श्री गणेशाय नमः
बहुला चौथ की पूजा विधि कहानी
सभी देवी देवताओं की पूजा इस मंत्र के द्वारा कर सकते है।
महिलाए ऊं की जगह नमो उच्चारण करें
पूजा करते वक्त ॐ ( नमो ) भूभुर्व स्व :
श्री: - देव या ( देवी का ) नाम लगावें -
ॐ ( नमो ) भूर्भवः स्व श्री - देव या देवी का नाम लेकर मंत्र का उच्चारण करें इहागच्छ इहतिष्ठ इंद पुष्पा सनम् ।
इंद पाद्मम् । इंद अर्ध्य । इदमाचीयम् ।
इदं स्नानं ।
इंद पश्चामृत स्नानं ।
इदं शुद्धोदकं ।
इदं यज्ञोपवीतं '
जिस देवता को जो चढ़ता है। उसको उसी तरह चाढे जैसे देवता में स्नान कराने के बाद हम चंदन रोरी कुमकुम गुलाल जनेऊ चढ़ाते है। तो ऐसा मंत्र कहे जैसे यज्ञोपवीतं चंदन आदि चढ़ाने का मंत्र जैसे बोलते वैसे ही बोलकर चढ़ाए देवता में चुड़ी सुहाग का समान नही चढ़ता यह सिर्फ देवी में चढ़ता है। तो इसे इस तरह से बोले
( चूड़ी , सिन्दूर , गहना ) इमानि सिन्दुरा भरणानि ।
चन्दन इदम मनुलेप नं ।
इदं दूर्वादल म् । ( दूबी चढ़ाने का मंत्र है । )
एतानि तुलसी पत्राणी ।
इदं पुष्प माल्यं
एवं घूपः , दीपः, प्रसाद एतानि नानाविधि पकातन्ना दीनि, आचमन - इद माचनीयम् ,एतानी फलानि ,पान इदं ताम्बूलं , आचमन इदमाची यं , दक्षिणा - इदं दक्षिणाद्रव्यं ,एव पुण्याजलि :
विसर्ज पूजा समाप्त होने के बाद हम उसे जहा से देवी देवता आए हुए रहते है। वही भेज देते है। विसर्जन करने का मंत्र है।
ॐ यान्तु देव गणाः सर्वेपूजा मादाय
माम कीं
इष्काम फल सिद्धयर्थ पुनरागमनाय च ।
स्व स्थान गच्छ
🤞
इस मंत्र से सभी देवी देवताओं को विसर्जन
करना चाहिए किसी भी प्रकार की पूजा हो मंत्र यही रहता है।
बहुला चौथ की तैयारी
सभी प्रांतों में अलग अलग विधि होता है।
हम अपने छत्तीसगढ़ की विधि बताते हैं
एक दिन पूर्व हम कुम्हार के घर पाटा दे कर आते है। अथवा घर पर बनाते है।
गाय , बछड़ा , बाध ,शंकर पार्वती , ग्वाला ,नाव , बच्चों का खिलौना आदि सब मिट्टी से बनाते है। खिलौना बाजार से भी लेकर चढ़ा सकते है। कंचन (बाटी ) बनाते है। उसकी पूजा गोधूली बेला में की जाती है। सीता चौक पाटा रखने के लिए गौरी गणेश कलश
गौर साठ का पूजा हर पूजा में सुहागन को करना चाहिए
चाहे वह बडा पूजा हो , या छोटा
उसके बाद ही गौरी गणेश कलश की पूजा फिर जिस देवी या देवता की करनी है। उसकी पूजा
*थाली में पूजा की समान*
चंदन रोरी कुमकुम काला तिल , अक्षत , दूर्वा ,फूल खुला ,
धूप , दीप , आरती , नैवेध , कपूर , फल , माचिस दीपक
बहुला चौथ की पूजा समान्य रहता है। कच्चा दूध जनेऊ , नारियल ,रितु अनुसार फल फूल आदि
आज के दिन गाय का दूध सेवन नहीं करते ना घी , ना दही , कुछ भी नही कही कही पर जौ आटे की लड्डु बनायी जाती है। हम गेहूं के आटे की लड्डू बनाते है। छोटी पुड़ी जिसे हम आ अठ्वाइ कहते है। वह बनता है। प्रसाद के लिए
पूजा हम जिस तरह से करते है। वैसे ही करें
*कहानी*
पूजा करने के बाद हाथ में पुष्प ,दुर्वा और अक्षत लेकर कहानी सुने बहुला चौथ की
एक राज्य में ब्राम्हण रहता था। वह गाय को पालता था। बड़ी लगन के साथ उसकी सेवा किया करता था। देख भाल बहुत ही अच्छे से किया करता था। उसके कोठे पर सीधी साधी और सभी आज्ञा का पालन करने वाली सरल स्वभाव की बहुला नामक गाय थी। वह अपने मालिक की हर बात सुनती थी। ब्राम्हण भी उसे सन्तान जैसा मानता था। बहुला गाय समय में चरने जाती और ठीक गोधूलि बेला में घर वापस आ जाती उनको देखना नहीं पड़ता था।
एक दिन वह हरी हरी घास देखी और चरते चरते दूर घने जंगलों में जा पहुंची
बहुला को पता ही नहीं चला की वह कब इतनी दूर आ गयी
सामने भूखा शेर बैठा हुआ था। बहुला गाय चरते चरते कब उसके समीप जा पहुंची ।
बहुला गाय को भान नही हुआ शेर देखते ही उसके ऊपर आक्रमण करने के लिए दौड़ा और कहा की मैं बहुत दिनों से भूखा हूँ मुझे कोई शिकार नही मिला है। आज मैं अपने पेट की आग बुझाऊंगा तुम्हें आहार बना कर जी भर खाऊंगा , आज मैं तृप्त हो जाऊंगा
यह बात सुन बहुला गाय शेर के सामने प्रार्थना करने लगी की मेरा छोटा सा बछड़ा है। वह भूखा है। उसे मैं दूध पिलाकर वापस आ जाऊंगा ,तब मुझे अपना निवाला बना लेना , यदि मुझे खा कर अपना तृष्णा बुझा सकते हो तो यह मेरी सौभाग्य है। की मैं आपका काम आ सकूं
पर मुझे थोड़े देर के लिए आज्ञा दीजिए की मैं अपने बच्चे को जो भूखा होगा उसे दूध पिला कर आपके पास आ जाऊंगी
बार बार विनती करने से शेर मान जाता है। कहता मैं तुम्हारे ऊपर भरोसा करता हूँ ., विश्वास करता हूँ तुम अपने बच्चे को दूध पिला कर पुनः वापस आओ गी ।
में यही पर आने का इंतजार करूंगा ।
यह सुनते ही बगुला गाय दौड़ते - दौड़ते अपने गौशाला में जाती है। वहा पर भूख से व्याकुल बछड़ा जोर जोर से चिल्ला रहा था।
अपने बछड़े के पास पहुंच कर उसे खुब प्यार करती चुमती - चाटती और दूध पिलाती ,दूध पिलाने के बाद बच्चे से बोलती की मैं वन में जा रही हूँ
वन जाने का कारण अपने बच्चे को पूरा वृतान्तों को सुनाई जंगल में क्या क्या हुआ तब बछड़ा कहता आप मत जाओ मैं आपके बदले चला जाता हुं , उस जंगल राजा का आहार बन जाता हूं
तब बहुला गाय कहती नही बेटा तुम अभी छोटे हो तुमने अभी दुनिया देखा भी नही
मालिक बहुत अच्छा हैं हर तरह से तुम्हारा देख भाल करेंगें पर बछड़ा कुछ नही सुनता कहता मैं भी आपके साथ जाऊंगा जिंद करता है।
तब मां अपने बच्चे को लेकर आगे आगे अपना चलती पीछे पीछे बछड़ा चलते चलते वन के पास आ कर जहा पर शेर बैठा रहता है। वही पहुंच कर कहती है। आप अपना निवाला अब मुझे बना सकते हैं । तब बछड़ा कहता है। नही मुझे अपना निवाला बना लो मांको नही दोनो इसी बात पर बहस करते है। यह देखकर शेर का दिल पिघल जाता है। मा बेटा का प्यार देख उन दोनों को आजाद करता है। और कहता है। की मैं तुम्हारे भक्ति की परीक्षा ले रहा था। मैं शेर नही हूं मैं शंकर जी हूँ यह कहकर अपना अद्भुत रूप दिखता है।
बहुला गाय का वचन सत्य रहता है
बहुला गाय घर आती है। ब्राम्हण उसको प्यार करता है। उसकी आरती उतारता है
कहता है। आप साक्षात् लक्ष्मी हो जब से तुम आई हो मेरा घर स्वर्ग बन गया है घर में सुख समृद्धि का वास हुआ है। धन्य हो मां तुम
तब से लेकर आजतक बहुला गायकी पूजा हर घर घर में होती है।
जैसे बहुला गाय का भाग्य जगा (फिरा ) उसको नया जीवन प्राप्त हुआ अपने बच्चे के लिए ठीक सभी सुखी रहें सबका बच्चा स्वस्थ , निरोगी और दीर्घायु हो बहुला माता की कृपा सभी समस्त बचों पर बनी रहे दीर्घायु हो , आयुष्मान हो तेजस्वी हो बहुला माता की जय
आज के दिन गाय की दूध क्यों नहीं पिते
पहला कारण हम उनकी पूजा करते है
दूसरी कारण जिस गाय की पूजा करते है उसकी हम रक्त नही पिय सकते क्योकि वह श्वेत रक्त कहलाता है। इस लिएभैसी का दूध उपवास के दिन सेवन करते है
जो पूजा विधि और कहानी में त्रुटि हुई हो उसे हमारी विदुषी संखिया मार्ग दर्शन दे सकती हैं
यही पाटा को रख हम हल षष्टी माता की पूजा करते है। कही कही पर माता की मूर्ति मिट्टी से बना कर उसकी पूजा करते है पर हम लोग सिर्फ गाय बछड़ा , ग्वाला ., शंकर बाध की ही पूजा करते है अपना अपना राज्य और अपना अपना विधि सब अलग अलग तरीके से करते है। पर पूजा एक ही देवी देवताओं की होती नाम एक रहता है। पूजते . सभी अपनी परम्परा के अनुसार रीति रिवाज के साथ
पूजा करने की
जय माता की
आशा ठाकुर
अम्लेश्वर
मात्राओं पर ध्यान ना देवें
🙏🙏
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