सतत चलायमान जीवन की हर युग की अपनी विशेषताएं और अपनी मुश्किलें होती हैं जिनपर समय समय पर चिंतन मनन होना आवश्यक है ताकि वर्तमान स्थिति में थोड़े बहुत परिवर्तन करके सब सही किया जा सके।
बढ़ती आबादी, घटते साधन, प्रतिस्पर्धा की प्रबल होती भावना के चलते मन की खिन्नता का दुष्परिणाम परिवार और रिश्तों को कहीं न कहीं खोखला करता जा रहा है विशेषकर दाम्पत्य जीवन मे घुलती कटुता सभी रिश्तों को प्रभावित करती है। इसी विषय के साथ हम 8 - 7 - 2022 की रात 6 से 7 बजे तक सागरिका के पटल पर अपने अपने विचारों के साथ होंगे......
निवेदन है समय का ध्यान भी रखें और अपनी लेखनी प्रदत्त विषय पर ही केंद्रित रखें....
आलेख का विषय है-"इक्कीसवीं सदी और बिखरते रिश्ते" कारण, परिणाम, सुधार कैसे हो
तो चलिए शुरू करते हैं.....
जो भी सदसय इस विचारमंच में अपने विचार रखना चाहते हैं इस क्रम में अपना नाम लिखते जाएं जब आपका नाम लिया जाएगा अपने परिचय व फोटो के साथ आलेख प्रेषित करें ....
१ - श्रीमती शैलजा झा जी
२ - श्रीमती विजयलक्ष्मी ठाकुर जी
३ - श्रीमती कुमकुम झा जी
४ - श्रीमती मृणालीनी झा जी
५ - श्रीमती अल्पना झा जी
६ - श्रीमती सिंधु झा जी
७ - श्रीमती निशि मिश्र जी
८ - श्रीमती आशा ठाकुर जी
९ - श्रीमती अनंत अनुसुईया झा जी
१० - श्रीमती रुचि झा जी
११- श्रीमती वंदना झा जी
१२ - श्रीमती कल्पना झा जी
१३ - श्रीमती डॉक्टर आभा झा जी
संचालिका श्रीमती अनिता शरद झा जी
आयोजिका - श्रीमती नीता झा
21वी सदी और बदलते रिश्ते
_______________________
बदलाव प्रकृति का नियम है , जब तक पुराना जायेगा नही नया नहीं आ सकता।कुछ नही बदलता तो वो है पीढ़ी दर पीढ़ी दिया जाने वाला संस्कार। 21वी सदी में संचार क्रांति आने से कुछ सकारात्मक बदलाव देखने मिले है तो कुछ नकारात्मक।खैर, आज के विषय पर चर्चा करते है ।आजकल लोगो का जीवन इतना ज्यादा व्यस्त हो गया है की किसी को किसी के सुख दुख में जाने का समय नही है। बच्चे अपने सगे चचेरे ,ममेरे,फुफेरे और मौसेरे भाई बहनों तक को जानते है जिन्हे हम english में first cousin कहते है।second और third cousin क्या होता है वे ये नही जानते है। ये भी एक महत्वपूर्ण कारण है बिखरते रिश्तों का। दूसरा रिश्तों का बिखरता रूप बड़ रही तलाक की समस्या है।आजकल की युवा पीढ़ी पढ़ी लिखी समझदार और विकसित सोच वाली है। शायद मुझे लगता है यही विकसित सोच उन्हें परिवार के बीच सामंजस्य बना पाने में रोड़े का काम कर रही है। लड़के या लड़की के माता पिता का उनके निजी जीवन में जरूरत से ज्यादा भी रिश्तों के टूटने का कारण बन रहा है। युवा पीढ़ी माता पिता की सिख को अपने मामले में इंटरफेयर मानने लगे है। सोचने का विषय है हमारी दादी नानी कम पढ़ी लिखी थी। उस समय ना ही कुंडली मिलाई जाती थी ना ही टेक्नोलॉजी थी वे अपना सारा काम बखूबी करती थी और सारे रिश्तों को बखूबी सहेजती थी।मौसी, मामी, चाची और बुआ के आने से हमे कितनी खुशी होती थी मां के चेहरे में मैने कभी शिकन नहीं देखी ।दूसरा एक कारण ये भी है आज कल की युवा पीढ़ी कामकाजी है घर परिवार को चलाने के लिए दोनो को कम करना पड़ता है ।ये भी टूटते रिश्तों का कारण बना है।
अब बारी आती है समस्या के समाधान ढूढने की; क्योंकि कोई भी समस्या नहीं है जिसका हल नहीं निकला जा सकता। जब कोई नया जोड़ा विवाह के बंधन में बंधता है चाहे वो एक दूसरे को जनता हो या अजनबी हो वो लेकिन नए रिश्तों में सामंजस्य बिठाने में उसे वक्त लगेगा। किसी भी समस्या में रूठने तक ठीक है लेकिन संवाद हीनता सही नही है।
बात करके सबसे पहले हल निकालना होगा ।
शैलजा झा
w/o मौसम झा
d/o श्रीमती अल्पना झा -
vश्री हेमंत झा रायपुर
इक्किसवीं सदी और बिखरते रिश्ते:कारण, परिणाम, समाधान
इक्कीसवीं सदी निश्चित ही बहुत विकासशील युग है। हमने हर क्षेत्र में आशातित प्रगति की है। चाहे वो तकनीकी क्षेत्र हो, ज्ञान विज्ञान का क्षेत्र हो, कलात्मक या संगीत गत, पारिवारिक, सामाजिक, रास्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र हो हर क्षेत्र मेंअपनी विकास की गाथा लिखी है।
पहले हम ज्ञान के क्षेत्र में परश्रीत हुआ करते थे, ज्ञान कुछ लोगों तक ही सीमित हुआ करता था। वे जो कह दिये बस वही पत्थर की लकीर मान लिया जाता था। कोई उसे सत्यापित करने का ख्याल भी अपने मन में नहीं लाता था। इसे ही बड़ों की इज्जत करना कहा जाता था, और यही संस्कार का एक अभिन्न अंग माना जाता था।
धीरे धीरे वक्त ने करवट ली थोड़े थोड़े परिवर्तन देखने को मिलते रहे। परिवर्तन करने वालों को भी काफी अलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि हर समय की अपनी कुछ विशेषता और कुछ खामियां होती हैं। कोई भी समय पूर्णतः गलत या सही नहीं होता। यही सिद्धांत रिश्तों में भी लागू होते हैं, जिसका उल्लेख आगे करूँगी। विकास और आधुनिकता का पर्याय एक्किसवीं सदी बुराई के साथ साथ अच्छाई को भी बहा ले गया। किंतु राह में पड़े सशक्त शिलाओं ने अछाइयों को कुछ मात्रा में बचाने में सक्षम हुए। जिसका परिणाम है की हम सब बहिनें आज इस ज्वलंत विषय पर चर्चा कर रही हैं।
आज हमारी बहु बेटियाँ घर की चार दीवारों तक ही सीमित नहीं हैं, वो आगे बढ़ कर अपना मुकाम हाँसिल करना चाहती हैं। बेटे दमाद एक उच्च जीवनस्तर की महत्त्वकांशा रखते हैं, और इसके लिए वो अधिक से अधिक धन रुपये कमाना चाहते है, और इसलिए वो कोई भी समझौता करने को तैयार हैं। फिर चाहे १६, १८ घंटों की जॉब हो या फिर परिवार से दूर विदेशों में जाकर नौकरी की जिम्मेदारी ही क्यों न संभलना हो।
चौकिये नहीं ये वही कर रहें हैं जो हम उनसे अपेक्षा रखते थे। क्लास वन के पूर्व से हम उसे अच्छे मार्कस ,अच्छी नौकरी और विदेश जा कर कमाने का ख्वाब दिखाते रहे। परिवार, समाज से दूर रखा। यदि किसी ने पूछा कि बच्चे कहाँ हैं ? तो कह दिया कल टेस्ट है या परीक्षा है।
हम अपने बच्चों को उच्च शिक्षा तो दे गए, पर पारिवारिक मूल्य ,अपनों के सुख दुःख में शामिल होना, पुरानी परंपरा से वकीफ कराना छोड़ दिया या कहिये भुला दिया। बच्चों को नोट छापने वाली मशीन बना कर खुश होते रहे। हमारा बच्चा इतने लाख के पैकेज में है, उसे ये सब दकियानुसी अच्छी नहीं लगती। वो अब चड्डा पहनता है, उसी में उसको आराम महसूस होता है आदि आदि।
जो बच्चे अच्छा नहीं कर पाये उनको अच्छा करने वाले बच्चों pसे तुलना कर कर के चिड़ चिड़ा बना दिया।
परिणाम दोनों बेकार। माँ को जन्म देते समय बेटा चाहिए। पर बच्चों की शादी के बाद बेटा ,दमाद से निकृष्ट लगता है। अपनी ही परवरिश, संस्कार को घटिया साबित कर दिया।
जरा सोचिये जिस बच्चे ने कभी परिवार जाना ही नहीं अपनी परंपरा को कभी देखा ही नहीं, उससे हम अचानक संस्कार की उम्मीद करें ये कहाँ तक उचित है।
जिस बच्चे ने कभी दादी का हाथ थाम कर चलते आपको नहीं देखा, उससे आप कैसे उम्मीद कर सकते हो वो आपका हाथ थाम कर चलेगा। बच्चे को लगता है पैसा ही जीवन है। हर क्षेत्र में अच्छे मार्कस ही जीवन है। असफल बच्चा सोचता है सब के ताने सुनना ही जीवन है।
बहु सोचती है सास की क्यों सुनु? कमाती हूँ। सास सोचती है मेरा बेटा मेरी मुठ्ठी में है । मैं जो बोलूँगी वही करेगा। सास उसे अपना संस्कार समझती है। बहु से अपेक्षा है कि वह ससुराल को अपना समझे। पर ससुराल वाले उसे कभी अपना नहीं समझते।
बहु के लिए मां प्यारी है ,सास हर वक्त टोकने वाली खलनायिका लगती है। बस घर बिखर गया।
इन सबका समाधान यही है अपने बच्चों को उच्च शिक्षा अवश्य दें, विदेश भी भेजें पर अपनी परंपरा, संस्कृति से अवश्य अवगत करायें। परिवार के सुख दुःख में शामिल करें। सब को समझने का प्रयास करें। बहु भी बेटी ही है,उसे जवाबदारी दें, सिखाएं पर उलाहना न दें। उसमें अपनी बेटी की प्रतिबिंब देखिये। सास माँ ही है उसके सीने में भी वही दिल है जो आपकी माँ में है। उनकी बातों को समझिये अन्यथा मत लीजिये। घर के बड़ों का सम्मान कीजिये। बेटे माँ बाप की तो इज्जत करें ही साथ साथ पत्नियों को भी सुनिये समझिये, और उनका भी मान रखिये बस इतने से प्रयास से परिवार की कड़ी स्वयम् जुड़ जायेगी
डॉ आभा जयेश मिश्रा स्मृति नगर भिलाई
*परिचय*
*नाम* :-श्रीमती कुमकुम झा
*पति* :-श्री आशीष झा (विकास अधिकारी
LICराजनांदगाँव)
*पता* :-दीनदयाल नगर HIG-8,चिखली राजनांदगाँव
*शिक्षा* :-एम.एस.सी.(रसायन शास्त्र),बी.एड. *माध्यम* :-अंग्रेजी(स्कूल,कॉलेज)
*व्यवसाय* :-व्याख्याता(शासकीय) * *विद्या-का-क्षेत्र** :-राजनांदगाँव,रायपुर(एम.एस.सी. UTD रविशंकर विश्वविद्यालय)
*उपलब्धि* :-1.गोल्ड मेडलिस्ट बी.एस.सी. (तीनों वर्ष)
2.एम.एस.सी.(विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान)
3.उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान विधायक महोदय एवम् जिला शिक्षा अधिकारी महोदय के द्वारा।
( *इक्कीसवीं सदी और बिखरते रिश्ते)*
रिश्ता इन्सान को सुखद एहसास की अनुभूति कराता है।हर धर्म में विवाह को एक अलग नजरिया दिया गया है।
हिन्दू धर्म में विवाह एक संस्कार है। जिसका सम्बंध सात जन्मों से जुड़ा है। अतः एक हिन्दू होने के नाते मेरा यह मानना है कि जहां तक हो सके रिश्ता निभाना चाहिये।
लेकिन हिन्दू होने का मतलब गलत चीजों या अन्याय को बर्दाशत करना नहीं । राजा राम मोहन राय भी हिन्दू थे ,जिन्होनें हिन्दू धर्म के लिए बोझ बन चुकी "सती प्रथा" को समाप्त किया था।
कभी -कभी पति या पत्नि में से किसी एक का कर्म इतना बुरा हो जाता है कि इन्सान के पास दो ही विकल्प होता है "अलगाव "या "आत्महत्या"।ऐसे में धर्म बचाना मायने नही रखता "प्राण बचाना "ज्यादा जरुरी हो जाता है। अर्थात् "अलगाव" ही विकल्प बच जाता है। अन्य वजह में इन्सान को रिश्ता बचाने की कोशिश करनी चाहिये।
दो अंजान लोग जब पारिवारिक रजामंदी से रिश्ते मे बंधते हैं तो उसे निभाना आसान नहीं होता। इसके लिये बहुत समर्पण और सहन- शक्ति चाहिये । तब जाकर वो रिश्ता निभ पाता है।
प्रेम विवाह में सब निर्णय दो लोग लेते हैं।इस लिए सामंजस्य अधिक होना चाहिये ,मगर दुख की बात यह है कि रिश्तों का बिखरन उन्ही में ज्यादा देखने को मिलता है।
**उल्फ़त में जीने वालों को,*
*फुर्क़त का पता कहां...*
*ये वो पोशीदा एहसास है*
*जिसका हाले-बयाँ कहां* ...*
आज कल की पीढ़ी में निर्णय बहुत शीघ्रता से किये जाते हैं,रिश्ता जोड़ने का भी और तोड़ने का भी।मेरा अभिमत है कि इन प्रक्रियाओं को स्वाभविक समय देना चाहिये।
*(निम्न कारणों से रिश्ते बिखरते हैं*)
1. जरुरत से ज्यादा सामने वाले से उम्मीद रखना।
2.एक दूसरे को समय कम देना ।
3.छोटी- छोटी गलतियों को बड़ा बना कर रिश्तेदारों को बीच में लाना।
4. मन को बेलगाम छोड़ना।
5.सहन शक्ति कम होना।
6.तवज्जो की अत्याधिक लालसा।
( *तवज्जो की तड़प,चैन से जीने नहीं देती*
*गर ना मिले तो ,किसी को चैन से रहने नहीं देती* ।।)
7.समानता के अधिकार का गलत उपयोग करना।
8.पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव।
( *परिणाम* )
1.पारिवारिक कलह।
2.मानसिक अशांति।
3.सामाजिक असंतुलन।
4.विवाह करने से डरना।
5.माता -पिता ,सास -ससुर का स्वास्थ्य खराब होना।
6.अगर बच्चे भी हों तो उनके विकास में बाधा आना।
( *सुधार* )
1. मीठी बोली बोलनी चाहिये।
2.निश्छल प्रेम करना चाहिये।
3.परस्पर सामन्जस्य ।
4. एक दूसरे के विचारों को प्राथमिकता।
5.अहं भाव से दूरी ।
6." *उम्मीद करना है तो अपने आप से करो* ,
*भीड़ बहुत है इस बाजार में" ।*
7.व्यस्त जीवन मेँ भी परिवार के लिए समय निकालना।
( " *मसरूफियत भी कमाल की होती है जनाब,* *
*ये सुकून की तलाश को रोक देती है"!!** !)
अन्त में मैं बस दो पंक्तियाँ लिखना चाहूंगी
" **सच्चे रिश्ते सिर्फ दिल की भावना के* *मोहताज़ हैं,*
*नफा-नुकसान देखना तो बनियों का काम है"।।*
*
यह आलेख स्वरचित है।
*श्रीमती कुमकुम झा*
*व्याख्याता(रसायन-शास्त्र)*
*राजनांदगाँव*
( *इक्कीसवीं सदी और बिखरते रिश्ते)*
21वी सदी और बदलते रिश्ते
_______________________
बदलाव प्रकृति का नियम है , जब तक पुराना जायेगा नही नया नहीं आ सकता।कुछ नही बदलता तो वो है पीढ़ी दर पीढ़ी दिया जाने वाला संस्कार। 21वी सदी में संचार क्रांति आने से कुछ सकारात्मक बदलाव देखने मिले है तो कुछ नकारात्मक।खैर, आज के विषय पर चर्चा करते है ।आजकल लोगो का जीवन इतना ज्यादा व्यस्त हो गया है की किसी को किसी के सुख दुख में जाने का समय नही है। बच्चे अपने सगे चचेरे ,ममेरे,फुफेरे और मौसेरे भाई बहनों तक को जानते है जिन्हे हम english में first cousin कहते है।second और third cousin क्या होता है वे ये नही जानते है। ये भी एक महत्वपूर्ण कारण है बिखरते रिश्तों का। दूसरा रिश्तों का बिखरता रूप बड़ रही तलाक की समस्या है।आजकल की युवा पीढ़ी पढ़ी लिखी समझदार और विकसित सोच वाली है। शायद मुझे लगता है यही विकसित सोच उन्हें परिवार के बीच सामंजस्य बना पाने में रोड़े का काम कर रही है। लड़के या लड़की के माता पिता का उनके निजी जीवन में जरूरत से ज्यादा भी रिश्तों के टूटने का कारण बन रहा है। युवा पीढ़ी माता पिता की सिख को अपने मामले में इंटरफेयर मानने लगे है। सोचने का विषय है हमारी दादी नानी कम पढ़ी लिखी थी। उस समय ना ही कुंडली मिलाई जाती थी ना ही टेक्नोलॉजी थी वे अपना सारा काम बखूबी करती थी और सारे रिश्तों को बखूबी सहेजती थी।मौसी, मामी, चाची और बुआ के आने से हमे कितनी खुशी होती थी मां के चेहरे में मैने कभी शिकन नहीं देखी ।दूसरा एक कारण ये भी है आज कल की युवा पीढ़ी कामकाजी है घर परिवार को चलाने के लिए दोनो को कम करना पड़ता है ।ये भी टूटते रिश्तों का कारण बना है।
अब बारी आती है समस्या के समाधान ढूढने की; क्योंकि कोई भी समस्या नहीं है जिसका हल नहीं निकला जा सकता। जब कोई नया जोड़ा विवाह के बंधन में बंधता है चाहे वो एक दूसरे को जनता हो या अजनबी हो वो लेकिन नए रिश्तों में सामंजस्य बिठाने में उसे वक्त लगेगा। किसी भी समस्या में रूठने तक ठीक है लेकिन संवाद हीनता सही नही है।
बात करके सबसे पहले हल निकालना होगा ।
मृणालिनी झा
मंडला
विषय =
🌹🌹 21वीं सदी और बिखरते रिश्ते 🌹 कारण, परिणाम, एवं सुधार, 🌹
आज हम 21वीं सदी पर जीवन यापन कर रहे हैं! जीवन की इस लगातार भागदौड़, बढ़ती आबादी, राजनीतिक उथल-पुथल प्राकृतिक उतार-चढ़ाव, इन सभी का हमारे जीवन यापन में बहुत बड़ी भूमिका है! इन परिस्थिति के अनुकूल जीवनशैली को डालना ही मानव जीवन की आवश्यकता बन चुकी है!
पारिवारिक विघटन का कारण .
पूर्व कालीन समय में परिवार संयुक्त रहा करता था परिवार का भरण पोषण संयुक्त रूप से चलता था, संयुक्त होने के साथ एक दूसरे के दुख सुख में परिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर सभी समस्याओं का निवारण निकाल लेते थे परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से सामंजस्य बनाकर ही रखा करते थे समय के बदलते परिवेश में एकरूपता की कमी होती जा रही है! आर्थिक पहलू की मजबूती को बनाने की होड़ में व्यक्ति रिश्तो की अहमियत को भूलता जा रहा है जो कदापि नहीं होना चाहिए आपस में दूरियां बढ़ गई है रिश्तो की मजबूती खत्म होती जा रही हैं !
परिणाम
परिवार में अशांति व्याप्त हो जाने की वजह से परिवार टूट चुका है दोनों पक्षों में अहम की भावना बहुत ज्यादा ही बढ़ चुकी है समझौता वादी दृष्टिकोण बहुत दूर चली गई है पारिवारिक विघटन के चलते तलाक की प्रक्रिया निरंतर बढ़ती जा रही है जिसे हमें रोकना होगा इसमें दोनों पक्ष की समान भूमिका होनी चाहिए एक तरफा निर्णय कभी भी सही नहीं होगा!
मेरा व्यक्तिगत सुझाव यही होगा समय अनुकूल व्यक्ति को समझौता वादी दृष्टिकोण अपनाते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए! पैसे की अपेक्षा रिश्तो को अधिक अहमियत देना चाहिए विश्व के किसी भी क्षेत्र में प्रवास करने पर अपनी मूल जड़ों को कभी ना भुलाए बच्चों को माता-पिता द्वारा यह संस्कार अवश्य देते रहना चाहिए अपने पालन पोषण परवरिश की जड़ें बहुत मजबूत रखें विश्वास कायम रखें अपने बच्चों पर भी
हमारी जड़ें जितनी ही मजबूत होगी उसे हम कभी भी किसी भी परिस्थिति में हिलने ना दे 🙏🙏
श्रीमती अल्पना झा
"इक्कीसवीं सदी और बिखरते रिश्ते '
मंच को नमन ,🙏🏻
मंच पर उपस्थित सभी सम्मानीय को मेरा नंदन अभिनंदन
आज परिचर्चा का विषय बहुत ही सोचनीय है जिस तरह से आज की परिस्थिति आधुनिकता के आवरणों से है उतना ही युवा युग्ल में तलाक जैसा गम्मीर रोग देखने को मिल रहा है ,सत्य तो ये इसके लिए समाज को संगठित रखना ,
** रिश्ते बिखरने के कोई भी कारण हो सकता है और अनर्थ क कारण जो की हास्यास्पद भी लगते है ,मैं ऐसे ही युग्ल जोडे जो की महद 3या 4,5 दिन के बाद ही अलग हो गये जबकि आज के परिवेष में रिश्ते तय होने से पहले लड़का ,लडकी का मिलना एक दूसरे से बात _चीत करना पूरी तरह से परिवार का जानकारी रखने के बाद भी बिखरना ये परिवार और समाज के लिए आने वाला भयावह तूफान ही कहना अतिशयोक्ति न होगा !
परिवार की सबसे बडी नींव विश्वास है अगर आपस में शक ही परिवार का पाया कमजोर करता है इसलिए आपसी विश्वास दोनो के बीच बहुत जरूरी है!
****.सहनशीलता की कमी आज के युवा युवाओं व युवतियों में जहाँ सहनशीलता की कमी आने के कारण हर छोटी सी छोटी बात बडी अर्थात ***राई का पहाड़ **हो जाता है जिसमें परिवार और रिश्तेदारों को ही दोनो की कमजोर बात को समझाकर सुल ह कराया जा सकता है !
***.आधुनिकता पाश्चात्य सभ्यता की दौड़ में शायद मयार्दा विहीन हो चूके हैं बड़ों का सम्मान करना उनकी बातो का अनसुनी कर अपने ही बात पर अड़ियल रहना ,
अनुभव को नकारना ! जिसके कारण परिवार में आपस में टकराव होकर बिखर जा़ते है !
***पहनावा व रूढिवादी
आज तो वैसे सभी कामकाजी हो गये जहाँ हमारी वेशभूषा पर भी ध्यान जाता है लेकिन आज के दौर में यह मान्यता नही रखता फिर भी परिवार के बड़ो को यहां समझौता करना चाहिए ,
वैसे अंत में मैं यही कहना चाहूंगी आपसी तालमेल किया जाय सहनशीलता , साम्जस्य बनाकर घर के बड़ो अनुभवी का अगर सुझाव अआपस में एक दूसरे के का सम्मान जहां हो वहां पर परिवार बिखर ही नही सकता !
अंनत अनुसुईया झा
जवाहर नवोदय विद्यालय🙏🏻🙏🏻💐💐
"इक्कीसवीं सदी और बिखरते रिश्ते " - कारण ,परिणाम, सुधार।
इक्कीसवीं सदी में विकास के साथ साथ रिश्तों में दूरियां आने लगी हैं। संयुक्त परिवार ने एकाकी परिवार का रूप ले लिया है। अब एकाकी परिवार में भी बच्चे उच्च शिक्षा एवम नौकरी के कारण दूर रहने लगे हैं धीरे धीरे बचपन के मित्रों से दूरी, परिवार से दूरी और अपनेपन की कमी होने लगी है ।
एक समय था जब लोग धडल्ले से पड़ोसियों मित्रों और परिजनों के घर में अंदर तक घुस जाते थे। मिल बांट कर सब खाते थे।घर में किसी के आते ही नाश्ते की लिस्ट बन जाती थी। अब उन्हीं घरों में अजनबियों सा व्यवहार होने लगा है नाश्ता चाय तो सिर्फ धन की स्थिति देखकर अपने से ऊपर वालों को दिया जाने लगा है।
हां जब कुछ काम होता है तो कम कमाने वाले याद आते हैं । होटल में पार्टी दें तो बड़े पैसे वालों को बुलाते हैं।अर्थात अपनेपन से ज्यादा धन अर्थ का महत्व बढ़ गया है। प्रतिस्पर्धा और आडंबर ने समाज का स्वरूप ही बदल दिया है, दूसरे के लिए कुछ करने की भावना के स्थान पर करवाने की भावना ने जन्म लिया है। पहले लोगों में परहित की भावना थी अब स्वहित ही सर्वोपरि है।
दूर जाना तो मजबूरी है परंतु आपनेपन की कमी इक्कीसवीं सदी का प्रभाव है।
लोगों के एटीएम निर्भर होने अतिविश्वासी होने एवम धन को ज्यादा महत्व देने के कारण ये स्थिति उत्पन्न हुई है।एक दूसरे के सामने अपने को धनी बताने दिखावा करने आडंबर करने के कारण आज रिश्तों में अलगाव की स्थिति आ गई है। आस पड़ोस को दिखाना कि उनकी जान पहचान , उठना बैठना बड़े लोगों के बीच होता है।
आज हर काम मोबाइल से होता है। मोबाइल से निमंत्रण मोबाइल से व्यवहार ।तो किसी की आवश्यकता भी नहीं होती है ।नही कोई उत्साहित होता है।
मोबाइल ,सोशल मीडिया ने जहां लोगों को जोड़ कर रखा है दूर दराज के लोग भी प्रतिदिन मिल सकते हैं मोबाईल में वहीं मोबाइल ने ही सबको दूर भी कर दिया है सारे संबंध सिर्फ मोबाइल में ही रह जाते हैं आपस में मिलना जुलना बहुत कम हो गया है।
सुख दुख देखना दिखाना सब मोबाइल में संभव है।
अपने से कमजोर लोगों की उपेक्षा ने अपने पन को कम कर दिया है।
मिलने जुलने में कमी परिवार रिश्तेदारी से दूरी ,होटल दिखावे की संस्कृति ने जीवन को मशीनी बना दिया है। परिणाम स्वरूप लोग तनाव ग्रस्त रहते है अपने दुख और कष्ट मन में दबाए रहते हैं, नशाखोरी अनाचारी की अधिकता हो गई है।अपराध बढ़ने लगे हैं । सामंजस्य, सहनशक्ति में कमी आने लगी है।
परिणाम अत्यंत घातक है । संवेदनाओं की कमी से लोग मरने मारने पर उतारू हैं।
जैसे पांचों उंगलियां एक बराबर नही होती हैं लेकिन हथेली उनके साथ बराबर व्यवहार करती है ।तभी पांचों उंगलियों की पकड़ मजबूत होती है।और हर काम सुगमता से संभव हो पाता है।ठीक उसी तरह से समाज परिवार को भी सबके साथ एक समान व्यवहार करना चाहिए। जो रिश्तों को बिखरने से रोक सकता है।
अधिक सामाजिक कार्यक्रम,मिलने जुलने के अधिक अवसर ही स्थितियों में सुधार कर सकते हैं।
भेद भाव , छल कपट, दुर्भावना
प्रतिस्पर्धा दिखावा से परहेज कर प्रेम की भावना बढ़ाना।किसने हमारे लिए क्या किया है, सोचने के बदले हमने किसके लिए क्या किया है सोचने से बदलाव संभव है।
वन्दना झा रायपुर छत्तीसगढ़ ।
स्वरचित
आलेख का विषय है। इक्कीसवीं सदी और बिखरते रिश्ते ,, कारण , परिणाम , और सुधार कैसे हो
सर्व प्रथम माँ शारदे को नमन करती हूँ कोटि कोटि प्रणाम
तत्त्पश्चात् व्यवस्थापिका , संचालिका , अतिथि गण , प्रवक्ता , श्रोता सभी को इस मंच से प्रणाम करती हूँ त्रुटि हो तो क्षमा प्राथी हूँ 🙏🙏 .
बिखरते रिश्ते
रिश्ते क्यों बिखरते है। मेरे विचार से
1, माता पिता का हस्तक्षेप का होना
2, समाज व परिवार का दायरा का ना होना ,
3, बिना मर्जी की शादी का होना
4, इगो
5, नशा की लत होना
6, अपने सम्मान के लिए लड़की, लड़का का विवाह माता
पिता के द्वारा जबरदस्ती करवाना
पति - पत्नि में विचारों का मत भेद होना
🖕 इन्ही कारणों से रिश्ते बिखर जाते है
बिखरते रिश्ते के चलते परिणाम
पति पत्नि का रिश्ता तो टूटता ही है उसके साथ दोनों पक्ष भी बिखर जाता है।
पति पत्नी के साथ यदि संतान हो तो वह भी बिखर जाता है । यदि सन्तान माँ के पास रहे तो सन्तान पिता के बिना अधूरा सा हो जाता जो पिता कर सकता है। अपने संतान के लिए वह माता नही कर सकती जो माता कर सकती है। वह पिता नही इसलिए दोनो का होना जरूरी है। नहीं तो संतान का वि ईकास उनकी शिक्षा तथा उनके मस्तिक में गलत प्रभाव पड जाता है। मानसिक स्थिती से वह कमजोर हो जाता है। हो सकता है जो माता पिता किसी भी एक का साथ ना मिलने पर बुरी आदत का लत लग सकता है। परिवार टूट जाता है। कांच की तरह बिखर सा जाता है। इसलिए दोनो की साथ होना अति आवश्यक है।
मेरे विचार से
बिखरते रिश्ते में सुधार किस तरह हो
बिखरे रिश्ते को सुधार लाने के लिए हमें यह पद्धति अजमाना चाहिए
औरत का जीवन में महत्पूर्ण रोल रहता है या कहे नाता होता है वह बेहद ही नाजुक होता । . चाहे आप यह रिश्ता ले ले जैसे माँ - बेटी का हो , सास बहू का , ननंद भाभी का सभी पहलु को देखे और सोचे की यह रिश्ता कैसे फल फूल सकता है। रिश्ता के बिना अधूरा है औरत और औरत के बिना अधूरा है हर वो रिश्ता दोनों एक दूसरे के पूरक है। रिश्ते की माया बहुत ही बडी है। उसे निभा पाना बडा ही कठिन है। रिश्ता को निभाने के लिए कला , शैली का होना आवश्यक है। रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए यदि हमें रिश्ता किस तरह रखनी है यह शैली नहीं रहेगी तो रिश्ता कमजोर हो जाएगा टूट जायेगा बिखर सा जाएगा कांच की तरह
कई लोगों को लगता है। रिश्ता एक बेड़ियां है पर रिश्ता बेड़िया नहीं है वह नाजुक है जिस प्रकार हम हम एक पौधा रोपने के लिए क्या क्या जतन करते है। पौधे की देखभाल करते है ठीक हमें भी रिश्ते को उसी तरह सम्मालना चाहिए
रिश्ता निभाना है। तो हमें उसी तरह उसी की भाषा से समझने की कोशिश करनी चाहिए बिखरे रिश्ते को संवारने के लिए
इगो
इगो का त्याग करना होगा सोच में बदलाव लाना होगा
ससुराल में सास ससुर या यू कहें की संयुक्त परिवार में रहना बंधन नही है। बोझ नहीं है अपितु वह आपका नीव का पत्थर है। जैसे हम नीव डालने के लिए मकान को मजबूत बनाने के लिए गहरी गढ्ढे करनी पड़ती है और मजबूत पत्थर डाल नी होती है। ठीक उसी प्रकार रिश्ते भी होता है। संयुक्त परिवार रिश्तों को मजबूत करता है।
कईयों का सोच यह होता है। की हमारी यह सास है। ननंद है। देवर है। जेठ है। आदि इनका नेचर अलग है। ऐसा सोचना इगो को रिश्तों में लाना सही नही है। परिवार हमेशा रिश्तों को मजबूत करता है। और कठनाइयों दिनों में मजबूती के साथ खड़ा हमेशा रहता है जिस तरह सूरज हमें . रोशनी देने के लिए क्या बिल मांगा है। की हमें तुम्हें रोशनी दे रहें उसके बदले तुम हमें बील दो नहीं ना सरकार भले ही बील ले सकता है। रोशनी देने के लिए पर सूरज कभी नहीं ठीक परिवार भी आपके साथ सूरज की तरह व्यवाहर करता है। बस मन में धारणा बना लेते है। हम साथ में रहेगें तो आजादी नहीं मिलेगी हम स्वतंत्र नहीं रह पायेगे ये गलत धारणा है।
आज के युग में सास भी समझदार होती है। वह सब समझती है। और कभी भी बेडी नहीं डालती है।
अगर हम रिश्ता को समझकर चले तो रिश्ते में सुधार हो सकती है शिष्टाचार्य और नम्रता रिश्तों की कड़वाहट को समाप्त कर सकती है। रिश्ते कड़ी मेहन से हम बनाते है सजाते है। इसलिए दोनों पक्ष को समझना होगा स्वीकार करन होगा समाजस्य बनाना होगा । अधिपत्य के संबंधों को तोड़कर लिंग आधारित समानता स्थापित करना जरूरी नहीं बदलाव प्रेम और सहृदयता के साथ आए इसके लिए काफी प्रयास करने की आवश्यकता ताकि हम सुखदायी जीवन जी सकें एवं खुशहाल जिन्दगी की ओर चल सकें ।
समाज के प्रति अपना कर्तव्य जागरूकता होने की दिशा को दर्शाता है। और ये काम सिर्फ नारी शक्ति ही कर सकती है। और समाज में परिवार में नारी को आगे बढ़ना होगा उन्हें ही क्रांति लानी होगी ' ।
एक या दो नारी इस समस्या को हल नही कर सकती ।
समाज को ही आगे आना होगा ।
कदम से कदम मिलाकर चलना होगा '
तभी हम तेजी से बढ़ती हुई बिखरे रिश्ते की प्रतिक्रिया हो रही है। उसमें हम सुधार ला सकते है।
नोट - अक्सर देखा गया है। अन्य वर्गी में , समाज में एक संगठन बना या गया है। जहाँ पर नारी जा कर अपनी समस्या का समाधन करती है। और हल हो जाती है। हमारे यहाँ पर भी ऐसी एक संगठन होनी चाहिए जो पीड़िता का दुख , दर्द सुन सके या पीड़ित हो उसे न्याय मिल सके और बिखरे रिश्ते को पुनः सुखदायी रिश्ते में परिवर्तित कर सकते है।
समाज का डर नही, परिवार का डर नही , शायद संगठन हो तो हम बिखरे रिश्ते में अच्छी से सुधार कुछ हद तक कर सकते है या कहें प्रतिबंध लगा सकते है। एक खुशहाल जिन्दगी बिखरे हुऐ रिश्ते को दे सकते है। ये मेरा व्यक्ति गत विचार है। आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड कृष्णा पुरी
छतीसगढ़ 🙏🙏
इक्किसवीं सदी और बिखरते रिश्ते:कारण, परिणाम, समाधान
इक्कीसवीं सदी निश्चित ही बहुत विकासशील युग है। हमने हर क्षेत्र में आशातित प्रगति की है। चाहे वो तकनीकी क्षेत्र हो, ज्ञान विज्ञान का क्षेत्र हो, कलात्मक या संगीत गत, पारिवारिक, सामाजिक, रास्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र हो हर क्षेत्र मेंअपनी विकास की गाथा लिखी है।
पहले हम ज्ञान के क्षेत्र में परश्रीत हुआ करते थे, ज्ञान कुछ लोगों तक ही सीमित हुआ करता था। वे जो कह दिये बस वही पत्थर की लकीर मान लिया जाता था। कोई उसे सत्यापित करने का ख्याल भी अपने मन में नहीं लाता था। इसे ही बड़ों की इज्जत करना कहा जाता था, और यही संस्कार का एक अभिन्न अंग माना जाता था।
धीरे धीरे वक्त ने करवट ली थोड़े थोड़े परिवर्तन देखने को मिलते रहे। परिवर्तन करने वालों को भी काफी अलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि हर समय की अपनी कुछ विशेषता और कुछ खामियां होती हैं। कोई भी समय पूर्णतः गलत या सही नहीं होता। यही सिद्धांत रिश्तों में भी लागू होते हैं, जिसका उल्लेख आगे करूँगी। विकास और आधुनिकता का पर्याय एक्किसवीं सदी बुराई के साथ साथ अच्छाई को भी बहा ले गया। किंतु राह में पड़े सशक्त शिलाओं ने अछाइयों को कुछ मात्रा में बचाने में सक्षम हुए। जिसका परिणाम है की हम सब बहिनें आज इस ज्वलंत विषय पर चर्चा कर रही हैं।
आज हमारी बहु बेटियाँ घर की चार दीवारों तक ही सीमित नहीं हैं, वो आगे बढ़ कर अपना मुकाम हाँसिल करना चाहती हैं। बेटे दमाद एक उच्च जीवनस्तर की महत्त्वकांशा रखते हैं, और इसके लिए वो अधिक से अधिक धन रुपये कमाना चाहते है, और इसलिए वो कोई भी समझौता करने को तैयार हैं। फिर चाहे १६, १८ घंटों की जॉब हो या फिर परिवार से दूर विदेशों में जाकर नौकरी की जिम्मेदारी ही क्यों न संभलना हो।
चौकिये नहीं ये वही कर रहें हैं जो हम उनसे अपेक्षा रखते थे। क्लास वन के पूर्व से हम उसे अच्छे मार्कस ,अच्छी नौकरी और विदेश जा कर कमाने का ख्वाब दिखाते रहे। परिवार, समाज से दूर रखा। यदि किसी ने पूछा कि बच्चे कहाँ हैं ? तो कह दिया कल टेस्ट है या परीक्षा है।
हम अपने बच्चों को उच्च शिक्षा तो दे गए, पर पारिवारिक मूल्य ,अपनों के सुख दुःख में शामिल होना, पुरानी परंपरा से वकीफ कराना छोड़ दिया या कहिये भुला दिया। बच्चों को नोट छापने वाली मशीन बना कर खुश होते रहे। हमारा बच्चा इतने लाख के पैकेज में है, उसे ये सब दकियानुसी अच्छी नहीं लगती। वो अब चड्डा पहनता है, उसी में उसको आराम महसूस होता है आदि आदि।
जो बच्चे अच्छा नहीं कर पाये उनको अच्छा करने वाले बच्चों pसे तुलना कर कर के चिड़ चिड़ा बना दिया।
परिणाम दोनों बेकार। माँ को जन्म देते समय बेटा चाहिए। पर बच्चों की शादी के बाद बेटा ,दमाद से निकृष्ट लगता है। अपनी ही परवरिश, संस्कार को घटिया साबित कर दिया।
जरा सोचिये जिस बच्चे ने कभी परिवार जाना ही नहीं अपनी परंपरा को कभी देखा ही नहीं, उससे हम अचानक संस्कार की उम्मीद करें ये कहाँ तक उचित है।
जिस बच्चे ने कभी दादी का हाथ थाम कर चलते आपको नहीं देखा, उससे आप कैसे उम्मीद कर सकते हो वो आपका हाथ थाम कर चलेगा। बच्चे को लगता है पैसा ही जीवन है। हर क्षेत्र में अच्छे मार्कस ही जीवन है। असफल बच्चा सोचता है सब के ताने सुनना ही जीवन है।
बहु सोचती है सास की क्यों सुनु? कमाती हूँ। सास सोचती है मेरा बेटा मेरी मुठ्ठी में है । मैं जो बोलूँगी वही करेगा। सास उसे अपना संस्कार समझती है। बहु से अपेक्षा है कि वह ससुराल को अपना समझे। पर ससुराल वाले उसे कभी अपना नहीं समझते।
बहु के लिए मां प्यारी है ,सास हर वक्त टोकने वाली खलनायिका लगती है। बस घर बिखर गया।
इन सबका समाधान यही है अपने बच्चों को उच्च शिक्षा अवश्य दें, विदेश भी भेजें पर अपनी परंपरा, संस्कृति से अवश्य अवगत करायें। परिवार के सुख दुःख में शामिल करें। सब को समझने का प्रयास करें। बहु भी बेटी ही है,उसे जवाबदारी दें, सिखाएं पर उलाहना न दें। उसमें अपनी बेटी की प्रतिबिंब देखिये। सास माँ ही है उसके सीने में भी वही दिल है जो आपकी माँ में है। उनकी बातों को समझिये अन्यथा मत लीजिये। घर के बड़ों का सम्मान कीजिये। बेटे माँ बाप की तो इज्जत करें ही साथ साथ पत्नियों को भी सुनिये समझिये, और उनका भी मान रखिये बस इतने से प्रयास से परिवार की कड़ी स्वयम् जुड़ जायेगी
डॉ आभा जयेश मिश्रा स्मृति नगर भिलाई
आधुनिक काल में एकल परिवार होने के कारण बच्चे पढ़ाई तक ही सीमित हो गए हैं। मां बाप को अपने कर्तव्यों से फुर्सत नहीं की बच्चो को अच्छे संस्कार दिया जाए।
प्राचीन काल में लोग एक साथ जीवन यापन करते थे बच्चों में संस्कार कूट कर भरा रहता था बुजुर्गो का काम ही था बच्चों में अच्छी तरह से अच्छी अच्छी आदतों को सिखाया जाए भले वे पढ़ाई पीछे थे और बातो में हमसे अव्वल थे इस कारण बच्चों मे पढ़ाई के साथ, साथ आपसी प्रेम सहयोग की भावना पैदा हो जाती थी। आपसे झगड़े होते थे किंतु। आपस में ईगो नहीं होने के कारण आपस मे भाई चारा बना रहता था ।बुजुर्गो की सीख बहुत काम आती थी। आपसी सहयोग होने के कारण ताल मेल बिठाकर चलने की आदत बेटियों को शादी के बाद उनको आपसी सहयोग और जीने की कला सिखाती थी तब तलाक की बाते सुनकर मां बाप को बहुत दुःख होता था आजकल बाते आम हो गई हैं
बच्चों को जन्म से आदर मन में जागृत करो संस्कारो से युक्त बालिका ही एक अच्छी बहु बनकर दोनो परिवारो का नाम रोशन करेंगी।
बेटी बचाओ, अभियान शुरू हुआ
हैं ।परिवार कल्याण के लिए परिवार बचाकर तलाक रूकवाने में सहायता प्रदान करे.बेटियो को हायर एजुकेशन के साथ साथ जीवन यापन करने के लिए परिवार की जम्मेदारियो को संभालने के लिए एक अच्छी बहु की जरूरत होती हैं बेटियां यदि, घर संसार में ,अपनो को खुश होकर संभाल लेती हैं तो सब कुछ ठीक, फिर समस्याएं ही भाग जायेगी
धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
K,P,S,🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सागरिका साहित्य काव्य गोष्ठी मंच आमंत्रण तथा मंच पद्मनाभ साहित्य परिषद के कार्यक्रम*
आ .डा प्रतिभा पराशर जी संस्थापिका
पद्भनाभ साहित्य परिषद रायपुर इकाई की अध्यक्ष
श्रीमती अनिता शरद झा ...
दिनांक ३ - २ - २०२२ की शाम
सरस्वती वंदना आ.अल्पना झा मंच की संस्थापिका
आ . डा प्रतिभा पराशर का सम्मान कर सभीरचनाकारों का सम्मान करेंगी ।अनिता शरद झा द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया जाएगा आप सभी का अभिनंदन स्वागत 💐🙏🙏
विषय - वसंत काव्य महाउत्सव ,वसंत पंचमी पर
पद्मनाभ साहित्य परिषद छत्तीसगढ़ में आप सभी रचनाकार आमंत्रित है संस्था का उद्देश्य रचना, रचनाकारों की पहचान है।
ये मँच आपका है....
आप अपने आपको गौरवान्वित करते हैं...
अपनी साहित्यिक साधना से तो आइए हमारे कार्यक्रम में शामिल होकर अपनी स्वरचित कविता, गीत, ग़ज़ल से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाएं इस हेतु नाम लिखवा कर क्रम आगे बढ़ाते जायेंगे
साथ ही
*सागरिका साहित्य काव्य गोष्ठी*
बसन्तपंचमी की पूर्व संध्या दिनांक -४ -२-२०२२ को सागरिका साहित्यिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जायेगा । हमारे सभी वरिष्ठ आत्मियजनो का आशीर्वाद सहयोग ही सागरिका मंच का स्वाभिमान है
आप सभी रचनाकार स्वेकक्षिक रूप से जुड़ना चाहते है तो अपनी पास पोर्ट साइज़ फ़ोटो अपना फ़ोन नम्बर जल्द से जल्द भेजे आज कोलार्ज रूप रेखा तैयार फ़ोटो क्रमांक के अनुसार तैयार की जायेगी !
संचालिका"माँ सरस्वती" सागरिका साहित्यिक विधा श्रीमती अनिता शरद झा
शाम पांच बजे से सात बजे तक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में सागरिका परिवार की सभी सदस्यों का तहे दिल से स्वागत है। यह कार्यक्रम वाट्सएप पर रखा गया है। सभी उम्र की माताओं, बहनो, बालिकाओं से निवेदन है। आप सभी क्रमांनुसार अपनी अपनी रचनायें रिकॉर्ड करके तैयार रखें जब आपका क्रम आवे और आपको पटल पर आमंत्रित किया जाए अपने नाम के साथ फोटो, ऑडोयो तथा टाइप की हुई वही रचना इन सभी को एकसाथ पोस्ट करें।
-अनिता शरद झा समस्त रचनाकार परिवार प्रतिभागी सहमति निवेदित है
नाम क्रमांक के अनुसार आगे बढ़ाते जाये
सरस्वती बंदना
१) अल्पना झा
राज गीत
२) आशा ठाकुर
३) सिंधु झा
४) नीता झा
५) पल्लवी झा
श्रीमती वंदना झा
श्रीमती पल्लवी झा
श्रीमती शुभ्रा ठाकुर
डॉ.श्रीमती आभा झा
डॉ. श्रीमती आभा जयेश मिश्र
श्रीमती रश्मी झा
श्रीमती रत्ना मिश्र
श्रीमती रचना झा
श्रीमती मोनिका झा
श्रीमती निशि मिश्र मंडला
रामनवमी के अवसर पर
*हे राम*
******
हे राम आदि, अनादि, अनंत
के जग कर्ता, जानकी के कंत
रोम- रोम में समाने वाले राम है
कण-कण में छुपे है राम
घट-घट में बसे है राम,
सबके उर मे बसने वाले
अंतर्यामी राम है......
सुख-दुख में है राम
माँ की ममता में राम
वात्सल्य में समाहित
आज्ञाकारी सुत राम है.....
प्रेम, त्याग मे है राम
जन के मन-तन में राम
हर युग के अवतारी राम
मयार्दा पुरूषोतम राम है......
*जय श्री राम, जय श्री राम*
🙏🙏🙏🙏
*राम नवमी की हार्दिक बधाई
अनंत अनुसुईया झा
नवोदय बसदई सुरजपूर
🤩😊🙂😀😀
"ये मोबाइल हमारा है
पतिदेव से भी प्यारा है"
उठते ही मोबाइल के दर्शन पहले पाऊ मै।
पति परमेशवर को ऐसे में बस भूल ही जाऊ मै।
मध्यम आंच पर चाय चड़ाऊ मै।
वोट्सअप को पढती जाऊ मै।
चाय उबल कर हो गई काडा।
चिल्ला रहे है पति देव हमारा।
कानो में है ईयरफ़ोन लगाया।
अब मैने फेसबुक है चलाया।
रोटी बनाने कि बारी आई।
दाल गैस पर चढा कर आई।
इतने में सखी का फ़ोन आया।
पार्टी का उसने संदेशा सुनाया।
करने लगी बाते मैं प्यारी।
इतने में भिन्डी हो गई करारी।
सासूजी चबा ना पाई।
मन ही मन वो खूब बडबड़ाई।
ससुर जी बैठे है बाथरूम में।
खत्म हो गया पानी टंकी में।
कैंडी-कृश गेम में उलझ गई थी मैं।
मोटर चालु करना ही भूल गई थी मैं।
ग्रुप कि एडमिन बन कर है नाम बहुत कमाया।
सबके घर की बहुओ को अपने ही साथ उलझाया।
बच्चो की मार्कशीट के मार्क्स ही ऐसे आए।
जो पति परमेश्वर के दिल को ना है भाए।
उसे देख पतिदेव ने सिंघम रूप बनाया।
"आता माझी सटकली" हमको है सुनाया
घर का बजा रहा है बाराह।
ऐसा है मोबाइल हमारा।
[17/09/2020, 8:00 p.m.] Nisha Mishra Sagrika: पितृ पक्ष आगमन
चौक पूरें, दातून धरें,
धूप - दीप नित होम करें,
पूड़ी, बड़ा और खीर बनाकर ,
निमित्त उनके भोग ध रें।
कुश आसन पर बैठ के मुखिया,
पितरों को जल तर्पण करे,
पन्द्रह दिन का पितृ स्मरण,
हर जन श्रद्धा अर्पण करे।
पावन बड़ा पितृ पक्ष यह,
पितर देवलोक से आते हैं
जल तर्पण से तृप्त हो,
ढेर आशीष दे जाते हैं।
स्वरचित
निशि मिश्रा मंडला
[17/09/2020, 8:00 p.m.] Nisha Mishra Sagrika: पितृ पक्ष पर आमंत्रित काग जोड़े पर अभिव्यक्ति
प्रिये !आओ आज हम उनका,
सत्कार स्वीकार करें,
निमित्त हो मात - पिता के जो भोग,
मिलकर के आभार करें।
भले ही पूर्व जनम में दीं,
उनने दुर्व्यवहार की लहरें,
रहेगी हर जन्म में ममता,
आखिर मां - बाप जो ठहरे,
प्रिये!आओ छुपा लें अश्क,
जो हमारी आंखों में आये हैं,
भुला दें वे कटू यादें जो,
आज हिय में समाए हैं।
रहो खुशहाल,फलो - फूलो,
बढो नित उन्नति पथ पर,
कभी भीगे न कोर नयनों के,
उदासी हो न होठों पर।
स्वरचित
निशि मिश्रा
मंडला
[17/09/2020, 8:00 p.m.] Nisha Mishra Sagrika: पितृ विसर्जन पर
आंगन के दक्षिण हिस्से में,
सादर तुम आमंत्रित थे,
जल तर्पण,भोजनअर्पण,
निष्ठा भाव निमंत्रित थे।
धूप, दीप,नैवेद्य आरती,
श्वेत पुष्प से अर्चन,
पितृ देव सब हित खातिर
हर जन किये श्रद्धा आर्पन
पन्द्रह दिनों की अवधि
बीते जो प्रवाह,
भाव पूर्ण श्रद्धांजलि
आशीर्वाद की चाह।
स्व रचित
निशि मिश्रा मंडला
श्रीमती सिंधु झा जी की स्वरचित कविता जिसका
शीर्षक है यातना -
कोई हमसफर है मेरा.
मेरी कल्पना से पहले
मेरा देवता मगन है.
मेरी वंदना से पहले.
कंही भिख क्या मैं मांगु.
कंही हाथ क्या पसारू.
मुझे भिख मिल गई है.
मेरी याचना से पहले
कोई हो गया है.
मुझे जिंदगी ने लुटा.
ये दोश मुझ कवंल का.
कोई कामिनी नही थी.
मेरी कामना से पहले.
कोई हो गया है.
तुम्हें किस तरह बताउं.
की मै किसलीये परेशां हूं.
मेरे ढल चुके हैं आंशु.
मेरी यातना से पहले.
कोई हो गया है मेरा.
सिंधु झा
वर्तमान परिवेश में मैथिल ब्राम्हण रीति- रिवाजों का महत्त्व औऱ जीवन मे उपयोगिता
व्रत का महत्व
व्रत एक तरह से नियम होता है जिसमे संयम का विशेष महत्व होता है समाज को नियमानुसार संचालित करने में व्रत का विशेष योगदान होता है धर्म को मानने से व्यक्ति अपने आचरण में शुद्धता बनाये रखता है व्रत धर्म की ओर आकर्षित करता है इसलिए व्यक्ति
धर्म औऱ व्रत के प्रभाव में समाज मे अनुशासित औऱ संयमित व्यवहार करता है तो रूढ़ि मजबूर करता है प्रतिबंध लगाता है।
धर्म और विज्ञान निश्चित रूप से एक दूसरे के पूरक हैं जो हम बरसों से धर्म के माध्यम सीखते रहे हैं विज्ञान उसे ही वैज्ञानिक रूप से तर्क के माध्यम से प्रमाण के साथ हमे समझ रहा है जो विज्ञान को नही मानते हैं पाप पुण्य की भाषा से नियमो का पालन करते हैं और जो धर्म से तर्क करते है विज्ञान एवं कानून से धर्म का पालन करते हैं तो धर्म और विज्ञान दोनों आवश्यक है
व्रत परम्परा बन जाती है स्वमेव पीढियां इसका निर्वाह स्वेच्छा से करने लग जाता है व्रत त्योहार व्यक्ति को प्रसन्नता प्रदान करने के साथ उद्देश्य भी देता है लोगों को जोड़कर रखता है
मैथिली हर त्योहार में अलग अलग अल्पना रंगोली खास व्यंजन बनाते है मूर्ति एवं चित्र बनाकर पूजा करते है इस तरह से वे हर तरह की पाककला हस्तकला वस्तु कला एवं चित्रकला में पारंगत हो जाता है
हाँ बदलाव सम्भव है समयानुसार कार्य करने को कामकाजी महिलाओं का ध्यान अवश्य रखें मजबूरी या प्रतिबंध प्रसन्नता छीन लेती है ।समय काल परिस्थितियों के कारण आज की पीढ़ी पूरे भारत और विश्व मे जीवनयापन करने को मजबूर है तो कुछ परम्पराएँ रीति रिवाज विस्मृत होते जा रहे हैं परंतु पूर्णरूपेण नही सिर्फ अपने स्वरूप में कुछ परिवर्तन कर रही है
व्रत समय मौसम के अनुसार बनाये। गए हैं वे वही चीज़े खाने का नियम बनाये हैं जो उस समय हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक होते हैं जैसे पितृपक्ष में उड़द संक्रांति में तिल आदि आज हम इसे बदलकर अपने स्वास्थ्य को स्वयं खराब कर रहे हैं पुराने रीत रिवाज़ व्रत त्योहार कितने आवश्यक हैं इसकी सीख आज अनोखे कोविड 19 वायरस ने हमे दे दिया है
व्रत समाज नियम का महत्व है इसका पालन होना चाहिए बस जातिगत भेदभाव न होकर सबका सम्मान होना जरूरी है जो हमारी परंपरा है क्योंकि सबसे पहले हम मानव हैं
धर्म बाद में ।
महात्मा गांधी और जय जवान पर लेख गद्य में
हमारे प्रिय माहात्मा गांधी जी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ देश के नेता और २ाष्ट्रपिता माना जाता है इनका जन्म पोरबंदर नामक गांव में हुआ था भारत में हर वर्ष 2,अक्टूबर को गांधीजी की जयंती के रूप में मनाया जाता है देश में आजादी दिलाने में हमारे २ाष्ट्रपिता मा हत्मा गांधी जी के अहम भूमिका था उनका जन्म सन् 1869, में गुजरात में पोरबन्दर में हुआ था देश इस वर्ष गाधी जी की 151वी जयन्ती मना रहा है सत्य और अहिसा को लेकर पूरे भारत में नही बल्कि पूरी दुनिया को मार्गदर्शन करते २हे है इसी लिये उन्ही के विचारों के सम्मान में 2 अक्टूबर को अन्तरराष्ट्रीय अहिसा दिवस मनाया जाता है महात्मा गाधी जी ने बिटिश को पराजित करने में अहम रोल अदा किया है व्याप्त छु आ छुत के प्रति अपना आवज बुलंद किया वे चाहते थे की ऐक ऐसा समाज का निमार्ण हो और ऐसा र्द जा समाज को मिले जिसमें हर मानव को एक ही ईश्वर ने बनाया है सभी एक समाऱ्य है किसी भी मानव में भेद भाव ना हो सभी एक ही अधिकार के ह्क दार हो ये उनका सपना था हम सब हमारे बापू का सम्मान करते है उनका सपना तभी पूरा हो पायेगा जब हम उनके बताये हुये २ाह पर चल सकें सत्य अहिसा समानता शांति महिलाओं का सम्मान करें उनके बताये हुये विचारों को हमें जीवन में उतारना चाहिये और संकल्प लेना चाहिये तभी हम शांति अमन कर देश को हम सुनहरे दिशा की ओर ले जा सकते ये मैने लिखने का प्रयास किया
लाल बा ह दूर शास्त्री का नारा था जय जवान जय किसान इनका जन्म 2 अक्टूबर उन्नीस सौ चार में उत्तरप्रदेश के मुगल सम्राज्य में हुआ था उन्होने आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर भाग लिया था देश के प्रथम मंत्री हमारे ज्वाहर लाल पंडित जी की मृत्यु हुई तब हमारे शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधान मंत्री बने सन् 1964 में देश के मंत्री बने करीब डेढ़ साल तक मंत्री बने रहे शास्त्री जी के शासन काल के समय भारत और पाक का युद्ध हुआ पाक को पराजित किया उस दौड में भूख मरी अकाल पड़ा अनाज की कमी हुई और जवानों की भी कमी हुई तब हमारे प्रधान मंत्री लाल बा हादूर शास्त्री ने किसानों और जवानों के मनोबल बढ़ाने के लिये उन्होने नारा लगाया जय जवान जय किसान उनकी मृत्यु एक २हस्यमय ढंग से 1966में मृत्यु हो गई
आज का दिन है बड़ा महान आज के दिन दो फूल खिले एक गोरा एक काला इस शब्दों के साथ अपने नेताओं को श्रद्धा सुमन अर्पित कर ती हूँ
आशा ठाकुर अम्लेश्वर
जय हिन्द जय भारत
बन्दे मातरम 🌹🌹🙏🏻🙏🏻
सागरिका पटल की गतिविधियाँ
सागरिका पटल पर आप सभी का स्वागत अभिनंदन प्रणाम नमस्कार हैं
महात्मा गांधी की १५१ जयंती पर उनके “मुख्य सिद्धान्त “ बुरा ना देखो ,बुरा ना ,सुनो बुरा ना ,बोलो सत्य, अहिंसा की राह चलो लेकर
ये जीत हमारी ये अभिमान हमारा हैं
जहा बहती सागरिका की निर्मल धारा हैं
क्या लेकर आये है क्या लेकर जायेंगे
नित नयी राहों से सागरिका का
मंच गुलज़ार कर जायेंगे ,
बिछड़ें गर कभी नोक झोंक
से तों गंगा की अविरल धारा की तरह समाहित हो डुपकी लगा ,गले लग जायेंगे ।
सामयिक विषय पर मेरी रचना प्रसूत है
गांधी जी पर मेरी रचना प्रस्तुत है
मै अनिता शरद झा रायपुर छत्तीसगढ़ से
आप सभी का अभिवादन अभिनंदन करते
राष्ट्रीय अखंडता महात्मा गाँधी जयंती पर प्रस्तुत मेरी कविता हैं
“बापू की माला”
आज भी बापू की शिलालेख मालाओं से गूथा ये संसार हैं ।
जीवन का सार यही हैं
जीवन का लक्ष्य यही हैं
श्रद्धासुमन अर्पित मनोभाव की पुकार है ।
गांधी भारत माता माला के दुर्लभ वो मोती थे ।
आशाओं विश्वास में रत्न चमकते मोती थे
दीप जला उमंगों तरंगों से करते संचार थे ।
हुआ नही हासिल ये सौभाग्य किसी को
भारत माता सिर मोर बन मुकुट मणि कहलाते थे ।
अपनी सादगी अदभूत क्षमता से कर देते भाव विभोर थे ।
सिद्धांतों की अचूक सीख समझौता बापू कहलाते थे ।
गांधी चरखे सूत कात तुलसी माला
माँ कस्तूरबा कहलाती थी ।
कौशलक्षेत्र की माता से हुई , कल्पना रामराज्य की थी
गांधी ने पहचान बताई , ईश्वर राम राज्य ही कल्पना है ।
सच्चाई मितव्यता संचार हों ,वही ईश्वर बस जाते है ।
जगत कल्याण जगाया , जनमन में ममता विश्वास हैं ।
श्वेत धोती कपास माला पहन ,
शान्तिदूत बन आये
हर पत्थर की नींव मज़बूत बनाकर ,
स्वतंत्रता का ,बिगुल बजाया
ख़ुद करके देखो , अलख जगाया
पत्थर को भगवान बनाया
श्रद्धा का संचार जगाया
एक ही लक्ष्य था ,एक ही वाणी , मेरे सुख से मैं वंचित हो जाऊँ ,
अपनो से अपनो का जीवन संचित कर जाऊँगा ।
गर ज़रूरत दुश्मन को भी हो विश्वास उनका मैं बन जाऊँगा ।
बापू मन की आस यही थी
बापू मन का सार यही था
आज भी बच्चों की मन वाणी
एक ही बापू की अमर कहानी गूँज रही भूमंडल पर
महात्मा बापू कहलाये ।
अनिता शरद झा
रायपुर छत्तीसगढ़
सागरिका पटल के सभी सदस्यों का स्वागत अभिनंदन करते मुझे खुशी हो रही हैं हमर छत्तीसगढ़ सागरिका मैथिली मचान मौलिक विधाओं पर आप सभी अपनी मैथिली संस्कृति परम्पराओं की मौलिक गतिविधियों से किस तरह आगे बढ़ाने में सहायक होगे । विचारों नित्य संगीत कलात्मक सामाजिक रूढ़ियों के विषम अपने विचार विधायें स्वेक्षिक़ स्वतंत्र प्रस्तुति का स्वागत हैं अनिता शरद झा
एवम सखियां
स्वर्ग में हलचल है
बेटियों को धरती पर
आना है
किंतु भयभीत बेटियाँ
चीख-चीख कर
कह रही
न भेजो हमें उस देश
जहाँ
मनुज रूप लिए दानव
आतुर हैं
करने को
पल-पल प्रहार
हमारी आत्मा पर
उनके चक्षु
तेज हैं
उन तलवारों से भी
जो भेद जाते हैं
शरीर के अतड़ियों को
और
छीन लेते हैं चैन, सुकून
मगर उफ्फ तक नहीं करती दुनिया
उनके कारनामों पर.
दुनिया
हाँ
ये वही तो दुनिया है
जो मशगूल थी
दो दिवस पूर्व
हमारे सम्मान में
और मना रही थी त्योहार
जिसे बालिका दिवस कह रहे थे.
अनेक सुमधुर, सुसंस्कारित रचनाओं
और चलचित्रों से सजे थे
इनके चलित दूरभाष यंत्र
और हो रही थी बातें
मानो
बिटिया से बड़ी कोई संपत्ति
उस जहान में कोई है ही नहीं.
मगर
इन सब के बीच
एक और बेटी
लड़ रही थी लड़ाई
अपने हुए अपमान की
स्वाभिमान की
कराह रही थी
वेदना से
हां
वही वेदना जो दी थी उन्हें
तथाकथित पुरुषों ने
मगर कोई नहीं सुना पाया
और तोड़ गई वो दम
और आ गई हमारे पास
जैसे आई थी
निर्भया और न जाने
कितनी बहनें.
तभी तो हूँ
चिंतित
विचलित
जाने पर
उस लोक में
जहाँ
बेटियाँ है मात्र
भोग का सामान
और मौन हैं
समस्त बाहुबली
बन कर अनजान.
धन संचय
मितव्ययी बन
कंजूस नही
धन खर्च कर
बर्बाद नही
बचत जरूरी है
अति संग्रह नही
व्यय कर
आडम्बर नही
धन है तो
वर्तमान सुख है
संचित है तो भविष्य
पर गड़ा धन व्यर्थ है
रखा हो चाहे कहीं पर
ला बाजार में
चलता रहे तो
बढ़ेगा उत्पादन
होगा सदुपयोग वो
तो कर उतना ही संचय
बेहतर भविष्य मिले जिससे
वंदना झा
बेटियां
चकहती सुबह की पहली किरण है बेटियां
महकती शाम की खुशबू है बेटियां
ईश्वर की सौगात लेकर आती है बेटियां
नए- नए रिश्ते बनाती है बेटियां
त्याग और समर्पण का भाव है बेटियां
हर रिश्ते में प्यार भर जाती है बेटियां
प्रियंका ठाकुर
🌹🌹 बेटियां🌹
मां के रूप में ममता है बेटी ၊
पत्नी के रूप में अप्सरा है बेटी ၊
पिता के पिछले जन्म की कर्ज है बेटी ၊
भाई के सुने कलाई की राखी है बेटी ၊
पीहर और ससुराल दोनों कुल की मान है बेटी ၊
जिस पर , नाज है सबको वह है बेटी ၊
अपना भाग्य साथ लाती है, बेटी ၊
हर घर की लक्ष्मी है ,बेटी ၊
घर घर , पूजी जाती हैं , बेटी
हर घर की , मान , मर्यादा है बेटी ၊
दोनों कूल की जान है बेटी ၊
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
निशा ठाकुर 🙏🏻🙏🏻
बेटी ज्ञान वाणी हैं
बेटी ही जगत कल्याणी ज्ञान की वाणी हैं
टिमटिमाती रोशनी झिलमिलाती रोशनी हैं
गीता बाइबिल हो क़ुरान सुंदर इनकी वाणी हैं ।
ये पुस्तकों में सजी हर पन्नो में ज़बानी होती हैं ।
दिन हो या रात अंधेरो में टिमटिमाती रोशनी में ,
अपनी कामयाबी ललक से ज्ञानदीप होती हैं ।
आप दीपों भव की तरह ज्ञानवाणी किताबें हैं ।
ये बेटी बेबी डाल प्रिंसेस छोरी मोड़ीं ना जाने ,
कितने नामों से पुकार वजूद क़ायम करती है।
वयःउम्र आते ज्ञानकीर्ति से जगत कल्याणी है ।
ये पुस्तकें ऐतिहासिक लाजवाब कहानी होती हैं ।
मूक होकर बेटी नारी इतिहास बया कर ज़ाती हैं ।
जिसका अभिमान भारतवासी बेटी बचाव पढ़ाव ।
कर अपना स्वाभिमान बढ़ा बेटी ही
छत्तीसगढ़ में पहचान माँ , बेटी
वो दुर्लभ क्षण , नही भुलाते यें दिन
बहुमूल्य उपलबद्धियो के साथ साथ
जय जोहार जय छत्तीसगढ़ मोर रायपुर
“अंतरंगता की पहचान “
बेटियाँ अंतरंगता की पहचान ,बहु रूप में मन का दर्पण होती है ।
चाहे अपनी कर्म भूमि हो (. ससुराल पीहर )अपनेअन्तरंग अनगिनत किरणो से बड़ी आत्मीयता ,आत्म विश्वास साथ लिये दृढ़ता ,सरलता ,सहजता ,से अपने लक्ष्य को पार कर बहु ,माँ ,का रूप ले ,नारी शक्ति को जन्म दे ।नर ,से नारी और नारी से नारायण को जन्म दिया ।
संयुक्त परिवार में रह एक बेटी के ,बाद दूसरी बेटी को जन्म देना ,।जहाँ समझ ही नहि बेटे बेटियों में क्या अन्तर होता हैं ।नित नये हॉस परिहास को झेलते अपने प्रेम ,स्नेह ,कर्तव्य की गंगा में पारिवारिक सामाजिक सारे दायित्यों को ममतव बाण ले कर दे कर अपने बेटे बेटियों को यही शिक्षा दीक्षा दी जिसे वो राम बाण समझ अपने अपने जीवन में ब्रह्म वाक्य की तरह अनुसरण किया ।अपने अपने जीवन में सफल हुए ।
समय बचपन के साथ अपने अनेको रंग घटना क्रम के साथ दिखाते है
दूध की बाँटल तकिये से लगा कर ख़त्म होने पर नीचे डाल स्थिति का अहसास कराते घुटनो के बल मिट्टी से सने फफोले पड़े हाथ पैर पहले पहुँचने की ललक,फ़ितरत ही लक्ष्य बन गये आज वे कामयाबी की हर सीढ़ी कोविद्युत से चलनेवाली सीढ़ियों को बिना पारितोषिक पार कर जाते है ।धन्यवाद या अन्य आडंबरों की आवश्यकता ही नहीं होती गुड़ियों गुड़ों का खेल बेट बाल,चंदा मामा,चंपक,बाल भारती, चाचा चौधरी गरमियों की छुट्टियों में लायबरी बनाकर फ़ाईव स्टार से ही आत्म सन्तुष्टि हो जाया करतीं है
आधुनिकता और प्रतिस्पर्धा की दौड़ में क्या हम ऐसी शिक्षा दे पाएँगे ।
जिसका अहसास हमें हर क्षण हुआ करता है ।हर परिस्थितियो अडिग साहस आत्म विश्वास धैर्य रखते हुए परम्पराओं को आगें बड़ाते हुए हर माँ कीयही चाहत हुआ
करतीं जितनी उपलब्धियाँ उसे हासिल हुई उसे दुगना चौगुना अपने बच्चें को विरासत में दे !
माँ बेटे बेटियों में तनिक भी अन्तर महसूस नहीं करती क्या ये बातें सच है ? माँ हमारे बेटों के जन्म के समय जो हम सबने ऐसा आलोकिक रूप निखार देखा ,।पर पापा जैसा कोई हो ही नहि सकता । ये बेटियाँ तो कहती रहती है
मम्मी कहती -
बेटे किसी कम नहि होते हैं ।
श्रीमती अनिता शरद झा
रायपुर छतीसगड़
आज Daughter day पर
बिटिया
आ कर मेरी गोद में बिटिया,मुझे धन्य किया है तुमने।
मन ही मन तृप्त हुई मैं, जो अमृत पिया है तुमने।
मुदित हुई मैं , जो दिखाई बाल लीला तुमने,
ठुमक-ठुमक तुम चलीं ,संग तुम्हारे चलना सीखा मैने।
बरस दर बरस उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ती गई तुम,
पता नहीं चला कब मेरा प्रतिरूप हुई तुम ।
पढ़ाई के और सभी क्षेत्र में बढ़ती गई तुम।
गौरवान्वित होती मैं, जीतती गई तुम ।
ससुराल में मेरे सिखाये का मान रखा।
अपने गुण से दो कुल को जोड़ती गई तुम ।
नीरजा ठाकुर
पलावा डोंबीवली
महाराष्ट्र
मैने पुत्री धन पाया
रात चांद घर आया
आसमान पर निकला चांद
मेरे निकट नन्ही सी बेटी
लगा देख वो मेरे दर आया
आज मैंने पुत्री धन पाया
चांदनी बिखरी
पूरे घर मे
खुशियां तारों की तरह
मेरे दर आया
उंगली पकड़ मेरी
चलती नन्ही परी
नन्हे कदम जैसे
चल रहा चाँद खिला
क्यों निराश हों
कि पुत्र रत्न न पाया
मैने सबको अपनाया
पढ़ते लिखते
बढता चाँद
मेरे घर आया
मैने खूबसूरत
पुत्री धन पाया
फिर एक रात
देखा दरवाजे पर
आज फिर
चाँद मेरे दर आया
साथ सूरज की
चमक लाया
दूल्हा बन सूरज आया
कहा मुझ बिन नही
पूर्ण दिन रात है
आज दिन मेरे घर आया
कौन कहता है
पुत्र रत्न नही पाया
मैंने पुत्री के साथ
पुत्र भी पाया
अपनेपन का
है परिणाम
सब धन रत्न समान
नही तो रत्न भी
आता है किस काम
मैने सब धन पाया
नही कोई गिला शिकवा
जो भी मिला
मेरा अपना हुआ
प्यार है धन
सबसे बड़ा
बहुत सुंदर
चाँद मेरे घर आया
जो मैंने पुत्री रत्न पाया
वंदना झा
स्वरचित मौलिक
श्रद्धेय दिनकर जी के लिये स्वरचित मौलिक रचना प्रेषित हैं ।
* नील गगन#*
कर गया मन भाव विभोर
दिनकर की रचना सुनकर
ललकार रहा पुकार है ।
नीलगगन के सितारों को
देख हो गया मन विभोर ,
नील गगन में चमक गये सितारे अनेक ,
फिर से कोई ऐसा आयेगा ।
नित नयी राह रोशनी जगा जायेगा ।
भीष्म की तरह काँटों की सेज में लेट ,
अस्तित्व की लड़ाई को
देख कोई कृष्ण सहअस्तित्व जगा जायेगा ।
सच का आइना दिखा जायेगा ।
विरह के बादल छटजायेगे ।
घने काले प्रदूषण से भरे बादलों के बीच टिमटिमाति रोशनी से उजाला कर जायेगा ।
मन के अँधियारे को दूर भगा ।
सूरज की नई क़िरणो के साथ जगा जायेगा ।
प्रकृति की हरियाली स्पंदन से
नई कोंपलों के ,साथ साथ आगे बढ़ कर ,
इस धरा पर ,आच्छादित हो हरियाली के साथ इन्द्रधनुषी रंगों को बिखेर जायेगा ।
फूलों की ख़ुशबुओं फलों से अमृत पान कर ,
अपना वजूद क़ायम क़र जायेगा ।
नित नये साज सरगम से मीत बन ओज गीत सुनायेगा ।
भ्रम राग द्वेष मिटा मन की कटुता को दूर कर अहसास जगा जायेगा ।
यें खूबसूरत वो पल होगा ।
नदियाँ सागर मिल प्रसन्न होगा ।
लहरों का रूप निखर
संध्याकाल सूर्यास्त का जल होगा ।
सूर्योदय से फिर होगी ।
एक नये जीवन की नई सुरूवात ,
ना डर होगा, ना भय होगा ।
हर क़दम साथ ,साथ
मिलकर वीराना ये चमन होगा ।
नील गगन सितारों को चमका जायेगा ।
अनिता शरद झा रायपुर छत्तीसगढ़
पाहचान मेरी कह रही ।।
क्यू छुपी हूइ सी मै रही ...
किसी और के नाम से क्यू ....
क्यू जुडी हुइ सी मै रही ।।
क्यूँ छुपा लिया है तुने मुझे ।।
ममता के साऐ मे ।।
अपना नाम ना सूना ..।
तेरे ससुराल जाने से ।।
कभी सूना बहुरानी ।।
कभी सूना मेरी अर्धांगिनी ...।
सिसक कर बोल रही आज पहचान मेरी ।।
खयाल मेरा भी रख जरा ।।
कही खो ना जाऊ मै कही ...
वजुद मुजसे ही है तेरा ।।
खयाल मेरा भी रख जरा ।।..
कह रही पहचान मेरी ।।
खूद को भी संभल जरा ।।
प्रांजलि ठाकुर
अफसोस नहीं की मै बेटी हुँ।
अफसोस तो ये है की वो मेरे जैसा नहीं ।
जिससे माँ आश लगाती है।
दीन भर उसकी राह देख कर,
भीगे नैनों में ही सो जाती है।
क्यु पास रह कर भी , वो देख नहीं पाता
जो दर्द मैं दुर रह कर देख जाती हूँ।
कितना नासमझ हैं वो,
कदर नहीं करता उनकी
जिनके लिए मैं तरसती हूँ।
किसने बनाया ये रित की ,
बेटियों को ससुराल जाना है
माँ बाप के ममता का कर्ज ,
हमें भी तो चुकाना है।
मजबूर हुँ के दूर हुँ, कि फिर से इठलाना है।
ममता के साये मे सर झुकाना है।
फिर से बचपन में लौट जाना है।
प्रांँजलि ठाकुर
तन्हाई भी अजब चीज़ है
आज जाने क़्य सूझी
कि गम बॉंट लिया मैने
पीता रहा कडवा घूंट
क्यो आज साझा किया मैने
पल भर न खोया धैर्य
आज रोकर गम को आधा किया मैने
तन्हाई भी अजब चीज है
खुद को खुद से मिलाती है
कुरेद कर आज हर जख्म को
ताजा किया मैने
हर पल को जीकर
फिर से जीने का वादा किया मैने
वंदना झा (स्वरचित)
तो शिक्षक अमृत का गागर है ।
विद्यालय एक मंदिर है ,
तो शिक्षक वहाँ का पंडित हैं ।
गुरु-शिष्य का पावन रिश्ता ,
जन्म-जन्मांतर से निभता आया ।
सौ सुनार की एक लोहार की,
गुरु की वाणीं जीवनदायिनी
जब चाणक्य जैसे गुरु हों,
और चंद्रगुप्त सा शिष्य हो ।
जहाँ अखंड भारत का स्वप्न हो,
हर स्वप्न साकार कर जातें हैं वों।
ज्ञान की अग्नि में तपकर ,
हजारों कसौटियों में कसकर ।
जब शिष्य कुंदन बन जाता है,
सारे जग को आलोकित कर जाता है।
आओ आज शिक्षक दिवस पर,
हम सब ये प्रण कर लेतें हैं ।
गुरुजनों का रखेंगे सदा मान-सम्मान,
एकलव्य की राह पर चलते हैं ।
पल्लवी झा (रूमा)
स्वरचित✍🏻
रायपुर छत्तीसगढ़
*हे राम*
******
हे राम आदि, अनादि, अनंत
के जग कर्ता, जानकी के कंत
रोम- रोम में समाने वाले राम है
कण-कण में छुपे है राम
घट-घट में बसे है राम,
सबके उर मे बसने वाले
अंतर्यामी राम है......
सुख-दुख में है राम
माँ की ममता में राम
वात्सल्य में समाहित
आज्ञाकारी सुत राम है.....
प्रेम, त्याग मे है राम
जन के मन-तन में राम
हर युग के अवतारी राम
मयार्दा पुरूषोतम राम है......
*जय श्री राम, जय श्री राम*
*अनुसुईया झा
********************
माँ शब्द ऐसा है जिसे सुनकर व बोलने मात्र से ही स्फूर्ति आ जाती है । इस रिश्ते को शब्दों में बाँधना अथवा पिरोना एवं सुंदर तरीक़े से परिभाषित करना नामुमकिन है । यह असीमित रुप में व्याप्त है । लोगों की अपनी अपनी अनुभूति होती है वो अपने अपने अनुभव के आधार पर माँ की ममता को परिभाषित करने का प्रयास करता है । सभी को अपनी माँ बहुत प्यारी और अच्छी लगती है । माँ भी अपने बच्चों पर सर्वस्व न्योछावर कर देती है । माँ की ममता का कोई मोल नहीं है । माँ की ममता तथा लाड़ दुलार पाने के लिए स्वयं भगवान को भी माँ के आँचल में आना पड़ा था । एक नवजात शिशु अपने माँ के आँचल में छुपते छुपाते कब बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता । उसकी अठखेलियाँ , माँ से लाड़ लड़ाते , उत्तम संस्कारों के साथ बड़े होने लगते हैं । माँ को बच्चों की प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है । वह बच्चों में हमेशा अच्छे संस्कारों का ही बीजारोपण करती है जो कि गर्भकाल से प्रारंभ करती है । ईश्वर से प्रार्थना करते रहती है कि बच्चे में कोई अवगुण न पनपने पाए ।
माँ शब्द यूँ तो बहुत सरल और आसान सा है जिसे हर कोई आसानी से बोल पाता है । हम आज भी परेशानी आने पर सर्वप्रथम माँ को ही याद करते हैं । हम जानते हैं जो भी समस्या है उसे हमको ही सुलझाना है पर जब तक माँ को याद न करें समाधान का रास्ता नहीं निकलता । माँ भी यही चाहती है कि बच्चों पर कोई संकट न आए बल्कि उसके ऊपर आने वाली बला को अपने ऊपर लेने के ढाल बनकर हर पल सामने खड़ी रहती है । जब तक लड़की छोटी रहती है वह अपने माता पिता ,दादा दादी , भाई-बहन सबकी लाड़ली होती है लेकिन जैसे जैसे बड़ी होते जाती है धीरे धीरे माँ के काम में हाथ बटाने लगती है । एक समय ऐसा भी आता है जब उसे अपना सबकुछ छोड़कर पराए घर में अजनबियों के बीच आना पड़ता है जहाँ उसका अपना कोई भी नहीं होता । वह वहाँ के वातावरण अनुसार अपने को ढालने लगती है । कभीकभी सही जीवनसाथी न मिलने के कारण बहुत से विवादों एवं अपमानजनक परिस्थितियों के होते हुए भी बच्चे के कारण सबकुछ सहकर भी खुशी खुशी उसका लालनपालन करती है । उच्च शिक्षा दिलवा कर योग्य बनाती है । यह सब लिखते हुए मुझे एक घटना याद आ गयी जो कि बिल्कुल सत्य घटना है और मेरे ही साथ घटित हुई थी । आप सबके साथ शेयर तो नहीं करना चाहिए पर अब लिख ही देती हूँ । सन् 1989-90 की घटना है तब हम मांढर में रहते थे । रायपुर में हमारे छोटे चाचा ससुर जी की बरषी थी । उसमें शामिल होने रायपुर आना था । हमारे घर से स्टेशन बहुत दूर था तथा गाँव में पैदल के अलावा और कोई साधन नहीं था । शारदीय नवरात्रि की नौमी तिथि कभी भुलाए नहीं भूलती । हम लोग जब स्टेशन पहुंचे तो गाड़ी आते दिखाई दी तो हम लोग गाड़ी पकड़ने के लिए एक खड़ी मालगाड़ी के नीचे से दूसरे प्लेटफार्म में जाने के लिए जाने लगे वहाँ पर ओवरब्रिज न होने के कारण ऐसे ही जाना पड़ता है । आज भी शायद ओवरब्रिज नहीं बना है । जैसे ही हम लोग मालगाड़ी के नीचे घुसे गाड़ी चल पड़ी । मेरे श्रीमान जी और बिटिया तो बाहर निकल गये पर मैं और मेरा बेटा दोनों नहीं निकल पाए । इन्होंने बेटे को निकालने का प्रयास तो किया पर सफलता नहीं मिली । मैं बेटे को दबोच कर चुपचाप मातारानी को याद करते पटरी में लेटे रही । देखते देखते पूरी मालगाड़ी ऊपर से निकल गयी तब तक मैं शायद बेहोश हो गयी । एकत्र भीड़ में किसी ने हम दोनों को बाहर निकाला । सामने ही देवी का मंदिर था सबकुछ ठीक था सो माता के मंदिर उस दिन लोगों ने बहुत पूजा की नारियल फोड़े । उसके बाद हम लोग वापस घर चले गये । सो सच है कि एक माँ अपने बच्चे के लिए जान की बाजी भी लगा देती है । अतः माँ में अद्भुत शक्ति है उसके विषय में जितना भी लिखा जाए कम है ।
सरला झा
मातृशक्ति को नमन🌹🙏🙏🌹
श्रद्धेय दिनकर जी के लिये स्वरचित मौलिक रचना प्रेषित हैं ।
* नील गगन#*
कर गया मन भाव विभोर
दिनकर की रचना सुनकर
ललकार रहा पुकार है ।
नीलगगन के सितारों को
देख हो गया मन विभोर ,
नील गगन में चमक गये सितारे अनेक ,
फिर से कोई ऐसा आयेगा ।
नित नयी राह रोशनी जगा जायेगा ।
भीष्म की तरह काँटों की सेज में लेट ,
अस्तित्व की लड़ाई को
देख कोई कृष्ण सहअस्तित्व जगा जायेगा ।
सच का आइना दिखा जायेगा ।
विरह के बादल छटजायेगे ।
घने काले प्रदूषण से भरे बादलों के बीच टिमटिमाति रोशनी से उजाला कर जायेगा ।
मन के अँधियारे को दूर भगा ।
सूरज की नई क़िरणो के साथ जगा जायेगा ।
प्रकृति की हरियाली स्पंदन से
नई कोंपलों के ,साथ साथ आगे बढ़ कर ,
इस धरा पर ,आच्छादित हो हरियाली के साथ इन्द्रधनुषी रंगों को बिखेर जायेगा ।
फूलों की ख़ुशबुओं फलों से अमृत पान कर ,
अपना वजूद क़ायम क़र जायेगा ।
नित नये साज सरगम से मीत बन ओज गीत सुनायेगा ।
भ्रम राग द्वेष मिटा मन की कटुता को दूर कर अहसास जगा जायेगा ।
यें खूबसूरत वो पल होगा ।
नदियाँ सागर मिल प्रसन्न होगा ।
लहरों का रूप निखर
संध्याकाल सूर्यास्त का जल होगा ।
सूर्योदय से फिर होगी ।
एक नये जीवन की नई सुरूवात ,
ना डर होगा, ना भय होगा ।
हर क़दम साथ ,साथ
मिलकर वीराना ये चमन होगा ।
नील गगन सितारों को चमका जायेगा ।
अनिता शरद झा रायपुर छत्तीसगढ़
🙏
जवाब देंहटाएं🙏
जवाब देंहटाएंV nice n useful
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सभी रचनाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएं