छटवें दिन कात्यायनी माता को हरे रंग की चुनरी चढ़ता है। और माता को प्रसन्न करने के लिये शहद और पान का भोग लगाते है।
माँ कात्यायनी पार्वती माता की शक्ति से उतपन्न हुई हैं।माँ कात्यायनी को आसुरि शक्तियों का नाश करने वाली कहा गया है। माता भक्तवत्सल होती हैं इनकी आराधना करने से भक्त भय मुक्त होते हैं।
स्कंदपुराण में उल्लेख मिलता है कि माँ कात्यायनी भगवान ब्रम्हा, विष्णु, महेश की नैसर्गिक शक्ति से उतपन्न हुईं और माँ पार्वती द्वारा दिए गए सिंघ पर आरूढ़ हो महिषासुर का वध किया इसकारण माँ कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी भी कहते हैं। माँ कात्यायनी दोनों भंवों के बीच स्थित आज्ञा चक्र को नियंत्रित करती हैं। ध्यान में इसी आज्ञा चक्र को जागृत किया जाता है अतःयोग की विशिष्ट यवस्था ध्यान है।
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