*सागरिका की पवित्र सरिता माँ महानदी पूजा अनुष्ठान विधा - संयोजिका श्रीमती आशा ठाकुर सखियां..... श्री गणेशाय नमः ,, ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून से ब्रश कर वही स्नानकर वही पूजा करते है। सभी महिला एक साथ मिलकर करती है। उन्ही में से एक महिला कथा सुनाती है। वहां पर जीउतिया उनका सोना या चांदी का बना लहसुन आकृति का रहता है। हर साल जीउतिया सोनार के यहा जा कर बढ़ाते है। उसी जीउतिया को हाथ में रख कथा कहती है। और हर महिला के बच्चों का नाम लेकर आर्शीवाद देती है। ये उनका अपना रिति है। परन्तु हमारे छत्तीसगढ़ में और हम अपने घर पर जिस तरह पूजा पाठ करते हुए देखा है। उसे ही हम आप सबके बीच प्रस्तुत किया है। त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी आपका अपना आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड छत्तीसगढ़ रायपुर 🙏🙏
नकुल नवमी की कहानी
🙏🙏💐💐
सावन शुक्ल पक्ष नवमी का व्रत रखा जाता है। अपने बच्चों के लिए उनके सुख , समृद्धि एवं लम्बी आयु के लिए
मैंथि लों एवं और अन्य वर्ग जैसे हमने देखा है। बनिया कायस्त आदि भी अपने पद्धति के अनुसार इस देवी की पूजा करते है। उनका नियम कुछ दुसरा है। हमारा पद्धति कुछ इस प्रकार है।
नवमी की मूर्ति बनाई जाती है। कागज में और दिवाल में चिपकाई जाती है।
फुल गौड़ा चौक कलश कं लिए और सीता चौक माता के लिएठीक प्रतिमा के नीचे चौक डाले और पाटा या चौकी रखें उसके ऊपर माता का पैर बनाएं दाहिना हाथ की ओर गौरी गणेश और कलश का चौक डाले कलश स्थापित करे
चौकी या पाटा के ऊपर प्लेट रखें गौर साठ का पूजा पहले करें फिर गौरी गणेश कलश फिर माता को आव्हान करें चंदा , सूरज , शंकर पार्वती नकुल नवमी का ध्यान करके उनका पूजन करें
पूजा की तैयारी
नौ दिया
नौ खड़ी सुपारी , हल्दी , दो . दो चुड़ी सभी दिया के ऊपर , सिन्दूर , अक्षत डालने के लिए
चंदन , रोरी , सिन्दूर ,
दुबी खुला फुल ,
अगर बती , धूप , दीप , नैवेद्य ,
नैवेद्य में आटा का छोटा - छोटा पुड़ी
बिना नमक का बड़ा उड़द दाल
पूरन पुड़ी ,फल , आदि
जनेऊ ,नारियल
आरती के लिए दीपक और कपूर
कहानी
नकुल नवमी की
कहानी सुनने या पढ़ते समय अपने हाथों में थोडा अक्षत , पुष्प ,जल ,ले कर कहानी सुने
कहानी पढ़ते वक्त यदि कोई सुनने वाला ना हो तो , दीपक जला कर रखें और उनको साक्षी मान कर कहानी पढ़े
एक गांव में एक किसान रहता था ।
पति पत्नी एवं पांच पुत्र के साथ एक कुटिया में सुख पूर्वक से रहते थे। और अपना जीवन यापन करते थे
बच्चा बहुत दिनों के बाद हुआ था। उन्होंने एक नेवला पाल रखा था। उसको अपने बच्चे की तरह रखते थे उनका बहुत ध्यान रखते थे जब भी समय मिलता उनके साथ खेलते ,लाड प्यार करते थे । पत्नी बहुत ही सीधी साधी सरल स्वभाव की थी। पूजा पाठ अत्यधिक करती
सावन मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि जैसे ही पड़ा । वह सुबह से उठकर घर का सारा काम निपटा कर
नवमी की प्रतिमा बनाकर अपने बच्चे की लम्बी आयु और पति की दीर्घायु के लिए कामना करती , प्रार्थना करती यथा योग्य नैवेद्य बना कर भोग लगाती और उसी को ग्रहण कर अपना व्रत को पूरा करती ।
गांव में पहले नल या जलाशय पास में ना होने के कारण गांव के ग्रामीण जल लेने के लिए दूर जाती थी।
किसान की पत्नी भी
जल लेने के लिए सिर पर सात घड़ा एक के ऊपर एक करके रोज की तरह बच्चे को पालना में सुला कर चली गयी ।
नेवला उस बच्चे के पास ही रहता था।
जब जल भर कर वापस आई तो देखती है । की नेवला के मुंह पर खून लगा हुआ है। यह दृश्य देखकर घबड़ा गई और उसे कुछ भी ना सुझा उसे लगा की कही नेवला उसके बच्चे को मार तो नहीं डाला ( काट तो नहीं दिया शायद )
क्रोध से भरा अपने सिर के ऊपर जो जल से भरा रहता है। उस घड़ा को उस नेवले के ऊपर पटक देती है।
नेवला दब कर अपना प्राण छोड़ देता है। वही पर
दौड़ कर उस पलने के पास पहुंचती है। और देखती है। उसका बच्चा पालने में खेल रहा है।
फिर सोचती है। यह ढेर सारा खून किसका है। इधर उधर देखती है। तो पालने के नीचे सांप मरा हुआ खून से लथपथ पड़ा हुआ है।
साप से लड़ने के कारण नेवले के मुंह पर खून लगा था।
बच्चे को गोद में उठा कर उसे प्यार करती चुमती और फिर खूब दहाड़ मार कर जोर जोर से रोने लग ती है।
क्योंकि वह सभी बच्चे की तरह नेवले को भी उतना ही अधिक प्यार करती थी।
वह उस नेवले को उठा कर नकुल नवमी की प्रतिमा के पास रखकर आंचल फैला कर उस नेवले की प्राण वापस लाने के लिए प्रार्थना की खूब रोई गिड़गिड़ाने लगी मां ने उस नेवले पर अपना कृपा की और नेवला पुनः जीवन दान मिला और जीवित हो गया । उस किसान की पत्नी की भक्ति के कारण ही उस नेवले का नया जन्म हुआ नवमी के दिन ही उस नेवले का तो , नाम नकुल पड़ा । इस लिए सावन मास शुक्ल पक्ष नवमी को नकुल नवमी के नाम से माता की पूजा हर घर में अपने सौभाग्य समृद्धि पुत्र , पौत्र की लम्बी आयु के लिए अपने घरों में माए करती है। जैसा
किसान के घर में खुशियां मनाई गई
उसी तरह सभी के घरों में बच्चे की किलकारी गुंजती रहे
बच्चों कं पैरों में कभी भी काटा ना चुभे
सभी निरोग हो , स्वस्थ हो , दीघार्यु हो
यही आर्शीवाद हम नकुल नवमी माता से मांगते है। उनका आर्शीवाद सदैव बच्चों के ऊपर बना रहें
नकुल माता की जय
आशा ठाकुर
अम्लेश्वर पाटन रोड
🙏🙏
नोटः -
कुछ छुट गया हो तो
हमारी विदुषी सखिया जो इस पटल पर है वे मार्ग दर्शन करें
आज के दिन भोजली भी कुंवारी कन्याओं के द्वारा बोया जाताहै। पहले नाऊन सब तैयारी ले कर घर घर जाती है। पतल , दोना और पोगली जिसमें गेहूँ बोया जाता है। एक दिन पहले गेंहू को भीगा दिया जाता है। दूसरे दिन कन्याओं के द्वारा बोया जाता है। प्रतिदिन कन्या भोजली की देख भाल करती है। भादों माह की प्रतिप्रदा के दिन घूम घाम से सभी कऱ्याएं अपने घरों से भोजली को सिर पर रखकर उसे नदी ' तलाब ,में विसर्जन करती है। यह प्रथा भी हमारे छत्तीसगढ़ में जोर शोर से मनाते है।
🙏🙏
वट सावित्री की कहानी
दादी की जुबानी हमने सुनी थी।
आप सभी के बीच में प्रस्तुत कर रही हूँ
आज कल तो पुस्तकें बाजार में मिल जाती है। उसे ही पढ़ लेते है।
लेकिन पुराने समय में ब्राम्हणी बैठकर वर वृक्ष के नीचे कहानी सुनाया करती थी। कहानी पूर्ण हो जाने पर ब्राम्हणी को दक्षिणा और प्रसाद देकर प्रणाम करती थी। सभी सुहागन
अब सब प्रथा लुप्त हो जा रही है। कभी कमी कही कही पर देखने को मिलता है। पर अब दुर्लभ हो गया है।
*कहानी सुने*
हाथ में जल , अक्षत , और पुष्प लेकर कहानी सुने
कहानी सुनने से पहले ग्लास में दूध लाई डला रहता है। उसको अपने जांघ के नीचे दबा ले और ध्यान पूर्वक कहानी सुने
एक गांव में ब्राम्हण और ब्राम्हणी रहती थी। उसके सात पुत्र थे पर दुर्भाग्य से शादी होते ही वट वृक्ष के पास आते ही वर और वधू दोनों की मृत्यु हो जाती एक एक कर छै पुत्र और पुत्र वधू ऐसी ही दोनों की मृत्यु हो जाती ब्राम्हण और ब्राम्हणी दोनों बहुत दुखी रहते
उन्हें कुछ समझ में नही आता ऐसा क्यों उनके साथ हो रहा है। सातवें पुत्र की शादी करने के लिए डर गए सहम सा गए मन में ख्याल आते ही उनका हृदय कांप सा जाता रोगटे खड़े हो जाते और उस बच्चे की कभी ना शादी करने का मन में ठान लेते पर उसका शादी भी करना जरूरी था। लड़का का उम्र बढ़ रहा था।
पड़ोसी भी सब कहने लगते की लड़का बड़ा हो रहा है। उम्र बढ़ रही है। उसका शादी कर लो जो भाग्य में लिखा है। वही ही होगा भगवान पर भरोसा रखो और लड़की ढूढने जाओ
तब ब्राम्हण ब्राम्हणी दोनों आपस में विचार करते है। और तय करत है। की अब लड़की देखने जाना पड़ेगा ।
ब्राम्हण सुबह से उठ कर स्नान करके
लड़की देखने निकल जाता है। जाते जाते उन्हें थकान महसूस होता है। वट वृक्ष के नीचे बैठ जाता है।
वही पर सावित्री नामक कन्या अपनी सहेली के साथ घर बनाकर खेल रही थी। खेल समाप्त होने पर सभी । अपने - अपने घर को मिटाने लगती यह कह कर जो घर नही मिटायेगा उसके घर में पीट पिटी सांप यह कह कर सब घर को मिटाती है। जो रेत से बना होता है। पर उसमें बुद्धिमान सावित्री नाम की कन्या अपनी संखयों से कहती है। कोई भला घर बनाकर मिटाता है। ऐसा कोई करता है। क्या अपना ही आसना को बर्बाद करता है। नही ऐसा नही करते करके उन्हें रोक देती है।
यह सब वृक्ष के नीचे ब्राम्हण देख रहा था। सुन रहा था।
यही लड़की मेरे घर के लिए योग्य है। संस्कारी है। बहू के लिए इसकी मुझे परीक्षा लेनी है। और इसका पीछा करते हुए मुझे इसके घर तक जाना है।
यह सोचकर
ब्राम्हण वृक्ष के नीचे छाता लगा कर बैठ जाता है। तब सावित्री की सहेलियां उस ब्राम्हण को देख हंसने लगती है। और कहती है। भला वृक्ष के नीचे कोई छाता लगाकर बैठता है। क्या बूढ़ा सठियां गया है
तब सावित्री उन सभी सहेलियों से कहती है। ऐसा मत कहो
ब्राम्हण छाता इसलिए लगाया होगा की कही पक्षी उसके सिर पर मल मूत्र ना कर दे ऐसा किसी पर मजाक उड़ाना अच्छा नही यह बात सुन ब्राम्हण प्रसन्न होता है।
फिर तेज धूप में बिना चप्पल और जूता का चलता है। इसे देख फिर से संखिया मजाक उड़ाती है। फिर सावित्री समझाती है। की चलते चलते किसी जीव जन्तु उनके पैर के नीचे आकर मर ना जाए इसलिए जूता निकाल कर ब्राम्हण देव नंगे पैर चल रहें है।
ब्राम्हण मन ही मन प्रसन्न होकर भगवान से प्रार्थना करते है। मुझे यही क्या वधू के रूप में प्राप्त हो
चलते चलते नदी आ जाता है। उसे पार कर उस सावित्री का घर रहता है। नदी में उतरने से पहले ब्राम्हण अपने पैर पर जूता पहन लेता है। और नदी में चलने लगता है।
तब सावित्री की संखिया उस ब्राम्हण को देख उपहास करने लगती है। की यह बूढ़ा ब्राम्हण का बुद्धि सठिया गया है। अब नदी में जूता पहन कर चलने लगा है। और जोर जोर से हसने लगती है। फिर सावित्री अपनी संखियों को समझाती है। ऐसा मत बोलो ब्राम्हण यह सोच कर जूता पहना होगा की कही पानी में सांप बिच्छू काट ना ले करके जूता पहना लिया है। इसमें हंसने वाली क्या बात है।
यह सब ब्राम्हण अपने आखों से देख रहा था। कानो से सुन रहा था। सब सहेली अपने अपने घरों को चली जाती है। सावित्री भी अपने घर की ओर जाने लगती है। ब्राम्हण मन में विचार करते हुए उस सावित्री की पीछा करते हुए जा रहे थे सोच रहे थे ऐसी कऱ्या मेरे घर पर आ जायेगी वधू बनकर मेरा भाग्य चमक जायेगा घर पर खुशियां ही खुशियां होगी अन्त में उस कऱ्या सावित्री के घर के पास जाकर ब्राम्हण रुक जाता है।
कन्या अंदर जाकर अपने माता पिता से कहती है। बाहर कोई अतिथि आए हुए है।
माता बाहर निकलकर
उस ब्राम्हण को एक लोटा जल देती है। पैर धोने के लिए औ अंदर बिठाती है। भोजन करती है। फिर हाल चाल पूछती है। तब सारा हाल चाल ब्राम्हण देव बताते है। और कहते है। की मैं इस क़्या का पीछा करते हुये आया हूँ मुझे यह कन्या पसंद है। मैं अपने लड़के की शादी इस कन्या से करूंगा और वधू बनाऊंगा
कन्या के माता पिता तैयार हो जाते है। अपनी लड़की की शादी उस ब्राम्हण देव का लड़का से करा देते है।
*बिदाई के समय*
बिदाई का जब समय आता है। तो अपने माता से बोलकर वर वृक्ष की पूजा की तैयारी करवा लेती है। सारा पूजा का समान डोली में रख कर ले जाती है। उसी दिन वट वृक्ष की पूजा रहती है।
डोली जब चलने लगती है। आधे रस्ते में वट वृक्ष की पूजा करती हुई बहुत सी महिला मिलती है।
अपनी डोली को वही पर उतार कर
सावित्री वट वृक्ष की पूजा करने लगती है। जैसे ही पूजा करने लगती है। वैसे ही नाग राजा कहते है। तुम्हें पूजा करने नही दूंगा क्यों की
तुम्हारी सास गरम गरम माड़ मेरे बिल में डाल देती थी । जिसके कारण मेरे बच्चे बिल में तड़फ तड़फ के मर जाते थे ।
मैं भी उनके बच्चे को जीवित नही छोडूंगा यह कह कर फन निकाल कर डंसने के लिए पास में आता है। तो सावित्री जांग के नीचे से ग्लास में जो कच्चा दूध और लाई रहता है। उसे वर वृक्ष के नीचे डाल देती है। जब दूध पीने आता है। तो उसे उस ग्लास में रखकर जांघ ढ़क लेती है। और पूजा करने लगती है। जब नागिन को पता चलता है। की उसको एक स्त्री ने ग्लास में रखकर बंद कर लिया है। तब लहराती हुई तेज गति से आती है। और सावित्री से कहती है। मेरे पति को तुम छोड़ दो । तब सावित्री कहती है। मै इतने आसान से नहीं छोड़ूंगी मेरी कामनाएं है। उन्हें पूर्ण करो तो छोडुगी नागिन बहुत विनती करती है। प्रार्थना करती है। तब भी सावित्री सुनती नहीं
तब हार कर यम देवता के पास जाती है। और प्रार्थना करती है की आप ही हो जो मेरे पति को उस सावित्री की कैद से छुड़ा लाओं गो
यह बात सुनकर यम सावित्री के पास आ कर कहती है तुम नाग देव को बंधन से मुक्त कर दो इसके बदले जो मांगों वह सब तुम्हें दूंगा पर वो छोड़ती नही यम देव अपना कोप दिखता है। तो सावित्री उड़दाल की बनी टिकी को दोनो बाजू के पीछे फेंकती है। जिससे यम देव अपने लोक घाम को चले जाते है।
फिर नागिन अग्नी देव के पास जाती है। और उनसे प्रार्थना करती है। शायद आपकी बात सावित्री मान जाये और मेरे नाग देव को बंधन मुक्त कर दे तब नागिन की प्रार्थना सुन अग्नि देव सावित्री के पास पहुंच कर उसे समझाते है। पर फिर भी सावित्री नहीं मानती तो अग्नी देव अपने कोप से सावित्री के आस पास अग्नि जला देते है। चारों ओर आग ही आग ऐसे में चावल का बना टिकिया दोनों तरफ पीछे की ओर फेकती है। जिससे अग्नि देव शांत होकर अपने घाम को चले जाते है।
*अब नागिन*
अब नागिन अपने नाग देव को छोड़ाने के लिए विष्णु भगवान के पास जाते है। नागिन अपनी आ बीती विष्णु जी को सुनाती है।
*तब विष्णु देवता*
तब विष्णु देव सावित्री के पास सुन्दर आभूषण चक्र , गदा
पीला पिताम्बर पहने हुए आते है।
और सावित्री से कहते है। तुम वर मांगों तुम्हारी भक्ति से हम प्रसन्न हुए तुम अपने पति को छोड़कर जो मांगना चाहों ओ सब दूंगा मोगों देवी आज मैं तुम्हें हर वरदान देने के लिए तैयार हूँ
*सावित्री*
सावित्री कहती है। मेरे छै जेठ जेटानी की डोली इसी वृक्ष के नीचे आ कर रुकी है। यही पर नाग देव सबको डंस दिये है। छै जोड़ी को आप जिवित कर दीजिए
भगवान विष्णु एम वस्तु कहकर अ सभी शव पर जल डालकर उन्हें जीवित कर दिए
बोले अब तुम नाग राज को बंधन से मुक्त करो
तब विष्णु जी ने कहा मैं तुम्हें सभी वर दे दिया हूँ अब छोड़ दो
तब सावित्री कहती है। मुझे मेरा सुहाग भी वापस कीजिए
विष्णु देव बोले तुम्हारे भाग्य में सुहाग है ही नही तो कैसे तुम्हें सुहाग का वरदान दूं
कोई और दूसरा वर मांग लो
तब सावित्री कहती है। मुझे पुत्र वती का वरदान दीजिए
तब भगवान विष्णु एंवस्तु कह कर .
जाने लगते है। तभी मुझे आप पुत्रवती का वरदान आपने दिया है।
जब मेरे साथ मेरे पति नही रहेगे तो आपका वरदान पुरा कैसे होगा मैं पुत्रवती कैसे हो ऊंगी
यह सुनकर भगवान विष्णु अपने ही वचन में बंध गये और सौभाग्य वती भव कह कर जाने लगे तब सावित्री ने मोगरा का फूल अर्पण किया घंटी बनाई शंख नाद हुआ आरती उतरी और विष्णु जी अपने घाम को गए नाग राज को मुक्त किया
नाग नागिन भी खुशी खुशी अपने धाम की ओर गये ।
*सावित्री अपने ससुर से कहा*
सावित्री अपने ससुर से कहा पिता जी अब हमारे छै जेठ जेठानी जीवित हो गये है। सभी की डोला तैयार करें और क्रमशः सभी को घर की ओर प्रस्थान करें
यह सुनकर ससुर जी ने क्रमशः डोला में जैसे जैसे बड़े है। वैसे ही डोला में बिठाकर प्रसन्न पूर्वक घर की ओर प्रस्थान किये
जब डोला गांव में पहुंची तब सभी पड़ोसी खुश हो गये और मंगल गीत गाती हुई झुमती हुई डोला के साथ चलने लगे उसी में से एक पड़ोसन जाकर ब्राम्हणीय को बताती है। की तुम्हारे यहा पर सात डोला आ रही तुम जल्दी से परछन करने के लिए तैयार हो जाओं
ब्राम्हणि को विश्वास ही नही हुआ कहा ऐसी मेरी किस्मत जो मेरे द्वार पर डोला आ जाए छै जेला तो आया ही नही मेरे भाग्य में सुख ही नही पड़ोसी उसे विश्वास दिलाती है। चलो मेरे साथ दरवाजा के पास और स्वयं अपनी आंखो से देखो
जब ब्राम्हणी दरवाजे पर आती है। तो देखती है। की बाजा गाजा के साथ डोली उसके द्वार के पास आ रही है। अंदर दौड़ कर खुशी खुशी जाती है। और परछन की तैयारी करती है।
परछन का थाल ले कर सबसे पहले छोटी बहू के पास जाती है। तो छोटी बहू मना कर देती है। माता आप क्रमशः परछन किय जिए बड़े फिर मंझले ऐसा ही क्रमशः हम सातो बहू बेटो का कीजिए सास यह सुनकर प्रसन्न हो जाती है। धन्य है। ऐसा बहू जो साक्षात् देवी है। पैर रखते ही घर में खुशीयां और रोशनी से भर दिया घर रोशन हो गया सब प्रसन्न पूर्वक एक साथ रहने लगे
जैसे उस ब्राम्हणीय का दिन फिरा सभी बेटे जीवित हुए सुहाग प्राप्त हुआ ऐसे ही कहानी को सुनने वाले कहने वाले , वट वृक्ष की पूजा करने वाले सभी स्त्रियोंको अखण्ड सुहाग प्राप्त हो सदैव सुहागन रहे पति का उम्र बढ़े
वट सावित्री माता की जय
कुछ भुल गई हूँ तो नजर अंदाज करें बहुत दिन बात लिखी हूँ कुछ भुल हो गया हो
नजर अंदाज करें विदुषी बहन मार्ग दर्शन करें ये हमारी दादी हर साल वृक्ष के नीचे बैठकर अम्मा चाची को सुनाती थी। हम भी सुबह से उठकर जाते थे। और पूजा कैसे की जाती थी देखा करते थे। और दादी से कहानी सुनते थे आज जब कहानी लिख रही थी तो मुझे लगा साक्षात् मेरी दादी बैठी है। और कहानी मुझे सुना रही है।
सब उन्ही की दी हुई दीक्षा है उन्ही की प्रेरणा है। जो मैं आप सब के सामने प्रस्तुत करती हूँ
आशा ठाकुर
अम्लेश्वर पाटन रोड
🙏🙏
हरेली - सावन महिने की अमावस्या तिथी को मनाई जाती हैं इस दिन पितरों के निमीत उड़द दाल का बडा बनाते है । दीवल मे गोबर से या कागज मे पेन से हरेली माता का चित्र बनाकर विधी पूर्वक पूजा करतें हैं। चांवल का मीठा चीला चढाते हैं । नीम की पत्ती चबाते है । और नीम के सीक से बच्चो को आंकते है । कहते है कि इससे बाहरी बाधाओ से रक्षा होती है। किसान धान की बोनी से फुरसत पाकर खेती के उपकरण और बैल आदि की पूजा करते हैं । बच्चे गेडी बनाकर झुमते नाचते हैं। उस दिन बैगा गुनिया लोग पूजा पाठ करते हैं। उस दिन जादु टोना आदी सशक्त हो जाती हैं। ऐसा कहा जाता हैं । भारत मे कृषि का महत्व है ' और वर्षा ऋतु के कारण चारो ओर हरियाली रहती है अतः आमावस्या को चांद और सूरज दोनो एक ही राशी में रहते हैं तब हरियाली देवी की पूजा की जाती है। आभावस्या को बाहरी बाधा बलवान हो जाती है। .
उषा झा 🙏🙏
चलिए 12, वें दिन की कहानी सुनिए हाथ में अक्षत फूल लिजिए और कहानी सुनिए
मैं कहानी शुरु करती हूँ ।
अनंग देश का राजा था उसका नाम श्रीकारक था। बेटे के ठीक जन्म के बारह साल बाद लड़की का जन्म हुआ पंडित जी ने कुण्डली देखकर कहा की आपकी लड़की बहुत ही भाग्यशाली है। परन्तु उसके भाग्य में सौत लिखा हुआ है। वह सौत से हमेशा अपमान सहेगी और उनके यहाँ पर ईट उठाने का कार्य करेगी राज जब अपनी लड़की की भविष्य वाणी पंडित जी से सुनता है तो वह बहुत ही दुःखी हो जाता है पर विधाता के लिखे लेख को कौन मिटा सकता है। राजा ने यह विचार अपने मंत्रियों से रखा अगर हम राजकुमारी का विवाह नहीं करेगे तो सौत होने का सवाल ही नहीं उठता राजा महल के अंदर एक लम्बी सुरंग तैयार करवाते है जो सीधा जंगल में ही निकलता है। राजकुमारी महल में दासी के साथ सुखपूर्वक रहती है सात दिन में राजा श्रीकर और उनके पुत्र चन्द्रकर आते थे। पिता पुत्र दोनों राजकुमारी को जसवंत के फूल से तौलते थे।
एक सुवर्ण नामक राजा शिकार खेलने के लिए दूसरे रास्ते से जाते थे। और अपने सिपाहियों से अलग हो जाते थे।
उसके बाद वह चिटयों को कतार से पीला चावल ले जाते हुए देखते थे तब उन्हें लगा की कही आसपास पर मकान है तो जाते हुऐ कतार से चिटियों के पीछे पीछे चलने लगे और थोड़ी दूर पहुंच कर देखा वहाँ पर दरवाजा है । दरवाजा खोलकर राजकुमार अंदर जाते है ' तो देखते है की सुन्दर सी राजकुमारी थी । राजकुमारी राजा को देख घबड़ा जाती है परेशान हो जाती है।
तब राजकुमार दासी से पानी मांग पिते है और दासी से राजकुमारी के बारे में जानकारी प्राप्त करते है । जानकारी मिलते ही राजकुमार राजकुमारी के साथ गंधर्व विवाह कर लेते है वही कुछ दिन रहने के बाद राजकुमार राजकुमारी से कहते है की मैं अभी अपने राज्य वापस जा रहा हूँ जल्दी ही में वापस आऊंगा राजकुमारी कहती है जल्दी से वापस आ जाइए आज ठीक एक माह के बाद कजली तीज है आप मेरे लिए शृंगार एवं वस्त्र भेजना मैं आपके लिए दीघार्यु होने के लिए व्रत रखुगी और पूजा करुगी ।
राजा राज्य पहुँच कर बुनकर को बुलवाकर आदेश देते है की अच्छी से साड़ी बुनकर देना
जब बड़ी रानी को यह बात पता चलता है की राजा दूसरा शादी कये है तो बहुत दुखी होती है और सोचती है की राजा मेरे सौतन के लिए साड़ी और शृंगार का समान सिपाहियों के द्वारा भेज रहें तब उनके मन में ख्याल आता है की शायद राजकुमारी को पता नहीं होगा की राज पहले से शादी सुदा है तो वह चंदन से भरी थाल में अपने पैर डुबाकर आँचल में छाप लगाकर घूप में सुखाकर फिर उसे तह करके रख देती है और मन में कहती है इस निशान को देखकर समझ जाएगी की मेरी सौत है। यह सब बात राजा को पता नही रहता वह खुशी खुशी साड़ी और शृंगार का समान भेज देते है जब राजकुमारी कजली तीज के दिन साड़ी निकालती है पहनने के लिए तो आँचल में चन्दन से बनी हुई पैरों की छाप को देखती है। तो राजकुमारी उदास हो जाती है। दासी सब बात समझ जाती है। की यह सत्य है की राजकुमारी की सौत भी है। राजकुमारी पूजा करने बैठती है तो देवी माँ से प्रार्थना करती है। की राजा जब आये तो वह बात ना करें और मौन हो जाये।
चौथे दिन राजकुमारी के पिता और भाई जब मिलने आते है तो दासी पुरी बात बता देती है। दासी से जानकारी मिलने के बात पिता और भाई बात नहीं करते गुस्से वापस चले जाते है जब राजा आते है तो देवी माँ उस राजकुमारी को मौन कर देती है राजकुमारी रोते रोते देवी माँ से वरदान मांगी रहती है इस लिए राजा नाराज होकर वापस चले जाते है। तब राजकुमारी दासी के साथ जिस राज्य में राजा रहते है वही चली जाती है पर ठीक से पता ना होने के कारण भटकते रहती है ' इधर उधर भटकते भटकते थक जाती है वस्त्र मैला कुचेला हो गया रहता है अधिक थकान के कारण वह मालिन के घर में ही विश्राम करती है। फिर दूसरे दिन राजकुमारी कहती है कब तक हम यहां पर रुकेगे कब तक तुमलोग पालन पोषण करोगे अब हम कही जाकर काम ढूढ़ते है और काम करते है।
रानी का महल बन रहा था इन लोगो पर दया कर ईट उठाने का काम दे देती है ।
और अपने सुख पूर्वक बीते दिनों को याद करती है। और रोती है रोते रोते यह कहते जा रही थी ।
श्रीकर श्रीकर गिरही चढ़ावो ओल चंन्द्र कर दे बनवास राजा सुवर्ण बनही विहायल '
आस पास पर काम करने वाली थी वें जाकर राजा से सब बातें बताती है। एक सुन्दर सी स्त्री वह आपके नाम लेती है। और ईट को उठाती है। यह सुनकर राजा सब समझ जाते है और राजकुमारी को . महल में ले आते है। जैसे राजकुमारी का दिन फिरा वैसे जो कहानी सुने उसका भी दिन फिरे भाग्य में जो लिखा है। वही ही होता है। भाग्य से बढ़कर कुछ भी नहीं
आशा ठाकुर
अम्लेश्वर 🙏🙏
मधुश्रावणी की ग्यारहवें दिन की कहानी
एक बाम्हणी के साथ बेटे थे । सबसे छोटी बहु गरीब घर की थी । स्वभाव से सीधी साधी थी । सभी जेठानी बड़ी घर की होने के कारण घर का सभी काम छोटी बहु को करना पड़ता था । एक दिन दोपहर को वह बरतन धो रही थी तो सब बच्चे सांप सांप करके सांप का पीछा कर रहे थे । बहु ने टोकनी मे सभी सापों को ढक दिया । बच्चे जब उसके पास आये तो उसने दूसरी तरफ इशारा कर दिया बच्चे उसी तरफ चले गये । शाम को सुनसान देख बहु ने सांप को छोड दिया | दिन भर टोकनी के अंदर रहने से उन्हे भूख लगी थी वे लोग नाग लोक मे बासुक राजा के पुत्र बाल बंसता थे । वहाँ नाग लोक मे बासुक राजा और उनकी पत्नि अपने बच्चो के राह देख रहे थे । बाल बंसता जब नाग लोक पंहुचे माँ से चिपक कर रोने लगे । माँ आज हम मृत्यु के मुख से एक देवी की कृपा से बच कर आये हैं । बहुत दुखी हैं । उसे ससुराल मे बहुत तकलीफ हैं। उसके माँ बाप कोई नहीं हैं । दो भाई है । परदेश गये हैं । उनका कोई पता नही है । माँ हम उसे चार आठ । दिन के लिये लाना चाहते हैं। धन दौलत देना चाहते हैं। बासुक राजा कहते हैं हम नाग हैं हमारे घर मे नाग कैसे . आ सकते है ' हम चार दिन के लिये मनुष्य रूप रख लेंगे उसे साथ मे रखेगें । धन दौलत देकर उसके एहसान उतार फिर कभी नहीं लयेंगे बाल हट के आगे वे तैयार हो गये उन्होने कहा कि आखरी कमरा उसे खोलने को मना करना और डेहरी पर दिया मत रखने को कहना । दोनों भाई उसे लिवाने जाते हैं। और कहते हैं कि हम लोग परदेश से खूब धन कमा कर आये हैं। और तुम्हे लिवाने आये हैं। वह भाईयो के साथ नाग लोक चली जाती है। तीन दिन तक दोनों भाई बहिन के खूब तारीफ करते हैं। जाने के एक दिन पहले वह उत्सुकता वश आखिरी कमरा खोल देती है ' सैकड़ो सांप के बच्चे कमरे मे रहते हैं। देख कर डर जाती हैं। और तुरंत दखाजा बंद कर देती है । इससे सैकड़ो सांप के बच्चे दब कर मर जाते हैं। और कुछ घायल हो जाते हैं। और भूल वश शाम को वह डेहरी में दिया भी रख देती है। . नाग राज नाराज हो जाते है। और तुरंत उसे भागने को कहते हैं। पर जाते समय उसकी माँ खूब धन दौलत देकर समझाती है । जो तुम्हे सीखा रही हुँ उसे सोते समय बोलकर दिया बुझा देना । माँ को मालुम था कि नाग राज जरूर अपने बच्चो का बदला लेंगे | और इसी कारण आशीष वचन सिखाती है । दीप दीपहरा जाऊ घरा , मन मानीक मुक्ता , नाग बढवु नागीन बढवु , पांचो बहिन बिसहरा बढवु , कोना मोना मामा बढवु , बाल बंसता भैय्या बढवु , ढाडी खोड़ी मौसी बढवु , अमावरी पीसी बढवु , बासुक राजा बाप बढवु , बसुकाइन माँ बढवु , अस्कुडा के वंश बढवु आस्तीक आस्तीक गरुड गरुड । नाग राज उसे डसने उसके पलंग के नीचे थे । इतना सुनने के पश्चात पश्चाताप मे जलने लगे अपनी मंणी खाट के नीचे डालकर नाग लोक चले गये । वहाँ बसुकाईन रास्ता देख रही थी । तुरंत दुसरी मणी लाकर पत्नि से कहते है मै उसे डसने ही गया था क्यो कि मेरे सैकडो बच्चों और अंडो को कुचल दिया पर अब लगा कि वह अनजान थी ' हमारे पूरे वंश के लिये पार्थना कर रही थी और मैं उसे आशीष और मणी देकर आ गया | माँ खुश हो जाती है। बहु जब सुबह सो कर उठती है तो उसको कोठरी मणी के कारण जगमगा रही थी . सब सास ननंद देवरानी जेठान उसके मणी और बिदाई के हिरे जवाहारात देख कर खुश हो जाते हैं। और वह भी खुशी खुशी घर मे रहने लगी नाग पंचमी के दिन उसने बात बसंता की रक्षा की थी अतः उस दिन गोबर का नाग बना कर पूजा की जाती हैं। और धीरे धीरे पूरे भारत में किसी ना किसी तरह नाग की पूजा होने लगी
हर हर महादेव
श्री मति उषा झा पुरानी बस्ती रायपुर 🙏🙏
मधुश्रावणी की ग्यारहवें दिन की कहानी
एक बाम्हणी के साथ बेटे थे । सबसे छोटी बहु गरीब घर की थी । स्वभाव से सीधी साधी थी । सभी जेठानी बड़ी घर की होने के कारण घर का सभी काम छोटी बहु को करना पड़ता था । एक दिन दोपहर को वह बरतन धो रही थी तो सब बच्चे सांप सांप करके सांप का पीछा कर रहे थे । बहु ने टोकनी मे सभी सापों को ढक दिया । बच्चे जब उसके पास आये तो उसने दूसरी तरफ इशारा कर दिया बच्चे उसी तरफ चले गये । शाम को सुनसान देख बहु ने सांप को छोड दिया | दिन भर टोकनी के अंदर रहने से उन्हे भूख लगी थी वे लोग नाग लोक मे बासुक राजा के पुत्र बाल बंसता थे । वहाँ नाग लोक मे बासुक राजा और उनकी पत्नि अपने बच्चो के राह देख रहे थे । बाल बंसता जब नाग लोक पंहुचे माँ से चिपक कर रोने लगे । माँ आज हम मृत्यु के मुख से एक देवी की कृपा से बच कर आये हैं । बहुत दुखी हैं । उसे ससुराल मे बहुत तकलीफ हैं। उसके माँ बाप कोई नहीं हैं । दो भाई है । परदेश गये हैं । उनका कोई पता नही है । माँ हम उसे चार आठ । दिन के लिये लाना चाहते हैं। धन दौलत देना चाहते हैं। बासुक राजा कहते हैं हम नाग हैं हमारे घर मे नाग कैसे . आ सकते है ' हम चार दिन के लिये मनुष्य रूप रख लेंगे उसे साथ मे रखेगें । धन दौलत देकर उसके एहसान उतार फिर कभी नहीं लयेंगे बाल हट के आगे वे तैयार हो गये उन्होने कहा कि आखरी कमरा उसे खोलने को मना करना और डेहरी पर दिया मत रखने को कहना । दोनों भाई उसे लिवाने जाते हैं। और कहते हैं कि हम लोग परदेश से खूब धन कमा कर आये हैं। और तुम्हे लिवाने आये हैं। वह भाईयो के साथ नाग लोक चली जाती है। तीन दिन तक दोनों भाई बहिन के खूब तारीफ करते हैं। जाने के एक दिन पहले वह उत्सुकता वश आखिरी कमरा खोल देती है ' सैकड़ो सांप के बच्चे कमरे मे रहते हैं। देख कर डर जाती हैं। और तुरंत दखाजा बंद कर देती है । इससे सैकड़ो सांप के बच्चे दब कर मर जाते हैं। और कुछ घायल हो जाते हैं। और भूल वश शाम को वह डेहरी में दिया भी रख देती है। . नाग राज नाराज हो जाते है। और तुरंत उसे भागने को कहते हैं। पर जाते समय उसकी माँ खूब धन दौलत देकर समझाती है । जो तुम्हे सीखा रही हुँ उसे सोते समय बोलकर दिया बुझा देना । माँ को मालुम था कि नाग राज जरूर अपने बच्चो का बदला लेंगे | और इसी कारण आशीष वचन सिखाती है । दीप दीपहरा जाऊ घरा , मन मानीक मुक्ता , नाग बढवु नागीन बढवु , पांचो बहिन बिसहरा बढवु , कोना मोना मामा बढवु , बाल बंसता भैय्या बढवु , ढाडी खोड़ी मौसी बढवु , अमावरी पीसी बढवु , बासुक राजा बाप बढवु , बसुकाइन माँ बढवु , अस्कुडा के वंश बढवु आस्तीक आस्तीक गरुड गरुड । नाग राज उसे डसने उसके पलंग के नीचे थे । इतना सुनने के पश्चात पश्चाताप मे जलने लगे अपनी मंणी खाट के नीचे डालकर नाग लोक चले गये । वहाँ बसुकाईन रास्ता देख रही थी । तुरंत दुसरी मणी लाकर पत्नि से कहते है मै उसे डसने ही गया था क्यो कि मेरे सैकडो बच्चों और अंडो को कुचल दिया पर अब लगा कि वह अनजान थी ' हमारे पूरे वंश के लिये पार्थना कर रही थी और मैं उसे आशीष और मणी देकर आ गया | माँ खुश हो जाती है। बहु जब सुबह सो कर उठती है तो उसको कोठरी मणी के कारण जगमगा रही थी . सब सास ननंद देवरानी जेठान उसके मणी और बिदाई के हिरे जवाहारात देख कर खुश हो जाते हैं। और वह भी खुशी खुशी घर मे रहने लगी नाग पंचमी के दिन उसने बात बसंता की रक्षा की थी अतः उस दिन गोबर का नाग बना कर पूजा की जाती हैं। और धीरे धीरे पूरे भारत में किसी ना किसी तरह नाग की पूजा होने लगी
हर हर महादेव
श्री मति उषा झा पुरानी बस्ती रायपुर 🙏🙏
मधु श्रावणी की पहले दिन की कथा
एक दिन एक बुढ़ी माँ नदी मे स्नाथ करने गई । वहाँ नदी सर्फ के बच्चे लहराते दिखे । वह डर कर भागने लगी । उन्होने मनुष्य के भाषा मे कहा । अरे बुढी माई डरो नही गाँव मे जाकर सभी को बताओ की कल तांग पंचमी है। आंगन लीप कर गोबर से नांग बनाकर उसकी पूजा करें आरती ना करें । नीम पत्ता नीबू ककड़ी खीर चांवल आटे की पुडी बना कर चढाये जो इस पूजा को करेगा उसके घर किसी को सर्पदंश नहीं होगा । जो नही करेगा उसे तकलीफ होगी । डर कर बुढी माँ सब के घर घर । जाकर सबसे पूजा करने की विनती करने लगी । फिर किसी ने उसकी हसी उडाई । जिन्होने किया उनका कल्याण । जिन्होंने नहीं किया उनके जानवरो को सांप ने कार लिया पानी से उनके मकान ढह गये सभी बढी माँ के पास जाकर उलाहना देने आये माँ उन्हे तलाब मे ले गई और पांचो बहिन बिसहरा से वे प्रार्थना करने लगी । पांचो बिसहर ने बताया कि नांग पंचमी के दिन जो नांग की पूजा करेगी उसे सर्पदंश नही होगा तब से नांग पंचपी की पूजा होने लगी और उधर जिसे नांग ने काटा था वे सब पूजा के पानी छिड़कने से वे जिवीत हो गये।
मधु श्रावणी का दूसरे दिन की कहानी
एक दिन महादेव पार्वती जलविहार करने के लिये गये वहीं पुरैन के पत्ते मे बिसहरा का जन्म हुआ । महादेव को उससे लगाव हो गया | जो पार्वती जी को पंसद नही था । तब महादेव जी ने उन्हे मृत्यु लोक भेज दिया जो कोई इन पांचो बहिन बिसहरा की पूजा करेगा उसे और उसके पूरे खानदान मे किसी को सर्पदंश नही होगा । उस पांचो का नाम जाया. विसहरी ' शालीबारी, देव और दोतली है ।
बिसहरा की कहानी
महादेव की मानस पुत्री बिसहरा थी । जिन्हे पार्वती बिल्कुल पसंद नही करती थीं अतः महादेव ने उन्हे मृत्यु लोक भेजा । उनका एक नाम मनसा था । मनसा चाहती थी कि मृत्यु लोक मे सभी उसकी पूजा करें । उस समय मृत्यु लोक मे चंदु नाम का एक बनिया था वह शिव का भक्त था | मनसा चाहती थी अगर चंदु उसका पूजा करेगा तो और भी लोग उसकी पूजा करेंगे परन्तु चंदु महादेव के अलावा किसी भी देवता की पूजा करने को तैयार नही हुआ ' चंदू के आठ पुत्र थे । शादी के रात कोहबर मे मनसा ने सात पुत्रो को डस लिया । आठवे पुत्र का नाम लखेन्द्र था। जब उसकी शादी की बात आई तो चंदु ऐसी लड़की की कुडेली देखने लगा जिसे वैधव्य योग ना हो । एक बहुला नामक राजकुमारी थी उनकी कुंडली मे पुत्र पौत्र सुख देखकर चन्दु ने लखेन्द्र की शादी बहुला से तय कर दिया मनसा देवी ने कोहबर मे डस लिया । बहुला ने अपने पति के शव को एक बडी नाव मे डालकर गंगा में प्रवेश कर गई । शव गल गल कर मांस विहीन हो गया । नाव बहते बहते प्रयाग पहुंच गई । बहुला ने देखा एक घोबन कपडे धो रही थी उसका बच्चा तंग कर रहा था धोबन ने बच्चे को बांधकर कपडे मे डक दिया कपडे जब सुख गये तो मन्त्र पढ कर बच्चे को लेकर चल दी बहुला उत्सुकता से वही रुक गयी । तीन दिन देखने के बाद चौथे दिन वह उस धोबन के पैर पकड़ कर अपनी आप बीति सुनाने लगी । वहाँ उसका रोना देखकर इन्द्र आदि देवता पहुंच गये और उन्होने घोबन करो अपने आस पास के लोगोसे कह कि उसके पति को जीवन दे दें । घोबन ने कह कि तुम मनसा देवी की पूजा करो और अपने आस पास के लोगो को भी पूजा करने को कहो और अपने सास ससुर को भी उनके पूजा करने को कहो । बहुला ने उसी समय मनसा देवी की पूजा की और धोबन नो उसके पति को जीपित कर दिया फिर मनसा देवी ने उसके सतो जेठ को भी जीवित कर दिया । चन्दु बनिया ने मनसा देवी का मंदिर 1 बनवाया और सभी लोग उसकी पूजा करने लगे बहुला ने अपने पति को पा लिया और और तभी से लोग उसकी पूजा करने लगे ' । मनसा जब मृत्यु लोक मे आई तो उनका विवाह जत्कारु से हुआ आस्तीक उन्ही के पुत्र है जनमेय जय यज्ञ मे इन्होने नागो की रक्षा की इसलिये इनका नाम नाग भगिनी हुआ | विष का संहार करने के कारण विषहरा हुआ ।
मधु श्रावणी का दूसरे दिन की कहानी
एक दिन महादेव पार्वती जलविहार करने के लिये गये वहीं पुरैन के पत्ते मे बिसहरा का जन्म हुआ । महादेव को उससे लगाव हो गया | जो पार्वती जी को पंसद नही था । तब महादेव जी ने उन्हे मृत्यु लोक भेज दिया जो कोई इन पांचो बहिन बिसहरा की पूजा करेगा उसे और उसके पूरे खानदान मे किसी को सर्पदंश नही होगा । उस पांचो का नाम जाया. विसहरी ' शालीबारी, देव और दोतली है ।
बिसहरा की कहानी
महादेव की मानस पुत्री बिसहरा थी । जिन्हे पार्वती बिल्कुल पसंद नही करती थीं अतः महादेव ने उन्हे मृत्यु लोक भेजा । उनका एक नाम मनसा था । मनसा चाहती थी कि मृत्यु लोक मे सभी उसकी पूजा करें । उस समय मृत्यु लोक मे चंदु नाम का एक बनिया था वह शिव का भक्त था | मनसा चाहती थी अगर चंदु उसका पूजा करेगा तो और भी लोग उसकी पूजा करेंगे परन्तु चंदु महादेव के अलावा किसी भी देवता की पूजा करने को तैयार नही हुआ ' चंदू के आठ पुत्र थे । शादी के रात कोहबर मे मनसा ने सात पुत्रो को डस लिया । आठवे पुत्र का नाम लखेन्द्र था। जब उसकी शादी की बात आई तो चंदु ऐसी लड़की की कुडेली देखने लगा जिसे वैधव्य योग ना हो । एक बहुला नामक राजकुमारी थी उनकी कुंडली मे पुत्र पौत्र सुख देखकर चन्दु ने लखेन्द्र की शादी बहुला से तय कर दिया मनसा देवी ने कोहबर मे डस लिया । बहुला ने अपने पति के शव को एक बडी नाव मे डालकर गंगा में प्रवेश कर गई । शव गल गल कर मांस विहीन हो गया । नाव बहते बहते प्रयाग पहुंच गई । बहुला ने देखा एक घोबन कपडे धो रही थी उसका बच्चा तंग कर रहा था धोबन ने बच्चे को बांधकर कपडे मे डक दिया कपडे जब सुख गये तो मन्त्र पढ कर बच्चे को लेकर चल दी बहुला उत्सुकता से वही रुक गयी । तीन दिन देखने के बाद चौथे दिन वह उस धोबन के पैर पकड़ कर अपनी आप बीति सुनाने लगी । वहाँ उसका रोना देखकर इन्द्र आदि देवता पहुंच गये और उन्होने घोबन करो अपने आस पास के लोगोसे कह कि उसके पति को जीवन दे दें । घोबन ने कह कि तुम मनसा देवी की पूजा करो और अपने आस पास के लोगो को भी पूजा करने को कहो और अपने सास ससुर को भी उनके पूजा करने को कहो । बहुला ने उसी समय मनसा देवी की पूजा की और धोबन नो उसके पति को जीपित कर दिया फिर मनसा देवी ने उसके सतो जेठ को भी जीवित कर दिया । चन्दु बनिया ने मनसा देवी का मंदिर 1 बनवाया और सभी लोग उसकी पूजा करने लगे बहुला ने अपने पति को पा लिया और और तभी से लोग उसकी पूजा करने लगे ' । मनसा जब मृत्यु लोक मे आई तो उनका विवाह जत्कारु से हुआ आस्तीक उन्ही के पुत्र है जनमेय जय यज्ञ मे इन्होने नागो की रक्षा की इसलिये इनका नाम नाग भगिनी हुआ | विष का संहार करने के कारण विषहरा हुआ ।
🙏🙏
मधु श्रावणी की तीसरे दिन की कहानी '
प्राचीन समय श्रुति कीर्ती नाम का एक राजा था । उसकी कोई संतान नही थी । वह देवी भक्त था और हमेशा यही कामना करता था की उसकी संतान हो । रात दिन दान पुण्य पूजा पाठ करता था एक बार उसकी भक्ति से प्रसन्न हुकर देवी ने उसको वर मागने को कहा । राजा ने अपने लिये संतान मांगी । देवी बडी असमजस मे पड गई क्यो की बुम्हा ने उन्हे नि संतान बनाया था । बहुत विनती करने पर देवी ने कहा कि तुम्हारे भागय मे संतान की रेखा नही है । पर तुम्हारी भक्ति से खुश होकर तुम्हे पुत्र दुगीं पर जिस दिन १६ वर्ष का होगा मर जायेगा ।
साल पुरा होने पर उन्हे पुत्र हुआ , राजा ने उसका नाम चिरायु रखा । चिरायु बहुत संदर था बडे लाड प्यार से राजा रानी उसका लालन पालन करने लगे । जैसे जैसे वह बढता गया राजा रानी दुखी होने लगे पलक झपकते पन्द्रह साल बीत गये सोलहवां साल लगने पर राजा रानी चिरायु सहीत भक्ति भाव से भगवान शिव जी की आरधाना करने लगे । सात महिने खत्म होने पर रानी ने अपने भाई को बुलाया और कहा की तुम इसे बनारस ले जाओ वहां यह वरदान के अनुसार १६ वर्ष का होगा तब इसकी मृत्यु हो जायेगी । बनारस मे मृत्यु होने पर मोक्ष मिलेगा । हम इसे अपने सामने मरता नही देख सकते । मामा तीर्थ के बहाने चिरायु को लेकर बनारस निकल गये । घुमते फिरते वो लोग नहा धोकर शहर घुमने निकल गये । शहर मे सजावर हो रही थी पता चला उस दिन राजकुमारी की बारात आने वाली थी । बारत आने की शोर सुनकर मामा भांजा बारत देखने चले गये सोलह वर्ष का चिरायु बहुत खूबसूरत था । वे लोग राजा के बगीचे घुमने चले गये । दुसरी तरफ मंगला बगीचे मे फूल तोड़कर देवी को चढ़ाने आई ' उसकी सखी सहेली उसके साथ मे थी राजकुमारी ने सहेली को बताया की गौरी की कृपा से मै जिसके सिर पर अक्षत छिड़क दुँ वह यदी अल्पायु मी हो तो दीर्घजीवी हो जायेगा । यह सुनकर मामा सोचता है काश इसका विवाह चिरायु से हो जाये | इधर राजकुमारी का पति होने वाला था वा कुरुप था । रुपवती मंगला सुन्दर राजकुमार से विवाह करना चाहती थी यह सुनकर उसके पिता को डर लगने लगा कि कुरुप से कहीं राजकुमारी शादी करने से इन्कार न कर दे । उसी समय चिराय दिखा । राजा ने मामा भांजे से कहा कि चिरायु से राजकुमारी का विवाह हो जाये तो बाद मे विदा करा के ले जायेगें । मामा को मंगला ने जो कहा था कि हमारे खानदान मे को विधवा नही होती याद आया यह सोचकर कि शायद चिरायु बच जाये तुरंत तैयार हो गया । बहुत फूलो की माला से ढक कर मंगला का विवाह चिरायु से कर दिया । कोहबर मे मंगला ने जब चिरायु को देखा तो बहुत खुश हो गई । रात मे चिरायु को भुख लगी राज कुमारी फल और मिठाई ले आई खाने के बाय दोनो बात करते रहे उसी समय कोहवर मे नाग राज चिरायु को डसना चाहते थे राजकुमारी जान गई वह दुधा लाई के कटोरी देकर उससे प्रार्थना करने लगी दुध पीकर नाग राज अपनी केंचुली निकाल कर चले गये जो सोने का हार हो गया ' हाथ धोते समय चिरायु की अंगुठी गिर गई । मंगला ने वह अंगुठी अपने हाथ मे पहन ली सुबह वायदे के अनुसार चिरायु को लेकर बनारस के तरफ च ल दिये । विदा करने के समय सुखेन्द्र आया तो राजकुमारी अपने पिता से कहने लगी कि मेरी शादी तो इनसे हुई है पर सुखेन्द्र के पिता और बराती अडे रहे कि रात मे मंगला के साथ इसी के शादी हुई है । मंगला ने को हवर मे क्या खाये क्या बाते हुई सब पुछा सुखेन्द्र मंद बुद्धि का था । डर कर उसने कहा मेरे बदले दुसरे लडके से इसकी शादी हुई है । और वे लोग खाली हाथ वापस चले गये इघर राजकुमार देवी पार्वती और शिव जी की पूजा नियम से करके पति के लोटने का रास्ता देखने लगी उसने सदा व्रत खोल दिया जो भी अतिथी आते उसे खाना देती और देखती कि उसका पति तो नही है । उसे अपनी भक्ति पर पूरा विश्वास था । इस तरह मंगला के भक्ति के कारण चिरायु सोलह साल पूरा होने के बाद भी जीवित रहा तब मामा को विश्वास हो गया कि मंगला के कारण ही चिरायु के उर्म बढ गई थोड़ी दिन बाद वे लोट कर आने पर उसी धर्मशाला मे रुकते हैं सदा व्रत के समय मंगला चिरायु को पहचान जाती है राज्य सभा मे सभी को बताती है कि इसी से उसका विवाह हुआ है कोहवर मे अंगुठी पहचाने के बाद राजा ने धुमधाम से उसकी विदाई की इस तरफ चिरायु के माता पिता अपने बेटे की चिंता मे बिमार पड गये बेटे के साथ बहु को पाकर फूले नही समाय मंगला को चुंकी गौरी के कृपा से सौभाग्य प्राप्त हुआ इस लिये जो यह व्रत का नाम मंगला गौर हुआ जो यह व्रत को करेगी वह मंगला की तरह अखण्ड सौभाग्यवती रहेगी ।
मधु श्रावणी की चौथे दिन की कहानी
पुराण की कथा है कि प्रलय के बाद विधाता पृथ्वी की रचना शब्द स्पर्था ' रुप , रस और गन्ध इन पांचो तत्वो से करते है । कहते हैं कि पृथ्वी का विवाह वराह के साथ हुआ था जो भगवान के रूप मे मंगल ग्रह इनका बेटा है परन्तु मिथिला मे दंत कथा है कि प्रलय मे पृथ्वी रसातल मे चली गई । चारो तरह हाहाकार मच गया तब सब देवता भगवान विष्णु के पास गये । विष्णु देवता पृथ्वी को लाने रसातल मे गये । पृथ्वी ने कहा कि उपर आऊ तो सभी मेरा अपमान करते हैं हल चलाते हैं नाना प्रकार के कष्ट देते हैं । तब उन्हे उपर लाने भगवान विष्णु ने कच्छप मछली और वारह का रुप धरा कच्छप मे बैठने पर डगमगाने लगी तब भगवान विष्णु ने वारह रुप लिया और प्रथ्वी को उपर लाये पृथ्वी शेष नाग के फन के उपर बैठती है। तब पूरा संसार बसता है। नदी , तालाब , समुद्र , जंगल , जानवर , मनुष्य सभी बसते है ।
मधु श्रावणी का पंचवे दिन की कहानी
कथा संमुद्र मंथन
एक बार समुद्र देवताओ के पार गये , उन्होंने कहा कि उपर बहुत गर्मी है और मुझे बहुत कष्ट हो रहा है आप लोग किसी तरह इस ज्वाला को शांत करें । देवताओं ने विचार किया जो समुद्र मे अनावश्यक चीजें पड़ी है उन्हे बाहर निकला जाय और समुद्र के कष्ट को कम किया जाय । समुद्र का मंथन करते हैं । मंद्राचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर देवता और राक्षस समुद्र मंथन करते है ' वासुकी के फन की तरफ देवता और पुछ की तरफ राक्षस । मंलन मे सबसे पहले लक्ष्मी निकलतीं है उसे विष्णु रखते हैं फिर हिरो मोती पन्ना भारी सामान उसे राक्षस रखते हैं उच्चैश्रवा घोड़ा , एरावत हाथी । अब हलाहल आया तो उसे शंकर भगवान ने पिया और गले के उपर ही राव लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया जिससे वे नील कंठ कहलाये । अम्रत निकलने पर देव राक्षस अम्रत कलश के लिये झगडने लगे अमृत छलक हरिद्वार, नासिक , उज्जैन और इलाहाबाद मे गिरा तो वहाँ १२ वर्ष मे कुम्भ का मेला लगने लगा इस तरह विष्णु भगवान मोहनी का रुप धारण करके देवताओं की अमृत बांटा । राहू नामक राक्षस देवता के वेश मे चंद्रमा के पास बैठा था अमृत पिते ही चंद्रमा हल्ला करने लगे कि राक्षस ने धोखे से अमृत पी लिया मोहनी रूपी भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र लो उसके उसके गले काटा , दो टुकडे हुए वे राहू एवं केतु कहलाये इसलिये जब राहू एवं केतु चन्द्रमा के साथ होते हैं तो चन्द्र ग्रहण लगता है समुद्र मंथन मे धन्वतरी निकले । लक्ष्मी ने विष्णु को पति के रूप मे स्वीकार किया । एरावत को इन्द्र ने लिया । चक्र को भगवान विष्णु ने इसी प्रकार सभी वस्तुओ को देवता और राक्षसो ने बांट लिया।
मधुश्रावणी की छठवे दिन की गोसावन की कहानी
पुराने समय की बात है मधस्थ राजा की १०१ बेटियाँ थीं । गोसावन बडी लड़की का नाम था देखते ही देखते लड़किया बडी हो गई वे चाहते थे कि एक ही घर मे सभी का विवाह हो जाये अन्त मे खोज पूरी हुई । दूसरे पास के शहर मे नाहर राजा के घर दो लड़के थे वे बैससी और चिनाय बैरसी से गोसावल की तथा चिनाय से युसरी बेटी का ब्याह हुआ । शादी के समय लावा डालते समय पगड़ी मे सांप गिर ता है। सब डर जाते है और भागने लगते हैं । तब बैरसी बताता है कि यह मेरी पत्नी लीली है ' लगवान शंकर की पुत्री है । नाहर राजा नाराज होते है उन्होने गुस्से में बैरसी को श्राप दे दिया । गौना होकर जब गोसावन गई तो बैरसी और गोसावन मिले ही नही लीली उनको मिलने नही देती थी । खुद बैरसी के साथ रहती थी गोसावन अपने सास ससुर की सेवा करती और अपने लिये रोती थी । सास ससुर देवर सभी गोसावन से खुश थे और बैरानी के व्यवहार से बडे दुखी थे। एक दिन चनाई ने बैरसी से कहा भैय्या कहीं घुम आयें . बैरसी अपने ससुर के श्राप से डरता है ' अन्त मे तैयार होता है। चनाई गोसावन को अपने साथ ले जाता है। हर रात जहां वे रुकते गोसावन वेशबदल कर वैरसी को साथ होती ' चौपड़ खेलते खाना खाते और रात दिन संग रहते । चनाई गोसावन से कहकर हर रात एक एक पासा पलंग के निचे गडवा देता था इस तरह पांच रात दोनों साथ रहे । वैरसी पत्नि को पहचान नही पाता था लीली गोसावन से जलती थी । अतः ध्नाय ही नही देती थी कि वर कहाँ है । लौटने के थोडे दिन बाद गोसावन के पांच पुत्र हुये उनके नाम ओघु . कोधु महानाग श्री नाग और नागष्ठी था लीली चनाई से कहती ये बच्चे तुम्हारे हैं तब गोसावन बैरसी को उन पांच रातों में जो बीता था क्या खाना खाया चौपड मे कौन हारा कौन जीता बताती है और जहाँ पासा गडी थी वहां ले जाती है । वैरानी को विश्वास हो जाता है कि वे उसी के संतान है पर लीली नही मानती वे अपने सास ससुर से कहकर गोसावन के सतीत्व की परीक्षा लेने वाली है । गोसावन को लोहे का चांवल और लीली को साया चांवल देकर वैरसी को पकाने को देती है। अगर तुम सहीं हो तो लोहे का चांवल पक जायेगा गोसावन अगनि देवता , कुल देवता आदि सभी को प्रणाम कर चांवल पकाती है । उसकी सत्यता के कारण चांवल पक जाता है । इस तरह लीली घमंड से चांवल पकाने रखती है पर वह नही पकता गोसावन को सभी स्वीकार कर लेते है पर वह नदी के किनारे जाकर तप करने लगती है सभी उससे मिलने जाते हैं और आशीष देते हैं । सास कहती है। तुम दोनो पति पत्नि चिड़िया होगे , इप पेड़ से उस पेड़ चहकते रहोगे
उषा झा रायपुरमधु श्रावणी की सातवें दिन की कहानी
गंगा अवतरण
श्री कृष्ण राधा की रास लीला गंगा के किनारे होती है । गंगा कृष्ण के रूप पर मोहित हो जाती है । राधा यह सहन नही कर पाती वह गुस्सा हो जाती है । गंगा डर कर कृष्ण के पैर पकड़ कर बुम्हा विष्णु और महेश को बुला कर अपनी समस्या बताती है । श्री कृष्ण गंगा को अपने अंगुठे मे समा लेते हैं। और जब बाहर करते हैं तो तीन धारा के रूप मे l एक धारा ब्रम्हा के कमंडल , दूसरी धारा विष्णु की पत्नी होती है। और तीसरी जल रूप मे शंकर की जटा मे । सरस्वती , लक्ष्मी और गंगा मे लाडाई है। सरस्वती गंगा को मृत्यु लोक मे नदी होने का श्राप देती है । राजा सागर की दो पत्नियाँ थी वैदर्भी और शैव्या | शैव्या से पुत्र हुआ अरमंजस और वैदर्भी । बहुत तपस्या करने पर पूजा पाठ से गर्भवती हुईं किंतु पेट मे मांस का लोथड़ा ही था । वैदर्भी रो रो कर नह महादेव को पुकारने लगी महादेव ब्राम्हण के वेश मे आकर उस लोथडे को ६० हजार दुकडे करके बर्तन मे डाल देते हैं। जो कलान्तर मे साढ हजार बालक होते हैं।
हर हर महादेव
मधु श्रावणी की आठवे दिन की कहानी
गौरी जन्म
हिमाचल पुत्री रूप मे पार्वती ने जन्म लिया , जब वे विवाह के योग्य हुई तो उन्होने नारद मुनि से अपनी बेटी के लिये वर तलाशने को कहा । नारद जी ने विष्णु का नाम सुझाया । वार्पती बचपन से शिवा जी को अपने पति के रूप मे देखती थी । वे मन ही मन उन्हे अपना पति मान चुकी थी | एक दिन रखी के कहने से वें जंगल में चली गई और तपस्या के लगी इघर हिमचल ने जगह जगह उन्हे खोजने को आदमी भेजे पर वे घोर जंगल में थीं । जहाँ लोग जाने से डरते थे । पार्वती के घोर तप से शिव जी खुश होकर उनकी परीक्षा लेनी चाहिये और ब्राम्हण का वेष बना कर आये पूछा _ तुम इतनी कठीन तपस्या क्यो कर रही हो ? और यह जानकर कि पार्वती शिवजी से विवाह करना चाहती है उन्हे समझाते हैं कि कहाँ तुम सुकुमार और कहाँ भष्म रमाये , नाग को गले मे लपेटे , मृग छाल पहिने शिव | तरह तरह की बातें सुनकर पार्वती अचल रहती है । तब शिव जी अपना रुप दिखा कर कहते हैं ! अब तुम घर जाओ हम तुम तुमसे विवाह करेगें इघर हिमचल भी जंगल मे गौरी को लेने आते हैं । और फिर महादेव पार्वती का विवाह होता है । बारत बडी विचित्र थी । भूत प्रेत बारती सभी देवता और देवियाँ उनके बराती , सभी ऋषि मुनि अपनी पत्नि के साथ आये इस तरह बारात हिमालय के घर पहुंचती है। जनवासे में सब रहते हैं । मैना जब परछन के समय महादेव को देखती है तो रोने लगती है कहती हैं कि नारद का मैने क्या बिगड़ा था जो उन्होंने मेरी फूल सी कन्या को महादेव की देने को कहा । हिमवान उन्हे समझाते हैं। ब्रम्हा विष्णु भी सपत्नीक उन्हे लेने आये हैं। तब . वे तैयार होतीं हैं । सभी कहते हैं। कि कितने भाग्य वान हो कि साक्षात भगवती तुम्हारे घर कन्या के रूप मे आई हैं । तुम लोगो ने कन्या दान किया । परन्तु मैना कहती है कि मै महादेव का देवता वाला रूप देखना चाहती हुँ विष्णु भगवान उन्हें समझाते हैं । महादेव ने नया रूप दिखाया सबका संशय दुर हो जाता है । विवाह के बाद गौरी कैलाश पर्वत में जाती हैं । शिव पार्वती अनेक वर्षो तक कैलाश मे अपने गणों के साथ रहते हैं। शिव जी उन्हे रोज कोई ना कोई कथा सुनाते हैं । और पार्वती उन्हें बडे ध्यान से सुनती हैं । अमर नाथ की गुफा मे ली जाकर शंकर जी उन्हें अमरता का गूढ रहस्य बताया । कथा सुनते सुनते देवी को झपकी लग गई और हुंकार कबूतर के जोडे ने दिया जो आज भी अमर हैं । भगवान ने चंदन वाडी मे चंद्रमा शेष नाग से सर्प और गंगा को छोड़ा , इस तरह अमर नाथ की पूरी कथा पार्वती को सुनाई । पार्वती नी शीव जी को कहा कि मैने ऐसा कौन सा तप किया जिसके फलस्वरूप आप मुझे मिले तब भगवान ने उन्हे कहा कि तुम हिमवान की पुत्री हो और मुझे पाने के लिये घोर तपस्या से खुश होकर मैने तुम्हें अपनाया और मैना और हिमवान ने तुम्हारा कन्या - दान किया । पर तुम्हारी माँ मेनका ने मेरी इस रूप को स्वीकार किया तब मैने सुदर्शन रुप धरा । देवताओं के समझाने पर ही उन्होने मुझे जमाता स्वीकर किया | मधु श्रावणी की नवम दिन की कहानी
गंगा अवतरण
राजा सगर अश्वमेघ यज्ञ करते हैं और घोडा दौड़ाते हैं। इन्द्रासन चला जायेगा यह . सोचकर घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में बांध देते है । सैनिक और सगर के ६० हजार पुत्र घोड़े को वहाँ बंधा देख कर गुस्सा हो जाते हैं। कपिल मुनि उन ६० हजार पुत्रों को अपने तप के प्रभाव से भष्म कर देते हैं । अपने पितरों की मुक्ति का उपाय पुछने पर मुनियों की सभा मे वे बताते हैं स्वर्ग से गंगा जब मृत्यु लोक मे आयेगी और इन राजकुमारों का भस्म गंगा मे विसर्जित करेंगे तभी उनकी मुक्ति होगी । असमंजस ने तप किया . फिर उनके पुत्र दिलीप । ने तप किया फिर उनके पुत्र अंशुमान ने तप किया पर गंगा मृत्यु लोक में नहीं आई । अंशुमान के पुत्र भागीरथ ने तप किया विष्णु भगवान ने प्रसन्न होकर गंगा को पृथ्वी पर भेजा पर उसके वेग को कोई मृत्यु लोक मे नहीं सम्हाल सकता भागीरथ शिव जी से प्रार्थना करते हैं और शिव जी ने गंगा को अपने जटा मे समा लेते हैं । गंगा मृत्यु लोक मे नदी के रूप मे आती हैं । और एक नाम उसका भागीरथी भी हो जाता है | इस तरह गंगा सब से पवित्र नदी मानी जाती है । इसलिये आज भी जहाँ संगम है दूर दूर से लोग अस्थि विर्सजन करने आते हैं । गंगा जल पूजा पाठ सब में पवित्र माना जाता है । भगवान के चरण कमल से उत्पन्न हुई है इसलिये उनका नाम विष्णुपदी हुआ भागीरथ के प्रयास से आई है इसलिये भागीरथी समुद्र इनके पति हैं समस्त पाप इनके स्नान से धुल जाते हैं। मधु श्रावणी की दसम दिन की कहानी
काम दहन _
सती के अग्नि दाह के बाद महादेव उनके पार्थिव शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे जहाँ जहाँ माता सती के शरीर का अंश गिरता है वहां शक्ति पीठ हैं। ५२ जगह सती के अंश गिरे हैं और वे जागृत शक्तिपीठ हैं तारकासुर ने तपस्या करके वर पाया कि वह सिर्फ शिव जी के पुत्र के हाथों मारा जायेगा । वह जानता था कि माता सती के जाने के बाद शिव तपस्या कर रहें हैं और अब विवाह की कोई सम्भावना नही है । तो पुत्र होना असंभव है तारका सुर का अत्याचार बढ़ता जा रहा था तब सभी देवताओं ने रति और कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने भेजा , जब काम देव ने महादेव जी की तपस्या भंग कर उन्हे जगाया तो महादेव ने उन्हे तीसरा नेत्र खोलकर उन्हें भष्म कर दिया । रति के अति विलाप करने एवे जानकर की कामदेव की कोई गलती नही है उन्होंने कहा कि रति कामदेव तुम्हारे पास रहेगे और संसार मे रहेगे वे अनंत कहलाएंगे | अभी समुद्र मे गम्बर राक्षस रहता है उसके पास जाओ । द्वापर युग मे कृष्ण अवतार होगा तब प्रद्युम्न उनके पुत्र के रूप पैदा होगे गम्बर राक्षस उठाकर ले गया रति ने उसे पाला और अब वे बडे हुये तो गम्बर को मारकर द्वारका लो गये और उनसे विवाह किया और राज्य किया । तब हिमवान के घर पार्वती ने जन्म लिया और तपस्या कर पति रूप मे महादेव से उनका विवाह हुआ । हिमालय की दूसरी पुत्री संध्या से भी उनका विवाह हुआ और गंगा से भी उनका विवाह हुआ । काम देव अनंग आदि नामों से जाने जाते हैं । रति और कामदेव का फिर मिलन हुआ शिव और पार्वती के दो पुत्र हुये गणेश और कार्तिकेय । कार्तिकेय ने तारका सुर का वध किया उनका विवाह षष्ठी से हुआ जो देव सेना कहलाई । षष्ठी देवी बालको की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे बालक का भरण पोषण करती हैं। गणेश गजानन सबका संकट हरते हैं । काम देव खुद भष्म हो गये शिव के क्रोध के शिकार हुये । किन्तु उन्हीं के कारण शिव विवाह हुआ । गणेश और कार्तिकेय का जन्म हुआ राक्षसो का नाश हुआ । पृथ्वी राक्षसो के वघ से हल्की हुई
हर हर महादेव 🙏🙏
श्री मति उषा झा पुरानी बस्ती रायपुरमधुश्रावणी की ग्यारहवें दिन की कहानी
एक बाम्हणी के साथ बेटे थे । सबसे छोटी बहु गरीब घर की थी । स्वभाव से सीधी साधी थी । सभी जेठानी बड़ी घर की होने के कारण घर का सभी काम छोटी बहु को करना पड़ता था । एक दिन दोपहर को वह बरतन धो रही थी तो सब बच्चे सांप सांप करके सांप का पीछा कर रहे थे । बहु ने टोकनी मे सभी सापों को ढक दिया । बच्चे जब उसके पास आये तो उसने दूसरी तरफ इशारा कर दिया बच्चे उसी तरफ चले गये । शाम को सुनसान देख बहु ने सांप को छोड दिया | दिन भर टोकनी के अंदर रहने से उन्हे भूख लगी थी वे लोग नाग लोक मे बासुक राजा के पुत्र बाल बंसता थे । वहाँ नाग लोक मे बासुक राजा और उनकी पत्नि अपने बच्चो के राह देख रहे थे । बाल बंसता जब नाग लोक पंहुचे माँ से चिपक कर रोने लगे । माँ आज हम मृत्यु के मुख से एक देवी की कृपा से बच कर आये हैं । बहुत दुखी हैं । उसे ससुराल मे बहुत तकलीफ हैं। उसके माँ बाप कोई नहीं हैं । दो भाई है । परदेश गये हैं । उनका कोई पता नही है । माँ हम उसे चार आठ । दिन के लिये लाना चाहते हैं। धन दौलत देना चाहते हैं। बासुक राजा कहते हैं हम नाग हैं हमारे घर मे नाग कैसे . आ सकते है ' हम चार दिन के लिये मनुष्य रूप रख लेंगे उसे साथ मे रखेगें । धन दौलत देकर उसके एहसान उतार फिर कभी नहीं लयेंगे बाल हट के आगे वे तैयार हो गये उन्होने कहा कि आखरी कमरा उसे खोलने को मना करना और डेहरी पर दिया मत रखने को कहना । दोनों भाई उसे लिवाने जाते हैं। और कहते हैं कि हम लोग परदेश से खूब धन कमा कर आये हैं। और तुम्हे लिवाने आये हैं। वह भाईयो के साथ नाग लोक चली जाती है। तीन दिन तक दोनों भाई बहिन के खूब तारीफ करते हैं। जाने के एक दिन पहले वह उत्सुकता वश आखिरी कमरा खोल देती है ' सैकड़ो सांप के बच्चे कमरे मे रहते हैं। देख कर डर जाती हैं। और तुरंत दखाजा बंद कर देती है । इससे सैकड़ो सांप के बच्चे दब कर मर जाते हैं। और कुछ घायल हो जाते हैं। और भूल वश शाम को वह डेहरी में दिया भी रख देती है। . नाग राज नाराज हो जाते है। और तुरंत उसे भागने को कहते हैं। पर जाते समय उसकी माँ खूब धन दौलत देकर समझाती है । जो तुम्हे सीखा रही हुँ उसे सोते समय बोलकर दिया बुझा देना । माँ को मालुम था कि नाग राज जरूर अपने बच्चो का बदला लेंगे | और इसी कारण आशीष वचन सिखाती है । दीप दीपहरा जाऊ घरा , मन मानीक मुक्ता , नाग बढवु नागीन बढवु , पांचो बहिन बिसहरा बढवु , कोना मोना मामा बढवु , बाल बंसता भैय्या बढवु , ढाडी खोड़ी मौसी बढवु , अमावरी पीसी बढवु , बासुक राजा बाप बढवु , बसुकाइन माँ बढवु , अस्कुडा के वंश बढवु आस्तीक आस्तीक गरुड गरुड । नाग राज उसे डसने उसके पलंग के नीचे थे । इतना सुनने के पश्चात पश्चाताप मे जलने लगे अपनी मंणी खाट के नीचे डालकर नाग लोक चले गये । वहाँ बसुकाईन रास्ता देख रही थी । तुरंत दुसरी मणी लाकर पत्नि से कहते है मै उसे डसने ही गया था क्यो कि मेरे सैकडो बच्चों और अंडो को कुचल दिया पर अब लगा कि वह अनजान थी ' हमारे पूरे वंश के लिये पार्थना कर रही थी और मैं उसे आशीष और मणी देकर आ गया | माँ खुश हो जाती है। बहु जब सुबह सो कर उठती है तो उसको कोठरी मणी के कारण जगमगा रही थी . सब सास ननंद देवरानी जेठान उसके मणी और बिदाई के हिरे जवाहारात देख कर खुश हो जाते हैं। और वह भी खुशी खुशी घर मे रहने लगी नाग पंचमी के दिन उसने बात बसंता की रक्षा की थी अतः उस दिन गोबर का नाग बना कर पूजा की जाती हैं। और धीरे धीरे पूरे भारत में किसी ना किसी तरह नाग की पूजा होने लगी
हर हर महादेव
श्री मति उषा झा पुरानी बस्ती रायपुर 🙏🙏
मधु श्रावणी का १३वे दिन की कहानी
हाथ मे चांवल फूल ले रख लीजिए मैं कहानी सुनाती हुँ २
एक बार श्री गणेश ने अपनी माँ से कहा सब मधु श्रावणी की पूजा करते है , मै उन सुहागिनों स्त्रियों को सुहाग दुंगा , पार्वती जी ने सुहाग के लिये धान . पान . धनिया और चंदन का सुहाग बनाती है । दूब से सुहाग बांटते हैं पहले घोबीन आती है । उसे सुहाग देकर आशीष देकर कहते हैं। जब तक तुम लोगों के कपड़े घोओगी अस्तरी करोगी तुम्हारा सुहाग बना रहेगा कायस्त घर की औरते आईं उन्हें कहा तुम लिखना पढ़ना कलम दवात की पूजा करना , सज धज कर रहना सुहाग बढेगा । मल्लाह की औरतों को आशीष दिया नाव खेने और मछली मारने और बेचने से सुहाग बढ़ेगा । मल्हारिन को कहा , गाय भैस की सेवा दूध , दही , घी बनना , बेचना यही तुम्हारा सुहाग बाढेगा । बनिया की पत्नियों से कहा जब तक तुम लोग ईमानदारी से सौदा करोगे , ताराजु की पूजा करोगे , सुहाग बढ़ेगा । अन्त में मैथिलायन स्त्रियां आईं उन्हे कहा घर मे पूजा पाठ करना ' पोथी पत्रा का आदर करना , तुम्हारा सुहाग बढ़ेगा । मैथिल स्त्रियां सबसे पिछे आती है अपना सब घर का काम निपटा कर सब सुहाग का समान खतम हो जाता है केवल धनिय बचा रहता है तो मैथिल स्त्रियों को धनिया का सुहाग देतें है ' तब से मैथिल स्त्रियां कजली तीज मे धनिया का सुहाग लेती हैं। मधु श्रावणी के दिन गौरी पूजा के बाद पहले कलश की पूजा करें । नमः शांति कलश इहागच्छ इहा तिष्ठ कह कर आवाहन करें । फिर पूजा करें । सूर्य की पूजा करें । सूर्य इहागच्छ इहतिष्ठ कह कर अवहान करें फिर पूजा करें । चन्द्रमा की पूजा भी सूर्य की तरह करें । सूर्य को लाल फूल चन्द्रमा को सफेद चढाये । विषहरा - नाग दाम्पत्यः इहागच्छत इहातिष्ठ कह कर अहवान करें फिर पूजा करें । सतानुज सहित बैरस्ये नमः इहागच्छत इहातिष्ठ अहवान करें फिर पुजा करे । चनई नाग इहागच्छत इहातिष्ठ पूजा करें । कुसुमा वती इहागच्छत इहािष्ठ पूजा करें । पिंगल नाग पिंगले इहागच्छत इहातिष्ठ पूजा करें । लीली नाग इहागच्छत इहातिष्ठ पूजा करें । शतभागनी सहित गोसा वन नाग की पूजा करें । इहागच्छत इहतिष्ठ पूजा करें । फिर सभी नाग की सफेद फूल दुबी से पूजा करें
१ - श्रीमती दीपाली झा
२ - श्रीमती वन्दना आलोक ठाकुर
३ - श्रीमती उषा झा
४ - श्रीमती मंजू झा जी
५ - श्रीमती सपना ठाकुर
६ - श्रीमती भावना ठाकुर
७ - श्रीमती मोनिका झा
८ - श्रीमती स्तुति झा
९ - श्रीमती चित्रा पाठक
१० - श्रीमती दीपाली मंडला
११ - श्रीमती सविता ठाकुर
चित्रा जी द्वारा त्योहारों में बनाई जाने वाली सभी पूजन सम्बंधित सामग्रियों का विधिपूर्वक निर्माण किया जाता है जैसे
नाग
नौवमी देवी
हरेली देवी की
नघड़
कोहबर
छट्ठी माता की फोटो इत्यादि
बनाती है।
साथ ही विभिन्न त्योहारों के पकवान भी पूरी शुद्धता से बनाए जाते हैं। फोन पर बुकिंग की जाती है।
🙏🙏
अक्षय तृतिया का महत्व
अक्षय तृतिया वैशाख शुक्ल पक्ष तृतिया को मनाया जाता है इस दिन घड़े में जल भर कर दान करने का विशेष महत्व है।
कुल देवता और पितरों के नाम से जल भर कर दान किया जाता है जो कुल देवता के नाम से घडा दान किया जाता है उस घडे के जल को घर के लोग पी सकते है और जो पितरो के नाम से घडा दान करते है उसे ब्राम्हण को दिया जाता है पर गोत्री को भी आप घडा दान कर सकते है
आम और सत्तू भी दान करते है साथ में सीधा चावल दाल आटा सब्जिय आदि हो सके तो वस्त्र भी दान कर सकते है अपने सामर्थ के अनुसार आप दान धर्म कर सकते है पितरों के नाम से भी आग में इस दिन आहुति देते है बडा और पुड़ी आदि भोजन पका हुआ सभी चीज पितरों के नाम से दिया जाता है और गाय को भी खिलाया जाता है
अक्षय तृतिया के दिन अन्न दान करने से सदा भंडार भरा रहता है कहते है कि पांडवों को भी अक्षय तृतिया के दिन अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था। अक्षय तृतिया के दिन परशु राम जी का जन्म उत्सव भी बडे धूम धाम से मनाते है और अक्षय तृतिया के दिन शुभ मुर्हुत अभिजित मूर्हुत में सोना चांदी भी खरीदा जाता है जिससे धन हमेशा भरा रहता है
लोकाचार की भी शुरुआत अक्षय तृतिया के दिन से ही आरम्भ होती शाम को गुड्डा गुड्डी की शादी बडी धूम धाम से छोटे बच्चों के द्वारा रिति रिवाज से किय जाती है कहते है जिस कन्या की शादी में विलम्ब होती है उसे अक्षय तृतिया के दिन पूरे रिति रिवाज से उस कन्या को गुड्डा गुड्डी की शादी उत्साह पूर्वक धूम धाम से करनी चाहिये ये अपने अपने प्रान्त के अनुसार जहाँ पर रहते है उस नियम और रिति रिवाज के साथ अक्षय तृतिया वहाँ के लोगों के द्वारा मनाया जाता है
आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🏻🙏🏻
*भगवती स्वाहा एवं स्वधा ।*
आज अष्टमी है और हवन के साथ ही अष्टमी की पूजा पूर्ण होती है। अभिषेक नवरात्र विवाह सभी शुभ कार्य में संबंधित देवी देवता के नाम के साथ स्वाहा लगा कर देने से उनको मिलता है अतः आइए हम स्वाहा के विषय में जाने।
*भगवती स्वाहा*
देवताओं को आहार प्राप्त नहीं होता था। यज्ञ की हवी उन तक नहीं पहुंचती थी तब वे लोग नारायण के पास गए। नारायण की कला से यज्ञ का रूप प्रगट हो गया था और उसमें डाली हवि देवताओं को नहीं मिलती थी। उनकी विनती सुन ब्रह्मा जी ने प्रकृति की कला से स्वाहा की रचना की। उनका विग्रह अति सुंदर था मुख्य मंडल में अनोखी आभा, अत्यंत रूपवती। ब्रह्मा जी ने उन्हे अग्नि को प्रदान किया और कहा कि जो स्वाहा लगाकर आहुति देगा तो वह देवताओं को जिनके नाम से आहुति दी जावेगी मिलेगा और इस तरह देवताओं को भोजन मिलने लगा। स्वाहा और अग्नि के 3 पुत्र दक्षिणाग्नि, ग्रहपथाग्नि , आहावनियागनीहैं । *ॐ हींम श्री वहीजयये देव्ये स्वाहा* इस मंत्र से पूजा करें।
*स्वधा*
ब्रह्मा जी ने 7 पितरों का सृजन किया और उनके आहार की व्यवस्था की ब्राह्मण , गृहस्थ, श्राद्ध , तर्पण, संध्या, बलिवैश्य करने पर पितरों को आहार नहीं मिलता था । पितरों की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने मानसी कन्या का सृजन किया उसका नाम उन्होंने स्वधा रखा और उसे पितरों को दे दिया। वह रूप यौवन से भरपूर, उसके सौंदर्य के सामने चंद्रमा भी फीका था । लक्ष्मी के लक्षणों से युक्त वह देवी विद्या वरदायनी कल्याणमयी मंद मंद हास्य करती थी। उन्होंने ब्राह्मणों को आदेश दिया कि मंत्र में गोत्र के साथ स्वधा लगाकर अर्पण करें । तभी से पितरों को काव्य स्वधा लगाकर अर्पण करते हैं । जो सभी पितरों को मिलता है। स्वधा का उच्चारण करने से ही स्वधा, स्वधा, स्वधा तीन बार करने से तर्पण और संध्या समय कहने से पुत्र, पौत्र, धन ,आयु सम्मान की प्राप्ति होती है। यह श्राद्ध की देवी ब्राह्मण के लिए जीवन स्वरूप और पितरों के लिए प्राण तुल्य है।
स्नेहलता झा
दिव्या झा
अनुजा झा
*बासी त्यौहार* कुछ दिनों पश्चात 14 अप्रैल 21 को बासी त्यौहार या छत्तीसगढ़ मे बोरे बासी कहते आ रहा है । इसके एक दिन पहले तैयारी की जाती है ।पहले दिन रात को पूडी,सूखी ,सब्जी , गुराम ,भजिया ,तरन , बनाया जाता हैं। तालाब से काई लाकर चूल्हा, गुंडी, जाता ,की पूजा की जाती है ।उस दिन चूल्हा नहीं जलाते है। आजकल सभी के घरो,गैस चूल्हा रहता है ।तो उसी की पूजा की जाती है । इडेकशन का उपयोग किया जा सकता हैं
श्रीमती चित्रा पाठक
श्रीमती आशा ठाकुर जी द्वारा प्रेषित
छठी पूजा की तैयारी रेहन से सीता चौक दिया जाता है गौरी गणेश के लिये फुल गौडा चौक दिया जाता है कलश मै आम पत्ता लगा कर दिया रखा जाता है नीचे गौरी गणेश
सीता चौक के ऊपर पाटा रखा जाता है
उसके ऊपर 6 दिया मिट्टी का और रेहन से प्लस बनाकर सिन्दूर लगा कर उसके अंदर खड़ी सुपारी हल्दी और चूड़ी सिंदूर साथ में खाखरिया दो दो और बड़ा दो दो रखा जाता है पाटा के अंदर ही नया चाकू कोरा कागज कलम नया सुई धागा और मुसल मथानी आम पता लगा कर रखा जाता हैआह्वान करने के लिए कांसे या तांबे के प्लेट रखा जाता है तोरण बनाने के लिए आम का पत्ता
पूजा की तैयारी
चंदन रोरी कुमकुम गुलाल अगरबत्ती धूप दीप फुल माला दुबे प्रसाद
मंत्रा क्षस देने के लिये घान दूबी
बच्चे को सुलाने के लिए नया सुपा
सुपा के अंदर धान सुपारी हल्दी सिक्का उसमें नया साड़ी रखा जाता है वह बाद में ननंद का ही होता है
छठी माता को ढकने के लिए नया साड़ी लगता है उस साड़ी को ऐसे महिला को दिया जाता है जिसका बच्चा होना बंद हो जाता है अपनी मां को दे सकते हैं नानी को दे सकते हैं दादी को दे सकते हैं बुआ को दे सकते हैं बस ध्यान रखना चाहिए कि उसका बच्चा ना होता हो
एक मिट्टी का दिया जिसके अंदर सुपारी हल्दी सिक्का दो खरवरीयां दो बडा
रखकर उस बालक को दिया जाता है जो हनुमान जी बनते हैं बालक के पिता जी के द्वारा तीन बार कहा जाता है की तुम क्यों आए हो तब जो बालक हनुमान जी बना रहता है उसके द्वारा यह कहा जाता है कि मैं बालक की रक्षा करने आया हूं
छठी माता में चढ़ाने के लिए चावल अलग से रखा जाता है छठ की माता में नीचे से लेकर ऊपर की ओर दोनों हाथ से चावल को छै बार चढाया जाता है
उसके बाद बच्चे के माता-पिता को टीका लगाकर गिप्ट दिया जाता है साथ में बच्चे को भी आर्शीवाद दिया जाता है
सुपा में सुला कर छठी माता को 6 बार सौंपा जाता है माता और पिता के द्वारा उनके यस कीर्ति और उज्जवल भविष्य की कामन करते हैं सोलष मात्रिका गोबर या आटे का बनाया जाता है कांसे की कटोरी से सहस्त्र धार दिया जाता है
छट्ठी माता मै सबसे पहले बच्चा का मां चावल दोनो हाथ में लेकर नीचे से लेकर ऊपर की ओर लगातार क्रमशः 6 बार चढाया जाता है
पांच ब्राम्हणों या जो घर में बडे है उनके द्वारा धान और दूबी से मंत्राक्ष२ दिया जाता है नऊन के लिये सीधा निकाला जाता है अगर नाऊन ना मिले तो काम वाली को दे सकते है सीधा मै कुछ रुपये डालकर
माघी पूर्णिमा का महत्व 🌹🌹
पूर्णिमा तिथि का अपना एक विशेष महत्व होता है यह साल भर में १२ , पूर्णिमा पड़ता है जिसमें कुछ पूर्णिमा का महत्व होता है जैसे कार्तिक पूर्णिमा , शरदीय पूर्णिमा और माघी पूर्णिमा आदि इनमें से मैं माघी पूर्णिमा के बारे में कुछ जानकारी दे रही हूँ
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना दान धर्म करना उत्तम माना गया है उदय कालिन जब पूर्णिमा हो तभी स्नान करने का महत्व है इस समय दो दिन पूर्णिमा पड़ा है २६ , तारीख को दोपहर 3,49, मिनट से प्रारम्भ होगा और दूसरा दिन मतलब 27, ता. को दोपहर 1, बजकर 47, मिनट तक रहेगा
इस कारण 26, तारीख को व्रत करने की पूर्णिमा चन्द्रमा को अर्ग देने की पूर्णिमा है क्यों कि हम चन्द्रमा देखकर अर्ग देते है तो पूर्णिमा रहने के कारण हम रात को अर्ग देगें दूसरे दिन सुबह 1,46, मिनट तक है तो हम रात में अर्ग नही दे सकते लेकिन 27, ता को उदय तिथि है मतलब सुबह हमें पूर्णिमा तिथि प्राप्त होगी जिससे हम सुबह स्नान कर सकते है और पूर्णिमा तिथि को ही स्नान और दान का महत्व है यही कारण है कि हम दो दिन पूर्णिमा मना रहे है
व्रत की पूर्णिमा के दिन हम सत्यनारायण भगवान की कथा करते है और भगवान विष्णु जी की जाप भी करते है पूजा की जाती है
जाप
ॐ नमो भगवते वासु देवाय मंत्र से हमें जप करना चाहिये पवित्र न दी में स्नान करना चाहिये दान करना चाहिये गंगा हरिद्वार , काशी , प्रयाग राज आदि तीर्थ स्थान पर जा कर स्नान और दान करना चाहिये
माध महीना में सुबह स्नान करने वालो के ऊपर भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और मोक्ष की प्राप्ती होती है
कहते है जिस प्रकार शरद पूर्णिमा को सोलह कलाओं से युक्त चन्दमा होती है ठीक उसी प्रकार माघ पूर्णिमा के दिन जिस दिन रात में पूर्णिमा हो उस रात को चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओ से युक्त होता है इस कारण अर्ग उसी समय दिया जाता है जब चन्दमा पूर्ण रूप में अपनी सोलह कलाओ से युक्त हो
छत्तीसगढ़ में माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है
कहते है राजिम में कुम्भ मेला पूरा एक महिना तक चलता है
यहाँ की यह मान्यता है की कहा गया है कि कुलेश्वर महादेव के संबंध में की वनदेवी चौदह वर्ष के वनवास काल में जब माता सीता ने संगम स्थल में स्नान करके अपने कुल देवता की रेत से मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना की थी इसी कारण उनका नाम कुलेश्वर महादेव पड़ा राजिम में प्रति वर्ष माघी पूर्णिमा से महा शिवरात्रि तक विधि वत अनेकों कार्यक्रम का आयोजन प्रशासन के द्वारा किया जाता है
राजिम छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा शहर है यह गरियाबंद जिले की एक तहसील है जो मुख्य रूप से राजीव लोचन मंदिर के कारण प्रसिद्ध है
पुरातात्व विभाग राजिम के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर को आठवी या नवी सदी का बताते है यहाँ पर कुलेश्वर मंदिर है जो संगम स्थल पर स्थित है यहा पर तीन नदियों का संगम प्रत्येक्ष रूप से है इसलिए इस संगम को त्रिवेणी संगम कहा जाता है
यह तीन नदी क्रमश: महानदी , पैरी नदी और सोढुर नदी का संगम है
जबकि इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम में सरस्वती नदी लुप्त है यहाँ प्रतिवर्ष होने वाले मेले को कुम्भ मेले के नाम से जाना जाता है इस कारण राजिम पुन्नी मेला कहा जाता है
भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है यहाँ का मेला शुभ अवसर पर होता है
यहाँ का मेला ग्रामीणों की अर्थ व्यवस्था से बडा ही गहरा संबंध होता है
छोटे गांव में बजार का अभाव होता है
मेले में हर समान उपलब्ध होता है और ग्रामीण असानी से अपनी सुविधा ओ के अनुसार जरूरत मंद वस्तुऐ मेले से ही प्राप्त कर लेते है
छत्तीसगढ की संस्कृति को बचाये रखने के लिये यह मेला महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करती है
राजिम नगरी का नामकरण
राजिम नगरी के नामकरण के बारे में जनता से सुना गया अथवा जनता के द्वारा बताया गया है कि राजा जगत पाल इस राज्य में राज्य कर रहे थे उसी समय कांकेर के कंडरा राजा इस मंदिर के दर्शन किये और उस मंदिर की प्रतिमा को देखकर उनके मन में अनेको प्रकार की इच्छा उत्पन्न हुई उनके मन में विचार आया क्यो ना यह मूर्ति मेरे ही राज्य में स्थापित होनी चाहिये
सेना की सहायता से उस मूर्ति को नाव में रखकर महानदी के जलमार्ग से होकर उन्होने कांकेर के समीप धमतरी नामक गांव के पास रुद्वी नामक गांव के पास मूर्ति डूब गया और वह मूर्ति शीला में बदल गई
नवा कुलेश्वर नामक मंदिर के पास सिढी के पास आकर रुक गई
उस क्षेत्र में एक तेलीन ग्रामीण महिला रहती थी उस महिला को विष्णु की अध बनी मूर्ति मिली उसने अपने पास रख लिया
उसी समय रत्न पुर के राजा वीर पाल और जयपाल को स्वपन आया स्वपन के फल स्वरूप उन्होने एक विशाल मंदिर का निमार्ण किया फिर राजा ने उस ग्रामीण महिला तेलीन से विष्णु जी की मूर्ति को स्थापना के लिये देने का अनुरोध किया किन्तु तेलीन ने राजा से शर्त रखा की मैं तो मुर्ति आपको दे दूंगा परन्तु मूर्ति के साथ मेरा भी नाम जोडा जाय इस कारण से इस मूर्ति का नाम राजीव लोचन पडा इस वजह से आज भी मंदिर परिसर में राजिम के लिये सुरक्षित है
यहाँ शृंगार तीन बार होता है पहला श्रृंगार बाल्य अवस्था दूसरा युवा अवस्था और तीसरा पौढ अवस्था में इनकी छवि देखते ही बनता है मेला की शुरुवार त कल्पवास से प्रारम्भ होकर पखवाडे भर पहले से श्रद्वालु पंचकोशी यात्रा प्रारम्भ कर देते है फिंगेश्वर , ब्रम्हश्वर , कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ का पैदल चलकर , भ्रमण करके अपना यात्रा सफल कर दर्शन का लाभ उठाते है
मान्यता यह भी है कि जो साधु सन्यासी जगरनाथ की यात्रा करते है उन्हें जब तक राजिम लोचन और कुलेश्वर भगवान का दर्शन नही कर लेते तब तक यात्रा पूरी नही मानी जाती है कहा जाता है की स्वय भगवान जगरनाथ भी राजिम लोचन के दर्शन हेतु यहाँ पर आते है और उस दिन जगरन्नाथ मंदिर का पट बंद हो जाता है साधु संतों के द्वारा कहा गया है की इस पूर्णिमा के दिन साक्षात् जगरन्नाथ राजिम लोचन कुलेश्वर माहादेव का दर्शन हो जाता है जो जगरन्नाथ पूरी किसी कारण से नही जा सकते तो पूर्णिमा के ही दिन जगरन्नाथ भगवान का दर्शन यहाँ राजिम में कर सकते है
यह भी मान्यता है कि जब बरसात में बाढ आ जाती है तो उस समय भाजा अवाज लगाता है कि मामा मैं डूब रहा हूँ मुझे बचा ली जिये यह सुनकर मामा भाजा को बचा लेता है मामा भाजा भी है और आज भी रक्षा करते है अपने भाजा का यही कारण है यहाँ का मेला प्रसिद्ध है
ऊ नमः शिवाय 🌹🌹🙏🙏 आशा ठाकुर अम्लेश्वर
विधा - संयोजिका श्रीमती आशा ठाकुर सखियां
श्रीमती निशा ठाकुर
श्रीमती अल्पना झा
श्रीमतीउषा झा
श्रीमती सत्यभामा ठाकुर
श्रीमती संगीता मिश्र गोंदिया
श्रीमती चित्रा पाठक
श्रीमती भावना ठाकुर
गौरनी तेरस
गौरनी तेरस माघ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में मनाया जाता है उस दिन जितनी भी सुहागन महिलायें है जो शादी सुदा है वह महिला एक दूसरे के घर जाकर या किसी सामूहिक स्थान पर सभी सुहागन एकत्रित होती है और एक दूसरे को सुहाग का समान देती है और एक दूसरे को सिन्दूर लगाती है आलता लगाती है हल्दी लगाती है हमारे मैथिलों में यह प्रचलन पहले नही था पर कहते है ना जहाँ रहो उस वातावर्ण में ढलना पड़ता है उस संस्कृति को अपनाना पड़ता है
हम भारतीय ऐसे है कि सभी जातियों के या कहें राज्य के परम्परा को सभी मिलकर मनाते है और थोडा थोडा संस्कृति समाहित हो जाती है।
माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन से महाराष्ट्र में हल्दी कुमकुम की प्रथा आरम्भ हुई उसी दिन से मतलब संक्रांति के दिन से लेकर पूरे चैत माह तक यह प्रथा चलती है
माना जाता है कि संक्रांति के दिन से तिल . तिल दिन बढ़ता है इसलिए महाराष्ट्र में तिल गुड और तिलवडी बनती है उस दिन रिश्तेदार और पडोसियों विवाहित महिलाओ को बुलाकर तिल गुड तिलव डी देकर हल्दी कुमकुम देती है और अपने सुहाग की लम्बी उम्र की कामना करती है
विशेष महत्व
महाराष टीयन समाज में इस पर्व का विशेष महत्व है इस पर्व पर महिलायें मिट्टी के छोटे से चुकिया या मटके में चने के होले तिल गुड गाजर तिल की लड्डु मूंग दाल चावल बेर भर कर देते है
अब बडे बडे शहरों में मिट्टी का बर्तन मिलना मुश्किल हो गया है तो इस वजह से आज कल स्टील का प्लेट कटोरी या फिर प्लास्टीक का पात्र यूज करते है जो बजार में आसानी से प्राप्त हो जाती है उसी में भर कर विवाहित महिलाओं को दान किया जाता है विवाहित महिलाए एक दूसरे को हल्दी कुमकुम का टीका लगाती है और तिल गुड या खोये का मिठाई से मुह मीठा करती है उस दिन विवाहित महिलाओ को अपने सामर्थ के अनुसार बिछिया , पायजब , चुडियाँ , कुमकुम , बिन्दी आदि भेंट स्वरूप में देती है और एक दूसरे के लिये लम्बे सुहाग की कामनाए करती है
मराठी भाषा में कहती है सभी महिलाए तिल गुड घ्या गोड गोड बोलकर शुभकामनाए देती है
इसी दिन प्रातः काल उठ कर सुहागिन महिलायें मलाई तिल और हल्दी से उबटन लगाती है और अपने सौन्दय को निखार ती है नये वस्त्र पहनती है शृंगार करती है गजरा लगाती
यह त्यौर पहले महराष्ट्र में आरम्भ हुआ फिर गुजरात राजस्थान गोवा में फिर धीरे धीरे पूरे भारत वर्ष में यह त्यौहार प्रचलित हो चुका है
ऐसा माना जाता है की हल्दी कुमकुम का शुरुवात पेशवा सम्राज्य के दौरान हुआ उस समय काल में पुरुष युद्ध करने के लिये चले जाते थे और सालो तक घर नही आते थे ऐसे स्थिति में महिलाए घर से निकल नही पाती थी इसलिए हल्दी कुमकुम के बहाने अपने पडोसियों और विवाहित सहेलियों को घर बुलाती थी और एक दूसरे को कुमकुम हल्दी और आलता लगा कर उपहार भेंट देती थी वस्त्र इत्र श्रृंगार का समान देती थी तब से यह प्रथा महाराष्ट्र में आरम्भ हुआ और धीरे धीरे पूरे देश में यह त्यौहार मनाया जाता है किसी किसी राज्य में एक माह तक हल्दी कुमकुम का त्यौहार चलता है पर हम मैथिल एक ही दिन यह त्यौहार तेरस को सब मिल जुल कर मनाते है और अपने पति की लम्बी आयु की कामना करतें है
आशा ठाकुर अम्लेखर 🙏🏻🙏🏻
चित्रकला- समृद्धि झा
मैं स्नेह लता झा दसमहाविद्या की छठवीं देवी छिन्नमस्ता के विषय में बता रही हूं । इनके प्रादुर्भाव की कथा बड़ी रोचक है - एक दिन भगवती अपनी सहचरी डाकिनी और वर्णिनी के साथ मंदाकिनी में नहाने गई, नहाने के बाद तीनों को भूख लगी । जब बहुत देर हुआ तो दोनों ने देवी से खाना मंगा देवी ने कोई ध्यान नहीं दिया । तब वह कहने लगी 'माता भूख लगने पर बच्चों को तुरंत भोजन देती है' यह सुनकर अपने ही हाथ से उन्होंने अपना गर्दन काट लिया । कटी गर्दन से तीन धारा रक्त की निकली पहली उनके कटे मुख में, दूसरी दोनों सखियों के मुख में और वे लोग रक्त पीकर तृप्त हो गई । इनकी आराधना संतान प्राप्ति, दरिद्रता निवारण एवं लेखनी शक्ति के लिए करते हैं । इसी कारण इनका नाम छिन्नमस्ता हुआ । कमल दल पीठ में खड़ी दिशाएं ही उनके वस्त्र हैं । इनके नाभि में योनि चक्र है । अपना मस्तक काटकर भी जीवित हैं अतः उनके पूर्ण ऐतार्मुखी साधना का संकेत मिलता है । कमल दल के भीतर नर नारी के रूप में रति और कामदेव अवस्थित हैं । सुंदर कोमल रक्ताम और नागवेंनी मंडित बायां चरण आगे और दाहिना चरण पीछे। गले में मुंडमाला एक हाथ में रक्त रंजीत खड़ग, और दूसरे हाथ में स्वमस्तक है। शत्रु विजय और राज्य प्राप्ति के लिए इनकी साधना की जाती है । कामाख्या में १० महाविद्या का मंदिर है और बोकारो के पास रायगढ़ में इनका शक्तिपीठ है ।मूर्ति बड़ी अद्भुत है । आसपास के लोग मन्नत मानकर पूरा होने पर काले बकरे की बलि देते हैं । इनकी उपासना बौद्ध धर्म में वज्रयानि तंत्र साधना के परिवेश में हुआ । छिन्नमस्ता का वज्रयानि तांत्रिक प्रतिरूप का वज्र योगिनी का महत्त्व है
आईये गणेश चतुथी के बारे में संक्षिप्त रुप में जानकारी लेते है
गणेश चतुथी का महत्व
गणेश चतुर्थी कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन ही पूजा करते है हर माह कृष्ण पक्ष की चतुथी के दिन किया जाता है इनकी पूजा करने से सभी सकंट दूर होती है जिस किसी को यह वत्र आरम्भ करना होता है उसे माघ कृष्ण पक्ष की चतुथी के दिन से आरम्भ करनी चाहिये इनकी पूजा गोधुली बेला में की जाती है चन्द्रमा निकलने पर अर्ग देनी चाहिये
मा घ महीना के चतुथ को संकटी चौथ और तिल कुट कहते है
पूजा विधि
पूजा समान्य रूप से करनी चाहिये
कही कही पर गणेश जी की पूजा आंगन में की जाती है सभी स्त्री याँ के साथ एक ही आंगन में बैठकर गोधुली बेला में पूजा करते है कही पर पूजा रूम में भी पूजा करती है
अलग अलग राज्य में पूजा विधि अलग सी होती है मैं हमेशा कहती हूँ
कही पर तिल गुड कुट कर पहाडा बनाया जाता है कही पर तिल गुड से बकरा की आकृति बना कर पूजा करते है कही पर तिल गुड से मुठिया बनाते है कच्चा तिल और गुड से - पहाड़ क्यो बनाते है या बकरा की आकृति क्यों बनाते है इसकी कहानी है मै बताऊगी पहले पूजा की समाग्री
पूजा की तैयारी
कच्चा दूध , जल , तिल , चंदन , रोरी , कुमकुम , गुलाल , दूबी , फूल , पान , जनेऊ , नारियर, अक्षत , चढ़ाने के लिए वस्त्र , वस्त्र पीला हो तो उत्तम नही तो कोई भी रंग चलेगा सिर्फ काला रंग छोड कर
अर्ग देने के लिए
कच्चा दूध और तिल डाल कर गणेश जी को और चन्द्रमा को देनी चाहिये दूबी अधिक मात्रा में चढ़ाना चाहिए
तिल का बना हुआ लड्डु चढ़ाना चाहिये आटे का भी लड्डू चढ़ाते है
कथा माध महीना का
सत्युग में राजा हरिश चन्द्र राजा का राज्य था वहाँ पर सभी प्रजा सुख पूर्वक राज्य करते थे राजा न्याय प्रिय थे सभी के साथ न्याय करते थे और अपने सभी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे
उसी राज्य में एक ब्राम्हण और ब्राम्हणी पति पत्नी रहते थे और उसका बच्चा रहता है ब्राम्हण ही भरण पोषण करते थे पर अचानक ब्राम्हण की मृत्यु हो जाती है तो ब्राम्हणी को छोटे बच्चे और अपना भरण पोषण कर ती
ब्राम्हणी अपने काम काज में बहुत ज्यादा व्यस्थ रहती थी बच्चा अपने आंगन में खेलता था
ब्राम्हणी गणेश जी की भक्त थी वो 12, माह कृष्ण पक्ष की चौथ के दिन पूजा करती थी
एक दिन बच्चा खेलते खेलते पूजा घर में चला जाता है और गणेश जी की मुर्ति को उठा लेता है और खेलते खेलते बहुत दूर निकल जाता है बच्चा जब देखता है तो उसे घर नजर नही आता और रोते रोते वह उसी राज्य में दूसरे मोहल्ले में चला जाता है
कुम्हारा वही मिल जाता उसका पुत्र नही था एक लड़की थी उसकी शादी के लिए घन उन्हें अर्जीद करना था पर जब कुम्हार अलावा जलाता था और मिट्टी के बर्तन को पकाने के लिए अलावा में डालता था तो हर बार अलावा नही जलता था और बर्तन नही पकता था दुखी हो गया परेशान रहता था किसी ने कहा तुम बलि दो तो तुम्हारा काम सफल हो जायेगा पहले बलि प्रथा था कुछ काम ना होने पर देवी देवता को बलि दी जाती थी
अचानक ब्राम्हणी के बालक को देखकर उनके मन में ख्याल आया क्यों ना उस बच्चे का बलि दू फिर उस बच्चे को बुलाकर अपने घर में रखता है और दूसरे दिन वह फिर से अलावा जला ता है और नया मिट्टी का बर्तन बनाता है अलावा सुलगाने से पहले उस बच्चे को अलावा के बीच रखकर जलाता है मिट्टी का बर्तन रखकर रात को सो जाता है जब सुबह होती है तो कुम्हार के मन में आता है कि चलो आज अलावा से मेरा बर्तन पक गया होगा जा कर देखता हूँ
जब जा कर देखता है तो अलावा के पास चारों कोना में पानी ही पानी रहता है मन में विचार करता है की मैने तो रात में पानी नही डाला था पर पानी कहाँ से आया
वह अलावा से सब बर्तन को अलग अलग करता है तो वह देखता है ब्राम्हणी का बच्चा गणेश जी की मुति के साथ वह खेल रहा है और स्वस्थ है देखकर उसके मन में आत्म ग्लानि होता है मैने अपने स्वार्थ के लिए इस बच्चा को मौत के मुह में डाल दिया
चलो मैं जा कर सभी बात राजा से कहता हू राजा मुझे मौत दे तो भी मुझे स्वीकार है वह राजा के पास जाकर सभी बात बताता है और सुनकर आर्च श्य चकित होता है और कुम्हार के साथ जाकर देखता है तो आश्चर्य चकित होता है बालक खेल रहा था अलावा के बीच फिर अपने राज्य में सिपाही से कहता है जाओ यह बच्चा किसका है पता लगा कर आओ
उधर ब्राम्हणी अपने बच्चे को ढूढ कर परसान हो जाती है और ढूढ़ते ढूढ़ते उसी बीच में पहुंच जाती है वहाँ पर अपने बच्चे को देख जोर जोर से चिल्लाती है ये मेरा बच्चा है मैने इसे बहुत ढूढा नही मिला पर आज गणेश चौथ है मैने गणेश जी की पूजा की और गणेश जी ने मेरा बच्चा का रक्षा किया
यह बात सुनकर राजा हरिश चन्द्र प्रसन्न हुये और अपने राज्य में सभी को पूजा करने का आदेश दिया उसी दिन से संकटी का व्रत आरम्भ हुआ
बकरा की आकृति
और पहाड़ा इसी लिए बनाते है पहाडा की पूजा करवाते है औ बच्चे के द्वारा पहाड़ा को चाकु से काटते है और उसी का प्रसाद सभी परिवार मिलकर ग्रहण करते है नारियर वस्त्र और लड्डु कुछ सीधा जैसे दाल चावल आटा आदि अन्न और दक्षिणा ब्राम्हण के घर देना चाहिये जैसे ब्राम्हणी के बच्चे की रक्षा की संकट कटा वैसे ही संकटी गणेश जी की पूजा करने वाले तथा सभी के बच्चे की रक्षा गणेश जी करें एवं संकट दूर करे
बोलो संकटी गणेश जी की जय
कहनी के बाद आरती करें प्रसाद देवें
आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏
छेरछेरा पुनि की कहानी
इसकी शुरुवात कैसी हुई
छेरछेरा पुनि
छेरछेरा पुनि जब किस नों का फसल घर में आ जाता है और धान कोठी में रखा जाता है ठीक उसी समय बच्चों युवाओं के द्वारा पुष महीना में पूर्णिमा के दिन अन्न का दान मागा जाता है इसे ही छेरछेरा पुनि कहते है
बच्चों के द्वारा यह कह कर मागा जाता है
छेरी के छेरा छेर छेरा
माई कोठी के धान ला हेर हेरा जभे देबे त भे जाबो
अन्न का दान करने से अन्न का भंडार सदा भरा रहता है
छेरछेरा पूनि की कहानी
बाबू रेवा राम की पांडुलिपियों से पता चलता है की कलचुरी राजवंश के कौसल नरेश कल्याण साय व मंडल व राजा के बीच विवाद हुआ और इसके पश्चात् तत्कालीन मुगल शासक अकबर ने दिल्ली बुलवा लिया था कल्याण साय 8, वर्षो तक दिल्ली में रहे और उन्होने राजनिति युद्ध कला की शिक्षा प्राप्त कर निपुणता हासिल किया 8, वर्ष के बाद उन्हें उपाधि प्राप्त हुई राजा के पूर्ण अधिकार के साथ राजा के स्वागत में राजधानी रत्न पुर आ पहुंची प्रजा के इस प्रेम को देखकर रानी फुल केना द्वारा रत्न और स्वर्ण मुद्धाओं की बारिश करवाई गई और रानी ने प्रजा को हर वर्ष उस तिथि पर आने की न्यौता दिया गया
तभी से राजा के आगमन को याद गार बनाने के लिये छेरछेरा पर्व मनाने की शुरुवात की गई जब राजा घर आये तब समय ऐसा था कि किसानों के घर फसल खलिहानों से घर आ कर कोठी में रखा गया इस कारण से भी इस छेरछेरा पुनि को जश्न के रूप में जोडा गया
लोक परम्परा के अनुसार पौष महिने की पूर्णिमा को यह त्यौहार धूम घाम से मनाया जाता है इसमें युवक बच्चों के द्वारा घर घर जा कर डंडा नृत्यृ करते है और अन्न का दान मांगते है
छेरी के छेरा छेर छेरा
माई कोठी के घान ला हेर हेरा ज भे देबे तभे जाबो कह कर अन्न का दान मांगते है बच्चों का उत्साह उमंग देखकर ग्रामीणों के द्वारा सुपा में धान या चावल भर कर दान करते है दान से घर में भंडार की वृद्धि होती है
राज्य का राजा अपने घर आये या फिर अच्छी फसल खेत खलियान से घर में आये इसी खुशी के कारण छेरछेरा पुनि का त्यौहार छत्तसीगढ़ के ग्रामिण इलाको में धूम घाम से मनाया जाता है
जय जौहार
राम राम 🙏🏻🙏🏻 आशा ठाकुर अम्लेश्वर
मैं स्नेह लता झा आपको छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्यौहार छेरछेरा के विषय में बताती हूं छत्तीसगढ़ अंचल की उत्कृष्ट मानवीय संस्कृति में रचा बसा यह त्योहार यहां की लोक कथा पर आधारित है पहली कथा है आदि काल में भीषण अकाल पड़ा पशु पक्षी जानवर मनुष्य भूख प्यास से मरने लगे तब मुनियों ने शाकंभरी देवी की पूजा अर्चना की क्योंकि यह देवी लोगों का पालन करती है देवी ने खुश होकर मुनियों को 100 आंखों से देखा जिससे वे शताक्षी कहलाई और उन्होंने वर्षा होते तक शाक से उनकी भूख मिटाई तब से पौस पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है और उस दिन दान लेते हैं और दान देते हैं तथा बड़े छोटे सभी दान मांगते हैं
उस दिन दान देने वाला शाकंभरी का प्रतीक और लेने वाला ब्राह्मण का प्रतीक माना जाता है अतः गांव में अधिक लोग एक दूसरे को दान देते हैं और दान लेते हैं कहते हैं कि रतनपुर के राजा कृष्णसाए 8 वर्ष तक मुगल सम्राट जहांगीर से युद्ध करते रहे 8 वर्ष तक उनकी पत्नी फूल गेंदा ने राजकाज संभाला राजा के लौटने पर उनकी प्रजा बैलगाड़ी घोड़े और पैदल चलकर उनका स्वागत करती है रानी धन-धान्य कपड़े दान करती है और प्रजा का उत्साह देख उन्होंने उस दिन दान देने की परंपरा शुरू किया जो आज तक चल रहा है अधिकतर आज भी सभी यह सवेरे सेबड़े बूढ़े सभी टोली बनाकर दान मांगने निकलते हैं उस दिन खेत खलिहान में कोई काम नहीं होता छेरी छेरा छेर बड़कनिन छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर बडकनीन हेर हेरा अरन बरन को दो दर्जन जंभे देवे तं भै टरऊ कहकर आवाज लगाते हैंऔर सब उनको धान पैसा देते हैं अपने अपने दरवाजे में टोकरी में धान लेकर बैठते हैं और आने वालों को धान पैसा देते हैं इसत्यौहार में ऊंच-नीच का भेद मिटा देते हैं और दान देते देते हैं अद्भुत परंपरा है यह दान शीलता परंपरा की याद दिलाती है पौष पूर्णिमा को पुष्य नक्षत्र होता है जो नक्षत्रों का राजा है उस दिन गुरुवार पड़ा तो सोने में सुहागा सामान खरीदना दान देना शुभ माना जाता है किसान 4 महीने की मेहनत के बाद धान अपने घर लाते हैं और विश्राम और बदलाव चाहते हैं और धरती मां का एहसान भी मानदान भी करना चाहते हैं अतः यह अन्नदान का पर्व है यह लोग त्योहार महापर्व है बच्चे 12:00 बजे के बाद धाम दुकान में बेच अगर आसपास मिला हो तो जाते हैं अपने मनपसंद सामान खरीदते हैं जय छेरछेरा जय छत्तीसगढ़
स्नेह लता झा
अनुजा झा
दान पुन स्नान आदि का महत्व है कहते है संक्राति के जाने के बाद स्नान करना पुन्य माना गया है यदि आपका सूर्य और शनि ग्रह वक्रिय हो तो उस दिन नदी में स्नान करके उगते हुये सूर्य को जल , तिल , लाल फूल , गुड - , और चंदन से अर्ग दे तो ग्रह शांत होता है
दान -
दान धर्म करने से अभिष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती है। आप अपने सामर्थ के अनुसार चावल आटा दाल तिल गुड आदि का दान करें ब्राम्हण को और कुछ दक्षिणा भी दे तो दान फलकारी होता है
पितरों का तपर्ण करें हो सकें तो पितरों के नाम से खिचडी दान करें कच्चा या फिर पक्का हुआ दान करें
शुभ कार्य -
संक्राति के दिन से ही शुभ कार्य आरम्भ होता है जैसे - गृह प्रवेश शादी विवाह , जनेऊ, भागवत आदि।
खिचडी का महत्व क्यो है?
मौसम परिवर्तन होता है तो पाचन क्रिया को मजबुत करने के लिये खिचड़ी में हम जो मसाला डालते हैं जैसे जीरा इस्तमाल करते है जिससे पाचकरस बढ़ाता है जो पाचन को ठीक करता है। पित्त को भी ठीक करता है। खिचड़ी सुपाच्य होने के साथ ही पोषक तत्वों से भरपूर होती है।
गुड और तिल का महत्व -
सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम हो जाता है जिस वजह से शरीर में अनेको प्रकार की रोग का आक्रमण हो जाता है इस रोक थाम के लिये गुड और तिल से बनी हुई चीजों का सेवन किया जाता है। इस स्वास्थप्रद खाद्यानों को प्रसाद स्वरूप अगल बगल में भी बांटा जाता है
गुड और तिल की तासीर गर्म भी होती है और यह पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। अतः इसे स्वयं भी खाया जाता है। साथ ही बांटने का भी विशेज़ह महत्व है।
दान धर्म का समय
कभी संक्राति 13, तारीख को जाती है तो कभी 14, तारीख को अगर तेरह को या चौदह को भोर में संक्राति जाति है तो चौदह को स्नान करके दान पुन्य करना चाहिये अगर चौदह को देर शाम तक संक्राति जाति है तो पन्द्रह तारीख को दान पुन्य करनी चाहिये इस समय चौदह तारीख को दान करनी है
अगर आपके घर के पास शनि मंदिर हो तो अवश्य शनिदेव का दर्शन करना चाहिये
हो सके तो आदित्य देव का जाप करना चाहिये यदि ब्राम्हण ना मिले तो इस स्थिति में मंदिर में जाकर दान देना चाहिये और हो सके तो गुप्त दान करना चाहिये ताँबे का छोटा लोटा या ग्लास में काला तिल भर कर उसके अन्दर सोना , चाँदी , या कुछ रुपये डालकर लाला कपड़े से बांध कर दान देना चाहिये हमारे छत्तीसगढ में हम मैथिल संक्राति के दिन गौर साठ और गौरी गणेश कलश की पुजा करने के बाद पाँच मिट्टी की चुकिया के अंदर मटर के दाने गाजर , सेमी , बेर , गेहूँ या चांवल भर कर सेन्दूर चुडिय और सिक्का , तिल का लड्डू डालकर उसकी पूजा करते है चौक पूरकर पाटा रखकर उसके ऊपर रखते है और पूजा करके पाँच सुहागिन को दान करते है यदि सामर्थ हो तो सुहागनों को ब्लाउज पीस या साडी, सुहाग का समान भी दे सकते है गरीबों को भी काला कम्बल अन्न आदि दान करना चाहिये ये सब दान मकर संक्राति के दिन उत्तम माना गया है
आशा ठाकुर अम्लेखर 🙏🏻🙏🏻
बहुत सुंदर और अच्छी जानकारी मिलती हैं।आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं