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नवरात्री की समस्त जानकारियां - सागरिका महिला सभा

 महामाया माता की जय 
सबसे अच्छा मुहूर्त 3  ,,20 PM से 3,, 32 pm तक है
ज्योतिषाचार्य श्रीमती कल्पना झा जी द्वारा....
माता की स्थापना मुर्हुत देखकर की जाती है। सही मुर्हुत में स्थापना करने से हमें सुख समृधि प्राप्त होता है  
सबसे पहले हम कलश का चौक और माता की स्थापना करते है वहाँ पर चौक डाले फिर कलश जहाँ पर रखना है वहा चौक के ऊपर चावल या धान नीचे रखें और उसके ऊपर कलश में जल हल्दी सुपाडी खडी और सिक्का डाले उसके ऊपर परई या बडा दीया जिसमें ढेर सारा अधिक मात्रा में तेल या घी डाले ज्योत लम्बी समय तक नौ दिन तक जल सकें कलश में मौली घागा लपेटे और नीचे गौरी गणेश रखें फिर जहाँ पर माता की स्थापना करनी है उसी के दाहिने हाथ की तरफ नौग्रह बनाये सबसे पहले लाल सुती का कपड़ा बिछायें और उसके ऊपर चावल पीला वाला रंगा हुआ नौ ढेर बनायें फिर एक एक हल्दी सुपाडी नौ जगह पर रखें पान का पत्ता के ऊपर माता की प्रतिमा रखने के स्थान पर भी थोडा सा चावल डाले माता की पूजा करने के पहले सकल्प ले आप नौ दिन का व्रत्र करते है तो नव दिन का संकल्प चावल फूल दूबी जल लें कर कहे हे माता में अपने घर की सुख सम्पति और जिस मनोकामना के लिये आप कर रहे मन में कहें और संकल्प गौरी गणेश के पास छोड दें अपन मैथिल है तो स्त्री पूजा करती है वह सबसे पहले गौर साठ की पूजा करें फिर कलश की पूजा करें फिर माता की बीच में एक कलश माता के चौकी के ऊपर प्राय रखतें है जिसमें जल अक्षत सुपाडी हल्दी खडी हुई और सिक्का डाल कर उसके ऊपर नारियल रख कर मौलि घागा से लपेट कर लाला चुनरी ओढ़ाकर रखते है समान्य पुजा में यह सब नही रखते उसमें सिर्फ गौरी गणेश कलश और माता की पूजा करते है लेकिन जो नव दिन की उपवास रखकर पूजा करते है उनके लिये नियम है माता की पूजा करते है सबसे पहले स्नान गौरी गणेश कलश फिर चन्दन रोरी कुमकुम दुबी फूल अगरबती आरती नैवेध उसके बाद माता की पूजा स्नान चंन्दन कुमुकुम अक्षत (माता को दूबी नही चढती )फूल की माला लाला फूल चढाते है। अगरबती धूप दीप आरती करते है। अगर आप पाठ करते है तो पूजा के बाद पाठ करें और उसके बाद आरती करें फिर नैवेध हर दिन माता का अलग अलग स्वरूप होता है तो पूजा रोज जैसे करते है ठीक वैसी ही करें पर हर दिन चुनरी अलग अलग रंग की चढ़ती है।
        आशा ठाकुर


   नवरात्रि 
व्रत के मुख्य नियम 
नवरात्रि व्रत कर रहे हैं तो इन नियमो का पालन अवश्य करें 
1  आसनी में बैठकर ही पूजा करें ।  लाल रंग का अधिक प्रयोग करें।
2 चार समय सुबह दोपहर शाम रात पूजा करें 
3 नव दिनों तक अखंड दीप जलाएं 
4 दीप में या  तिल का तेल या शुद्ध घी  का प्रयोग करें  मिला जुला  तेल या ,घी औऱ तेल मिलाकर नही ।
5 प्रति दिन स्वच्छता का  ध्यान रखें ।
6 प्रतिदिन दुर्गा चालीसा अवश्य पढ़ें।
7  यथा सम्भव काले रंग का प्रयोग न करें 
8 किसी की निंदा चुग्गली अपमान न करें  और झूठ से बचें 
9 लहसुन प्याज़  तम्बाकू मांस मदिरा के सेवन से बचें 
10 चमड़े की वस्तुओं का इस्तेमाल न करें।
 11 घर मे कन्या आये तो खाली हाथ न जाने दें 
12 मेहमानों का आदर करें और खली हाथ न भेजें 
13 सम्भव हो तो व्रती निम्बू का प्रयोग न करे 
14 ब्रमचार्य का पालन करें ।
15 अनाज  का भोग न लगाएं।
 वन्दना झा  

नवरात्री के प्रथम दिन पूज्य माँ शैल पुत्री की जय
 जय माँ भवानी 🙏🙏🌹🌹 
मां दुर्गा को सर्व प्रथम शैल पुत्री के नाम से जाना  पूजा जाता  है । हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ "शैल पुत्री" इनका वाहन वृषभ है इसलिये यह देवी वृषा रूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी ने दाये हाथ मे त्रिशुल धारण किये  है और बाये हाथ मे कमल सूशोभित है यही  देवी प्रथम दुर्गा हैं। यही सती के नाम से भी जानी जाती है। सती अगले जन्म मे शैल राज हिमालय की पुत्री के  रूप मे जन्मी और  शैल पुत्री कहलाई पार्वती और हेमवती इन्ही देवी का नाम है।  मां शैल पुत्री का विवाह भी भगवान शंकर के साथ हुआ शैल पुत्री शिव जी की अद्धांगनी बनी इनका महत्व और शक्ति अनंत है। माँ को नव दुर्गा का रुप माना गया है उनको लाल नारंगी चुनरी चढाना चाहिये और भोग शुद्ध घी का लगता है माँ शैलपुत्री को घी का भोग लगाने से सारे रोग दूर हो जाते है 

दूसरा माँ ब्रम्हचारणी का रहता है उस दिन माँ को पीली चुनरी चढ़ती है और लम्बी उम्र की कामना के लिये दूध से बनी मिठाई चढ़ाते है; शक्कर मिश्री चढाते है।

तीसरे दिन माता चन्द्र घटा की पूजा होती है उस दिन माता को सफेद चुनरी चढ़ती है। उस दिन माता को खीर और मिठाई का भोग लगता है। इससेे समस्त दुखो का नाश होता है।
  चौथे दिन कृष्मांडा देवी की पूजा होती है उस दिन माता को भूरे रंग की चुनरी चढ़ती है। निर्णय और मानसिक शांति के लिये माल पुवा का भोग लगाना चाहिये जिसे घर में कृपा और निर्णय लेने के लिये माता से शक्ति प्राप्त होती है।
पाचवें दिन माँ स्कन्द माता को गुलाबी चुनरी चढ़ती है शारीरिक कष्ट निवारण के लिये केला का भोग लगता है।



छटवें दिन  कात्यायनी माता को हरे रंग की चुनरी चढ़ता है। और माता को प्रसन्न करने के लिये शहद और पान का भोग लगाते है।
सातवें दिन काल रात्रि माता को आसमानी रंग की चुनरी चढ़ता है और जो हमारे अंदर नाकारात्मक विचार आता है उसको दूर करने के लिये माता को गुड और नीबू का भोग लगता है। 
आठवें दिन महागौरी को अन्य घन देने वाली अन्नपूर्ण माता कहते है उन्हे नारियल का भोग लगता है।
नववें दिन माँ सिद्दी दात्री को कत्थे या चटक लाल रंग की चुनरी चढ़ाते है ये माता हमें समस्त सुखों को प्रदान देने में सिद्धियाँ प्रदान करती है अनहोनी से बचने के लिये माता को अनार का भोग लगाना चाहिये।
आप सभी को मेरा आदरणीय प्रणाम ,

आजकल ऐसे बहुत से खाद्य पदार्थ आ गए हैं ।ऐसी सामग्री आ गई है,जिन को बनाने में बिल्कुल समय नहीं लगता है ।वह फटाफट रेडी हो जाते है ।इन से हमें बचना चाहिए और हमें यह भी कोशिश करनी चाहिए कि, हम तले भुने भोजन का सेवन ना करें।
यह तो हमें प्रतिदिन प्रयास करना चाहिये,

आज हम चर्चा उपवास की कर रहे हैं।अगर एक संतुलित भोजन की बात करें तो उसमें कार्बोहाइड्रेट ,प्रोटीन , फाइबर ,फैट और वाइटमींस ये सभी होने चाहिए।

किंतु लोग इन चीजों पर ध्यान नहीं देते।वे सिर्फ स्वाद पर ध्यान देते हैं।अगर हम किसी भी रेस्टोरेंट में जाते हैं।
तो हम सबसे ज्यादा ध्यान इस बात पर देते हैं कि ,कौन सा व्यंजन अधिक स्वादिष्ट है। 

अगर आप उपवास में अपने भोजन को संतुलित बनाना चाहते हैं,तो आपको इन बातों को जरुर अपनाना चाहिए। 
1. एक छोटा प्लेट लें।
2.उसके आधे (1/2) भाग में अलग- अलग फलों को परोसे।(खरबूजा,  सेब, अनार, चीकू, लीची, केला,संतरा,मौसमी फल इत्यादि) 
3. अब (1/4 ) भाग में अपनी पसंदीदा डिश परोंसे। जो कम से कम से कम तेल के उपयोग से बनी हो। (साबूदाना खिचड़ी, सिंघाडा बरफी, पनीर भुरजी इत्यादि। 
4. ड्राई फ्रूट्स(1/4) ( बादाम, काजू, किशमिश, मूँगफल्ली,खजूर,अखरोट,पिस्ता इत्यादि) 
4.1 गिलास दुध ।
ध्यान रहे सबसे पहले आप दुध और फल का सेवन करें।
                         प्राँजलि ठाकुर


टिप्पणियाँ

  1. बहुत बेहतरीन । उपवास में संयम जरूरी है । जितनी सादगी हो उतना अच्छा होता है ।

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, शृंगार का समान वस्त्र कपूर , धूप, दीप आरती बैठने के लिए आसन गौरी गणेश कलश अमा का पत्ता लगा हुआ नैवेध फल नैवेध :- मीठा पूड़ी का भोग लगता है। उपवास : - संतान साते के दिन दिन भर उपवास रहते है। और पूजा करने के बाद मीठा पुड़ी ( पुआ ) खा कर व्रत तोड़ते है। इसके अलावा कुछ भी नही लेते जूस , चाय नीबू पानी पी सकते है। क्योंकि आज कल शुगर , बी पी की शिकायत रहती है। तो आप ले सकते है। अन्न नहीं लेते है। पूजा विधि शाम के समय गोधुली बेला में शिव पार्वती एवं उनकी परिवार की पूजा की जाती है। अच्छे से तैयार होकर सोलह शृंगार करके यह व्रत की जाती है। सर्व प्रथम गौरी गणेश कलश की पूजा उसके बाद गौर साठ की पूजा क्योंकि हम मैथिल ब्राम्हण है। तो हमारे यहा पर हर त्यौहार पर गौर साठ की पूजा की जाती है। उसी के बाद ही अन्य पूजा यह नियम महिलाओं के लिए ही है। गौर साठ पूजा के बाद शंकर पार्वती की पूजा जल से स्नान दूबी या फूल लेकर करें , फिर चंदन , रोरी कुमकुम लगाए पुष्प चढ़ाए , माला पहनाए संतान साते में सात गठान की मौली धागा से चूड़ा बनाए या जो सामर्थ है। वह सोने की कंगन या चांदी का कंगन बनाए एवं दूबी सात गाठ करके चढ़ाए 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हुई समाग्री को पांच कौर शहद डाल कर सास या मां के द्वारा पांच कौर खिलाए उसके पहले ओली में पांच प्रकार का खाद्य समाग्री डाले जैसे गुझिया अनारस फल मेवा डालें और छोटे बच्चे के हाथ से निकलवाए हास्य होता है। थोड़ी देर के लिए गुझिया निकला तो लड़का प प्ची निकला तो लड़की फिर सभी सुहागिनी यों को भोजन करवाए आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून से ब्रश कर वही स्नानकर वही पूजा करते है। सभी महिला एक साथ मिलकर करती है। उन्ही में से एक महिला कथा सुनाती है। वहां पर जीउतिया उनका सोना या चांदी का बना लहसुन आकृति का रहता है। हर साल जीउतिया सोनार के यहा जा कर बढ़ाते है। उसी जीउतिया को हाथ में रख कथा कहती है। और हर महिला के बच्चों का नाम लेकर आर्शीवाद देती है। ये उनका अपना रिति है। परन्तु हमारे छत्तीसगढ़ में और हम अपने घर पर जिस तरह पूजा पाठ करते हुए देखा है। उसे ही हम आप सबके बीच प्रस्तुत किया है। त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी आपका अपना आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड छत्तीसगढ़ रायपुर 🙏🙏श्री गणेशाय नमः सधौरी की तैयारी गौरी गणेश + कलश चंदन रोरी कुमकुम घूप दीप कपूर अगरबत्ती नारियल भोग गौर साठ का डिब्बा रेहन चावल का पीसा हुआ हाथा देने के लिए एवं थाली कांसे की थाली मेवा काजू किशमिश बादाम छुहारा आदि ड्राई फूड मौसम अनुसार फल 60,आम का पत्ता मिट्टी का दिया 60 , 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