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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सागरिका के दैनिक आयोजनों के धन्यवाद ज्ञापन - सागरिका

श्रीमती श्वेता झा श्रीमती मोनिका झा श्रीमती सुभाषिणी झा श्रीमती रुचि झा श्रीमती साधना झा

सागरिका की पवित्र नदी माँ चन्द्रभागा पाक कला विधा की संयोजिता श्रीमति ऋचा ठाकुर, एवम सखियां

श्रीमती अंकिता झा श्रीमती आकांक्षा झा श्रीमती अनुजा झा कांकेर श्रीमती दामिनी झा गोंदिया श्रीमती कीर्ति झा श्रीमती कात्यायनी झा श्रीमती अंजना ठाकुर श्रीमती अनन्या ठाकुर श्रीमती प्राची कर्महे

सागरीका की पवित्र सरिता अलखनन्दा विधा संचालिका श्रीमती अर्चना उमेश झा जी विधा- फिल्मी, गैर फिल्मी क्लासिकल,सेमिक्लासिकल गाने

श्रीमती माया मिश्र श्रीमती आरती झा श्रीमती वंदना आलोक ठाकुर श्रीमती छाया निशांत झा श्रीमती सुषमा झा सुश्री श्रीया झा श्रीमती अर्चना ठाकुर श्रीमती श्वेता झा  श्रीमती ऋचा झा कवर्धा श्रीमती जयश्री ठाकुर

सागरीका की पवित्र सरिता काक्षी विधा "शिक्षा और विद्या "संचालिका श्रीमती सतरूपा झा एवं सखियां...

श्रीमती अर्चना ठाकुर चंगोराभाठा  श्रीमती आरती झा श्रीमती आभा मिश्र भिलाई श्रीमती रूमा ठाकुर श्रीमती अमृता झा कवर्धा श्रीमती नलिनी गोपी झा श्रीमती किरण  झा गोंदिया श्रीमती प्रणीता झा आनन्दनगर श्रीमती संध्या ठाकुर कटोरी

सागरीका की पवित्र नदी माँ नर्मदा विधा संचालिका श्रीमती भावना ठाकुर विधा - स्वस्थ रहें खुश रहें

सागरीका की पवित्र सरिता माँ नर्मदा विधा "स्वस्थ रहें खुश रहें" संचालिका -  श्रीमती भावना ठाकुर एवं सखियां -  श्रीमती  वंदना ठाकुर राजनांदगांव श्रीमती अर्चना ठाकुर चंगोराभाठा श्रीमती कुमकुम पाठक श्रीमती सविता ठाकुर श्रीमती रंजना ठाकुर श्रीमती निशा मिश्र १९ फरवरी नर्मदा जयंती  *मैं नर्मदा हूं* 🏵🏵🏵🏵 *अपने यहां जो जल आ रहा है इसका महत्व समझें,और व्यर्थ बहने से रोके*🙏🏻 मैं नर्मदा हूं। जब गंगा नहीं थी , तब भी मैं थी। जब हिमालय नहीं था , तभी भी मै थी। मेरे किनारों पर नागर सभ्यता का विकास नहीं हुआ। मेरे दोनों किनारों पर तो दंडकारण्य के घने जंगलों की भरमार थी। इसी के कारण आर्य मुझ तक नहीं पहुंच सके। मैं अनेक वर्षों तक आर्यावर्त की सीमा रेखा बनी रही। उन दिनों मेरे तट पर उत्तरापथ समाप्त होता था और दक्षिणापथ शुरू होता था। मेरे तट पर मोहनजोदड़ो जैसी नागर संस्कृति नहीं रही, लेकिन एक आरण्यक संस्कृति अवश्य रही। मेरे तटवर्ती वनों मे मार्कंडेय, कपिल, भृगु , जमदग्नि आदि अनेक ऋषियों के आश्रम रहे । यहाँ की यज्ञवेदियों का धुआँ आकाश में मंडराता था । ऋषियों का कहना था कि त...