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नवरात्र का पहला दिन माँ शैलपुत्री - सागरिका महिला सभा

दुर्गा जी की पूजन विधि
दुर्गा पूजन सामग्री-( वृहद् पूजन के लिए)
पंचमेवा, पंचमिठाई, रूई, कलावा, रोली, सिंदूर, १ नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, चौकी, कलश, आम का पल्लव ,समिधा, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, सुवर्ण प्रतिमा 2, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला |
शुद्धि एवं आचमन
आसनी पर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं ( बिना आसन ,चलते-फिरते, पैर फैलाकर पूजन करना निषेध है )| इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें -
"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम:|
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
इसके पश्चात अनामिका उंगली से अपने मत्थे पर चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
संकल्प- 
संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें –
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते(वर्तमान संवत), तमेऽब्दे क्रोधी नाम संवत्सरे उत्तरायणे (वर्तमान) ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे (वर्तमान) मासे (वर्तमान) पक्षे (वर्तमान) तिथौ (वर्तमान) वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथामिलितोपचारे गणपति पूजनं करिष्ये।
दुर्गा पूजन से पहले गणेश पूजन -
हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें|
और श्लोक पढें -
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।
हाथ में फूल लेकर-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आसनं समर्पयामि|
अर्घा में जल लेकर बोलें -
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि|
आचमनीय-स्नानीयं-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पयामि |
वस्त्र लेकर-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पयामि|
यज्ञोपवीत-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि |
पुनराचमनीयम्-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः |
रक्त चंदन लगाएं:
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः |
श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं|
सिन्दूर चढ़ाएं-
"इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः|
दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं|
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि |
मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र-
शर्करा खण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च|
आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें-
इदं आचमनीयं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः |
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि |
अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं-
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः फलं समर्पयामि|
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः द्रव्य समर्पयामि|
अब विषम संख्या में दीपक जलाकर निराजन करें और भगवान की आरती गायें।
हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, फिर तीन प्रदक्षिणा करें।
दुर्गा पूजन
सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि॥
आसन-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
अर्घ्य-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥
आचमन-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पयामि॥
स्नान-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पयामि॥
स्नानांग आचमन-
स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
पंचामृत स्नान-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥
गन्धोदक-स्नान-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
शुद्धोदक स्नान-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
आचमन-
शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि ॥ वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
सौभाग्य सू़त्र-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि ॥
चन्दन-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पयामि ॥
हरिद्राचूर्ण-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हरिद्रां समर्पयामि ॥
कुंकुम-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पयामि ॥
सिन्दूर-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि ॥
कज्जल-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पयामि ॥
आभूषण-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणानि समर्पयामि ॥
पुष्पमाला-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पयामि ॥
धूप-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापयामि॥
दीप-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शयामि॥
नैवेद्य-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं निवेदयामि॥नैवेद्यान्ते त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पयामि।
फल-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फलानि समर्पयामि॥
ताम्बूल-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पयामि॥
दक्षिणा-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दक्षिणां समर्पयामि॥
आरती-
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरार्तिकं समर्पयामि॥

क्षमा प्रार्थना----
न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥
परित्यक्तादेवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
वं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु ॥
आरती
दुर्गा जी की आरती (1)
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी ..
दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी ..
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी ..
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी ..
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी ..
मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी ..
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी ..
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी ..
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी ....
दुर्गा जी की आरती (2)
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ।।जय अम्बे गौरी...
मांग सिन्दूर विराजत टीको मृ्ग मद को ।
उच्चवल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको। जय अम्बे गौरी...
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गलमाला कंठन पर साजै।।जय अम्बे गौरी...
केहरि वाहन राजत खडग खप्पर थारी।
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दु:ख हारी।।जय अम्बे गौरी..
कानन कुण्डली शोभित नाशाग्रे मोती ।।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति।।जय अम्बे गौरी...
शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती ।
घूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ।।जय अम्बे गौरी...
चौंसठ योगिन गावन नृ्त्य करत भैरूं ।
बाजत ताल मृ्दंगा अरू बाजत डमरू।।जय अम्बे गौरी...
भुजा चार अति शोभित खडग खप्पर धारी ।
मन वांछित फल पावत सेवत नर नारी ।।जय अम्बे गौरी...
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति।।जय अम्बे गौरी...
श्री अम्बे की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावै।। जय अम्बे गौरी
🙏🌹सरला झा🌹🙏



ज्योतिष गणना - शुभवन्दन
   "🌹"घट स्थापन ""🌹
💐आश्विन  नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं💐
  17 अक्टूबर को अधिकमास  के पश्चात देवी साधना का पर्व आरंभ हो रहा है।
 तदनुसार,,,,
17 अक्टूबर 2020 ,शनिवार ,,प्रतिपदा तिथि ,,रात्रि में ,,01 ,03 AM से शुरू,,सूर्योदय ,6,,02,am को,,,,चित्रा नक्षत्र 11,,52,,AM तक ,,,चंद्र राशि तुला ,, सूर्य भी तुला प्रवेश । सुख, समृद्धि,शांति,के लिए 9 दिन ,नव रस, नव ग्रह , ऊर्जा ,,प्रकृति , देवी के 9 रुपों साधना ,तप ,के लिए अनुष्ठान का शक्ति पर्व है।
इसके लिए कलश ,घट , अखण्ड ज्योत स्थापन के लिए स्थिर लग्न उचित होगा।
1वृष ,,7,17,से,9,17,PM
2,सिंह,,,1,45,AM से 3,55,AM  रात्रि,
3 ,वृश्चिक , ,08,,18,AM,से,10,33,AM,तक 
4कुम्भ   2,,28,PM से ,4,,03,PM लग्न स्थिर है ।।
सुबह के समय वृश्चिक लग्न 
में चन्द्र व्यय भाव मे होगा ।

 इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ समय ,,
कुम्भ लग्न  होगा ,।

इसमें भी कुम्भ स्थिर नवांश 
सबसे अच्छा मुहूर्त 3  ,,20 PM से 3,, 32 pm तक है
 
कुम्भ लग्न ! कुम्भ याने घट!
 स्वाती राहु का नक्षत्र: राहु देवी का कारक ग्रह ,वह भी संप्रति वृष में ,स्वामी शुक्र स्वयं देवी का प्रतिनिधि !!! 
  
    इस वर्ष तो यह अद्भुत सुयोग बन रहा है
इस समय चन्द्र  भी भाग्य ,धर्म भाव मे होगा ,,राहु सुख भाव,गुरु लाभस्थ 
साधना ,तप ,पंचम ,नवम , का अद्भुत संयोग है ।
अतः 3,,20,से,3,,3 3  PM 
को घट स्थापना का सर्वश्रेष्ठ समय होगा।
🙏🙏
श्रीमती कल्पना झा 
अध्यक्ष प्राच्य विद्या शोधमण्डल राजनांदगांव


🙏🌹माता शैल पुत्री की कथा पद्य के द्वारा 🌹🙏

नवरात्रि का प्रथम दिन ,
भक्ति और साधना का दिन ।
हिमालय सुता मां शैल पुत्री 
पूजी जाती प्रथम दिन ।

भक्ति का रास्ता चुनते ,
अडिग विश्वास रख लक्ष्य तक 
पहुंचते भक्त जन ।
मां शैल सुता पूजी जाती प्रथम दिन ।

नाम इनका है सती ,
पिता प्रजापति , भगवान शंकर हैं पति ।
प्रजापति ने किया यज्ञ विचार ,
शिव को छोड़ , निमंत्रण भेजा द्वारों द्वार ।
सती का विश्वास अटल था ,
निमंत्रण आएगा मेरे भी द्वार ।

मना किया जब शिव शंकर ने ,
आया न कोई बुलावा है ।
उचित नही है उनका जाना ,
बुलावे पर ही जाना  है ।

जिद न छोड़ी माता सती ने ,
आग्रह करती बारम्बार ।
यज्ञ उत्सव में जाने को ,
सती कर रही नित मनुहार ।

दक्ष सुता के जिद के आगे ,
मान गए देवों के देव ।
देदी अनुमति जाने की  ,
निकल पड़ी सती जाने को ,
कहती जाती जय महादेव ।

पीहर आकर लगी देखने ,
कोई न उनसे आकर मिलता ,
कोई न करता उनसे बात ।
फेर लिए मुह सारे अपने ,
अपनो ने क्या दी सौगात ।

माता तो माता होती है ,
प्यार से आँचल फैलाया ।
आगे बढ़ कर अपनी सुता को ,
अपने गले लगाया ।

बहनें लगीं उपहास उड़ाने ,
कर रहीं शिव का तिरस्कार ।
स्वयं दक्ष ने अपमानित कर ,
किया नही अच्छा व्यवहार ।

यह देख दुखी हो गई सती ,
अपना और पति का अपमान ।
अगले ही पल कदम उठाया ,
दांव पर था , उन दोनों का मान ।

थी बहुत दुखी हो गई सती ,
अगले ही पल कदम उठाया ।
उसी कुंड में स्वाहा हो कर ,
अपना प्राण त्यागा और गंवाया ।

पता चला जब शिव शंकर को ,
भारी दुख से दुखी हुए वो ।
भड़की जब गुस्से की ज्वाला , 
शिव शंकर ने यज्ञ कुंड को 
अपने हाथों ध्वस्त ही कर डाला ।

सती ने फिर हिमालय के घर जन्म लिया ।
हिमालय राज ने नाम उनका शैल पुत्री किया ।

वास इनका वाराणसी काशी ,
प्रतिपदा में जो दर्शन करने जाता।
वैवाहिक जीवन की खुशियां मिलती , 
सारा कष्ट दूर हो जाता ।

वृषभ इनका है वाहन ,
वृषा रूढा कहलाती ।
बाएं हाथ कमल है इनके ,
और दांयें त्रिशूल लहराती ।

🙏🙏🌹जय मां शैल पुत्री 🌹🙏🙏
स्वरचित कृति
अर्चना उमेश झा ✍️
भवानी 🙏🙏🌹🌹 
मां दुर्गा को सर्व प्रथम शैल पुत्री के नाम से जाना  पूजा जाता  है । हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ "शैल पुत्री" इनका वाहन वृषभ है इसलिये यह देवी वृषा रूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी ने दाये हाथ मे त्रिशुल धारण किये  है और बाये हाथ मे कमल सूशोभित है यही  देवी प्रथम दुर्गा हैं। यही सती के नाम से भी जानी जाती है। सती अगले जन्म मे शैल राज हिमालय की पुत्री के  रूप मे जन्मी और  शैल पुत्री कहलाई पार्वती और हेमवती इन्ही देवी का नाम है।  मां शैल पुत्री का विवाह भी भगवान शंकर के साथ हुआ शैल पुत्री शिव जी की अद्धांगनी बनी इनका महत्व और शक्ति अनंत है। जय माँ शैलपुत्री 🙏🙏🌹🌹
सिंघाड़ाआटा के गुलाब जामुन - प्रियंका ठाकुर
4 कटोरी मावा

1/4 कटोरी सिंघाड़े का आटा

1 कटोरी चीनी

1/4 कटोरी दूध (जरूरत के हिसाब से कम,ज्यादा)

1/2 चम्मच इलायची पाउडर

1 चम्मच सोडा

350 ग्राम घी


मावा में सोडा,सिंघाड़ा आटा,इलायची पाउडर को मिलाए नरम आटा गूंथ कर 10-15 मिनट के लिए ढ़क कर रखें जब तक चासनी बना लेते हैं बर्तन में शक़्कर डाले और 1 कटोरी पानी डाले आंच को मध्यम रखें और चम्मच से लगातार चलाए

हमें तार वाली चासनी नही बनाना है बस दोनों अंगुलियों से देखें कि बनी चासनी चिपक रही हैं या नही चिपचिपापन आने से चासनी को आंच से उतार लें

गूँथे आटे को फिर से चिकना मले और सामान आकार की गोलाकार लोई बनाए

कडाई में घी गरम करें आंच को धीमे से मध्यम रखें लोई के बीच में और सावधानी से लोई को चिकना कर बंद करें ( ध्यान रखें आटे की गोली में दरार न हो

अब बने लोई को कड़ाई में डाले चम्मच से सावधानी से चारो ओर पलट कर सेके (एक बार में 3-4 लोई ही डाले) लाल होने तक सेकें
यदि काला गुलाब जामुन बनना चाहते हैं तो थोड़ा और काला होते तक सेकें

इन्हें गरम ही बनी चासनी में डाले सभी गुलाब जामुन को इसी तरह तैयार करें बीच में चासनी को और गुलाब जामुन को अलट पलट करें ताकि चासनी गुलाब जामुन में अच्छी तरह भर जाए ।


उपवास के लिए पनीर और सिंघाड़े के आटे के दही बड़े 
आवश्यक सामग्री

आधा कप पनीर

1 कप सिंघाड़े का आटा

1 कप उबले मैश आलू

1 छोटा चम्मच अदरक पेस्ट

1 बारीक कटी हरी मिर्च

2 कप फेंटा हुआ दही

आवश्यकतानुसार सेंधा नमक

1 बड़ा चम्मच जीरा पाउडर

तलने के लिए तेल 

विधि

- पनीर को कद्दूकस करके इसमें आलू, हरी मिर्च, अदरक और सेंधा नमक मिलाएं.
- फिर इसके छोटे-छोटे गोले बना लें.
- अब एक बर्तन में सिंघाड़े के आटे का घोल बनाएं.
- अब एक कड़ाही में तेल डालकर गर्म होने के लिए रखें.
- अब वड़ों को घोल में डुबोकर तेल में सुनहरा होने तक तल लें.
- एक बड़े बर्तन में दही डालकर  अच्छी तरह फेंट लें.
- एक प्लेट में भल्ला रखें और ऊपर से दही, जीरा पाउडर छिड़क कर खाएं और सर्व करें ।
        प्रियंका ठाकुर
मेकअप करने के लिए हमें जिन बेसिक चीज़ो की ज़रूरत होती है वो इस प्रकार हैं ........
1- मॉइस्चराइजर
2- प्राइमर 
3- कंसीलर (स्किनटोन के अनुसार)
4- बेस या फाउंडेशन (स्किनटोन के अनुसार)
5- कॉम्पेक्ट पाउडर 
6- ब्लशर 
7- लिपस्टिक 
आंखों के मेकअप के लिए 
1- बेस 
2- कंसीलर 
3- आई शैडो 
4- आई लाइनर 
5- मस्कारा 
6- सिल्वर ,गोल्डन शिमर
मेहंदी से सजे हाथ, पांव सभी डिजाइन रक्षा झा द्वारा निर्मित



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मधुश्रावणी व्रत २०२३ - सागरिका महिला मंच

श्री महालक्ष्मी व्रत कथा🪷🪷 एक समय महर्षि द्पायन व्यास जी हस्तिनापुर आए उनका आगमन सुनकर राजरानी गांधारी सहित माता कुंती ने उनका स्वागत किया अर्द्ध पाद्य आगमन से सेवा कर व्यास जी के स्वस्थ चित् होने पर राजरानी गांधारी ने माता कुंती सहित हाथ जोड़कर व्यास जी से कहा, है महात्मा हमें कोई ऐसा उत्तम व्रत अथवा पूजन बताइए जिससे हमारी राजलक्ष्मी सदा स्थिर होकर सुख प्रदान करें, गांधारी जी की बात सुनकर व्यास जी ने कहा, हे देवी मैं आपको एक ऐसा उत्तम व्रत बतलाता हूं जिससे आपकी राजलक्ष्मी पुत्र पौत्र आदि सुख संपन्न रहेंगे। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को स्नान आदि से निवृत हो शुद्ध वस्त्र धारण कर महालक्ष्मी जी को ताजी दूर्वा से जल का तर्पण देकर प्रणाम करें, प्रतिदिन 16 दुर्वा की गांठ, और श्वेत पुष्प चढ़कर पूजन करें, १६धागों का एक गंडां बनाकर रखें पूजन के पश्चात प्रतिदिन एक गांठ लगानी चाहिए, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माटी के हाथी पर लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित कर विधिवत पूजन करें ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करें इस प्रकार पूजन करने से आपकी राजलक्ष्मी पुत्र पौत्र...

*सागरिका की पवित्र सरिता माँ महानदी पूजा अनुष्ठान विधा - संयोजिका श्रीमती आशा ठाकुर, श्रीमती भावना ठाकुर, श्रीमती सपना ठाकुर श्रीमती रक्षा झा एवं सखियां.श्री गणेशाय नमः आज दिनांक 30,8,25 अगस्त दिन शनिवार मैं संतान साते की पूजा विधि बताने जा रही हूँ यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में संतान की दीघार्यु एव स्वस्थ होने की कामना करते हुए किया जाता है। जिनकी संतान नही होती वह भी यह व्रत नियम विधि के अनुसार करें तो अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है। प्रात : काल उठ कर स्नान करेंसारा घर का काम निपटा कर पूजा करने की जगह को साफ कर लेवें गंगा जल से शुद्धि करन करके जहा हमें पूजा करनी है। वहा पर सीता चौक डाले कलश के लिए फूल गौड़ा चौक रेहन अर्थात् चावल की आटा का घोल बनाए उससे चौक पूरे और चौक में सिन्दूर लगाए शंकर पार्वती उनके परिवार की स्थापना के लिए चौकी या पाटा रखें उसके ऊपर लाला या पीला कपड़ा बिछाए प्रतिमा या फोटों या फिर मिट्टी से शिव शंकर पार्वती एवं परिवार की मूर्ति बनाकर स्थापना करें पूजा की तैयारी : - परात में चंदन रोरी कुमकुम , फूल फुल माला , बेल पत्ती , दूबी अक्षत , काला तिल , जनेऊ , नारियल , शृंगार का समान वस्त्र कपूर , धूप, दीप आरती बैठने के लिए आसन गौरी गणेश कलश अमा का पत्ता लगा हुआ नैवेध फल नैवेध :- मीठा पूड़ी का भोग लगता है। उपवास : - संतान साते के दिन दिन भर उपवास रहते है। और पूजा करने के बाद मीठा पुड़ी ( पुआ ) खा कर व्रत तोड़ते है। इसके अलावा कुछ भी नही लेते जूस , चाय नीबू पानी पी सकते है। क्योंकि आज कल शुगर , बी पी की शिकायत रहती है। तो आप ले सकते है। अन्न नहीं लेते है। पूजा विधि शाम के समय गोधुली बेला में शिव पार्वती एवं उनकी परिवार की पूजा की जाती है। अच्छे से तैयार होकर सोलह शृंगार करके यह व्रत की जाती है। सर्व प्रथम गौरी गणेश कलश की पूजा उसके बाद गौर साठ की पूजा क्योंकि हम मैथिल ब्राम्हण है। तो हमारे यहा पर हर त्यौहार पर गौर साठ की पूजा की जाती है। उसी के बाद ही अन्य पूजा यह नियम महिलाओं के लिए ही है। गौर साठ पूजा के बाद शंकर पार्वती की पूजा जल से स्नान दूबी या फूल लेकर करें , फिर चंदन , रोरी कुमकुम लगाए पुष्प चढ़ाए , माला पहनाए संतान साते में सात गठान की मौली धागा से चूड़ा बनाए या जो सामर्थ है। वह सोने की कंगन या चांदी का कंगन बनाए एवं दूबी सात गाठ करके चढ़ाए कंगन की पूजा करें भोग मीठा पुड़ी लगाए जितना संतान रहता है। उनके नाम से सात पुआ गौरी शंकर एवं सात पुआ संतान के नाम से एक भाग ब्राम्हण को दान करें एवं परिवार को बांटे एक भाग जो सात पुआ है। उसे स्वय ग्रहण करें कंगन पहन कर ही प्रसाद को ग्रहण करें आरती : - पहले गणेश जी का करें फिर शंकर जी का दक्षिणा सामर्थ अनुसार संकल्प करें आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏.. श्री गणेशाय नमः ,,श्री गणेशाय नमः सधौरी की विधि यह विधि नौवा महीने में किया जाता है। पंडित जी से शुभ मुर्हुत पूछकर किया जाता है। सबसे पहले सिर में बेसन डालने का विधि होता है। पांच या नौ सुहागन के द्वारा सिर पर बेसन डाला जाता है। और चूकिया से जल सिर के ऊपर डाला जाता है। उसके लिए नव चूकिया चाहिए होता है। बेसन मुहूर्त के हिसाब से ही डाला जाता है। इसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए नहाने से पहले आंचल में हलदी + सुपारी + चांवल + सिक्का डालना चाहिए चावल का घोल से हाथ देते हुए उसमें सिन्दूर , पुषप दुबी डालें प्रत्येक हाथा में वघू या कन्या के द्वारा जहा पर बेसन डाला जायेगा वहां पर फूल गौड़ा चौक डाले चौकी या पाटा रखें फिर बेसन डालें और जल भी सिर के ऊपर डालें कम से कम पांच या सात बार सभी सुहागनियों के द्वारा उसके उपरान्त स्नान अच्छी तरह करने दो गिला कपड़ा पहने रहें किसी छोटी बच्ची या बच्चा जो सुन्दर हो चंचल हो उसके हाथ से शंख में कच्चा दूध और पुष्प डाल कर भेजे बालक और बालिका को अच्छी तरह से देख र्ले उनसे शंख और दूध लेकर भगवान सूर्य नारायण को अर्ध्य देवें इधर उधर किसी भी को ना देखें सूर्य नारायण को प्रणाम करें पूजा रूम में प्रवेश करें बाल मुंकुद को प्रणाम करें कपड़ा नया वस्त्र धारण करें शृंगार करें आलता लगाए पति पत्नी दोनों गंठ बंधन करके पूजा की जगह पर बैठ जायें पूजा जैसे हम करतेप्रकार करे आरती करें भोग लगाए तन्त् पश्चात् जो परात में आम का पत्ता के ऊपर दिया रखें दिया में चावल के घोल से . + बनाये सिन्दूर लगाए हल्दी सुपाड़ी सिक्का चुड़ी दो रखें प्रत्येक दिये में सिन्दूर की पुड़िया रखें गुझिया रखें उसे भोग लगा कर पूजा के बाद प्रत्येक सुहागिनों को आंचल से करके उनके आचल में दें । फिर पूजा स्थल पर कुश बढ़ाओं चौक डाले पाटा रखें उसके ऊपर गाय + बैल + कहुआ को गोत्र के अनुसार रखें बैले हो तो घोती आढ़ऐ गाय हो तो साड़ी पूजा के बाद कांसे के थाली में बनी हुई समाग्री को पांच कौर शहद डाल कर सास या मां के द्वारा पांच कौर खिलाए उसके पहले ओली में पांच प्रकार का खाद्य समाग्री डाले जैसे गुझिया अनारस फल मेवा डालें और छोटे बच्चे के हाथ से निकलवाए हास्य होता है। थोड़ी देर के लिए गुझिया निकला तो लड़का प प्ची निकला तो लड़की फिर सभी सुहागिनी यों को भोजन करवाए आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून से ब्रश कर वही स्नानकर वही पूजा करते है। सभी महिला एक साथ मिलकर करती है। उन्ही में से एक महिला कथा सुनाती है। वहां पर जीउतिया उनका सोना या चांदी का बना लहसुन आकृति का रहता है। हर साल जीउतिया सोनार के यहा जा कर बढ़ाते है। उसी जीउतिया को हाथ में रख कथा कहती है। और हर महिला के बच्चों का नाम लेकर आर्शीवाद देती है। ये उनका अपना रिति है। परन्तु हमारे छत्तीसगढ़ में और हम अपने घर पर जिस तरह पूजा पाठ करते हुए देखा है। उसे ही हम आप सबके बीच प्रस्तुत किया है। त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी आपका अपना आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड छत्तीसगढ़ रायपुर 🙏🙏श्री गणेशाय नमः सधौरी की तैयारी गौरी गणेश + कलश चंदन रोरी कुमकुम घूप दीप कपूर अगरबत्ती नारियल भोग गौर साठ का डिब्बा रेहन चावल का पीसा हुआ हाथा देने के लिए एवं थाली कांसे की थाली मेवा काजू किशमिश बादाम छुहारा आदि ड्राई फूड मौसम अनुसार फल 60,आम का पत्ता मिट्टी का दिया 60 , चुड़ी सिन्दूर खड़ी हल्दी , खड़ी सुपारी 60 हल्दी 60 सुपारी जनेऊ बेसन शंख पाटा , पान का बिड़ा शहद नया वस्त्र पहने के लिए गोत्र के अनुसा मिट्टी का बैल , गाय , कछुआ जैसा हो गोत्र उसके अनुसार बनाना ओली में डालने के लिए पिली चांवल हल्दी सुपारी रुपया या सिक्का सुहागिनों को भी ओली डालने के लिए 60 गुझिया , अनरसा , दहरोरी मिठाई खोये का बना हुआ पूजा के लिए पाटा या चौकी , बैठने के लिए पाटा गठबंधन के लिए घोती गठबंधन करने के लिए थोड़ी सी पीली चांवल एक हल्दी एक सुपारी एक रुपय का सिक्का फूल दूबी डालना और गठबधन करना है। दूबी फूल फूल माला दूबी गौरी गणोश को चढ़ाने के लिए अर्थात् गणेश जी को चढ़ाने के लिए दमाद ,या बेटा के पहने के लिए जनेऊ बहू या बेटी के लिए सोलह शृंगार गजरा आदि कांसे की थाली में भोजन फल , मेवा शहद रखने के लिए

अनंत चतुर्दशी की कथा  हाथ में फूल , अक्षत एवं जल ले कर कथा सुने  प्राचीन काल में सुमंत नामक एक ब्राम्हण था। जिसकी पुत्री सुशीला थी। सुशीला का विवाह कौडिन्य ऋषि से हुआ ।  जब सुशीला की बिदाई हुई तो उसकी विमाता कर्कशा ने कौडिन्य ऋषि को ईट पत्थर दिया रास्ते में जाते समय नदी पड़ा वहा पर रुक कर कौडिन्य ऋषि स्नान कर संध्या कर रहे थे। तब सुशीला ने उन्हें अनंत  चतुर्दशी की महिमा का महत्व बताया और 14, गांठ वाली  धागा उनके हाथ पर बांध दी जिसे सुशीला ने नदी किनारे प्राप्त की थी।  कौडिन्य ऋषि को लगा की उनकी पत्नी सुशीला उनके ऊपर जादू टोना हा कर दी है। वह उस धागे को तुरन्त निकाल कर अग्नि में जला दिया जिससे अनंत भगवान का अपमान हुआ । और क्रोध में आकर कौडिन्य ऋषि का सारा सुख समृद्धि , संपत्ति नष्ट कर दिए   कौडिन्य ऋषि का मन विचलित हो गया परेशान हो गए और आचनक राज पाठ जाने का कारण अपने पत्नी से पूछा तब उनकी पत्नी उन्हें सारी बातें बतायी यह सुनकर कौडिन्य ऋषि पश्चाताप करने लगा और घने वन की ओर चल दिए । वन में भटकते भटकते उन्हें थकान एवं कमजोरी होने लगा और मूछित होकर जम...

छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राह्मण विवाह पद्धति आशा ठाकुर

चुनमाट्टी की तैयारी सर्व प्रथम घर के अंदर हाल या रूम के अंदर फूल गौड़ा चौक बनाए सिन्दूर टिक देवें उसके ऊपर सील बट्टा रखें उसमें हल्दी खडी डाले खल बट्टा में चना डाले सर्व प्रथम मां गौरी गणेश की पूजा करें उसके बाद सुहासीन के द्वारा हल्दी और चना कुटे सबसे पहले जीतने सुहागिन रहते है उन्हों ओली में चावल हल्दी सुपाड़ी डाले सिन्दूर लगाये गुड और चावल देवें और हल्दी और चना को पीसे सील के चारों तरफ पान का पत्ता रखें हल्दी सुपाड़ी डालें पान का सात पत्ता रखें पूजा की तैयारी गौरी गणेश की पूजा चंदन ,, रोरी '' कुमकुम '' गुलाल जनेऊ नारियल चढ़ाए फूल या फूल माला चढ़ाए दूबी . भोग अरती घूप अगर बत्ती वस्त्र मौली घागा वस्त्र के रूप में चढ़ा सकते है ये घर की अंदर की पूजा विधि चुलमाट्टी जाने के पहले की है। बहार जाने के लिए तैयारी सात बांस की टोकनी टोकनी को आलता लगा कर रंग दीजिए उसके अंदर हल्दी . सुपाड़ी खडी एक एक डाले थोड़ा सा अक्षत डाल देवें सब्बल '' या कुदारी जो आसानी से प्राप्त हो ,, सब्बल में या कुदारी में पीला कपड़ा के अंदर सुपाड़ी हल्दी और थोड़ा सा पीला चावल बाधे किसी देव स्थल के...