काफी लम्बे समय बाद हमारी संस्कृति पर चर्चा हो रही है
प्रश्न?
पितृ पक्ष और महालया लक्ष्मी पूजन का अर्थ? दोनों साथ क्यों?
एक तरफ पितृ तर्पण और एक महालक्ष्मी पर्व?
लक्ष्मी पूजन भी गज वाहिनी लक्ष्मी महालक्ष्मी क्यों नही होगी? वर्ष में दीपावली,कोजागरी को भी लक्ष्मी पूजा होती है।परंतु महालक्ष्मी पूजा सिर्फ पितृ पक्ष में श्राद्ध और पूजन साथ करते हैं? इसका रहस्य खोजते हैं? आप अपने विचार प्रकट कर सकते हैं।
श्रीमती आशा ठाकुर का उत्तर - पितृ पक्ष और महालक्ष्मी पूजन का अर्थ और महत्व कुछ इस तरह है।
जैसे की पृत पक्ष एक पारंपरिक हिन्दूओं के श्रद्धा से जुड़ी ( पूर्वजों ) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है।
इस दौरान , लोग अपने पितरों की आत्मा शांति के लिए तर्पण , श्राद्ध करते है।
पितृ पक्ष का उद्देश्य होता है। अपने पितरों की आत्मा को तृप्ति करना और मोक्ष की प्राप्ति दिलाने में मददत करना होता है।
महालक्ष्मी पूजन : -
महालक्ष्मी पूजन देवी की आराधना के लिए की जाती है। इस पूजन का यह अर्थ है। की महालक्ष्मी पूजन से सुख , समृद्धि , धन की प्राप्ति होती है। इस उद्देश्य से इसकी पूजा की जाती है।
अब प्रश्न यह है। की महालक्ष्मी की पूजा एवं पितृ पक्ष दोनों साथ साथ क्यों
मनायी जाती है।
यह मानना है। की पितरों की आत्म शांति एवं तृप्ती के लिए की जाने वाली पूजन में देवी लक्ष्मी की कृपा की आवश्यकता होती है।
गज लक्ष्मी महालक्ष्मी क्यों नहीं होगी ?
गज लक्ष्मी और महालक्ष्मी दोनों देवी लक्ष्मी जी का स्वरूप है। लेकिन उनके अर्थ और महत्व में अंतर है। गज वाहिनी लक्ष्मी देवी लक्ष्मी की एक विशिष्ट रूप को दर्शाता है। जिसमें वह हाथी पर सवार होती है।
महालक्ष्मी पूजन में देवी लक्ष्मी जी को उनकी समृद्धि , और धन की शक्ति के रूप पूजा जाता है। जो पितरों की आत्मा की शांति और परिवार की सुख , समृद्धि के लिए आवश्यक है।
देवी लक्ष्मी की कृपा की महत्व पूर्ण भूमिका होती है।
🙏🙏
श्रीमती सपना ठाकुर - रहस्य का ज्ञान तो मुझे नहीं है,🙏 परंतु ये दोनों पितृ तर्पण और महालक्ष्मी पूजन विधि द्वापरयुग के महाभारत काल खण्ड में ही अलग-अलग समय प्रारंभ हुए हैं 🙏 युद्ध से पहले महालक्ष्मी पूजन माता कुंती और महारानी गांधारी ने किया 🪷 तथा कर्ण कि कथा से आप सभी परिचित ही है,🙏युद्ध के पश्चात् कर्ण कि मृत्यु हो गयी थी जब वे स्वर्ग में पहुंचे तो उनको भोजन में स्वर्ण ही दिया जाता था क्योंकि जो वस्तु आप धरती पर धर्म युक्त हो कर दान करते हैं वहीं मृत्यु के बाद पर लोक में मिलता है 🙏🙏 महालक्ष्मी पूजन् में भी तर्पण शब्द आता है जब महर्षि व्यास जी ताजी दूर्वा से लक्ष्मी जी को जल का तर्पण देने को कहते हैं, इससे समझा जा सकता है कि, अश्विन मास तर्पण हेतु श्रेष्ठ है, जिसमें देवता तथा पितृ दोनों को ही तर्पण देकर संतुष्ट तथा प्रसन्न किया जाता है, दानवीर कर्ण को स्वर्ग में भूखा रहना पड़ता था तब भगवान् ने उन्हें धरती पर जानकर पितरों के निमित्त तर्पण देकर अन्न जल दान करने को कहकर धरती पर भेज दिया जो 16 दिन दानवीर कर्ण धरती पर रहने आए वह अश्विन मास का था जिसे हम सब आज पितृ पक्ष कहते हैं , पितृ तर्पण और श्राद्ध दान का प्रारंभ किया,जो आज हम सब के लिए एक पवित्र पर्व है, अपने अपनों को हृदय से स्मरण करने का🙏🙏 महालक्ष्मी पूजन परंपरा पहले शुरू हुई बाद में पितृ तर्पण 🙏🙏🙏 पता नहीं मेरे विचार कितने सही है या नहीं ये आप सभी बड़े मुझे समझाइएगा 🙏🙏🙏🙏
मेरा व्यक्तिगत विचार पितृपक्ष में महिलाओ को भी अपने पूर्वजो को जल अवश्य ही देना चाहिए जल सम्मान है हमारे सनातन धर्म में पूरूषो को तर्पण करने का विधान है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान की पहचान पूरूषो के नाम पर आधारित है बहुत गर्व की बात है मेरा विषय है महिलाओ पर एक बिटिया का सबसे अधिक लगाब पिता से होता है काम से आते ही ही पापा की परी बेटी पानी चाय अवश्य देती है पापा कैसी तबीयत है थके थके लग रहे हो सुनकर पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष देते है विवाह के बाद भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान में कमी नही करते पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त पितृपक्ष में एक लौटा जल में जरा सी मिस्री मिलकर दक्षिण में माता पिता को याद करते है जल दीजिए उनकी तिथि में यथाशीघ्र दान भोजन अवश्य करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह किये तो आप भी कुछ उनके निमित्त करे बहुत आशीर्वाद मिलेगा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है
श्रीमती सलीला ठाकुर - सभी पितृगणो को सादर नमन पितृपक्ष को बहुत श्रृद्धा सम्मान और सावधानी से मनाना चाहिए।इस पखवाड़े में हमारे पूर्वज अपने परिवार के सदस्यो को देखने आते है अतः हम सभी को पितृगणो का भरपूर सम्मान करना चाहिए उनके पंसद के व्यंजन बनाये मातृपितृ स्वरूप बुजुर्गो को भोजन कराये .विशेष ध्यान रखे इस पखवाड़े गीता का 7 वा अध्ययन और 18 वा अध्ययन अवश्य पढे नया कार्य प्रारंभ ना करे लकड़ी के समान फर्नीचर बिल्कुल ना खरीदे लकडी का संबंध सीधे शैय्या दान से होता है रात में एक बाती का दीया पितृरो के नाम से रखे रसोई में दीया की लौ दक्षिण दिशा में हो एक लौटा जल भी दीया के साथ रखे सुबह जल पौधौ में डाल दे पितृपक्ष में रोज करे पितृगण का विशेष आशीर्वाद मिलेगा
मेरा व्यक्तिगत विचार पितृपक्ष में महिलाओ को भी अपने पूर्वजो को जल अवश्य ही देना चाहिए जल सम्मान है हमारे सनातन धर्म में पूरूषो को तर्पण करने का विधान है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान की पहचान पूरूषो के नाम पर आधारित है बहुत गर्व की बात है मेरा विषय है महिलाओ पर एक बिटिया का सबसे अधिक लगाब पिता से होता है काम से आते ही ही पापा की परी बेटी पानी चाय अवश्य देती है पापा कैसी तबीयत है थके थके लग रहे हो सुनकर पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष देते है विवाह के बाद भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान में कमी नही करते पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त पितृपक्ष में एक लौटा जल में जरा सी मिस्री मिलकर दक्षिण में माता पिता को याद करते है जल दीजिए उनकी तिथि में यथाशीघ्र दान भोजन अवश्य करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह किये तो आप भी कुछ उनके निमित्त करे बहुत आशीर्वाद मिलेगा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है
मेरा व्यक्तिगत विचार पितृपक्ष में महिलाओ को भी अपने पूर्वजो को जल अवश्य ही देना चाहिए जल सम्मान है हमारे सनातन धर्म में पूरूषो को तर्पण करने का विधान है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान की पहचान पूरूषो के नाम पर आधारित है बहुत गर्व की बात है मेरा विषय है महिलाओ पर एक बिटिया का सबसे अधिक लगाब पिता से होता है काम से आते ही ही पापा की परी बेटी पानी चाय अवश्य देती है पापा कैसी तबीयत है थके थके लग रहे हो सुनकर पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष देते है विवाह के बाद भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान में कमी नही करते पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त पितृपक्ष में एक लौटा जल में जरा सी मिस्री मिलकर दक्षिण में माता पिता को याद करते है जल दीजिए उनकी तिथि में यथाशीघ्र दान भोजन अवश्य करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह किये तो आप भी कुछ उनके निमित्त करे बहुत आशीर्वाद मिलेगा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है
मेरा व्यक्तिगत विचार पितृपक्ष में महिलाओ को भी अपने पूर्वजो को जल अवश्य ही देना चाहिए जल सम्मान है हमारे सनातन धर्म में पूरूषो को तर्पण करने का विधान है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान की पहचान पूरूषो के नाम पर आधारित है बहुत गर्व की बात है मेरा विषय है महिलाओ पर एक बिटिया का सबसे अधिक लगाब पिता से होता है काम से आते ही ही पापा की परी बेटी पानी चाय अवश्य देती है पापा कैसी तबीयत है थके थके लग रहे हो सुनकर पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष देते है विवाह के बाद भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान में कमी नही करते पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त पितृपक्ष में एक लौटा जल में जरा सी मिस्री मिलकर दक्षिण में माता पिता को याद करते है जल दीजिए उनकी तिथि में यथाशीघ्र दान भोजन अवश्य करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह किये तो आप भी कुछ उनके निमित्त करे बहुत आशीर्वाद मिलेगा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है
महर्षि वेद व्यास जी द्वारा महालक्ष्मी व्रत की कथा सुनाई गई।१६दिन १६गांठ वाले डोरे की विस्तृत कथा आप सभी जानती हैं 🙏
गांधारी के सौ पुत्रों द्वारा विशाल हाथी मिट्टी का बनाया गया, जिस पर महालक्ष्मी
गजलक्ष्मी रुप में स्थापित कर गांधारी ने पूजन किया पर इस पूजा में कुंती को निमंत्रण नहीं था ।
फलस्वरूप उन्हें उदास देखकर अर्जुन ने स्वर्ग से इंद्र ,(पिता)देवता का ऐरावत हाथी बुलाया ।
उसपर महालक्ष्मी के गजस्वरूप की भव्य पूजा की गई।
कर्ण द्वारा पित्र पक्ष का आरंभ सपना बहन ने बताया है दोनों तर्पण एवं पूजन सम्मिलित रुप से महालया पर्व पक्ष कहलाते हैं
श्रीमती वंदना ठाकुर -
बहनो मैं आज एक ऐसे विषय मैं चर्चा करने जा रहैं जिसमें दिन और तिथि एक ही है पर कथा दो हैं
जनवितरण व्रत---
पहली कथा है जिसका संबंध श्रीकृष्ण और अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा से हैं द्वापर युग मैं अश्वत्थामा के बाण के प्रभाव से उत्तरा का पुत्री गर्भ मैं ही मृत्यु हो गई थी जिसे श्रीकृष्ण नें अपने पुण्य फल और योग साधना से पुनर्जीवित कीया और उत्तरा के उस पूत्र का नाम जिवितपूत्रिका रखा तभी से महीलाऐ अपनी संतान की रक्षा के लिए इस व्रत को करती हैं।
तथा इसमें संबंधित दूसरी कथा जो हम सभी जानते व पढते है वह चील और सियारिन की इसमें चील और सियारिन कुछ महीलाओं को व्रत और पूजा करते देखती हैं और दौनो इस व्रत को करने की कामना करती हैं सियारिन भूखे रहने के कारण मरे हुए पशु का मांस खालेती हैं और चील पूरे समर्पण से इस व्रत को करती हैंइस व्रत के फल सें चील के बच्चे पूर्ण स्वस्थ और सुखी रहते है और सियारिन के बच्चे मरते जाते हैं तब सियारिन ने इसका कारण पूछा तब जिवित ब्राम्हण ने जिन्हे यह कथा स्वयं श्रीकृष्ण ने बताई थी को सियारिन को बताया और चील ने पिछले जन्म की कहानी बताई तब सियारिन भी इस व्रत के महत्व कोने और सून कर इस व्रत को किया जिससे उसके भी बच्चे जिवित रहने लगे इस कारण ही महीलाऐ आज भी बच्चो की सुखी जिवन के लिए इस व्रत को करती हैं
कछ महीलाऐ इस व्रत के साथ महालक्ष्मी का जिसमें गज। लक्ष्मी भी कहते है का व्रत भीतरी हैजिससे धर मैंबच्चो की खुश हाली के साथ साथ सुख समृद्धी भी आती हैं हम आज इन्ही परपंरा का पालन करते आ रहैं हैं अब इसमे जो भी गलती हो उसके लिए 🙏🏻🙏🏻
मेरा व्यक्तिगत विचार पितृपक्ष में महिलाओ को भी अपने पूर्वजो को जल अवश्य ही देना चाहिए जल सम्मान है हमारे सनातन धर्म में पूरूषो को तर्पण करने का विधान है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान की पहचान पूरूषो के नाम पर आधारित है बहुत गर्व की बात है मेरा विषय है महिलाओ पर एक बिटिया का सबसे अधिक लगाब पिता से होता है काम से आते ही ही पापा की परी बेटी पानी चाय अवश्य देती है पापा कैसी तबीयत है थके थके लग रहे हो सुनकर पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष देते है विवाह के बाद भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान में कमी नही करते पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त पितृपक्ष में एक लौटा जल में जरा सी मिस्री मिलकर दक्षिण में माता पिता को याद करते है जल दीजिए उनकी तिथि में यथाशीघ्र दान भोजन अवश्य करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह किये तो आप भी कुछ उनके निमित्त करे बहुत आशीर्वाद मिलेगा मेरा व्यक्तिगत अनुभव हैबहनो मैं आज एक ऐसे विषय मैं चर्चा करने जा रहैं जिसमें दिन और तिथि एक ही है पर कथा दो हैं
जनवितरण व्रत---
पहली कथा है जिसका संबंध श्रीकृष्ण और अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा से हैं द्वापर युग मैं अश्वत्थामा के बाण के प्रभाव से उत्तरा का पुत्री गर्भ मैं ही मृत्यु हो गई थी जिसे श्रीकृष्ण नें अपने पुण्य फल और योग साधना से पुनर्जीवित कीया और उत्तरा के उस पूत्र का नाम जिवितपूत्रिका रखा तभी से महीलाऐ अपनी संतान की रक्षा के लिए इस व्रत को करती हैं।
तथा इसमें संबंधित दूसरी कथा जो हम सभी जानते व पढते है वह चील और सियारिन की इसमें चील और सियारिन कुछ महीलाओं को व्रत और पूजा करते देखती हैं और दौनो इस व्रत को करने की कामना करती हैं सियारिन भूखे रहने के कारण मरे हुए पशु का मांस खालेती हैं और चील पूरे समर्पण से इस व्रत को करती हैंइस व्रत के फल सें चील के बच्चे पूर्ण स्वस्थ और सुखी रहते है और सियारिन के बच्चे मरते जाते हैं तब सियारिन ने इसका कारण पूछा तब जिवित ब्राम्हण ने जिन्हे यह कथा स्वयं श्रीकृष्ण ने बताई थी को सियारिन को बताया और चील ने पिछले जन्म की कहानी बताई तब सियारिन भी इस व्रत के महत्व कोने और सून कर इस व्रत को किया जिससे उसके भी बच्चे जिवित रहने लगे इस कारण ही महीलाऐ आज भी बच्चो की सुखी जिवन के लिए इस व्रत को करती हैं
कछ महीलाऐ इस व्रत के साथ महालक्ष्मी का जिसमें गज। लक्ष्मी भी कहते है का व्रत भीतरी हैजिससे धर मैंबच्चो की खुश हाली के साथ साथ सुख समृद्धी भी आती हैं हम आज इन्ही परपंरा का पालन करते आ रहैं हैं अब इसमे जो भी गलती हो उसके लिए 🙏🏻🙏🏻
श्रीमती सलीला ठाकुर -
सादर प्रणाम पितृपक्ष में सनातन धर्म को मानने वाला सभी बहुत ही खुशी से श्रृद्धा इस पखवाड़े को मनाते है खून का रिश्ता बहुत मजबूत होता है संसार में कितने भी रिश्ते बना ले पर समय आने पर वही रिश्ता काम आता है जिसमें वैचारिक मतभेद और अटूट प्रेम संबंध हो मातापिता सास ससुर भाई बहन ससुराल पक्ष के करीबी ही खून का रिश्ता है इसलिए पितृपक्ष में दिल से यथासंभव कर्तव्य निभाते है सिर्फ एक बात बोल रही हूं अन्यथा ना ले कुछ लोग जीते-जी बुजुर्गो का बिल्कुल ख्याल नही करते पर उनके जाने के बाद इतना दिखाबा करते है समाज में सम्मान पाने के लिये ऐसै लोगो का वर्तमान तो अच्छा हो सकता है पर भविष्य नही आज कल गुगल यूट्यूब देखकर बहुत ज्ञान की बाते करते है जो घर में बुजुर्ग बैठे है तमाम जीवन का अनुभव है सिर्फ उनकी बात सुनकर अनुसरण करे उनका आशीर्वाद इतना मिलेगा जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते गुगल यूट्यूब पूरे विश्व की बात बतायेगा पर हमारे बुजुर्ग अपने समाज परिवार रिश्तो के व्यक्तिगत अनुभव का पाठ कराते है मेरे जीवन की पाठ शाला में बुजुर्गो का अनुभव बहुत महत्वपूर्ण होता है मेरी बात से किसी को तकलीफ हो तो क्षमा करे
सागरिका मैथिल ब्राम्हण महिला सभा मंच की विधिवत सभी विधाओं का १-१०-२०२० से संचालन करने जा रहे हैं।
१ और२तारीख को सुबह योग और एक्यूप्रेशर, ध्यान का समय रहेगा
विधा संचालिका सुश्री मालिका झा जी होंगी जिनसे हम इन विधाओं की बारीकियां जानेंगे आपके कोई सवाल हों तो आप लोग उनसे पूछ सकते हैं उनके नंबर पर
१०बजके के बाद साहित्यिक विधा की शुरुवात होगी
जिसका विषय होगा- वर्तमान परिवेश में मैथिल ब्राम्हण रीति- रिवाजों का महत्व और जीवन मे उपयोगिता
जिनके निम्न बिंदु होंगे
१- व्रतों का धार्मिक, सामाजिक व स्वास्थ्य पर प्रभाव
२- विज्ञान और धर्म एक दूसरे के पूरक
३- धर्म और रूढ़ि में आप क्या अंतर देखती हैं
४- क्या बदलाव जरूरी है
जिसमें आपसभी लोग गद्य अथवा पद्य किसी भी विधा में अपनी रचनाएं प्रेषित कर सकते हैं।
ओडियो, वीडियो भेजिए या टाइप करके भेज सकते हैं अपनी सुविधा के अनुसार।
यह कोई प्रतियोगिता नहीं है सिर्फ अपने विचारों का आदान प्रदान है।
इस कार्यक्रम की संचालिका श्रीमती अनिता शरद झा जी तथा समीक्षक होंगी श्रीमती अन्नपूर्णा ठाकुर जी तथा श्रीमती अनसुइया झा जी
तो उक्त विषय पर आप सभी अपने विचार भेजिए ऑडियो, वीडियो के माध्यम से या टाइप करके।
कार्यक्रम के समय कार्यक्रम से सम्बंधित ही पोस्ट करें और सबके साथ कार्यक्रम का आनन्द उठाएं
धन्यवाद
हम कितने खुशकिस्मत हैं की इतने अच्छे समाज में हैं। यहां सबलोग कितने अपने से हैं। सबमे कोई न कोई खासियत ज़रूर है जो हरेक को एक खास पहचान देती है। जिसका समय समय पर परिवार- समाज को विशिष्ट पहचान भी मिलती रहती है। हमारे संयुक्त प्रयास से हमेशा से ही समाज के बड़े बड़े आयोजन सहज ही सफलता पूर्वक सयोजित होते रहे हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए यदि हम सभी लोग मिलकर आनेवाले सभी त्योहारों, धार्मिक उत्सवों इत्यादि के सम्बन्ध में जानकारियां साझा करते हैं साथ ही सम्बंधित त्योहार में बनाई जाने वाली मिठाई, फलाहार इत्यादि की विधि लिखकर या वीडियो द्वारा भेजें ताकि आनेवाली पीढ़ी कही भी इनसब से खुशी खुशी जुड़े।
साथ ही आपके मन में भी कोई ऐसे ही समाज को लेकर कोई विचार है जिससे हमारा समाज और भी गर्वित हो तो यहां हमसबों से साझा करिए
सागरिका के मूल उद्देश्य
1 सभी मैथिल ब्राम्हण महिलाओं तथा बालिकाओं को एक सूत्र में बंधना
2 विभिन्न व्रत-त्योहारों की जानकारियां साझा करना
3 विभिन्न विधाओं की महिलाओं द्वारा ग्रुप की बाकी सदस्यों को प्रशिक्षित करना
4 विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक गतिविधियों के आयोजन, विभिन्न सांस्कृतिक व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन
5 पाक कला, ललितकला, हस्तशिल्प, शिक्षा, विभिन्न व्यवसाय के प्रशिक्षण के साथ ही रोजगार से सम्बंधित कार्यशालाओं का आयोजन
6 सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने अपने परिजनों अथवा सगे सम्बन्धियों द्वारा अर्जित उपलब्धियों की जानकारियां साझा करना।
7 हमारे पूर्वजों द्वारा भारत की आज़ादी के लिए किए गए आंदोलनों, प्रयासों की जानकारियां संग्रहित के प्रकाशित करना।
इसके अतिरिक्त सभी मैथिल ब्राम्हण महिला बहनों से निवेदन है अपने अमूल्य सुझाव दें साथ ही इस पुनीत कार्य मे सहयोगी हों
धन्यवाद
सागरिका महिला मंच
सागरिका की पवित्र नदी माँ पैरी नृत्य, नाटक व अभिनय के संचालन की संयोजिता हेतु जो भी अपना नाम देना चाहते हैं स्वागत है।
सागरिका की पवित्र नदी माँ मांड बाल मंच के संचालन की संयोजिता हेतु जो भी अपना नाम देना चाहें स्वागत है
सागरिका की पवित्र नदी माँ मनियारी चित्र कला, हस्त कला के संचालन की संयोजिता हेतु जो भी अपना नाम देना चाहते हैं स्वागत है
सागरिका की पवित्र नदी माँ सोन खेलकूद की विधा में संयोजिता हेतु अपना नाम देना चाहते हैं स्वागत है
धन्यवाद
सागरिका महिला मंच
हमने सागरिका का यूट्यूब चैनल भी बनाया है जिसमे आप जीवनोपयोगी कोई भी वीडियो भेज सकते हैं।
ऐसे ही आप सभी लोग भी अपनी कोई भी रेसिपी शेयर करना चाहें तो सागरिका में भेजिए ताकि हम सभी लोग आपकी स्वयं की बनाई रेसिपी से अपनी रसोई गुलजार करें और यदि आपका स्वयं का यूट्यूब चैनल नहीं बना है तो भी आप लोग सागरिका मैथिल ब्राम्हण महिला सभा के यूट्यूब चैनल में अपना वीडियो डाल सकते हैं इसके लिए आपको अपना बनाया कोई भी वीडियो हमारे पास भेजना होगा
आप किसी भी विधा के हों कोई भी उपयोगी वीडयो बनाकर सबको अपने हुनर से परिचित कराएं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें