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आपसी संवाद - सागरिका महिला मंच





काफी लम्बे समय बाद हमारी संस्कृति पर चर्चा हो रही है 

प्रश्न?
पितृ पक्ष और महालया लक्ष्मी पूजन का अर्थ? दोनों साथ क्यों?
एक तरफ पितृ तर्पण और एक  महालक्ष्मी पर्व?
लक्ष्मी पूजन भी गज वाहिनी लक्ष्मी महालक्ष्मी  क्यों नही होगी? वर्ष में दीपावली,कोजागरी को भी लक्ष्मी पूजा होती है।परंतु महालक्ष्मी पूजा सिर्फ पितृ पक्ष  में श्राद्ध और पूजन साथ करते हैं? इसका रहस्य खोजते हैं? आप अपने विचार प्रकट कर सकते हैं।

श्रीमती आशा ठाकुर का उत्तर - पितृ पक्ष और महालक्ष्मी पूजन का अर्थ और महत्व कुछ इस तरह है। 
जैसे की पृत पक्ष एक पारंपरिक हिन्दूओं के श्रद्धा से जुड़ी ( पूर्वजों ) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। 
इस दौरान , लोग अपने पितरों की आत्मा शांति के लिए तर्पण , श्राद्ध करते है। 
पितृ पक्ष का उद्देश्य होता है। अपने पितरों की आत्मा को तृप्ति करना और मोक्ष की प्राप्ति दिलाने में मददत करना होता है। 
महालक्ष्मी पूजन : - 
महालक्ष्मी पूजन देवी की आराधना के लिए की जाती है। इस पूजन का यह अर्थ है। की महालक्ष्मी पूजन से सुख , समृद्धि , धन की प्राप्ति होती है। इस उद्देश्य से इसकी पूजा की जाती है। 
अब प्रश्न यह है। की महालक्ष्मी की पूजा एवं पितृ पक्ष दोनों साथ साथ क्यों 
मनायी जाती है। 
यह मानना है। की पितरों की आत्म शांति एवं तृप्ती के लिए की जाने वाली पूजन में देवी लक्ष्मी की कृपा की आवश्यकता होती है। 
गज लक्ष्मी महालक्ष्मी क्यों नहीं होगी ? 
गज लक्ष्मी और महालक्ष्मी दोनों देवी लक्ष्मी जी का स्वरूप है। लेकिन उनके अर्थ और महत्व में अंतर है। गज वाहिनी लक्ष्मी देवी लक्ष्मी की एक विशिष्ट रूप  को दर्शाता है। जिसमें वह हाथी पर सवार होती है। 
महालक्ष्मी पूजन में देवी लक्ष्मी जी को उनकी समृद्धि , और धन की शक्ति के रूप पूजा जाता है। जो पितरों की आत्मा की शांति और परिवार की सुख , समृद्धि के लिए आवश्यक है।
देवी लक्ष्मी की कृपा की महत्व पूर्ण भूमिका होती है। 


🙏🙏

श्रीमती सपना ठाकुर - रहस्य का ज्ञान तो मुझे नहीं है,🙏 परंतु ये दोनों पितृ तर्पण और महालक्ष्मी पूजन विधि द्वापरयुग के महाभारत काल खण्ड में ही अलग-अलग समय प्रारंभ हुए हैं 🙏 युद्ध से पहले महालक्ष्मी पूजन माता कुंती और महारानी गांधारी ने किया 🪷 तथा कर्ण कि कथा से आप सभी परिचित ही है,🙏युद्ध के पश्चात् कर्ण कि मृत्यु हो गयी थी जब वे स्वर्ग में पहुंचे तो उनको भोजन में स्वर्ण ही दिया जाता था क्योंकि जो वस्तु आप धरती पर धर्म युक्त हो कर दान करते हैं वहीं मृत्यु के बाद पर लोक में मिलता है 🙏🙏 महालक्ष्मी पूजन् में भी तर्पण शब्द आता है जब महर्षि व्यास जी ताजी दूर्वा से लक्ष्मी जी को जल का तर्पण देने को कहते हैं, इससे समझा जा सकता है कि, अश्विन मास तर्पण हेतु श्रेष्ठ है, जिसमें देवता तथा पितृ दोनों को ही तर्पण देकर संतुष्ट तथा प्रसन्न किया जाता है, दानवीर कर्ण को स्वर्ग में भूखा रहना पड़ता था तब भगवान् ने उन्हें धरती पर जानकर पितरों के निमित्त तर्पण देकर अन्न जल दान करने को कहकर धरती पर भेज दिया जो 16 दिन दानवीर कर्ण धरती पर रहने आए वह अश्विन मास का था जिसे हम सब आज पितृ पक्ष कहते हैं , पितृ तर्पण और श्राद्ध दान का प्रारंभ किया,जो आज हम सब के लिए एक पवित्र पर्व है, अपने अपनों को हृदय से स्मरण करने का🙏🙏 महालक्ष्मी पूजन परंपरा पहले शुरू हुई बाद में पितृ तर्पण 🙏🙏🙏 पता नहीं मेरे विचार कितने सही है या नहीं ये आप सभी बड़े मुझे समझाइएगा 🙏🙏🙏🙏
मेरा व्यक्तिगत विचार  पितृपक्ष  में महिलाओ  को भी अपने पूर्वजो  को जल अवश्य  ही देना चाहिए जल सम्मान  है  हमारे सनातन धर्म  में पूरूषो को तर्पण  करने का विधान  है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान  की पहचान  पूरूषो के नाम पर आधारित  है बहुत  गर्व  की बात  है मेरा विषय  है महिलाओ  पर एक बिटिया का सबसे अधिक  लगाब  पिता से होता है काम से आते ही ही पापा  की परी बेटी पानी चाय  अवश्य  देती है पापा कैसी तबीयत  है थके थके लग रहे हो सुनकर  पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष  देते है   विवाह  के बाद  भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान  में कमी नही करते   पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त  पितृपक्ष  में एक  लौटा जल में जरा सी मिस्री  मिलकर  दक्षिण  में माता पिता को याद  करते है जल दीजिए  उनकी तिथि में यथाशीघ्र  दान  भोजन अवश्य  करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज  है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह  किये तो आप भी कुछ  उनके निमित्त  करे बहुत आशीर्वाद  मिलेगा मेरा व्यक्तिगत  अनुभव  है

श्रीमती सलीला ठाकुर - सभी पितृगणो को सादर नमन पितृपक्ष  को बहुत श्रृद्धा  सम्मान  और  सावधानी से मनाना चाहिए।इस पखवाड़े में हमारे पूर्वज  अपने परिवार  के सदस्यो  को देखने आते है अतः हम सभी को पितृगणो का भरपूर  सम्मान  करना चाहिए  उनके पंसद  के व्यंजन  बनाये  मातृपितृ स्वरूप  बुजुर्गो  को भोजन  कराये   .विशेष  ध्यान  रखे इस पखवाड़े गीता का 7 वा अध्ययन  और  18  वा अध्ययन  अवश्य  पढे नया कार्य  प्रारंभ  ना करे लकड़ी  के समान  फर्नीचर  बिल्कुल  ना खरीदे लकडी का संबंध  सीधे शैय्या  दान से होता है रात में एक बाती का दीया पितृरो  के नाम से रखे रसोई  में दीया की लौ दक्षिण  दिशा में हो एक लौटा जल भी दीया के साथ  रखे सुबह  जल पौधौ  में डाल  दे पितृपक्ष  में रोज करे पितृगण  का विशेष  आशीर्वाद  मिलेगा
मेरा व्यक्तिगत विचार  पितृपक्ष  में महिलाओ  को भी अपने पूर्वजो  को जल अवश्य  ही देना चाहिए जल सम्मान  है  हमारे सनातन धर्म  में पूरूषो को तर्पण  करने का विधान  है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान  की पहचान  पूरूषो के नाम पर आधारित  है बहुत  गर्व  की बात  है मेरा विषय  है महिलाओ  पर एक बिटिया का सबसे अधिक  लगाब  पिता से होता है काम से आते ही ही पापा  की परी बेटी पानी चाय  अवश्य  देती है पापा कैसी तबीयत  है थके थके लग रहे हो सुनकर  पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष  देते है   विवाह  के बाद  भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान  में कमी नही करते   पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त  पितृपक्ष  में एक  लौटा जल में जरा सी मिस्री  मिलकर  दक्षिण  में माता पिता को याद  करते है जल दीजिए  उनकी तिथि में यथाशीघ्र  दान  भोजन अवश्य  करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज  है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह  किये तो आप भी कुछ  उनके निमित्त  करे बहुत आशीर्वाद  मिलेगा मेरा व्यक्तिगत  अनुभव  है
मेरा व्यक्तिगत विचार  पितृपक्ष  में महिलाओ  को भी अपने पूर्वजो  को जल अवश्य  ही देना चाहिए जल सम्मान  है  हमारे सनातन धर्म  में पूरूषो को तर्पण  करने का विधान  है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान  की पहचान  पूरूषो के नाम पर आधारित  है बहुत  गर्व  की बात  है मेरा विषय  है महिलाओ  पर एक बिटिया का सबसे अधिक  लगाब  पिता से होता है काम से आते ही ही पापा  की परी बेटी पानी चाय  अवश्य  देती है पापा कैसी तबीयत  है थके थके लग रहे हो सुनकर  पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष  देते है   विवाह  के बाद  भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान  में कमी नही करते   पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त  पितृपक्ष  में एक  लौटा जल में जरा सी मिस्री  मिलकर  दक्षिण  में माता पिता को याद  करते है जल दीजिए  उनकी तिथि में यथाशीघ्र  दान  भोजन अवश्य  करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज  है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह  किये तो आप भी कुछ  उनके निमित्त  करे बहुत आशीर्वाद  मिलेगा मेरा व्यक्तिगत  अनुभव  है
मेरा व्यक्तिगत विचार  पितृपक्ष  में महिलाओ  को भी अपने पूर्वजो  को जल अवश्य  ही देना चाहिए जल सम्मान  है  हमारे सनातन धर्म  में पूरूषो को तर्पण  करने का विधान  है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान  की पहचान  पूरूषो के नाम पर आधारित  है बहुत  गर्व  की बात  है मेरा विषय  है महिलाओ  पर एक बिटिया का सबसे अधिक  लगाब  पिता से होता है काम से आते ही ही पापा  की परी बेटी पानी चाय  अवश्य  देती है पापा कैसी तबीयत  है थके थके लग रहे हो सुनकर  पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष  देते है   विवाह  के बाद  भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान  में कमी नही करते   पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त  पितृपक्ष  में एक  लौटा जल में जरा सी मिस्री  मिलकर  दक्षिण  में माता पिता को याद  करते है जल दीजिए  उनकी तिथि में यथाशीघ्र  दान  भोजन अवश्य  करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज  है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह  किये तो आप भी कुछ  उनके निमित्त  करे बहुत आशीर्वाद  मिलेगा मेरा व्यक्तिगत  अनुभव  है

महर्षि वेद व्यास जी द्वारा महालक्ष्मी व्रत की कथा सुनाई गई।१६दिन १६गांठ वाले डोरे की विस्तृत कथा आप  सभी जानती हैं 🙏 

गांधारी के सौ पुत्रों द्वारा विशाल हाथी मिट्टी का बनाया गया, जिस पर महालक्ष्मी 

गजलक्ष्मी रुप में स्थापित कर गांधारी ने पूजन किया पर इस पूजा में कुंती को निमंत्रण नहीं था ।

फलस्वरूप उन्हें उदास देखकर अर्जुन ने स्वर्ग से इंद्र ,(पिता)देवता का ऐरावत हाथी बुलाया ।

उसपर महालक्ष्मी के गजस्वरूप की भव्य पूजा की गई।

कर्ण द्वारा पित्र पक्ष का आरंभ सपना बहन ने बताया है दोनों तर्पण एवं पूजन सम्मिलित रुप से महालया पर्व पक्ष कहलाते हैं

श्रीमती वंदना ठाकुर -
बहनो मैं आज एक ऐसे विषय मैं चर्चा करने जा रहैं जिसमें दिन और तिथि एक ही है पर कथा दो हैं  
जनवितरण व्रत---
पहली कथा है जिसका संबंध श्रीकृष्ण और अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा से हैं द्वापर युग मैं अश्वत्थामा के बाण के प्रभाव से उत्तरा का पुत्री गर्भ मैं ही मृत्यु हो गई थी जिसे श्रीकृष्ण नें अपने पुण्य फल और योग साधना से पुनर्जीवित कीया और उत्तरा के उस पूत्र का नाम जिवितपूत्रिका रखा तभी से महीलाऐ अपनी संतान की रक्षा के लिए इस व्रत को करती हैं।
तथा इसमें संबंधित दूसरी कथा जो हम सभी जानते व पढते है वह चील और सियारिन की इसमें चील और सियारिन कुछ महीलाओं को व्रत और पूजा करते देखती हैं और दौनो इस व्रत को करने की कामना करती हैं सियारिन भूखे रहने के कारण मरे हुए पशु का मांस खालेती हैं और चील पूरे समर्पण से इस व्रत को करती हैंइस व्रत के फल सें चील के बच्चे पूर्ण स्वस्थ और सुखी रहते है और सियारिन के बच्चे मरते जाते हैं तब सियारिन ने इसका कारण पूछा तब जिवित ब्राम्हण ने जिन्हे यह कथा स्वयं श्रीकृष्ण ने बताई थी को सियारिन को बताया और चील ने पिछले जन्म की कहानी बताई तब सियारिन भी इस व्रत के महत्व कोने और सून कर इस व्रत को किया जिससे उसके भी बच्चे जिवित रहने लगे इस कारण ही महीलाऐ आज भी बच्चो की सुखी जिवन के लिए इस व्रत को करती हैं 
कछ महीलाऐ इस व्रत के साथ महालक्ष्मी का जिसमें गज। लक्ष्मी भी कहते है का व्रत भीतरी हैजिससे धर मैंबच्चो की खुश हाली के साथ साथ सुख समृद्धी भी आती हैं हम आज इन्ही परपंरा का पालन करते आ रहैं हैं अब इसमे जो भी गलती हो उसके लिए 🙏🏻🙏🏻

मेरा व्यक्तिगत विचार  पितृपक्ष  में महिलाओ  को भी अपने पूर्वजो  को जल अवश्य  ही देना चाहिए जल सम्मान  है  हमारे सनातन धर्म  में पूरूषो को तर्पण  करने का विधान  है पूरूषो से वंशावली चलती है खानदान  की पहचान  पूरूषो के नाम पर आधारित  है बहुत  गर्व  की बात  है मेरा विषय  है महिलाओ  पर एक बिटिया का सबसे अधिक  लगाब  पिता से होता है काम से आते ही ही पापा  की परी बेटी पानी चाय  अवश्य  देती है पापा कैसी तबीयत  है थके थके लग रहे हो सुनकर  पिता प्रफूलित होते दिल से आशीष  देते है   विवाह  के बाद  भी मायके में भाई भाभी आपके सम्मान  में कमी नही करते   पर बहनो आप भी अपने शक्तिनुसार अपने माता पिता जो अब नही है उनके निमित्त  पितृपक्ष  में एक  लौटा जल में जरा सी मिस्री  मिलकर  दक्षिण  में माता पिता को याद  करते है जल दीजिए  उनकी तिथि में यथाशीघ्र  दान  भोजन अवश्य  करावे ऐ ना सोचे मायके में भैया तो कर रहे है आपका भी फर्ज  है माता पिता आपको पढाये लिखाने विवाह  किये तो आप भी कुछ  उनके निमित्त  करे बहुत आशीर्वाद  मिलेगा मेरा व्यक्तिगत  अनुभव  हैबहनो मैं आज एक ऐसे विषय मैं चर्चा करने जा रहैं जिसमें दिन और तिथि एक ही है पर कथा दो हैं  
जनवितरण व्रत---
पहली कथा है जिसका संबंध श्रीकृष्ण और अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा से हैं द्वापर युग मैं अश्वत्थामा के बाण के प्रभाव से उत्तरा का पुत्री गर्भ मैं ही मृत्यु हो गई थी जिसे श्रीकृष्ण नें अपने पुण्य फल और योग साधना से पुनर्जीवित कीया और उत्तरा के उस पूत्र का नाम जिवितपूत्रिका रखा तभी से महीलाऐ अपनी संतान की रक्षा के लिए इस व्रत को करती हैं।
तथा इसमें संबंधित दूसरी कथा जो हम सभी जानते व पढते है वह चील और सियारिन की इसमें चील और सियारिन कुछ महीलाओं को व्रत और पूजा करते देखती हैं और दौनो इस व्रत को करने की कामना करती हैं सियारिन भूखे रहने के कारण मरे हुए पशु का मांस खालेती हैं और चील पूरे समर्पण से इस व्रत को करती हैंइस व्रत के फल सें चील के बच्चे पूर्ण स्वस्थ और सुखी रहते है और सियारिन के बच्चे मरते जाते हैं तब सियारिन ने इसका कारण पूछा तब जिवित ब्राम्हण ने जिन्हे यह कथा स्वयं श्रीकृष्ण ने बताई थी को सियारिन को बताया और चील ने पिछले जन्म की कहानी बताई तब सियारिन भी इस व्रत के महत्व कोने और सून कर इस व्रत को किया जिससे उसके भी बच्चे जिवित रहने लगे इस कारण ही महीलाऐ आज भी बच्चो की सुखी जिवन के लिए इस व्रत को करती हैं 
कछ महीलाऐ इस व्रत के साथ महालक्ष्मी का जिसमें गज। लक्ष्मी भी कहते है का व्रत भीतरी हैजिससे धर मैंबच्चो की खुश हाली के साथ साथ सुख समृद्धी भी आती हैं हम आज इन्ही परपंरा का पालन करते आ रहैं हैं अब इसमे जो भी गलती हो उसके लिए 🙏🏻🙏🏻

श्रीमती सलीला ठाकुर -
सादर प्रणाम पितृपक्ष में सनातन धर्म को मानने वाला सभी बहुत ही खुशी से श्रृद्धा इस पखवाड़े को मनाते है खून का रिश्ता बहुत मजबूत होता है संसार में कितने भी रिश्ते बना ले पर समय आने पर वही रिश्ता काम आता है जिसमें वैचारिक मतभेद और अटूट प्रेम संबंध हो मातापिता सास ससुर भाई बहन ससुराल पक्ष के करीबी ही खून का रिश्ता है इसलिए पितृपक्ष में दिल से यथासंभव कर्तव्य निभाते है सिर्फ एक बात बोल रही हूं अन्यथा ना ले कुछ लोग जीते-जी बुजुर्गो का बिल्कुल ख्याल नही करते पर उनके जाने के बाद इतना दिखाबा करते है समाज में सम्मान पाने के लिये ऐसै लोगो का वर्तमान तो अच्छा हो सकता है पर भविष्य नही आज कल गुगल यूट्यूब देखकर बहुत ज्ञान की बाते करते है जो घर में बुजुर्ग बैठे है तमाम जीवन का अनुभव है सिर्फ उनकी बात सुनकर अनुसरण करे उनका आशीर्वाद इतना मिलेगा जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते गुगल यूट्यूब पूरे विश्व की बात बतायेगा पर हमारे बुजुर्ग अपने समाज परिवार रिश्तो के व्यक्तिगत अनुभव का पाठ कराते है मेरे जीवन की पाठ शाला में बुजुर्गो का अनुभव बहुत महत्वपूर्ण होता है मेरी बात से किसी को तकलीफ हो तो क्षमा करे

सागरिका मैथिल ब्राम्हण महिला सभा मंच की विधिवत सभी विधाओं का १-१०-२०२० से संचालन करने जा रहे हैं।
१ और२तारीख को सुबह योग और एक्यूप्रेशर, ध्यान का समय रहेगा 
विधा संचालिका सुश्री मालिका झा जी होंगी जिनसे हम इन विधाओं की बारीकियां जानेंगे आपके कोई सवाल हों तो आप लोग उनसे पूछ सकते हैं उनके नंबर पर
 १०बजके के बाद साहित्यिक विधा की शुरुवात होगी
 जिसका विषय होगा- वर्तमान परिवेश में मैथिल ब्राम्हण रीति- रिवाजों का महत्व और जीवन मे उपयोगिता 
 जिनके निम्न बिंदु होंगे
 १- व्रतों का धार्मिक, सामाजिक व स्वास्थ्य पर प्रभाव
 २- विज्ञान और धर्म एक दूसरे के पूरक
 ३- धर्म और रूढ़ि में आप क्या अंतर देखती हैं
 ४- क्या बदलाव जरूरी है
 जिसमें आपसभी लोग गद्य अथवा पद्य किसी भी विधा में अपनी रचनाएं प्रेषित कर सकते हैं।
 ओडियो, वीडियो भेजिए या टाइप करके भेज सकते हैं अपनी सुविधा के अनुसार।
 यह कोई प्रतियोगिता नहीं है सिर्फ अपने विचारों का आदान प्रदान है। 
 इस कार्यक्रम की संचालिका श्रीमती अनिता शरद झा जी तथा समीक्षक होंगी श्रीमती अन्नपूर्णा ठाकुर जी तथा श्रीमती अनसुइया झा जी 
  तो उक्त विषय पर आप सभी अपने विचार भेजिए ऑडियो, वीडियो के माध्यम से या टाइप करके।
   कार्यक्रम के समय कार्यक्रम से सम्बंधित ही पोस्ट करें और सबके साथ कार्यक्रम का आनन्द उठाएं
      धन्यवाद


हम कितने खुशकिस्मत हैं की इतने अच्छे समाज में हैं। यहां सबलोग कितने अपने से हैं। सबमे कोई न कोई खासियत ज़रूर है जो हरेक को एक खास पहचान देती है। जिसका समय समय पर परिवार- समाज को विशिष्ट  पहचान भी मिलती रहती है। हमारे संयुक्त प्रयास से हमेशा से ही समाज के बड़े बड़े आयोजन सहज ही सफलता पूर्वक सयोजित होते रहे हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए यदि हम सभी लोग मिलकर आनेवाले सभी त्योहारों, धार्मिक उत्सवों इत्यादि के सम्बन्ध में जानकारियां साझा करते हैं साथ ही सम्बंधित त्योहार में बनाई जाने वाली मिठाई, फलाहार इत्यादि की विधि लिखकर या वीडियो द्वारा भेजें ताकि आनेवाली पीढ़ी कही भी इनसब से खुशी खुशी जुड़े।
साथ ही आपके मन में भी कोई ऐसे ही समाज को लेकर कोई विचार है जिससे हमारा समाज और भी गर्वित हो तो यहां हमसबों से साझा करिए
सागरिका के मूल उद्देश्य
1 सभी मैथिल ब्राम्हण महिलाओं तथा बालिकाओं को एक सूत्र में बंधना
2 विभिन्न व्रत-त्योहारों की जानकारियां साझा करना
3 विभिन्न विधाओं की महिलाओं द्वारा ग्रुप की बाकी सदस्यों को प्रशिक्षित करना
4 विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक गतिविधियों के आयोजन, विभिन्न सांस्कृतिक व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन
5 पाक कला, ललितकला, हस्तशिल्प, शिक्षा, विभिन्न व्यवसाय के प्रशिक्षण के साथ ही रोजगार से सम्बंधित कार्यशालाओं का आयोजन
6 सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने अपने परिजनों अथवा सगे सम्बन्धियों द्वारा अर्जित उपलब्धियों की जानकारियां साझा करना।
7 हमारे पूर्वजों द्वारा भारत की आज़ादी के लिए किए गए आंदोलनों, प्रयासों की जानकारियां संग्रहित के प्रकाशित करना।
   इसके अतिरिक्त सभी मैथिल ब्राम्हण महिला बहनों से निवेदन है अपने अमूल्य सुझाव दें साथ ही इस पुनीत कार्य मे सहयोगी हों
                 धन्यवाद
                         सागरिका महिला मंच
आप सभी के उत्साहपूर्वक दिए सहयोग से हमारी सागरिका का बड़ा ही सुंदर विस्तार हो रहा है। हमारा उद्देश्य है, हमारी सभी माताएं, बहने, बेटियां इस पवित्र सागरिका की नदियों से जुड़ें नदियों की जितनी संख्या होगी कार्यक्रमों में भी उतनी ही विविधता होगी आप सभी लोग जिन्हें भी जिस भी विधा में जुड़ना है। अवश्य जुड़ें अन्य मैथिल ब्राम्हण महिलाओं को भी इसमे जुड़ने आमंत्रित करें अच्छा लगेगा। यह हम सबकी, हमारे लिए और हम सबसे बनी सागरिका है। अपने सुझाव भी दीजिएगा
   
   सागरिका की पवित्र नदी माँ पैरी नृत्य, नाटक व अभिनय के संचालन की संयोजिता हेतु जो भी अपना नाम देना चाहते हैं स्वागत है।



सागरिका की पवित्र नदी माँ मांड बाल मंच के संचालन की संयोजिता हेतु जो भी अपना नाम देना चाहें स्वागत है

सागरिका की पवित्र नदी माँ मनियारी चित्र कला, हस्त कला के संचालन की संयोजिता हेतु जो भी अपना नाम देना चाहते हैं स्वागत है

सागरिका की पवित्र नदी माँ सोन खेलकूद की विधा में संयोजिता हेतु अपना नाम देना चाहते हैं स्वागत है

धन्यवाद
          सागरिका महिला मंच


हमने सागरिका का यूट्यूब चैनल भी बनाया है जिसमे आप जीवनोपयोगी कोई भी वीडियो भेज सकते हैं। 
     ऐसे ही आप सभी लोग भी अपनी कोई भी रेसिपी शेयर करना चाहें तो सागरिका में भेजिए ताकि हम सभी लोग आपकी स्वयं की बनाई रेसिपी से अपनी रसोई गुलजार करें और यदि आपका स्वयं का यूट्यूब चैनल नहीं बना है तो भी आप लोग सागरिका मैथिल ब्राम्हण महिला सभा के यूट्यूब चैनल में अपना वीडियो डाल सकते हैं इसके लिए आपको अपना बनाया कोई भी वीडियो हमारे पास भेजना होगा 
आप किसी भी विधा के हों कोई भी उपयोगी वीडयो बनाकर सबको अपने हुनर से परिचित कराएं।

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*सागरिका की पवित्र सरिता माँ महानदी पूजा अनुष्ठान विधा - संयोजिका श्रीमती आशा ठाकुर, श्रीमती भावना ठाकुर, श्रीमती सपना ठाकुर श्रीमती रक्षा झा एवं सखियां.श्री गणेशाय नमः आज दिनांक 30,8,25 अगस्त दिन शनिवार मैं संतान साते की पूजा विधि बताने जा रही हूँ यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में संतान की दीघार्यु एव स्वस्थ होने की कामना करते हुए किया जाता है। जिनकी संतान नही होती वह भी यह व्रत नियम विधि के अनुसार करें तो अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है। प्रात : काल उठ कर स्नान करेंसारा घर का काम निपटा कर पूजा करने की जगह को साफ कर लेवें गंगा जल से शुद्धि करन करके जहा हमें पूजा करनी है। वहा पर सीता चौक डाले कलश के लिए फूल गौड़ा चौक रेहन अर्थात् चावल की आटा का घोल बनाए उससे चौक पूरे और चौक में सिन्दूर लगाए शंकर पार्वती उनके परिवार की स्थापना के लिए चौकी या पाटा रखें उसके ऊपर लाला या पीला कपड़ा बिछाए प्रतिमा या फोटों या फिर मिट्टी से शिव शंकर पार्वती एवं परिवार की मूर्ति बनाकर स्थापना करें पूजा की तैयारी : - परात में चंदन रोरी कुमकुम , फूल फुल माला , बेल पत्ती , दूबी अक्षत , काला तिल , जनेऊ , नारियल , शृंगार का समान वस्त्र कपूर , धूप, दीप आरती बैठने के लिए आसन गौरी गणेश कलश अमा का पत्ता लगा हुआ नैवेध फल नैवेध :- मीठा पूड़ी का भोग लगता है। उपवास : - संतान साते के दिन दिन भर उपवास रहते है। और पूजा करने के बाद मीठा पुड़ी ( पुआ ) खा कर व्रत तोड़ते है। इसके अलावा कुछ भी नही लेते जूस , चाय नीबू पानी पी सकते है। क्योंकि आज कल शुगर , बी पी की शिकायत रहती है। तो आप ले सकते है। अन्न नहीं लेते है। पूजा विधि शाम के समय गोधुली बेला में शिव पार्वती एवं उनकी परिवार की पूजा की जाती है। अच्छे से तैयार होकर सोलह शृंगार करके यह व्रत की जाती है। सर्व प्रथम गौरी गणेश कलश की पूजा उसके बाद गौर साठ की पूजा क्योंकि हम मैथिल ब्राम्हण है। तो हमारे यहा पर हर त्यौहार पर गौर साठ की पूजा की जाती है। उसी के बाद ही अन्य पूजा यह नियम महिलाओं के लिए ही है। गौर साठ पूजा के बाद शंकर पार्वती की पूजा जल से स्नान दूबी या फूल लेकर करें , फिर चंदन , रोरी कुमकुम लगाए पुष्प चढ़ाए , माला पहनाए संतान साते में सात गठान की मौली धागा से चूड़ा बनाए या जो सामर्थ है। वह सोने की कंगन या चांदी का कंगन बनाए एवं दूबी सात गाठ करके चढ़ाए कंगन की पूजा करें भोग मीठा पुड़ी लगाए जितना संतान रहता है। उनके नाम से सात पुआ गौरी शंकर एवं सात पुआ संतान के नाम से एक भाग ब्राम्हण को दान करें एवं परिवार को बांटे एक भाग जो सात पुआ है। उसे स्वय ग्रहण करें कंगन पहन कर ही प्रसाद को ग्रहण करें आरती : - पहले गणेश जी का करें फिर शंकर जी का दक्षिणा सामर्थ अनुसार संकल्प करें आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏.. श्री गणेशाय नमः ,,श्री गणेशाय नमः सधौरी की विधि यह विधि नौवा महीने में किया जाता है। पंडित जी से शुभ मुर्हुत पूछकर किया जाता है। सबसे पहले सिर में बेसन डालने का विधि होता है। पांच या नौ सुहागन के द्वारा सिर पर बेसन डाला जाता है। और चूकिया से जल सिर के ऊपर डाला जाता है। उसके लिए नव चूकिया चाहिए होता है। बेसन मुहूर्त के हिसाब से ही डाला जाता है। इसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए नहाने से पहले आंचल में हलदी + सुपारी + चांवल + सिक्का डालना चाहिए चावल का घोल से हाथ देते हुए उसमें सिन्दूर , पुषप दुबी डालें प्रत्येक हाथा में वघू या कन्या के द्वारा जहा पर बेसन डाला जायेगा वहां पर फूल गौड़ा चौक डाले चौकी या पाटा रखें फिर बेसन डालें और जल भी सिर के ऊपर डालें कम से कम पांच या सात बार सभी सुहागनियों के द्वारा उसके उपरान्त स्नान अच्छी तरह करने दो गिला कपड़ा पहने रहें किसी छोटी बच्ची या बच्चा जो सुन्दर हो चंचल हो उसके हाथ से शंख में कच्चा दूध और पुष्प डाल कर भेजे बालक और बालिका को अच्छी तरह से देख र्ले उनसे शंख और दूध लेकर भगवान सूर्य नारायण को अर्ध्य देवें इधर उधर किसी भी को ना देखें सूर्य नारायण को प्रणाम करें पूजा रूम में प्रवेश करें बाल मुंकुद को प्रणाम करें कपड़ा नया वस्त्र धारण करें शृंगार करें आलता लगाए पति पत्नी दोनों गंठ बंधन करके पूजा की जगह पर बैठ जायें पूजा जैसे हम करतेप्रकार करे आरती करें भोग लगाए तन्त् पश्चात् जो परात में आम का पत्ता के ऊपर दिया रखें दिया में चावल के घोल से . + बनाये सिन्दूर लगाए हल्दी सुपाड़ी सिक्का चुड़ी दो रखें प्रत्येक दिये में सिन्दूर की पुड़िया रखें गुझिया रखें उसे भोग लगा कर पूजा के बाद प्रत्येक सुहागिनों को आंचल से करके उनके आचल में दें । फिर पूजा स्थल पर कुश बढ़ाओं चौक डाले पाटा रखें उसके ऊपर गाय + बैल + कहुआ को गोत्र के अनुसार रखें बैले हो तो घोती आढ़ऐ गाय हो तो साड़ी पूजा के बाद कांसे के थाली में बनी हुई समाग्री को पांच कौर शहद डाल कर सास या मां के द्वारा पांच कौर खिलाए उसके पहले ओली में पांच प्रकार का खाद्य समाग्री डाले जैसे गुझिया अनारस फल मेवा डालें और छोटे बच्चे के हाथ से निकलवाए हास्य होता है। थोड़ी देर के लिए गुझिया निकला तो लड़का प प्ची निकला तो लड़की फिर सभी सुहागिनी यों को भोजन करवाए आशा ठाकुर अम्लेश्वर 🙏🙏ज्युतिया ,,यह त्यौहार क्वांर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को अपने बच्चे की दीर्घायु , तेजस्वी , और स्वस्थ होने की कामना करते हुए माताएं इस दिन निर्जला व्रत करती है।विधि ज्युतिया के पहले दिन किचन शाम को साफ सुथरा कर पितरों के लिए भोजन बनाया जाता है। शाम को तरोई या कुम्हड़ा के पत्ते पर पितराईन को दिया जाता है। उसके पहले चिल , सियारिन , जुट वाहन , कपूर बती , सुहाग बती , पाखर का झाड़ , को सभी चींजे खाने का बना हुआ रहता है। फल मिठाई दूध , दही , घी शक्कर मिला कर (मिक्स ) करके ओडगन दिया जाता है। तत् पश्चात जो इस दुनिया में नही है। उन पितराईन के नाम लेकर उस पत्ते पर रख कर उन्हें दिया जाता है। नाम लेकर *दूसरे दिन*सुबह स्नान कर प्रसाद बनाए अठवाई , बिना नमक का बड़ा शाम के समय पूजा करें *पूजा की तैयारी* चंदन , रोरी कुमकुम गुलाल , फूल , दूबी , अक्षत , तिल , कपूर आरती , घूप दीप भीगा मटर , खीरा या फिर केला ज्युतिया लपेटने के लिए गौर साठ का डिब्बा गौरी गणेश कलश चौक पूरे , गौरी गणेश कलश और ज्यूत वाहन पूजा के लिए पाटा रखें उसके उपर रेहन से पोता हुआ ग्लास उसमें भीगा हुआ मटर डाले खीरा या ककड़ी जो उपलब्ध हो उसमें आठ गठान आठ जगह पर बनी हुई ज्यूतीया लपेटे पूजा करें विधि वत हर पूजा करते है। ठीक उसी तरह आरती करें प्रसाद भोग लगाए *तीसरे दिन* सुबह स्नान कर भोजन बनाएं पिताराईन को जो चढ़ा हुआ प्रसाद रहता है। और ग्लास का मटर पहले पितराईन को ओडगन देवें पत्ते में रखकर और भोजन साथ साथ में देवें एक ज्यतिया दान करें ब्रम्हण के यहां सीधा , दक्षिणा रखकर दूसरा स्वयं पहने आस पास ब्राम्हण ना हो तो आप मंदिर में दान कर सकते है। *पूजा के पूर्व संकल्प करें*मासे मासे क्वांर मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथि मम अपना नाम एवं गौत्र कहे और यह कहे सौभाग्यादि , समृद्धि हेतवे जीवीत पुत्रिका व्रतोपवासं तत्तपूजाच यथा विधि करिश्ये । कहकर फूल चढ़ाए प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें पूजा विधि सभी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों के अनुसार करें जिनके यहां जैसा चलता है परम्परा अपने कुल के नियम के अनुसार करें यूपी में बिहार में शाम को नदी , सरोव एवं तलाबों बावली के जगह पर जा कर वही चिडचीड़ा दातून से ब्रश कर वही स्नानकर वही पूजा करते है। सभी महिला एक साथ मिलकर करती है। उन्ही में से एक महिला कथा सुनाती है। वहां पर जीउतिया उनका सोना या चांदी का बना लहसुन आकृति का रहता है। हर साल जीउतिया सोनार के यहा जा कर बढ़ाते है। उसी जीउतिया को हाथ में रख कथा कहती है। और हर महिला के बच्चों का नाम लेकर आर्शीवाद देती है। ये उनका अपना रिति है। परन्तु हमारे छत्तीसगढ़ में और हम अपने घर पर जिस तरह पूजा पाठ करते हुए देखा है। उसे ही हम आप सबके बीच प्रस्तुत किया है। त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी आपका अपना आशा ठाकुर अम्लेश्वर पाटन रोड छत्तीसगढ़ रायपुर 🙏🙏श्री गणेशाय नमः सधौरी की तैयारी गौरी गणेश + कलश चंदन रोरी कुमकुम घूप दीप कपूर अगरबत्ती नारियल भोग गौर साठ का डिब्बा रेहन चावल का पीसा हुआ हाथा देने के लिए एवं थाली कांसे की थाली मेवा काजू किशमिश बादाम छुहारा आदि ड्राई फूड मौसम अनुसार फल 60,आम का पत्ता मिट्टी का दिया 60 , चुड़ी सिन्दूर खड़ी हल्दी , खड़ी सुपारी 60 हल्दी 60 सुपारी जनेऊ बेसन शंख पाटा , पान का बिड़ा शहद नया वस्त्र पहने के लिए गोत्र के अनुसा मिट्टी का बैल , गाय , कछुआ जैसा हो गोत्र उसके अनुसार बनाना ओली में डालने के लिए पिली चांवल हल्दी सुपारी रुपया या सिक्का सुहागिनों को भी ओली डालने के लिए 60 गुझिया , अनरसा , दहरोरी मिठाई खोये का बना हुआ पूजा के लिए पाटा या चौकी , बैठने के लिए पाटा गठबंधन के लिए घोती गठबंधन करने के लिए थोड़ी सी पीली चांवल एक हल्दी एक सुपारी एक रुपय का सिक्का फूल दूबी डालना और गठबधन करना है। दूबी फूल फूल माला दूबी गौरी गणोश को चढ़ाने के लिए अर्थात् गणेश जी को चढ़ाने के लिए दमाद ,या बेटा के पहने के लिए जनेऊ बहू या बेटी के लिए सोलह शृंगार गजरा आदि कांसे की थाली में भोजन फल , मेवा शहद रखने के लिए

अनंत चतुर्दशी की कथा  हाथ में फूल , अक्षत एवं जल ले कर कथा सुने  प्राचीन काल में सुमंत नामक एक ब्राम्हण था। जिसकी पुत्री सुशीला थी। सुशीला का विवाह कौडिन्य ऋषि से हुआ ।  जब सुशीला की बिदाई हुई तो उसकी विमाता कर्कशा ने कौडिन्य ऋषि को ईट पत्थर दिया रास्ते में जाते समय नदी पड़ा वहा पर रुक कर कौडिन्य ऋषि स्नान कर संध्या कर रहे थे। तब सुशीला ने उन्हें अनंत  चतुर्दशी की महिमा का महत्व बताया और 14, गांठ वाली  धागा उनके हाथ पर बांध दी जिसे सुशीला ने नदी किनारे प्राप्त की थी।  कौडिन्य ऋषि को लगा की उनकी पत्नी सुशीला उनके ऊपर जादू टोना हा कर दी है। वह उस धागे को तुरन्त निकाल कर अग्नि में जला दिया जिससे अनंत भगवान का अपमान हुआ । और क्रोध में आकर कौडिन्य ऋषि का सारा सुख समृद्धि , संपत्ति नष्ट कर दिए   कौडिन्य ऋषि का मन विचलित हो गया परेशान हो गए और आचनक राज पाठ जाने का कारण अपने पत्नी से पूछा तब उनकी पत्नी उन्हें सारी बातें बतायी यह सुनकर कौडिन्य ऋषि पश्चाताप करने लगा और घने वन की ओर चल दिए । वन में भटकते भटकते उन्हें थकान एवं कमजोरी होने लगा और मूछित होकर जम...

छत्तीसगढ़ मैथिल ब्राह्मण विवाह पद्धति आशा ठाकुर

चुनमाट्टी की तैयारी सर्व प्रथम घर के अंदर हाल या रूम के अंदर फूल गौड़ा चौक बनाए सिन्दूर टिक देवें उसके ऊपर सील बट्टा रखें उसमें हल्दी खडी डाले खल बट्टा में चना डाले सर्व प्रथम मां गौरी गणेश की पूजा करें उसके बाद सुहासीन के द्वारा हल्दी और चना कुटे सबसे पहले जीतने सुहागिन रहते है उन्हों ओली में चावल हल्दी सुपाड़ी डाले सिन्दूर लगाये गुड और चावल देवें और हल्दी और चना को पीसे सील के चारों तरफ पान का पत्ता रखें हल्दी सुपाड़ी डालें पान का सात पत्ता रखें पूजा की तैयारी गौरी गणेश की पूजा चंदन ,, रोरी '' कुमकुम '' गुलाल जनेऊ नारियल चढ़ाए फूल या फूल माला चढ़ाए दूबी . भोग अरती घूप अगर बत्ती वस्त्र मौली घागा वस्त्र के रूप में चढ़ा सकते है ये घर की अंदर की पूजा विधि चुलमाट्टी जाने के पहले की है। बहार जाने के लिए तैयारी सात बांस की टोकनी टोकनी को आलता लगा कर रंग दीजिए उसके अंदर हल्दी . सुपाड़ी खडी एक एक डाले थोड़ा सा अक्षत डाल देवें सब्बल '' या कुदारी जो आसानी से प्राप्त हो ,, सब्बल में या कुदारी में पीला कपड़ा के अंदर सुपाड़ी हल्दी और थोड़ा सा पीला चावल बाधे किसी देव स्थल के...