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सागरिका की वासन्तिक काव्य गोष्ठी - सागरिका परिवार


*सागरिका की वासन्तिक काव्य गोष्ठी* 
 बसन्तपंचमी की पूर्व संध्या दिनांक -४ -२-२०२२ को सागरिका साहित्यिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जायेगा । हमारे सभी वरिष्ठ  आत्मियजनो का आशीर्वाद सहयोग ही सागरिका मंच का स्वाभिमान है 
आप सभी रचनाकार स्वेकक्षिक रूप से जुड़ना चाहते है तो अपनी पास पोर्ट साइज़ फ़ोटो अपना फ़ोन नम्बर जल्द से जल्द भेजे आज कोलार्ज रूप रेखा तैयार फ़ोटो क्रमांक के अनुसार तैयार की जायेगी !
संचालिका"माँ सरस्वती" सागरिका साहित्यिक विधा श्रीमती अनिता शरद झा 
 शाम पांच बजे से सात बजे तक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में सागरिका परिवार की सभी सदस्यों का तहे दिल से स्वागत है। यह कार्यक्रम वाट्सएप पर रखा गया है। सभी उम्र की माताओं, बहनो, बालिकाओं से निवेदन है। आप सभी क्रमांनुसार  अपनी अपनी रचनायें रिकॉर्ड करके तैयार रखें जब आपका क्रम आवे और आपको पटल पर आमंत्रित किया जाए अपने नाम के साथ फोटो,  ऑडोयो    तथा टाइप की हुई वही रचना इन सभी को एकसाथ पोस्ट करें।
 -अनिता शरद झा समस्त रचनाकार परिवार प्रतिभागी सहमति निवेदित है 
नाम क्रमांक के अनुसार आगे बढ़ाते जाये 
सरस्वती बंदना  
१) अल्पना झा 
राज गीत  
२) श्रीमती आशा ठाकुर 
३) श्रीमती सिंधु झा 
४) श्रीमती वन्दना झा 
५) श्रीमती पल्लवी झा 
६) श्रीमती अर्चना उमेश झा
७ ) श्रीमती प्रभावरी झा
८) श्रीमती निशी मिश्र
९) श्रीमती रुचि झा
१०) श्रीमती सतरूपा मिश्र
११)श्रीमती अनुसूइया झा
१२) श्रीमती अनिता शरद झा
१३ - श्रीमती नीता झा

आया है ऋतुराज बसंत
 रंग बिरंगी प्रकृति ने बिखेर दिया है रंग
 आया है ऋतुराज बसंत

श्रीमती अल्पना झा
 मुरझाई प्रकृति को प्रसन्नता का उपहार मिला
 रंग बिरंगी छटा बिखेरी
   कंण कण का मनुहार किया
         आया आया है ऋतुराज बसंत
 पीले सरसों के पुष्प पल्लवित हुए
                पीहर का रंग
 निखरित हुए
                 आया आया ऋतुराज बसंत
 कोयल की मीठी बोली ने प्रियतम को संदेश दिया
       रंग बिरंगी बसंती रंगो ने
         तन मन को रस मंडित किया
 आया है ऋतुराज बसंत
           ठंडी ठंडी हवा के झोंकों ने 
               ह्रदय तन को झकझोर दिया
               मन में छुपे अनुराग को
                पुनः पुनः जागृत किया
 आया आया है ऋतुराज बसंत
        टेसू के पीले फूलों ने आम के सुंदर बोरो ने
          धरा का मुकुट शृंगार किया  
           आया आया ऋतुराज बसंत
          मां शारदे की वीणा से सप्त स्वरों झंकार हुआ 
              जागो जागो हे मानव करो ज्ञान का दान
           धरा पर अमृत पीयूष बहा
 का मानव जगत का करो कल्याण
            आया आया है ऋतुराज बसंत
             उज्जवल कर मन हृदय को
                निश्चल पतित पावन करो
              मन के अंधकार को दूर कर ज्ञान दीप प्रज्वलित करो
 आया आया है ऋतुराज बसंत 


 सरस्वती वन्दना 

जय जय माता शारदे 
जीवन-पुष्प निखार दे .
जय जय माता शारदे ...
श्वेत-शुभ्र वसना , धवल अंग रचना 
मुख पे तेज है, वाणी ओजस 
नवल कंठ उदगार दे ...  (१) 
मुख पे निर्झर हास , जैसे जीवन-राग 
कर में पुस्तक , और है वीणा 
नव-लय, नव-छंद, ताल दे ... (२)
मिट जाए अज्ञान, दे विद्या का दान 
ज्योतिर्मय हो जीवन-संध्या 
तिमिर बढ़ से तार दे ... (३)
ओ हँसासिनी माँ , फैला ऐसा ज्ञान
मिट जाए अंतस की तृष्णा 
मन को नव आकार दे ... (४) 

---------   शुभ्रा ठाकुर 
          रायपुर, छत्तीसगढ़

श्रीमती आशा ठाकुर जी
बसंत उत्सव 
..रंग बसंती मन बसंती छा गया 
मन भावन , मन पावन बसंती छा गया 
दिल दिवाना दिल मस्ताना मौसम आ गया 
हर  कलियाँ हंस हंस गाती 
पूरवा पंख डोला डोला दिया 
महक उठी है चहक उठी है डाली डाली चिडियाँ शोर माचा रही 
भंवरे मतवाले फूलों पे मंडरा रही 
खिल गयी हर एक कली डाल डाल पर छाई चमन उपवन में 
रंग बसंती मन बसंती छा गयी 
मन भावन मन पावन बसंती आ गया 
दिल दिवाना दिल मस्ताना मौसम छा गया 
सोलह शृंगार से क्यारी सजी 
रस पीने को भंवरे आ गये 
छाई मस्ती पवन में 
उड़ते पतंग भरते गगन में रंग 
रंग बसंती मन बसंती छा गया मन भावन मन पावन बसंती आ गया 
दिल दिवाना दिल मस्ताना मौसम छा गया 
नई उमंग नयी तरंग जीवन में छा गया 
कैसे उड़ते बसंत में रंग लाला पीला नीला रंग छा गया  
रंग बसंती मन बसंती छा गया 
मन भावन मन पावन  बसंती आ गया 
दिल दिवाना दिल मस्ताना मौसम छा गया  
चहु ओर ढोल नगाड़ा शोर मच गया माँ शारदे की  जय जयकारा अब गूंज गया 
रंग बसंती मन बसंती छा गया 
मन भावन मन पावन बसंती आ गया ।
दिल दिवाना दिल मस्ताना  मौसम आ गया
आशा ठाकुर 
अम्लेश्वर छत्तीसगढ़ 🙏🙏


श्रीमती पल्लवी झा
ऋतु बसंत  का आ गया,मन हर्षित है आज ।
घोड़ी चढ़कर आ रहा ,बनकर वर ऋतुराज ।।

वसुधा बनकर के वधू ,खूब करे श्रृंगार 
 हरियाली छाने लगी   ,नाच उठा संसार 

भौरें गुंजन कर रहें ,कूके कोयल डाल ।
कलियाँ सुंदर खिल रहीं,हवा बदलती चाल ।।

पीली सरसों यूँ लगे ,वधू हुई तैयार ।
पहन पीत साड़ी धरा , फेरे को तैयार ।।

नदियाँ  कल-कल बह रही ,ज्यों नुपूर की ताल ।
चटक रंग टेसू खिले , होंठ हुये हो लाल ।


पल्लवी झा (रूमा)
रायपुर छत्तीसगढ़
बसंत पंचमी

श्रीमती अर्चना उमेश झा
🥦🙏🏻लो  आगया वसन्त 🙏🏻🥦

लो आगया वसन्त मनभावन ,
प्रियतम ऋतुराज वसन्त के आने से ,
प्रकृति का श्रृंगार हुआ ।

मंद मंद वासन्ती पवन ने ,
शर्माती , सकुचाती , अठखेलियाँ करती ,
अपने नव यौवन को झलकाती 
दुल्हन बनी प्रकृति को छुआ ।
ऋतुराज वसन्त के आने से , 
प्रकृति का श्रृंगार हुआ ।

मिलकर अपने ऋतुराज वसन्त से ,
भांति भांति के रंगों से खिलकर , 
नव कोपलों का उदगार हुआ ।
ऋतुराज वसन्त के आने से ,
प्रकृति का श्रृंगार हुआ ।

दोनों मिलते प्रणय मगन हैं ,
पीली सरसों अमराई बौराई है ,
लगता जैसे अल्हड़ता से ,
प्रकृति का आँचल ढलका हुआ ।
ऋतुराज वसन्त के आने से , 
प्रकृति का श्रृंगार हुआ ।
प्रकृति का श्रृंगार हुआ ।

स्वरचित 
अर्चना उमेश झा ✍️
श्रीमती प्रभावरी झा

*पूनम  का चांद*
पूनम का चांद अम्बर में,
हसीन मुस्कुराता है,
श्वेत ,शीतल सी आभा संग,
देखो गुनगुनाता है।
पूनम का चांद.........
मुदित मन है आज देखो,
मरमरी वादियां देखो,
नयनाभिराम सुंदरता,
आज अम्बर लुटाता है।
पूनम का चांद.....
मिलन की सौम्य बेला में,
प्रिये! ढूंढे नजर तुमको,
अनगिनत दीप तारों से,
गगन रौशनी लुटाता है। पूनम का चांद....
महकती रात रानी है ,शिकायत  भी पुरानी है इशारा चांद का हर आज,
नेह से छलछलाता है।
पूनम का चांद...
घने तरुवर के पत्तों से,
छनक छन रौशनी छन के  रजत बारीक तारों से,
बदन गहने पिरोता है।
पूनम का चांद......
मिलन है आज प्रियतम से,
नहीं विरहा की बेला है,
पूनम का चांद दे आशीष,
अमिय बूंदें छलकाता है।
पूनम का चांद अम्बर में
हसीन मुस्कुराता है,
श्वेत शीतल सी आभा संग,
देखो गुनगुनाता है।
पूनम का चांद....
निशि मिश्रा मंडला
वसंत पंचमी

श्रीमती अनुसुइया झा

श्रीमती रुचि झा
माह हो माघ का, तिथि हो शुक्ल पंचमी

तब आता है उत्सव,  वसंत पंचमी।


दिनविशेष वो, शब्दों में न  वर्णित न हो

अवतरण दिन है, माँ वीणा पाणी का।

मिला था उपहार मानवजाति को

शब्दो की शक्ति से,  स्व-अभिव्यक्ति का।

यही है उत्सव ,वसंत पंचमी का।


पीले वस्त्र, गायन,वादन, और

सर्वोपरी है मा शारदा का वंदन।

इस उत्सव का उत्साह है कितना अलग

शालीनता से भरी  पूजा-थाल, 

और नमन माँ शारदा का

बिलकुल अलग है ये उत्सव वसंत पंचमी का। 


वसंत पंचमी लाती है वसंत

सर्दियों के कदमों का लड़खड़ाकर लौटना है वसन्त

सुनहली धूप का अपने तेज को हासिल करना है वसंत.

कविवृन्द का प्यारा है वसंत

ऋतुओं का राजा है वसंत, 

शुभ मुहूर्त है वसंत, आद्य लकड़ी होलिका

यही है उत्सव वसंत पंचमी का।


वीणा वादिनी की गूंज से

अबोल किताबों के बोलते शब्दों से

ज्ञान का उपहार देती है हंसवाहिनी

जलज़ थामे अपने निःस्वार्थ करों में

क्या अर्पण तुम्हें करें हम,बना रहे आशीष तुम्हारा

यही मांगता है मन, क्योंकि उत्सव है वसंत पंचमी का।


इस वसंत

बस अंत करो माँ, विकट संकट का

विमुख हो रही पीढ़ी, बदलने लगा स्वरूप ज्ञान का

किताबें बन गईं e बुक, और  चुनौति खडी है

संस्कारो के सम्मुख

युग बना तकनीकी है, मानवता हो गई 

सन्मार्ग से विमुख

वस अब अंत हो विकरालता का

गूंजे सिर्फ उत्साह और महके सुगंध सत्कार्य   का

बना रहे सौंदर्य बसंत पंचमी के त्योहार का।
रुचि झा



आ रही है रितु बसंत
मन मैं है इच्छाएं अनंत।
कहीकोई प्रेम में पड़ा बावरा है 
कोई-कोई है भक्ति में संत
आ रही है रितु बसंत।
चिड़ियों की चहचहाहट में है बसंत
आने वाले फागुन की आहट में है बसंत
सर्दी की हल्की गर्माहट में है बसंत
पीले फूलों की मुस्कुराहट में है बसंत
गर्मी की हल्की सी ठंड में है बसंत
सारी ऋतु में सबसे प्यारा है बसंत
आ रहा है रितु बसंत आ रहा है रितु बसंत
शहनाई की गूंज में है बसंत
आम की बौरों में है बसंत
गर्मी की हल्की ठंडक में है बसंत
यह हरि हरियाली खेतों में है बसंत
हां यही है बसंत हां यही है बसंत।
इस रितु वसंत में खो जाएं तो किसी को किसी से शिकायत न हो
क्या खो चुके हैं क्या‌ है पा लिया की जरूरत ना हो
आशाओं के आकाश में हर रितु वसंत की हो
किसी भी अपने ही खुशियों का अंत ना हो
यही रितु बसंत की हो यही  रितू बसंत ही हो
स्वरचित
शैलजा झा।


शीर्षक: आ रहे ऋतुराज वसंत

पीली धरती लगा उबटन,
              दे दी अपना मन।
हो रहा विवाह धरती का,
          आ रहे ऋतुराज वसंत।
निकले बाराती झूम झूम,
       नाचे धनिया पालक संग।
आगे आगे  चली बयार ,
        पीछे चलें दुल्हा है वसंत।
आम देख बोरई है,
      झर झर फूल बरसाईं है।
पीटते हैं ताल पल्लव,
        मंद हवाओं के संग।
फूलों के पहन परिधान,
           युवतियां भी आई हैं।
भंवरे गुनगुना रहे हैं,
            कलिया मुसकाई हैं।
कूक कर कोयलिया काली,
                 बननी गा रही है।
खड़कते पत्ते पीलों ने,
         मधुर धुन भी बजाई है।
शिशिर से कांपी थी धरती,
        वसंत ने  प्रीत जगाई है।
आया ऋतुराज वसंत ,
          गेहुं में बाली आई है।
टेशू ने दहक कर ,
          क्रोध अपना जताई है।
 बना के रंग लाल,
              होली में बुलाई है।
आया मधुमास है,
           प्रीत सबने जताई है।
आया मधुमास वसंत,
       लेकर प्रीत अपने संग।
पहन पीले वसन,
    सरसों बनी  है दुल्हन।
पके हैं सारे फल,
     धनिया महमाहाई है।
गुनगुनाते भंवरे देख,
        कलियां फुसफुसाई है।
मदमांते फसलों   को
              पवन ने  ही भगाई है।

वंदना झा रायपुर छत्तीसगढ़
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

श्रीमति सतरूपा मिश्र
सुंदर ,सुकोमल, सुलोचना ,और 
लावण्यमय  तुम।
तनुजा, दुहिता,तनया, 
अंगजा मेरी छाया सी।
जगदंबा, कल्याणी, महागौरी 
कालिका सी  तुम..!

चंचला,कमला, अब्धिजा, 
अब्जा, ऐश्वर्य मेरी तुम ।
प्रेम और खुशियों की समृद्धि 
बरसाओ तुम...!


प्रीति, मोह, स्नेह अनुराग 
दुलार सी तुम
कोकिला काकपाली, कुहुकिनी, 
बसंतदूत सी तुम।
हर ऋतु  को बसंतमय बनाओ तुम...!

करुणा ,प्रसाद ,अनुग्रह, दया बरसाओ तुम ।
आंगन, बाखर ,  अजीरबाड़ा में...!
तुम सरिता सी तरंगिणी सी, मेरे हृदयांचल में ,
कल कल सी ,प्राण दायिनी गंगा सी ,
प्रेम सरोवर सी लहराओ  तुम..!

                (सतरूपा की कलम से )



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हास्य होता है। थोड़ी देर के लिए गुझिया निकला तो लड़का प प्ची निकला तो लड़की फिर सभी सुहागिनी यों को भोजन करवाए आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून से ब्रश कर वही स्नानकर वही पूजा करते है। सभी महिला एक साथ मिलकर करती है। उन्ही में से एक महिला कथा सुनाती है। वहां पर जीउतिया उनका सोना या चांदी का बना लहसुन आकृति का रहता है। हर साल जीउतिया सोनार के यहा जा कर बढ़ाते है। उसी जीउतिया को हाथ में रख कथा कहती है। और हर महिला के बच्चों का नाम लेकर आर्शीवाद देती है। ये उनका अपना रिति है। परन्तु हमारे छत्तीसगढ़ में और हम अपने घर पर जिस तरह पूजा पाठ करते हुए देखा है। उसे ही हम आप सबके बीच प्रस्तुत किया है। त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी आपका अपना आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड छत्तीसगढ़ रायपुर 🙏🙏श्री गणेशाय नमः सधौरी की तैयारी गौरी गणेश + कलश चंदन रोरी कुमकुम घूप दीप कपूर अगरबत्ती नारियल भोग गौर साठ का डिब्बा रेहन चावल का पीसा हुआ हाथा देने के लिए एवं थाली कांसे की थाली मेवा काजू किशमिश बादाम छुहारा आदि ड्राई फूड मौसम अनुसार फल 60,आम का पत्ता मिट्टी का दिया 60 , चुड़ी सिन्दूर खड़ी हल्दी , खड़ी सुपारी 60 हल्दी 60 सुपारी जनेऊ बेसन शंख पाटा , पान का बिड़ा शहद नया वस्त्र पहने के लिए गोत्र के अनुसा मिट्टी का बैल , गाय , कछुआ जैसा हो गोत्र उसके अनुसार बनाना ओली में डालने के लिए पिली चांवल हल्दी सुपारी रुपया या सिक्का सुहागिनों को भी ओली डालने के लिए 60 गुझिया , अनरसा , दहरोरी मिठाई खोये का बना हुआ पूजा के लिए पाटा या चौकी , बैठने के लिए पाटा गठबंधन के लिए घोती गठबंधन करने के लिए थोड़ी सी पीली चांवल एक हल्दी एक सुपारी एक रुपय का सिक्का फूल दूबी डालना और गठबधन करना है। दूबी फूल फूल माला दूबी गौरी गणोश को चढ़ाने के लिए अर्थात् गणेश जी को चढ़ाने के लिए दमाद ,या बेटा के पहने के लिए जनेऊ बहू या बेटी के लिए सोलह शृंगार गजरा आदि कांसे की थाली में भोजन फल , मेवा शहद रखने के लिए

नकुल नवमी की कहानी  🙏🙏💐💐  सावन शुक्ल पक्ष नवमी का व्रत रखा जाता है। अपने बच्चों के लिए उनके सुख , समृद्धि एवं लम्बी आयु के लिए  मैंथि लों एवं और अन्य वर्ग जैसे हमने देखा है। बनिया कायस्त आदि भी अपने पद्धति के अनुसार इस देवी की पूजा करते है। उनका नियम कुछ दुसरा है। हमारा पद्धति कुछ इस प्रकार है।  नवमी की मूर्ति बनाई जाती है। कागज में और दिवाल में चिपकाई जाती है।  फुल गौड़ा चौक कलश कं लिए और सीता चौक माता के लिएठीक प्रतिमा के नीचे चौक डाले और पाटा या चौकी रखें उसके ऊपर माता का पैर बनाएं दाहिना हाथ की ओर गौरी गणेश और कलश का चौक डाले कलश स्थापित करे  चौकी या पाटा के ऊपर प्लेट रखें  गौर साठ का पूजा पहले करें फिर गौरी गणेश कलश फिर माता को आव्हान करें चंदा , सूरज , शंकर पार्वती नकुल नवमी का ध्यान करके उनका पूजन करें       पूजा की तैयारी  नौ दिया  नौ खड़ी सुपारी , हल्दी , दो  . दो चुड़ी सभी दिया के ऊपर , सिन्दूर , अक्षत डालने के लिए  चंदन , रोरी , सिन्दूर , दुबी खुला फुल , अगर बती , धूप , दीप , नैवेद्य , नैवे...

छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राह्मण विवाह पद्धति आशा ठाकुर

चुनमाट्टी की तैयारी सर्व प्रथम घर के अंदर हाल या रूम के अंदर फूल गौड़ा चौक बनाए सिन्दूर टिक देवें उसके ऊपर सील बट्टा रखें उसमें हल्दी खडी डाले खल बट्टा में चना डाले सर्व प्रथम मां गौरी गणेश की पूजा करें उसके बाद सुहासीन के द्वारा हल्दी और चना कुटे सबसे पहले जीतने सुहागिन रहते है उन्हों ओली में चावल हल्दी सुपाड़ी डाले सिन्दूर लगाये गुड और चावल देवें और हल्दी और चना को पीसे सील के चारों तरफ पान का पत्ता रखें हल्दी सुपाड़ी डालें पान का सात पत्ता रखें पूजा की तैयारी गौरी गणेश की पूजा चंदन ,, रोरी '' कुमकुम '' गुलाल जनेऊ नारियल चढ़ाए फूल या फूल माला चढ़ाए दूबी . भोग अरती घूप अगर बत्ती वस्त्र मौली घागा वस्त्र के रूप में चढ़ा सकते है ये घर की अंदर की पूजा विधि चुलमाट्टी जाने के पहले की है। बहार जाने के लिए तैयारी सात बांस की टोकनी टोकनी को आलता लगा कर रंग दीजिए उसके अंदर हल्दी . सुपाड़ी खडी एक एक डाले थोड़ा सा अक्षत डाल देवें सब्बल '' या कुदारी जो आसानी से प्राप्त हो ,, सब्बल में या कुदारी में पीला कपड़ा के अंदर सुपाड़ी हल्दी और थोड़ा सा पीला चावल बाधे किसी देव स्थल के...