सुहाग दुंगा , पार्वती जी ने सिंन्दूर और धान,पान,और धनिया, चंदन से सुहाग बनाती है और दुर्वा से सुहाग देते हैं। सबसे पहले सुहाग लेने धोबिन आती है, उसे सुहाग देकर भगवान कहते हैं कि तुम कपड़े धोओगी स्तरी करोगी तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा। फिर कायस्थ घर की औरतें आती है उसे सुहाग देकर भगवान कहते हैं कि कलम दवात की पूजा करना तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा सज धज कर रहना। मल्लाह और आती है उसे सुहाग देकर भगवान कहते हैं कि नांव खेना और मछली पकड़ना तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा। ग्वालिन से कहा कि तुम गया भैंसों की सेवा करना दूध दही बेचने पर तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा । बनिया की पत्नियां आई उनसे कहा कि तुम तराजू की पूजा करना ईमानदारी से काम करना तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा । अंत में मिथिलाइन औरतें आईं उन्हें कहा कि तुम लोग पूजा करना पोथी पत्रा पढ़ना उनका आदर करना इसी से तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा। श्री गणेश जी और गौरी मैया ने सब को बारी-बारी से सुहाग देते हैं, सबसे पहले धोबन आती है उसे सिंदूर से सुहाग देते हैं तपश्चात बाकी स्त्रियों को सुहाग मिलता है और बारी बारी से उन्हें धान पान धनिया चंदन से सुहाग देते हैं मिथिलाइन औरतें अंत में पहुंचती हैं इस लिए धनिया ही बचा रहता है इसीलिए हमें धनिया से सुहाग देते हैं, इस लिए कजली तीज पर हम धनिया से सुहाग लेते हैं, सिंदूर से सुहाग लेने धोबिन आती है और अखंड सौभाग्यवती देवी सावित्री भी एक धोबनकंया ही है इसलिए मैंथिलो में धोबन सुहाग का बहुत महत्व है।🙏🪷🪷 कथा सुनाने में यदि मुझसे कोई भी किसी भी प्रकार कि भूल चूक हुई हो तो क्षमा कीजिएगा 🙏🙏🪷🪷 गौरी मैया की कृपादृष्टि आप सभी पर बनी रहे 🙏🪷🪷 स्वप्ना की तरफ से आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं 🙏🌷🌷
मधुश्रावणी व्रत नवम दिवस की कथा🪷🪷 महादेव की पूजा गंगाजल के अभिषेक के बिना पूर्ण नहीं होती उन्हीं मां गंगा के धरती पर अवतरण की कथा है🙏🙏🪷🪷 राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय करके एक अश्व छोड़ा था। इंद्रदेव को भय हुआ ,यदि राजा सगर अश्वमेध यज्ञ पूर्ण कर लेंगे तो इंद्रासन उन्हें प्राप्त हो जाएगा, इसलिए देवराज इंद्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ,जब सगर के 60000 पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे ,तब घोड़े को वहां बंधा हुआ देख उन्होंने कपिल मुनि से क्रोध में भरकर उनका तिरस्कार किया , और कपिल मुनि ने क्रोध में आकर उन सबको अपनी मंत्र शक्ति से भस्म कर डाला यह सब जान राजा सगर को बड़ा दुख हुआ। असमंजस अपने भाइयों के मुक्ति का उपाय जानने ऋषि यों के पास गये, ऋषि यों ने कहा गंगा जब धरती पर अवतरित होगी और पितरों के भस्म को गंगा में विसर्जित किया जाएगा तब उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा। यह जानकर असमंजस नहीं कठोर तपस्या की परंतु वे गंगा को धरती पर लाने में असमर्थ रहे तत्पश्चात उनके पुत्र दिलीप ने तपस्या कि, दिलीप के पुत्र अंशुमान ने तपस्या की परंतु गंगा को धरती पर लाने में असमर्थ रहे, अंशुमान के पुत्र भगीरथ हुए जिन्होंने अपने कठोर तप से प्रभु को प्रसन्न किया भोलेनाथ ने कहा गंगा अवश्य धरती पर आएगी परंतु इस समय वह भगवान श्री विष्णु के पास है, असमंजस ने तपस्या की भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और कहा गंगा धरती पर अवश्य तुम्हारे साथ जाएगी परंतु उसका वेग इतना अधिक है ,की धरती उसे सहन नहीं कर सकती सो महादेव जी से प्रार्थना करो कि वे उसे अपनी जटाओं में स्थान दे भगीरथ की प्रार्थना से भोलेनाथ ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और उन्हीं जटाओं से निकली एक धारा गंगा धरती पर भगीरथ के पीछे-पीछे अवतरित हुई इसीलिए उन्हें भागीरथी कहा जाता है, गंगा ने पितरों का उद्धार किया पतित पावनी गंगा सदैव के लिए धरती पर सब के पितरों का उद्धार करने के लिए स्थित हो गई ,मां गंगा ने महादेव जी से कहा हे प्रभु मेरी इच्छा है, कि जहां-जहां गंगा बहे वहां वहां आप स्वयं विराजित होकर भक्तों का कल्याण कीजिए ,महादेव जी ने प्रसन्न होकर गंगा की प्रार्थना स्वीकार कर ली इसीलिए जहां गंगा का धाम है, वहां काशी विश्वनाथ विराजते हैं। भगीरथ की तपस्या से गंगा पृथ्वी पर आए इसीलिए भागीरथी कही गई। गंगा ना केवल हमारे पितरों को मोक्ष देती हैं अपितु हम सबके घरों में पतित पावनी गंगा विराजित है, जिसके बिना हमारी कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती हमारे घर की शुद्धता और हमारे मन की शुद्धता दोनों मां गंगा की ही देन है।🙏🙏🪷🪷 जय मां गंगा
मधुश्रावणी व्रत नवम दिवस की कथा🪷🪷 महादेव की पूजा गंगाजल के अभिषेक के बिना पूर्ण नहीं होती उन्हीं मां गंगा के धरती पर अवतरण की कथा है🙏🙏🪷🪷 राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय करके एक अश्व छोड़ा था। इंद्रदेव को भय हुआ ,यदि राजा सगर अश्वमेध यज्ञ पूर्ण कर लेंगे तो इंद्रासन उन्हें प्राप्त हो जाएगा, इसलिए देवराज इंद्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ,जब सगर के 60000 पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे ,तब घोड़े को वहां बंधा हुआ देख उन्होंने कपिल मुनि से क्रोध में भरकर उनका तिरस्कार किया , और कपिल मुनि ने क्रोध में आकर उन सबको अपनी मंत्र शक्ति से भस्म कर डाला यह सब जान राजा सगर को बड़ा दुख हुआ। असमंजस अपने भाइयों के मुक्ति का उपाय जानने ऋषि यों के पास गये, ऋषि यों ने कहा गंगा जब धरती पर अवतरित होगी और पितरों के भस्म को गंगा में विसर्जित किया जाएगा तब उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा। यह जानकर असमंजस नहीं कठोर तपस्या की परंतु वे गंगा को धरती पर लाने में असमर्थ रहे तत्पश्चात उनके पुत्र दिलीप ने तपस्या कि, दिलीप के पुत्र अंशुमान ने तपस्या की परंतु गंगा को धरती पर लाने में असमर्थ रहे, अंशुमान के पुत्र भगीरथ हुए जिन्होंने अपने कठोर तप से प्रभु को प्रसन्न किया भोलेनाथ ने कहा गंगा अवश्य धरती पर आएगी परंतु इस समय वह भगवान श्री विष्णु के पास है, असमंजस ने तपस्या की भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और कहा गंगा धरती पर अवश्य तुम्हारे साथ जाएगी परंतु उसका वेग इतना अधिक है ,की धरती उसे सहन नहीं कर सकती सो महादेव जी से प्रार्थना करो कि वे उसे अपनी जटाओं में स्थान दे भगीरथ की प्रार्थना से भोलेनाथ ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और उन्हीं जटाओं से निकली एक धारा गंगा धरती पर भगीरथ के पीछे-पीछे अवतरित हुई इसीलिए उन्हें भागीरथी कहा जाता है, गंगा ने पितरों का उद्धार किया पतित पावनी गंगा सदैव के लिए धरती पर सब के पितरों का उद्धार करने के लिए स्थित हो गई ,मां गंगा ने महादेव जी से कहा हे प्रभु मेरी इच्छा है, कि जहां-जहां गंगा बहे वहां वहां आप स्वयं विराजित होकर भक्तों का कल्याण कीजिए ,महादेव जी ने प्रसन्न होकर गंगा की प्रार्थना स्वीकार कर ली इसीलिए जहां गंगा का धाम है, वहां काशी विश्वनाथ विराजते हैं। भगीरथ की तपस्या से गंगा पृथ्वी पर आए इसीलिए भागीरथी कही गई। गंगा ना केवल हमारे पितरों को मोक्ष देती हैं अपितु हम सबके घरों में पतित पावनी गंगा विराजित है, जिसके बिना हमारी कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती हमारे घर की शुद्धता और हमारे मन की शुद्धता दोनों मां गंगा की ही देन है।🙏🙏🪷🪷 जय मां गंगा
मधुश्रावणी व्रत 11 दिन की कथा🪷🪷 एक ब्राह्मणी के साथ बेटे थे। सबसे छोटी बहू गरीब घर से आई थी और सीधी-सादी थी, सभी जेठानी बड़े घरों से होने के कारण घर का सारा काम छोटी बहू से ही करवाते थे। 1 दिन दोपहर के समय छोटी बहू बर्तन धो रही थी तभी मोहल्ले के कुछ बच्चे सांप सांप कहकर आवाज करने लगे, छोटी बहू ने सांप के दो छोटे बच्चे देखें मोहल्ले के बच्चों से बचाने के लिए उन्हें टोकनी से ढक दिया और बच्चों के पूछने पर उन्हें दूसरी जगह भेज दिया सांप के बच्चे दिनभर टोकनी के नीचे छुपे हुए सब कुछ देख रहे थे। शाम के समय छोटी बहू ने टोकनी उठाकर उन्हें आजाद कर दिया। दोनों सांप के बच्चे नाग लोक पहुंच गए उधर नाग माता अपने बच्चों की चिंता कर रही थी वे दोनों नागराज वासुकी के पुत्र बाल और बसंत थे। दोनों बच्चों ने नाग माता को सारे दिन भर की बात बताई और छोटी बहू की दुख भरी कहानी भी और कहा की मां हम उसे अपने घर लाना चाहते हैं, उसके दुख दूर करना चाहते हैं, वासुकी जी ने कहा वह मनुष्य है और हम नांग वह यहां नहीं आ सकती परंतु बाल हट के कारण मान गए बाल बसंता ने कहा हम मनुष्य रूप लेकर उसके साथ चार 8 दिन रह कर उसे खूब सारा धन देकर विदा कर देंगे नागराज वासुकी तैयार परंतु कहा की जब वह आए तो पीछे का कमरा खोलने से मना कर देना और देहरी पर दीया नहीं रखी यह बताना चूल्हे के पीछे गर्म तवा नहीं रखी यह भी उसे कह देना, तब दोनों भाई छोटी बहू को लिवाने गए और कहां हम इसके भाई हैं जो परदेस चले गए थे ।अब लौट आए हैं ,इसलिए अपनी बहन को निभाने आए छोटी बहू भाइयों के साथ चली गई, दोनों भाइयों ने बहन खूब खातिरदारी की जाने से 1 दिन पहले उत्सुकता वस छोटी बहू ने आखरी का कमरा खोल दिया जहां सांप के सैकड़ों बच्चे थे डर कर उसने दरवाजा जोर से बंद किया तो कुछ बच्चे मर गए और कुछ घायल हो गए नागराज वासुकी को बड़ा क्रोध आया शाम के समय उसने दिया जला कर देहरी पर ही रख रख दिया जिससे उनके सर पर जलन होने लगी तब जाते समय नाग माता ने पुत्री को खूब सारा धन देकर विदा करते हुए कहा पुत्री मैं तुम्हें एक मंत्र बताती हूं रात को सोते समय उसे बोलकर दीया बुझा ना और तब सोना🪷🪷 दीप् दीपहरा जाओ धरा मन माणिक मुक्ता भरा🌷 नाग बढ़वु, नागिन बढ़वु ,🌷पांचों बहिन बिसहरा बढ़वु ,🌷बाल बसंता भैया बढ़वु,🪷ढाड़ी खोड़ी मौसी बढ़वु,🌷🌷अम्मावरी पीसी बढ़वु ,🪷वासुक राजा बाप बढ़वु,🪷 वसकाईन रानी मां बढ़वु,🪷खोना मोना मामा बढ़वु,🌷। अष्ट कूड़ा के वंश बढ़वु आस्तिक आस्तिक आस्तिक गरुड़ गरुड़ गरुड़ 🙏🪷🪷 छोटी बहू अपने घर आ गई रात को सोते समय उसे माता की बात याद आई उसने वही मंत्र बोलकर दीया बुझा दिया और सो गई उस समय नागराज वासुकी उसे डसने गए थे परंतु उन्होंने जब सुना कि वह आशीर्वाद दे रही है, तब नागराज ने उसे डसने का विचार छोड़ दिया और अपनी मणि वहीं छोड़ आए, सुबह जब छोटी बहू उठी तो देखा उसका पूरा कमरा मणि माणिक कि से भरा हुआ था ,यह सब देख उसके जेठ जेठानी भी बड़े खुश हुए और सभी खुशी-खुशी रहने लगी, नागराज वासुकी अपने घर पहुंचकर रानी को बताते हैं ,कि वह हमारे वंश को खूब आशीर्वाद दे रही थी इसीलिए मैं वहां अपनी मणि छोड़ आया अब उसे जीवन में कोई कष्ट नहीं होगा। नाग पंचमी के दिन उसने बाल बसंत की रक्षा की थी इसलिए गोबर से नाक बनाकर उस दिन उनकी पूजा की जाती है और यह पूजा अब धीरे-धीरे संपूर्ण भारतवर्ष में की जाती है।🌷🙏🙏
मधुश्रावनी व्रत 12 दिन की कथा🪷🪷🙏 आनंद देश का एक राजा था ,जिसका नाम श्रीकरक था। पुत्र जन्म के 12 वर्ष पश्चात उसके घर एक पुत्री ने जन्म लिया राजा ने उसकी कुंडली ब्राम्हण को दिखाइए तब ब्राह्मण ने कहा आप की पुत्री भाग्यवान है परंतु उसके भाग्य में छाती पर सौतकी लात खाना लिखा है और, तालाब में ईट उठाएगी, सब जानकर राजा ने निश्चय किया कि वह उसका विवाह नहीं करेंगे, महल के नीचे एक सुरंग बनाकर जंगल में राजकुमारी के रहने की व्यवस्था कर दी साथ में एक दासी भी रहती थी, 7 दिन में श्री करक राजा और उनका पुत्र चंद्रकर अपनी बहन के पास जाकर उसे जसवंत के फूलों से तोड़ते थे और थोड़ी देर बाद जीत करके लौट आते थे। एक बार एक स्वर्ण एक नामक राजकुमार उस जंगल में शिकार खेलने गए जब उन्हें प्यास लगी तो वे पानी ढूंढ रहे थे एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए उन्हें कुछ चीटियां पीले चावल के दाने ले जाते हुए नजर आए राजकुमार पानी की तलाश में उन चीटियों के पीछे जा पहुंचे वही गए जहां वह राजकुमारी थी, राजकुमार ने जलपान करके दासी से सब हालचाल लिया और कुछ समय उसके साथ रहकर राजकुमारी से गंधर्व विवाह किया वर्णक राजा वापस आने का कहकर अपने राज्य को लौटने लगी तब राजकुमारी ने कहा कुछ दिनों बाद कजली तीज का व्रत है इसलिए आप मेरे लिए साड़ी और श्रृंगार का सामान भेजिएगा जिससे मैं व्रत करूंगी राजकुमार अच्छा है ,कहकर वहां से चले गए वर्णक राजा जब अपने राज्य पहुंचे तब बुनकर को बुलाकर बुलाकर सुंदर साड़ी बनवाई स्वर्ण राजकुमार की पहली पत्नी को जब यह बात पता चली तो उनकी पत्नी ने बुनकर को बुलाकर उस साड़ी पर चंदन से भरे हुए अपने दोनों पर आंचल पर रख दिए और सुखाकर तह करके राजकुमारी के लिए भिजवा दिए, व्रत के दिन जब राजकुमारी ने साड़ी पहनी और छाती पर पैर के निशान देखे तो वह उदास हो गई, और देवी से कहती है कि जब उसके पति आए तो वह कुछ ना बोल सके मुक्की हो जाए स्वर्णक राजा उसे लेने आते हैं, तो वह कुछ नहीं कहती तब वह भी रुष्ट होकर वहां से चले जाते हैं।तब दासी मां सब कुछ समझ जाती है । जब श्री करक राजा और चंद्र कर को यह पता चलता है तो वे राजकुमारी से रुष्ट हो जाते हैं और सामान भी जाना बंद कर देते हैं, तब भूख प्यास से बेहाल राजकुमारी और दासी दोनों भटकने लगते हैं उसी राज्य में जा पहुंचते हैं जहां स्वर्णक राजकुमार का राज्य था, वहां पर पता चलता है, कि राजा अपनी पत्नी के लिए महल और तालाब बनवा रहे हैं वहीं पर राजकुमारी दासी के साथ काम करती है और एक उठाते हुए कहती है, श्रीकर श्रीकर गिरही चढ़ा ओल, चंद्र कर देल देल बनवास। राजा स्वर्णक बनही बिहायल लिखना नहीं फटकार। आसपास के लोग जब यह सुनते हैं, तो वे अपने राजा को जाकर बताते हैं कि एक देव देवी तुल्य स्त्री मजदूरी ईट उठाती है और आपका नाम लेती रहती है तब राजा स्वर्णा वहां जाकर उसे ले आते हैं और श्रीकरक राजा को संदेशा भिजवा कर सब कुछ बता देते तब राजा कहते हैं ब्राम्हण की बात सत्य हुई भाग्य का लिखा होकर ही रहता है।🌷
मधुश्रावणी व्रत 13दिन की कथा 🪷🙏🙏 आज की कथा गौरी पुत्र गणेश जी द्वारा हमें दीया गया सौभाग्य पूर्ण आशीर्वाद है 🪷🙏🙏 आज की कथा में हम सब श्री गणेश जी और देवी पार्वती जी से सौभाग्य पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करेंगी 🙏🪷🪷 एक समय की बात है मधुश्रावनी व्रत चल रहा था तब श्री गणेश जी ने गौरी मैया से कहा कि मां मैं मधुश्रावनी व्रत करने वाली सभी सुहागन स्त्रियों को सुहाग दुंगा , पार्वती जी ने सिंन्दूर और धान,पान,और धनिया, चंदन से सुहाग बनाती है और दुर्वा से सुहाग देते हैं। सबसे पहले सुहाग लेने धोबिन आती है, उसे सुहाग देकर भगवान कहते हैं कि तुम कपड़े धोओगी स्तरी करोगी तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा। फिर कायस्थ घर की औरतें आती है उसे सुहाग देकर भगवान कहते हैं कि कलम दवात की पूजा करना तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा सज धज कर रहना। मल्लाह और आती है उसे सुहाग देकर भगवान कहते हैं कि नांव खेना और मछली पकड़ना तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा। ग्वालिन से कहा कि तुम गया भैंसों की सेवा करना दूध दही बेचने पर तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा । बनिया की पत्नियां आई उनसे कहा कि तुम तराजू की पूजा करना ईमानदारी से काम करना तो तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा । अंत में मिथिलाइन औरतें आईं उन्हें कहा कि तुम लोग पूजा करना पोथी पत्रा पढ़ना उनका आदर करना इसी से तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा बना रहेगा। श्री गणेश जी और गौरी मैया ने सब को बारी-बारी से सुहाग देते हैं, सबसे पहले धोबन आती है उसे सिंदूर से सुहाग देते हैं तपश्चात बाकी स्त्रियों को सुहाग मिलता है और बारी बारी से उन्हें धान पान धनिया चंदन से सुहाग देते हैं मिथिलाइन औरतें अंत में पहुंचती हैं इस लिए धनिया ही बचा रहता है इसीलिए हमें धनिया से सुहाग देते हैं, इस लिए कजली तीज पर हम धनिया से सुहाग लेते हैं, सिंदूर से सुहाग लेने धोबिन आती है और अखंड सौभाग्यवती देवी सावित्री भी एक धोबनकंया ही है इसलिए मैंथिलो में धोबन सुहाग का बहुत महत्व है।🙏🪷🪷 कथा सुनाने में यदि मुझसे कोई भी किसी भी प्रकार कि भूल चूक हुई हो तो क्षमा कीजिएगा 🙏🙏🪷🪷 गौरी मैया की कृपादृष्टि आप सभी पर बनी रहे 🙏🪷🪷 स्वप्ना की तरफ से आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं 🙏🌷🌷
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